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मनचाहा - 21

अवि ने मुझे एक कुर्सी पर बिठाया और पानी पिलाया। मेरा रोना बंद नहीं हो रह था।
अवि- पाखि, अब रोना बंद करो सब नीचे राह देख रहे हैं हमारी। हमें रिसोर्ट भी जाना है, plz चुप हो जा। यह हमारे प्रोफेशन का सच है और तुम्हे इसे स्वीकारना ही होगा। तुम ऐसे रो नहीं सकती। पेशंट के साथ इमोशनल अटेचमेंट रखोगी तो एक अच्छी डाक्टर नहीं बन पाऐगी। किसीके साथ इमोशनल रहे तों उसका इलाज नहीं कर पाते हम, यह बात याद रखना।
मैं रोना बंद करके नीचे जाने लगी। अवि मेरे पीछे पीछे आने लगे। सब फ्रेंड्स नीचे खड़े थे, मुझे आता देख सब बाहर की ओर चल पड़े सिवाय रविभाई के। रविभाई मेरे पास आए, उन्होंने मेरी रोई हुई आंखों को देख लिया था।

रविभाई- क्या हुआ बच्चा, रो क्यूं रही है??
अवि ने उसे चुप रहने का इशारा किया और बाहर चलने को कहा। रविभाई ने बताया हमे रिद्धि के घर जाना है क्योंकि डिनर नहीं किया था सबने तो भूखे हैं सब। मैं चुपचाप उनके साथ चलने लगी। सब कार में बैठ गए थे। हम रिद्धि के घर पहुंचे तब बारह बजने आए थे। घर पर अंकल-आंटी, रिद्धि, संजना दीदी और मनोज जाग रहे थे। हमारे आते ही महाराज से खाना गर्म करवाया और गर्म रोटी बनाने को कहां। जब खाना तैयार हुआ हम सब बिना कुछ बात किए चुपचाप खाना खाने लगे। मेरे हलक से निवाला नहीं उतर रहा था।मेरी आंखों से सबको पता चल गया था कि मैं रोई थी पर अवि ने सबको पुछने से मना कर दिया। अवि मेरे बाजू में ही बैठे थे। उन्होंने मेरे हाथ पर हाथ रखा और खाने का इशारा किया। अनमने मन से मैंने एक रोटी खाई उसके आगे नहीं खा पाईं। खाना ख़त्म करके जब सब ड्राइंग रूम में बैठे तब अवि ने सबको बताया कि अस्पताल में क्या हुआ और मैं क्यों रोई। सब अपनी दिनचर्या गई ड्यूटी का विवरण दें रहें थे।

हम सब रिसोर्ट पहुंचे। सब बहुत थक गए थे तो सोने चले गए। रविभाई मेरे पास आए और पूछा,- तु अब ठीक है ना बच्चे। मैंने हां में जवाब दिया।
उन्होंने कहा ठीक न लगे तो तेरे साथ रुक जाऊं?
मैं- मैं ठीक हूं भैया आप फ़िक्र न करें। वो उस टाइम कुछ वक्त के लिए इमोशनल हो गई थी।
रविभाई- पक्का ठीक है न?
मैं- भैया... plz आप जाइए मुझे कुछ देर अकेले छोड़ दिजिए।
रविभाई- ठीक है goodnight, अगर कुछ भी हो बुला लेना। मैं चलता हूं।
मैं भी अपने रूम में आ गई। पर मेरी आंखों से नींद ओझल हो गई थी। बाथरूम में पानी गर्म करके नहाने चली गई। बाहर आकर मोबाइल चेक किया तो घर से पांच मिस कोल आए हुए थे। मैंने सबके मोबाइल पर मेसेज कर दिया कि "मैं ठीक हूं, मोबाइल रूम पर रह गया था", ताकि वे बेफिक्र रहें। रूम में मुझे घुटन हो रही है, पर इस वक्त कहां जाऊं? रविभाई को उठाऊं? नहीं नहीं वे भी तो थक गए हैं। मुझे लगता है मुझ पर डिप्रेशन हावि हो रहा है। एक काम करती हुं टेरेस पर जाती हुं। पर वहां पर ठंड ज्यादा होगी, कोई नहीं मैं स्वेटर पहनकर जाती हुं।
रात के देढ़ बज रहे हैं। टेरेस पर काफी ठंडी हवा चल रही है। मैं टेरेस के एक कौने में खड़ी रह गई। मेरे मन से उस बच्चे का चहेरा हट नहीं रहा है। मैं उसकी जगह चन्टु बन्टु को इमेज़ करने लगी और मेरी आंखों में फिर से आंसू आ गए।

इधर रूम में अवि
आज का दिन काफी थकान भरा रहा। आह! शरीर के सारे पूर्जे दर्द कर रहे हैं। गर्म पानी से नहा लेता हुं तो कुछ थकान तो कम होगी। नहाने के बाद फ्रेश लग रहा है। बिस्तर पर लेटकर आराम मिला। भगवान ने सबसे अच्छी चीज दुनिया में बनाईं है तो वह है नींद। (कहानी में ऐसी सोच पाखि की भी है) पर मुझे नींद आ क्यो नही रही। शायद पाखि की वजह से, मैं उसे रोते नहीं देख पा रहा था। इस वक्त सो गई हो तो अच्छा है। निंद तो आ नहीं रही तो चलो थोड़ा टहल आए बाहर।

