अविनाश सर ने रवि सर को देखकर अपनी बाइक रोकी। आज वो भी बाइक से आए थे। हमारे पास आकर हंसके कहा-" फिर से बंद?"
रवि सर- फिर से मतलब? पहले कब बंद हुई थी?
मैं- जी कुछ दिन पहले। तब अविनाश सर ने ही हमारी मदद की थी।
रवि सर- (अविनाश सर के सामने देखते हुए) ओ... अच्छा... तो कैसे शुरू हुई थी यह?
मैं- सर ने ही शुरू कर दी थी।
रवि सर- good! चल आजा अवि अब तू भी देखले, शायद तुझसे ही शुरू हो।
स्कूटी शुरू करने की काफी कोशिश की पर वो शुरू ही नहीं हो रही थी।
दिशा- अब क्या करें? पापा को कोल कर ही देती हु।
मैं- विकास भैया भी चले गए वरना उनके साथ ही चले जाते।
अविनाश सर- क्या कहा तुमने विकास? सेकंड यर में है वो?
मैं- जी अविनाश सर, वो मेरे मुंहबोले भाई है और हमारे घर के सामने ही रहते हैं।
अविनाश सर- पहले तुम मुझे अविनाश सर कहना बंद करोगी plz?
उनके यह कहते ही हम तीनों उनकी ओर देखने लगे।
अविनाश सर- (थोड़ा झेंपकर) मेरा मतलब है, तुम दोनों मुझे अवि कह सकते हो। क्योंकि तुम दोनों निशु की फ्रेंड्स हो तो उस हिसाब से...
रवि सर- किस हिसाब से?
अविनाश सर- मेरे ग्रुप में सब मुझे अवि ही कहते हैं। तो सर कहने की फोर्मालीटी की जरूरत नहीं है। और अब तो तुम विकास की भी बहन हो तो...
दिशा मेरे कान में फुसफुसाई- "हम इनके ग्रुप में कबसे शामिल हुए तो इसे अवि कहें? मुझे तो पता ही नहीं चला, तुझे पता है क्या कुछ इस बारे में?"
मैंने आंखों से इशारा करके ना में जवाब दिया।
दिशा- जी सर।
अविनाश सर- सर नहीं सिर्फ अवि। Ok..
दिशा- वो तो ठीक है अवि कह लेंगे पर कोलेज में सबके सामने कैसे कहेंगे?
रवि सर- उनकी चिंता तुम मत करो। और हां अवि के साथ साथ मुझे भी रवि ही कहना।
मैं- सोरी रवि सर, पर मेरे बड़े भाई का नाम भी यही है तो मैं आपको रवि नहीं कह सकती। आपको रवि कहते कहते उन्हें भी रवि कहने लगी तो...। फिर सूनना पड़ेगा, कोलेज में यही सिख के आई है? अगर आपको एतराज ना हो तो मैं आपको रविभाई कहकर बुलाउ?
यह सूनते ही अचानक रवि सर थोड़े इमोशनल हो गए।
मैंने अविनाश सर के सामने देखा। उन्होंने मुझे चुप रहने का इशारा किया। तभी...
रवि सर- क्यो नही पाखि, तुम मुझे रवि भाई कह सकती हो।
दिशा- और मैं क्या बोलूं?
रवि सर- (हंसते हुए) तु रवि ही बोल। अच्छा ये सब छोड़ो। पाखि अब तुमने मुझे भाई कह ही दिया है तो मेरा फ़र्ज़ है कि मैं अब तुम्हें घर छोड़ आऊं।
दिशा- अच्छा बच्चू... मैं क्या पैदल जाऊं...?
रविभाई- पैदल क्यूं? ये अवि है ना, वो तुझे घर छोड़ देगा। वैसे मैं भी छोड़ देता पर हम तीनों एक बाइक पर adjust नहीं कर पाएंगे। हम स्कूटी साइड में पार्क कर देते हैं। सुबह मिकेनिक को दिखा देंगे। ठीक है पाखि?
