सरोगेट मदर Neelam Samnani द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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सरोगेट मदर

ये नई पीढ़ी, इस युग की बिल्कुल एक नई किस्म की फसल है । ये अपनी खुशी से सरोकार रखने वाले लोग हैं ये बाखूबी वाकिफ  हैं अपनी जरूरतें से और क्या और कितनी मापदंड भी इन्हें पता है


वो बाखूबी जानते हैं कि किस रंग के पर्दे उन्हें अपने घर की खिड़कियों पर टांगने है और तो और जाली दार पर्दो के भी बड़े शौकीन हैं  बहुत ज्यादा ट्रान्सपेरीन्ट है ये पीढ़ी।


इनकी किस्म बहुत अलग है  ये सबके अन्दर अपनी खुशियों को नहीं ढूंढते है इनकी खुशियां इन्हीं के मुट्ठी में रहती हैं ये ज्यादा देर उदासी के फेरे नहीं करते। 


ये समाज का वो  विकसीत होता हुआ अंग है जिसे अपने मन की धूप का टुकड़ा चुनना आता है और तो और उसे वैसे ही अपने आंगन में भी रखना भी आता है ये अपने हिस्से के धूप पर इतराना भी जानते हैं 


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आज न जाने क्यों मुझे इला याद आ रही है


इला २ बरस की हो गई होगी और उसके पैरों में वक्त खुद जाकर लिपट गया होगा ।जो रोज रोज उसे भगाकर खुद के ऊपर से गुजरते हर तरह के रास्तों से ले जाकर  बढ़ा कर रहा होगा।  


मेरे माजी को भी वक्त ने कही न कही अपने सिने में छुपाकर रखा होगा।  जिससे मै कभी न कभी रोज मिलती हूं जब वक्त के पहिए का एक घुमावं मुझ पर पूरा होता है


"कायरा.........कायरा"  वेयर यू लोस्ट? उसके  रुसी दोस्त करोल ने काफी पकड़ाते हुए पूछा..


कायरा सिर हिला देती है और मुस्करा कर कहती हैं "नथींग ..जस्ट‌ लाईक दैट"


कायरा कुछ वक्त करोल के साथ बिताकर घर वापस आ जाती है तब उसे लगता है -" काश ! घडी की सूई ‌को वापस रिवर्स गियर में डालकर पीछे जा सकते" ।


क्या क्या ख्याल बार बार एक दूसरे के आमने सामने आकर एक दूसरे पर तलवार निकाल कर खड़े हो रहे हैं 


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चार साल पहले


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कायरा मध्यम कद काठी की लड़की ,रंग सांवला ,बाल कंधे तक मगर आंखें बहुत ही ज्यादा खूबसूरत , तलाकशुदा पर साफ्टवेयर कम्पनी में HR के पद पर है


ख्यालों से हमेशा आजाद रही। उसके लिए प्यार एक जरुरत  नहीं ,बल्कि एक ऐसी प्रार्थना है जो होंठों पर रखकर ,कुछ देर बुदबुदाकर आसमान में उन मंत्रो की तरह छोड़ देना चाहिए ,जो किसी ओर की दुआ में पढ़ें गये हो।


वो कभी कभी डायरी लिखती हैं तब लिखती हैं "घने जंगल में उगा एक जंगली फूलों की तरह होता है प्रेम ,जिसकी खुशबू से पूरा जंगल महकता है


मैं जब प्रेम में रहूंगी तो जंगली फूल बन जाऊंगी।"


शेरनी जैसी लड़की है  पिछले साल जब वो कंवर से तलाक की बात कर रही थी तब वजह कोई बड़ी नहीं थी सिर्फ ये - "कि अभी भी खुद को समझने का वक्त चाहिए।"  शादी से पहले भी कंवर से बस वक्त ही मांगा था और जिस के लिए कंवर तैयार नहीं थे और मैं शादी के लिए तैयार नहीं हो पा रही था