अवि नीचे गार्डन में जाता है और वहां एक बेंच पर बैठता है। कुछ देर आंखें बंद करके आसमान की तरफ मुंह करके बेंच के सिरहाने पर सर रख दिया। फिर आंखें खोलकर वह आसमान में सितारों को देखने लगा।
अवि- आसमान इतना अच्छा लगता है मुझे पता ही नहीं था। टिमटिमाते सितारे कितने खूबसूरत लग रहे हैं। और आज तो पूनम की रात भी है। ऐसे सुहाने मौसम में एक गीत याद आ रहा है," ये समां.., समां है ये प्यार का.., किसके इंतजार का.."। पर मेरा प्यार कहा है अभी मेरे पास। अगर प्यार साथ होता तो इस सुहानी रात में और चार चांद लग जाते। (अवि की नजर आसमान देखते-देखते रिसोर्ट की टेरेस पर जाती है) लगता है टेरेस पर कोई खड़ा है। जो खड़ा है उसके बाल खुले हुए हैं, कोई भूत प्रेत या चुड़ैल तो नहीं।?☠️ सारा रिसोर्ट सोया पड़ा है। नक्की ये भूतनी ही है। पर वो हिल-डुल भी नहीं रहीं हैं, मेरी ओर तो नहीं देख रही? रात तो पूनम की है पर उसके मुंह पर चांद की रोशनी नहीं पड़ रही। चेहरा अंधेरे के कारण कुछ स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा। उपर जाकर देखूं क्या? देख ही लेता हुं। पता तो चले ये भूत-चुडैल दिखते कैसे हैं। शायद वो स्त्री मुवि की तरह अपना प्यार ना ढुंढ रही हों। और उसका प्यार गलती से मैं निकल गया तो... मम्मी... क्या करु? एकबार टेरेस पर जाकर देख ही लेता हुं।

अवि टेरेस पर जाता है और छुपकर देखता है यह है कौन? रात पूनम की है पर यह साया जहां खड़ा है वहां रूफटोप बनाया हुआ है तो क्लियर नहीं दिख रहा था। साया अभी भी गार्डन की ओर मुंह रखकर खड़ा रहा है। अवि धीरे धीरे पिछे जाता है और उस साये के कंधे पर पिछे से हाथ रखता है। साया डरकर मुड़ता है तो अवि ने देखा वो पाखि थी।
अवि- पाखि तुम...? डरा दिया तुमने यार। यहां क्या कर रही है?
मैं- (अपने आंसू पोछते हुए) कुछ नहीं, निंद नहीं आ रही थी। फ्रेश होने बाहर आई।
अवि- इतनी ठंड में कोई छत पर आता है? नीचे गार्डन में भी जा सकती थी मेरी तरह। और ये क्या तुम अब भी रो रही हो? पाखि तु अभी भी उस बच्चे को याद कर रही है ना?
मैं- मैं क्या करूं? मैंने कितनी कोशिश की भूलने की पर मेरे दिमाग से यह हटता ही नहीं। उस लड़के के बजाय मेरे चन्टु बन्टु होते तो? मैं क्या करती, मैं कैसे रह सकती उनके बगैर? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा मैं यह क्या सोच रही हुं।ट

फिर से वह रोने लगती है।
अवि (सोचते हुए) यह तो डिप्रेशन में जा रही है। इसका ध्यान किसी ओर तरफ़ भटकाना पड़ेगा। वरना कही इसी को ट्रीटमेंट लेनी न पड़ जाए।
अवि- अच्छा ये बताओ तुम्हें नैनीताल कैसा लगा।
पाखि कुछ बोली नहीं।
अवि- रिद्धि के घर खाना बहुत अच्छा बनता है मजा आता है खाने में क्या कहती हो।
पाखि फिर भी चुपचाप दूसरी ओर देखकर रो रही है। अवि को थोड़ा गुस्सा आता है, वह पाखि को पकड़कर अपनी तरफ खिंचता है।
अवि- ( गुस्से में) पाखि वो चन्टु बन्टु नहीं थे, समज क्यों नहीं रही। यह हमारा प्रोफेशन बनने वाला है। तु इस तरह कैसे कर सकती हो। वो बच्चा तुम्हारे कारण नहीं मरा, एक्सिडेंट में सिरियस घायल हुआ था और उसकी दिमाग की नस फट गई थी। मुझे वहां के डाक्टर ने बताया था। तुने नहीं मारा उसे समझी। अब तो सोचना बंद कर।
पाखि यह सुनकर भी लगातार रोए जा रही है। अवि सोचता है मुझे इसका ध्यान भटकने के लिए यह करना ही होगा। वह पाखि का चेहरा दोनों हाथों से पकड़कर उंगलियों से उसके आंसू पोछता है और अपने होंठों को पाखि के होंठों पर रख देता है।

क्रमशः
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