मनचाहा - 5 V Dhruva द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मनचाहा - 5

पिछे मुडकर देखा तो चोंक गई। पिछे वहीं लड़का था जिसे मैंने निशा के साथ कार में देखा था। ?
उसने फिर से कहा, - " में आई हेल्प यू?"
मैं बाजू पर हट गई, और उन्हें स्कूटी स्टार्ट करने दिया। उन्होने बताया कि मैंने आपको कोलेज केंटीन में देखा था। मैं कुछ बोली नही पाई।
पर हमारी दिशा महारानी तपाक से बोल पड़ी- जी हमने भी आपको देखा था।
मैंने उसका हाथ पकड़ा और चुप रहने का इशारा किया। थोड़ी देर ट्राइ करने के बाद स्कूटी स्टार्ट हो गई। हम थेंक्यु कहकर वहां से निकल गए। मैं दिशा को उसके घर पर छोड़ के अपने घर पहुंची तो सब ड्राइंग रूम में बैठे हुए थे।

रविभैया - आ गई पाखि... इतनी देर क्यों हो गई? तुम्हारा फोन भी नहीं लग रहा था बेटा।
- सोरी भैया, ये स्कूटी बंद हो गई थी रास्ते में। और मोबाईल...
अपना मोबाइल चेक किया तो वह स्विचओफ हो चुका था।
ओह ये तो बंद हो गया है। भैया ये सब छोड़िए, मैं क्या लाई हुं यह तो देखिए।
साड़ी देखकर सब मेरे सामने देखने लगे जेसे किसी अजूबे को देख रहे हो।
- अरे...क्या हुआ? आप सब इस तरह क्यो देख रहे हैं? साड़ी अच्छी नहीं है मेरी?
सब हंसने लगे। एसी बात नहीं है।
मिताभाभी - बहुत ही अच्छी साड़ी है, तुम्हारी चोइस तो माननी पड़ेगी। पहली बार अकेले शोपिंग गई और लिया भी क्या साड़ी... इस लिए सब हंस रहे हैं।
रवि भैया- चलों अब बाकी बातें कल करेंगे। निंद आ रही है न सबको।
- अरे मेरे जूते तो देखें हीं नहीं किसीने।
कविभैया जो अबतक चूप थे वह आखिर बोल ही पड़े - अब सोने जायेगी या उसी जूते से मारु। एक तो आंखें खुल नहीं रही और इसे जूते दिखाने है।
- हां तो तु जाकर सो जाना, किसीने बांधकर रखा है क्या?
मिताभाभी इस कुंभकर्ण को ले जाओ नहीं तो ...
बन्टु - पापा आप बुआ को कुछ नहीं करेंगे, वरना हम आपसे बात नहीं करेंगे कह देते हैं हां।
रवि भैया- चलों, अब अपने अपने कमरे में चलों। सबको सुबह जल्दी उठना भी है कि नहीं।

सब सोने चले गए। मैं पानी की बोतल लेकर अपने कमरे में आ गई। आज का दिन थकानवाला था, फिर एकबार साड़ी को पहनने का सोचा कि कैसी लगूंगी। कभी साड़ी नहीं पहनी थी तो जरा देख भी लू। स्कूल में टीचर्स डे पर कभी पार्ट नहीं लेती थी कही साड़ी न पहननी पड़े, और आज साड़ी लें आई तभी तो सब मुझे घूरने लगे थे। तभी ख़्याल आया कि साड़ी पहननी आती नहीं तो पहनूंगी कैसे। ? फ्रेश होकर बेड पर लेटी तो वो लड़का याद आया जिसने स्कूटी स्टार्ट कर दी थी। दिखने में तो हेंडसम और स्मार्ट दिखता था, हाईट भी साढ़े छः फुट से उपर ही होगी। कपड़ों से अच्छे घर से लगता था। पर वह अचानक पिछे से कैसे आ घमका। सोचते सोचते थकान की वजह से कब निंद आ गई पता ही न चला।