कंवर से कई बार मैंने कहा कि अभी थोड़ा रूक जाते हैं थोड़ा उन पहाड़ों को देखकर आते हैं जो एक ही जगह पर कई हजारों सालों से है पर न कभी  जमीन के उतने हिस्से से ऊबे और न ही कही किसी से कभी अपने न चल पाने का अफसोस किया।


मगर हर पल हर लम्हा अपने ही उत्सव में रहकर बस उतनी ही जमीं के इश्क में डूबे रहे ।


पर वो हमेशा बात मुस्करा कर टाल देते थे। मैं कुस -मुसाकर रह जाती थी इस उम्मीद से कि आज के जमाने का लड़का मेरे पंखों को उड़ान जरूर देगा।


अब इस रिश्ते में मेरा  दम घुटने लगा है मैं अभी खुद को इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं कर पा रही हूं रिश्ते में आने के बाद भी मुझे खुद की तलाश रहती है जैसे ये मेरी मंजिल नहीं , जैसे मेरा सुकून ,मैं खुद ही हूं।


सबसे बड़ी बात उसे प्रेम नहीं हो पाया था एक साल के रिश्ते से।वो पहाड़ों वाली अडिगता समझ नहीं पा रही थी वो जड़ नहीं थी उसके हिस्से में आत्मा भी थी साथ ही उसकी अपनी आदतें और अपनी सोच।


कुछ दर्द दिखाई नहीं देते ,उनकी वजाहत की जमीन भी मजबूत नहीं होती , इसलिए कुछ फैसले सिर्फ धड़कनों से लिए जाते हैं बिना किसी वज़हात के पैमाने के।


मेरा दिल नहीं मान रहा था इस रिश्ते में रहने के लिए , इसलिए एक दिन मैंने साफ़ साफ़ कह दिया- कंवर,


मुझे नहीं लगता मैं इस रिश्ते को और जी पाऊंगी और मैं तुमसे तलाक की उम्मीद रखती हूं


इतना कहकर वो घर से चली गई।


कायरा एक जगह ठहरने वालों में से नहीं थी बैठना, उठना, चलते फिरते रहना उसकी आदतों में से एक था ऐसे में सिर्फ प्यार में जीवन खत्म करना ,उसे रास नहीं आ रहा था


अब मै अपने मन के पन्ने पढ़ रही थी दुनियां देखना और उसे उल्ट करके खंगाल कर अपने हिस्से के रंगों को चुनकर अपने घर की दीवारों को उस से रंगना चाहती थी


इन्ही दिनों जब वो रोज रोज सुबह धूप के टुकड़े घर की दीवार को कीलों  पर टंगती  उतर रही थी


तब मैं बहुत खुश रहती थी काम बोझिल या थकाता  नहीं था मुझे ।


पूना जैसे शहर की अकेले किसी मोड़ से मुड़ती हुई गली में ऊंची मंजिल की  शानदार बिल्डींग में अकेले रहना मुझे बहुत भाता था और कभी कभी मैं अपने मनपसंद नेट के पर्दे लगाकर सुकून ढूंढ लेती थी। 


तो किसी आफिस से वक्त निकालकर कभी कभी चारॅकल पेन्टीग करती रही। वक्त को अपने हिसाब से मोड़ती रही ।वक्त को मैं अपना रास्ता दिखाने में मसरूफ रहने लगी थी।


मैने पीछे मुडकर नहीं देखा ,कंवर याद आते थे पर अभी भी उन चीजों में शामिल न थे जिसके लिए मैं उनके पास जाने की सोच सकती।


प्यार मेरे लिए बन्धन या किसी सवाल का जवाब नहीं था


प्यार , मेरे लिए इस कायनात को संपूर्ण करने की एक खूबसूरत प्रक्रिया थी


शायद इसलिए कंवर का एहसास उतने हद तक यादों में नहीं रहता था ।


तभी उन्ही दिनों  मेरी मुलाकात सुयोग्य से हुई,मेरे अपने आफिस में ही ,मैं जहां लोगों प्रोफाइल को चेक कर उनके डोमेन के हिसाब से  उनके डिपार्टमेंट को केन्डिडेट का प्रोफाइल‌ भेजना  हमारी टीम का काम था  उसी वक्त  सुयोग्य का प्रोफाइल जो मेरे हाथो में था  वो घंटों मेरी दो अंगुलियों के बीच चिपका ही रहा । न जाने उसकी प्रोफाइल किस लाइन ने  मुझे उसकी तरफ आकर्षित किया। 