मैं- ठीक है भैया।
मैंने देखा अवि रविभाई को घूर रहे थे और रवि भाई उन्हें देख हस रहे थे।
हम दोनों को अपने अपने घर छोड़कर वे दोनों चले गए। घर पे सब सो गए थे सिवाय रविभाई के। वे ड्रोईंग रूम में बैठे हुए थे।
मैं- भैया आप अभी तक सोए नहीं? मैंने कहा तो था बारह बजे तक आ जाउंगी। तब घड़ी में बारह बजकर पांच मिनट ही हुए थे।
रविभाई- हां पता है छोटी। वो क्या है कि आज तक तुम अकेले बाहर गई नहीं तो चिंता हो रही थी। वैसे तेरी भाभी ने बताया अब तु अकेले कही आ- जा सके उतनी बड़ी तों हों ही गई है। दिशा भी साथ में हैं तो चिंता न करु। सोने के लिए भी गया पर निंद नहीं आई तो यहां चला आया।
मैंने भैया के बाजू में बैठ कर कहा- आप भी न भैया, अपनी निंद क्यों खराब कि। मैं तो जल्दी ही आने वाली थी पर दिशा की वजह से वहां रुक गई। मेरे कारण वो बेचारी को एंजॉय कम करने को मिलता। और दूसरी बात ये भी है कि मेरी रामप्यारी ने मुझे फिर से धोखा दे दिया।
रविभाई- क्यों क्या हुआ?
मैं- क्या भैया कैसे ठीक कराई इसे, आज फिर बिच मे बंद पड गई। वो तो अच्छा हुआ कि हमारे सिनियर्स ने हमें मुसीबत में देखा और वापस आए।
फिर मैंने भैया को अवि और रविभाई के बारे में सब बताया।
रविभाई- लड़के भले घर से लगते हैं वरना आज कल के कुछ लड़को के बारे में पता है मुझे।
मैं- हां, सही कहा भैया। आपने भरत पारेख का नाम सुना है जो गायत्री कंस्ट्रक्शन कंपनी चलाते हैं।
रविभाई- हां, जिन्हे पिछले साल बेस्ट कंस्ट्रक्शन कंपनी का अवार्ड मिला था।
मैं- हां भैया वही। निशा और अवि उन्हीं के बच्चे हैं। एक बात कहूं भैया, इतने बड़े आदमी के बच्चे हैं पर दोनों में बिल्कुल घमंड नहीं है। पहले मुझे निशा घमंडी लगी थी पर मैं गलत थी।
रवि भाई- और रवि?
मैं - उनके बारे में मैं कुछ नहीं जानती। हा पर वे भी लगते तो अच्छे खानदान से ही है। मैंने उन्हें जब पूछा कि मैं आपको भाई बुलाउ तो वे पता नहीं क्यों पर थोड़ा इमोशनल हो गए थे।
अच्छा छोड़िए ये सब! आप कोफि पिएंगे?
रविभाई- हां इच्छा तो हो रही है। एक काम कर तु फ्रेश होकर आ जा तब तक मैं कोफि बनाता हूं।
मैं- ठीक है भैया।
रविभाई बेस्ट कोफि बनाते हैं। मैं अपने रूम में फ्रेश हो ने चली गई। जब नीचे आई तब भैया ने कोफि बना दि थी। वो किचन से कोफि लेकर ड्रोइंग रूम में आ गए। जैसे हम सोफे पर बैठे की कवि भाई भी अपने रूम से बाहर आ गए। मैंने कप पकड़ के पुछा, कोफि पीनी है?
वो बिना कुछ कहे किचन से अपना कप ले आए। उन्हें आते देख मैं और रविभाई हस पड़े और हमारे साथ कविभाई ख़ुद भी हस पड़े। फिर मैंने और रविभाई ने अपने अपने कप से थोड़ी कोफि उन्हें दी। आज बहुत समय बाद तीनों अकेले बैठे थे।
मैं-आज मम्मी पापा की याद आ गई। हम सब भी कैसे रात को एक-एक कर बाहर आते थे और मम्मी तब कोफि बनाकर सब को पीलाते थे।
यह सूनते रविभाई उदास हो गए। वे मम्मी से हम सबसे ज्यादा नजदीक थे। उनको देख कुछ देर हमें भी हमारे मम्मी पापा के साथ गुजारे लम्हे याद आ गए।? फिर कविभाई ने माहोल बदलने के लिए कहा की " रविभाई, अच्छा हुआ सेतु भाभी और मिता सोएं हुऐ हैं तो हमें आपके हाथों से बनी कोफि पीने को मिली। आपके हाथों में मम्मी जैसा जादू है। अगर उन दोनों में से कोई जाग जाता तो सुबह दूघ कम पड़ेगा कहकर बिना दूध की कोफि पीला देते। यह सून तीनों ठहाके लगाकर हंसने लगे।
रवि भाई- धीरे हंसो वरना लेने के देने पड़ जाएंगे।?
हम अक्लमंद भी बहुत थे। किचन में जाकर मैंने बर्तन बिना आवाज किए धो दिए, कविभाई ने उन्हें कपड़े से पोंछ दिए और रविभाई ने उन्हें उनकी जगह पर रख भी दिए। मैंने प्लेटफार्म भी साफ कर दिया। फिर बिना आवाज किए सब लाइट्स ओफ करके अपने अपने कमरे में सोने चले गए।
क्रमशः
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