सुबह आंख देर से खुली 8:30  बज चुके थे। कोलेज जाने का मन नहीं हो रहा था। कल ज्यादा  चलने के कारण पैरों में दर्द भी हो रहा था। तभी दिशा का कोल आ गया।
- उठ गई तुम पाखि?
- हां, जस्ट अभी। पर आज मैं कोलेज नहीं आउंगी, पैर बहुत दर्द कर रहे है यार।
- ओ महारानी, आज physiology की पहली lab है। लास्ट टाइम मनोजसर नहीं आए थे। आज आ गए तो पहली lab हीं मिस करेंगी। तो जल्दी तैयार हो जा पाखि और अपने पंख फैलाकर बसस्टेंड पर जल्दी आजा।
- ओह हा, ये तो मैं भूल ही गई यार, अच्छा हुआ तुने याद करवाया। चल मैं मिलती हुं ठीक सवा नौ बजे। बाय...
- जल्दी आना, बाय..

आज देरी होने की वजह से घर से नाश्ता किए बिना ही निकल गई। बसस्टेंड पहुंची तो दिशा आ चुकी थी। दो-तीन मिनट बाद बस भी आ गई, देर होती तो दिशा मेरी हालत खराब कर देती। बस में बैठकर अच्छे से सांसे ले पाई। साकेत और राजा अगली सीट पर बैठे थे। हमें पिछे देख राजा दिशा से बातें करने लगा। मैं अपना WhatsApp check कर रही थी। रीधीमा, मीना, काव्या और  निशा ने अपनी नई ड्रेस पहनकर फोटोज गृप में रखें थे। अब हमारा वाट्स ऐप गृप भी बन गया है। सब अच्छे लग रहे थे। साकेत भी अब राजा और दिशा के साथ बांतों में जूड़ गया था।
साकेत- पाखि क्या मोबाइल में देख रहीं हो, बातें करो ना सबके साथ।
- क्या बातें करूं?
दिशा- उसे रहने दो साकेत, वो सदा अपने में ही मस्त रहती है। कुछ बातें हमारे साथ कर लेती है यह तो हमारा सौभाग्य है।
मैं- चल कुछ भी....
पार्टी के लिए सब एक्साइटेड थे। यही सब बातें करते करते कोलेज भी आ गया। कोलेज के मेईन गेट पर पहुंचे थे की निशा की कार हमारे पास से ही गुजर रही थी। हमें देख निशा ने कार स्टोप करवाइ और उतरकर हमारे साथ ही चलदी, और वो लड़का कार लेकर कोलेज के पार्किंग में चला गया। मैं सोच रही थी कि निशा से उस लड़के के बारे में पूछूं फिर सोचा मुझे क्या जो कोई भी हो। पर हमारी दिशा रानी ने पूछ ही लिया, -निशा ये रोज़ तु किसके साथ आती है? तुम्हारा बायफ्रेंड है?
यह सून मैं और निशा अवाक रह गए। मैंने सोचा ये दिशा मरवाएगी अब। पर इससे विपरीत निशा जोर जोर से हंसने लगी?। मैंने दिशा से पूछा इसे क्या हुआ? उसने अपने कंधे उपर करके पता नहीं का इशारा किया।
मैंने निशा से पूछा- क्या हुआ इतना क्यो हंस रही है?
निशा - (हसते हुए) दिशा तुम्हें किस एंगल से वो मेरे बायफ्रेंड लगे? अरे पगली... वो मेरा भाई है... अविनाशभाई। वो इसी कोलेज में MBBS सेकंड यर के स्टूडेंट है। यानी कि हमारे सिनियर।
दिशा- हा यार, तेरी शकल उनसे मिलती तो है।

निशा को हंसते देख मुझे भी अब तो हंसी आ रही थी। सब हंसते हंसते क्लास की ओर चल दिए। चलते चलते मैंने निशा को बताया -शोपिंग और डिनर करके  जब नीकले थे तब स्कूटी बंद हो गई थी तो तुम्हारे भाई ने हेल्प की थी।
निशा - अच्छा तो वह तुम थीं... भाई ने बताया था किसी लड़की की स्कूटी बीच रास्ते बंद हो गई तो हेल्प की थी। उन्हें भी मौसी के घर पर आना था और वह देर से आए थे। हमें लगा वो गप्पे हांक रहे है।