 वो प्रोफाइल देखने के बाद  मन तो किया कि सीधे उनसे मिलने जाऊं,पर उसे शार्ट लिस्ट में डालकर उनका इंटरव्यू कन्फर्म कर दिया। 


कुछ दिनों बाद जब उनका HR राउंड था तभी मुझे उनकी सोच ने उनकी तरफ झुक रहे दिल को मजबूती दी और दिल को कहा -  दिल तुम्हारी पसंद पर नाज़ है


सुयोग्य बात करने के लहजे से बड़े ही शांत स्वभाव के थे जिन्दगी में उन्हें किसी बात की जल्दी नहीं थी पर हां उनकी सीरत जितनी सरल थी उतने ही चेहरे से रोबीले नजर आते थे असल में दिल से नटखट और मासूम थे बच्चों की तरह।


आफिस में आंखों के कोनों से उससे नजरे मिलाने का मन  करता था उसकी हंसी में खुद की हंसी ढूंढती थी  महकने लगी थी  चि ची  करती चिड़िया जैसे चहकने लगी थी उसके पास जाकर घंटों बातें करना मेरा शौक हो गया था। 


एक बात सच है कि प्रेम में डूबा ज्ञानी और अज्ञानी सब एक जैसे ही मालूम पड़ते हैं


आते जाते सुयोग्य ने देखा कायरा उसे किसी ओर ढंग से देखती रहती है शुरू शुरू में तो थोड़ा अजीब लगता था उसे । उसे लगता था हर वक्त दो निगाहे उसके हर एक्शन पर नजर रखी हुई है फिर धीरे-धीरे वो मेरी तरफ झुकने लगा।प्यार की बायर हर तरफ बहने लगी थी


ऐसा‌ कम ही होता है प्यार को प्यार मिल जाएं ।  हाथ को हाथ का साथ।


मै थोड़ी खुशनसीब निकली।  दिमाग में सुयोग्य के लेकर कोई द्वंद नहीं था खुद को सही साबित करने के लिए कोई तर्क वितर्कौ  भी दिमाग में कैद  नहीं थे।


सच सिर्फ इतना है कि आदमी प्यार में बहुत नाज़ुक हो जाता है बिल्कुल वैसा जैसे सर्दियों की धूप होती है जो हर पेड़,हर दिवाल पर औंधे मुंह लेटकर उन्हें चूम रही होती है बिल्कुल उसी तरह से कच्चा ...


सुयोग्य से आहिस्ता आहिस्ता नजदीकियां बढ़ने लगी। रोज रोज कभी  राॅक बार में तो कभी काफी हाउस में तो कभी कभी सुयोग्य उसके घर का नाज़ुक सा पर्दा बनता और घंटों वहीं हवा में लहराता था


मै प्रेम में थी सिर्फ प्रेम में ,सिर्फ प्रेमीका  बन गई थी । दिन भर मेरा मन न जाने कितनी यात्राएं तय करता  सुयोग्य को लेकर। ये प्रेम यात्राएं सबकी अपनी है कोई उसमें डूबकर यात्रा पर निकलता है तो कोई सतही यात्रा तय कर कच्ची मिट्टी की दिवाले बनाते हैं जो पहली बारिश में टूटकर बह जाती है यात्राएं जारी रहती है फिर भी


मुझे दुनिया का खुलापन ज्यादा आकर्षित करता रहा है इसलिए  मैने अक्सर उसे अपने घर शिफ्ट होने की बात की थी उस दिन भी मैने कहा - रोज रोज एक दो घंटे के लिए मिलने से बेहतर है तुम ठहर क्यो नही जाते  , इस  तरह हम तुम रोज रोज  मिलते रहेंगे और मुझे तुम्हारी जरूरत  है  मैंने  मुस्कराकर उसे छेड़ते हुए कहा।


सुयोग्य एक छोटे शहर से था वो घर वालों को सोच  कर काफी वक्त तक मेरा साथ लिव-इन में रहना टालता रहा । उसे हमेशा अपने परिवार और समाज की ज्यादा चिंता रहती था


सुयोग्य मुझे मुस्कराते देखकर बोले - तुम्हारी जरूरतें कुछ ज्यादा नहीं हो गई?


फिर हम दोनों जोर से हंस दिए।


उस दिन से सुयोग्य ठहर गए,मेरे साथ।


हम दोनों  घर से दफ्तर और दफ्तर से घर का रास्ता साथ साथ तय करने लगे  ।


मैं कुंवर को  पूरी तरह भूल चुकी थी  अपने प्यार और काम में रम चुकी थी मुझे सुयोग्य के साथ  किसी की कमी‌ नहीं खलने देता था


प्रेम अपने ही किस्से और नई कहानी अपने साथ लाता है जो हर रोज नए ताने बुनकर नया घौसला तैयार करता है हां प्यार के घौंसले अलग वक्त की अलग कहानी बताते हैं वक्त अपनी गुंजाइश के मुताबिक प्रेम की‌ आजादी तय कर के प्रेमी के प्रेम की सांसों की गिनती रखता है 


मैं उन दिनो वक्त से परे थी इसलिए मुझे प्रेम की आजादी और  सांसें ज्यादा मिली हुई थी मैं हर रंग को प्यार में भरना  चाहती थी सारे रंग ......काले सफेद के अलावा भूरे रंगों से भी डर नहीं लगता था अब


ज़िन्दगी के हर रंग को छू कर जीना चाहती थी । उन्हीं दिनों जब सुयोग्य को आफिस के काम से एक साल के लिए अमेरिका जाने की बातें चल रही थी उन दिनों मेरा दिमाग अक्सर खाली समय में एक नई उधेड़ बुन में लगा रहता था


जिसके बारे में किसी से कुछ नहीं कहना चाहती थी दिल एक अजीब से ख्याल बस चुका था कुछ समझ नहीं आ रहा था उस ख्याल को किस साथ डिस्कस करूं?। जानती थी सुयोग्य को मेरे ख्याल को कोई इम्पूर्टस नहीं  देंगे।


एक दिन जब मैं सुयोग्य की  अमेरिका चलने की जिद से परेशान होकर  सोसाइटी के पार्क में जा बैठी थी सच ये था कि मैं उड़ना चाहती थी पर अपनी ही शर्तो पर,एक चिपको प्रेमिका ने उसे बांधना चाहती थी और न ही मैं बंधना चाहती थी मैं आजादी में विश्वास करती आई हो। पंख पसारने का सर्फेस हमेशा रहना चाहिए।


मैने उसे कहा


"सुयोग्य मुझे तुम्हारे साथ नहीं जाना।समझने की कोशिश करो । तुम अपने काम में दिन रात रहोगे ,मैं क्या करूंगी । यहां मेरा काम है सब कुछ है बिजी रहूंगी। "


तुम्हारा प्रोब्लम क्या है , सिर्फ ४-६ महिनों की बात है -सु‌योग ने थोड़ा झल्लाकर  कहा


तब मैं दरवाजा जोर से फेंकती हुई पार्क में आ गई।


तभी उसने एक गर्भवती महिला को देखा । उसके दिमाग में जो कई दिनों से उथल-पुथल चल रही थी आज वो नजरो के सामने थी  जो मेरे बदन में एक सिरहन सी पैदा कर रही थी मेरे मन के कोने में एक दबी हुई चहा  उठने लगी । कई कई दिनों से मां बनते वक्त जो भिन्न -भिन्न अवस्था से महिलाएं गुजरती है मुझे उन रास्तों से गुजर कर देखना था  मुझे वो दर्द चाहिए था अपने यादो की तरह ,एक अनुभूति की तरह,देह एक सेल में उस दर्द की सिंचाई करना चाहती थी  मैं महसूस करना चाहती थी अपनी कोख कि कैसे कोई छोटी सी कोख ९ महीने तक बच्चे को संभालती है  ये बात हर वक्त मुझे रोमांच भर देती है मैंने खुदा पर विश्वास हमेशा एक संदेह के साथ किया । मां की कोख जादू का ऐसा झूला लगता है जिसमें सारी जादुई शक्ति है