आज पहले लेक्चर के बाद lab में गए। लेब में आज मनोजसर ह्युमन ओर्गनस् के बारे में बताने वाले थे। लेब में एक डेडबोडी रख्खी थी जीन पर सर समझा रहे थे। डेडबोडी को देख मुझे चक्कर सा आने लगा और मैं बाहर निकल आई। बाहर आते हीं निशा के भाई अविनाश से टकराईं। टकराने की  वजह से मैं गिरने ही वालीं थीं तभी उन्होंने मुझे गिरने से बचाया। कुछेक क्षण हमारी नजरें एक-दूजे पर ही टीक गई। टकराने से मेरे बाल उनकी शर्ट के बटन में फंस गए थे। आज देरी होने के कारण अपने बालों को बांध नहीं पाई थी और खुले रखके ही आ गईं थीं। मुझे पता नहीं था बाल फंसे हुए हैं और मैं सोरी कहकर चलने लगी तब पता चला। हड़बड़ी में मैं अपने बालों को निकालने लगी। पहली बार किसी लड़के ने छूआ था तो थोड़ी घबरा भी गईं थीं, वरना घर पे कविभाई से मस्ती मजाक में मारपीट तो होती रहती है। वो पहले तो यूंही खड़े रहे फिर मुझे उलझता देख बोले- " अब मैं ट्राइ करूं?"
शरम के मारे मुंह से कुछ फूटा ही नहीं। अब तो शरीर में कंपन भी हों रहीं थी, फिर मैं ऐसे ही खड़ी रह गई। उनसे भी बाल निकल नहीं रहें थे, में बूत की तरह खड़ी थी। तभी अविनाश सर के एक फ्रेंड वहां आएं, उन्होंने हमें बालों को निकालने में उलझता देख पहले तो हंस पड़े। हम अपने सिनियर्स  को सर कहकर बुलाते थे।
अविनाश सर- रवि, तु हंसना बंद कर और हमारी मदद कर।
मैं उस कंडिशन में भी बोल पड़ी- मेरे बड़े भाई का नाम भी रवि भाई है। बोलने के बाद खुद पर गुस्सा आया। यहां बाल फंसे हुए हैं और मैं अपने भाई का इन्ट्रो कर रही हुं...
रवि सर- अब तुम दोनों उलझना बन करो तभी न मैं हेल्प करूं।

कुछेक क्षण में उलझे बालों को सुलझा दिया रवि सर ने। और मैं शर्म से मुंडी निचे करके लेब में भाग गई। पिछे से दोनों कि धीमी हंसने की आवाज़ आ रही थी।
लेब में गई तो निशा ने पूछा- कहा चली गई थी?
मैं- कूछ नहीं, वो थोड़े चक्कर आ गए थे।
निशा- आर यू ओल राईट?
मैं- याह, एब्सोल्यूटली ओल राईट।
तभी दिशा पास में आई और बोली- (गु्स्से में ?) क्या करके आ रही है?
मैं- कूछ भी तो नहीं, चक्कर आ गए थे तो बाहर चली गई थी।
दिशा- (कान के नजदीक आकर) तु बसस्टेंड पर आ फिर बतातीं हुं तुम्हें।
मैंने सोचा अब ये महारानी को क्या हुआ? घर जाते वक्त पूछ लूंगी। अब अपने आप को अच्छा महसूस कर रही थी तो लेब में ध्यान भी दे पाईं। वैसे मैं बहुत ज्यादा सिन्सियर स्टूडेंट तो नहीं हुं पर एवरेज स्टुडेंट भी नहीं हुं। स्कूल में तीसरे चौथे पायदान पर जरुर रहतीं थीं। (ज़रुरी नहीं की नायिका हमेशा फर्स्ट रेंक हीं लाएं ?)

आगे की कहानी जानने के लिए मेरे अगले भाग की प्रतीक्षा करें। आपकी अमूल्य समीक्षा व रेटिंग्स जरूर दे।?