जब प्राकृति अपनी ही संरचना से अनजान होती है तो अपनी ही परतों का हटा कर देखती है कि किसी दैवीय शक्ति से उसके गर्भ में खाजाना भरा गया है


अपने ही गर्भ को दस बार टटोलती है देखती है कि क्या है इसमें ऐसा कुछ जो एक नई जिंदगी को जन्म देता है


सुयोग्य अमेरिका के लिए निकल रहा था और वो अपनी ही प्रकृति समझने में उलझी हुई थी जैसे जैसे वक्त बीत रहा था उसकी बैचेनी बढ़ रही थी वो मां बनने के एहसास को समझना चाहती थी महसूस करना चाहती थी


वक्त उसकी कोख में करवट लेना चाहता था वक्त के भागते पहियो को अपने से होकर गुजरता देखना चाहती थी


ऐसा नहीं था उसे बच्चों से बहुत प्यार था उसे बच्चे का ठहराव  अपनी जिंदगी में कहीं नहीं चाहिए था ।


उसे तो सिर्फ़ एहसासों से होकर गुजरना था । उसका मन उन एहसासों को छूने के लिए तड़पने लगा। वो  एक नई जिंदगी को


जन्म देने के लिए उतावली हो रही थी। वो खुद को जमीन समझने लगी , जिसे बस बीज कि इन्तजार कर रही थी

मैं उन दिनों रोज

न्यूज पेपर देख रही थी मन में क्या था उसके कोई नहीं जानता था बेचैनी मेरे सर पर इस कदर  हावी हो गई थी दिन रात उलझ गई  खुद की तलाश में।


एक दिन सिटी हस्पिटल जाकर मैंने अपना नाम रजिस्टर करा दिया और एक फार्म भर दिया, जिसमे लिखा था कि मै मां बनने के लिए पूरी स्वस्थ है व आवश्यक होने पर मुझे सरोगेसी के लिए बुलाया जाएगा। 


उसकी तड़प दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी  रोज वो खुद को आईने में देखती थी और फिर अपने अन्दर बिछी हुई मिट्टी को निहारने की कोशिश करती , जिसमें से बीज अंकुरित हो सकता है वो दिन रात सिर्फ अपने अन्दर बीज के बोए जाने का इन्तजार करती रहती थी


तभी उन दिनों  अस्पताल से फोन आया ,कि उन्हें एक कपल ने  सरोगेसी के लिए चुना है मेरे कुछ पहले टेस्ट हो चुके थे जिसके आधार पर मेरी स्वास्था चेक कर ली गई थी 


मैं जल्दी जल्दी

  तैयार होकर अस्पताल के लिए निकली ,रास्ते भर उथल-पुथल  चल रही थी मेरे अन्दर  ,क्या होगा कैसे होगा?  बहुत कुछ सोचते सोचते मै अस्पताल तक पहुंच गई।


डॉ से मिलने उनके केबिन में पहुंचीं और  सारी जानकारी लेनी थी डॉ  भी मुझे कुछ  समझाना भी चाहते थे 


केबिन को नोक नोक करके  अन्दर जाती हूं 
"हैलो  डाक् "


डॉ संज्ञा- "हैलो कायरा", कैसी हो ?
"आई एम फाइन, थैंक्यू"
डा -कुछ चेकअप करने है अभी 


- फिर तुम्हे  कुछ मेडिसिन पर रख जाएगा जो तुम्हें मेंटली    तैयार होने में मेंटली मदद करेंगी।


कायरा - किस तरह का मेंटली रैंडी होना ?


डॉ - जिस बच्चे को तुम कोख में रखने वाली हो वो तुम्हारा नहीं होगा। इस बात के लिए तुम्हें मैंटली और इमोशनली। स्ट्रांग होना पड़ेगा।तुम्हें ये अपनी आत्मा तक कबूल करना होगा कि किसी ओर के बच्चे को पाल रही हो बस ।


कायरा -डा ,मैं कोख में किसी ओर के बच्चे को ही सही ,पर उसे मैं अपनी सांसों तक महसूस कर पाऊंगी। कैसे एक मां इतने कष्ट उठाकर उसे अपने कोख में संभालती है कैसे उस नन्हे  से बीज से छोटे हाथ पैर का आना ।उसका किक मारना ,मैं वो सब महसूस  ना चाहती हूं।जो दुनिया का


सबसे ज्यादा खूबसूरत एहसास है मैं उसे नन्हे से बीज के दिए हुए तोहफो को लेने के लिए तैयार हूं


डॉ - खुद पर विश्वास रखना ,सब आसान लगेगा।


जब तुम तैयार हो जाओगी तब सरोगेसी का प्रोसेस शुरू करेंगे।


डा उसका पूरा चेक अप करती है और फिर कुछ मेडिसिन देकर कहती हैं - अब आराम कर लो।


थोड़ी देर बाद उससे मिलने एक कपल आते है उनके साथ एक नर्स भी आती है जो कायरा का कपल से मिलवाती है


नर्स - ये है श्रीवास्तव कपल( जिन्होने उसे अपनी बच्चे के लिए चुना हैं  )मैडम आपको कोई बात या सवाल करना है तो बात कर लिजिए।  या  श्रीवास्तव जी आपको इनसे कुछ सवाल करने हो तो पूछ सकते हैं 

फिर नर्स के जाने के बाद कायरा उन्हें अपनी डिटेल्स देती है


श्रीवास्तव कपल कायरा को एक ही शब्द कहते हैं - थैंक्यू कायरा।


कायरा को तो बस खूबसूरत फूल इस दुनियां को देना था पर आज उसे लग रहा था वो मुस्कराहट बांटने का काम भी कर रही है  किसी बड़े से बगीचे की मालकिन हो गई है सबको  भर भर के फूल बांट रही हैं 


ऐसा वो सोच ही रही थी कि मिस्टर श्रीवास्तव ने बताया की- हम लोग पिछले १५ सालों से बच्चे के लिए कोशिश कर रहे हैं पर कुछ नहीं हो पाया ।


मिसेज श्रीवास्तव  --- न जाने कितने हकीम ने जाने कितने देवता और न जाने कितनी दवाईयां की ,पर जैसे सबने मिलकर हमारे खिलाफ षड़यंत्र किया हो, जैसे।


कायरा-अब आप फिक्र न करें । आपका बच्चा सिर्फ आपका ही होगा।


मिस्टर श्रीवास्तव - जी ,मैने आपके बारे विस्तार में डाक्टर से बात हुई है , बहुत बहुत शुक्रिया आपका।


इतने में डाक्टर अन्दर आती है कायरा को अपने साथ ले जाने के  लिए , उसके कुछ और चेकअप होने अभी थे


कायरा बहुत खुश है ‌अब वो अपने अन्दर जीवन बोकर अपना सपना पूरा करने जा रही है


उसका सपना उस यात्रा पर जाने के था जहां सिर्फ अनुभव था मगर मंजिल की तमन्ना उसकी नहीं थी


*****


वर्तमान


कायरा की देह ही केवल अनुभव के रास्ते से होकर नहीं गुजरी ,मन ने कई अनुभव और यादों को संजोया हमेशा के लिए ।


"

मैडम ...मैडम ...काफी - उसकी हेल्पर ने आकर उसे उसके माजी से काफी पकड़ाकर बाहर  निकाल  आई।


खिड़की के बाहर खुला आसमान और ज़मीं पर बिछी घास मुस्करा रही हैं