मिताभाभी ने कविभाई को उनकी थाली बहुत मनाने के बाद दी। डिनर करके सब ड्राइंग रूम में आकर बैठे। कुछ देर में सेतुभाभी डार्क चॉकलेट आइसक्रीम लेकर किचन से आ रहे थे। चन्टु बन्टु यह देख दौड़कर आईसक्रीम लेने भागे, और जिसमें ज्यादा आईसक्रीम दिखे वो कप उठा लिया। डार्क चॉकलेट आइसक्रीम देखकर तो मेरे मुंह में पानी आ गया।
मैं- येएएए...मेरा फेवरेट डार्क चॉकलेट। u r great bhabhi, love u.
सेतुभाभी- इसे मैं नहीं मिता लेकर आई है।
मैं- भाभी u r also great ? आप मेरा और बच्चों का कितना ख्याल रखती है।
कविभाई- (धीरे से) कभी इस गरीब पर भी ध्यान दिया करो।
मिताभाभी- क्या कहा..???
कविभाई- मै तो यह कह रहा हु, अच्छा किया जो तुम आईसक्रीम ले आई आज बहुत मन था खाने का।
मिताभाभी- हां तो ठीक है।?
सब ने साथ बैठकर आईसक्रीम का लुफ्त उठाया।
निशा- अब मैं भाई को कोल कर देती हु मुझे लेने आ जाए।
रविभाई- अरे उसे कयो तकलीफ दे रही हो हम छोड देंगे तुम्हें घर। मैं और पाखि कार से छोड़ देंगे।
निशा- thank u भैया, पर मैं अविभाई को बोल देती हुं वैसे भी वे कहा स्पेशल लेने आएंगे। बाहर ही घुम रहे होगे। अगर घर पर हों तो नहीं बुलाऊंगी, आप और पाखि घर छोड़ देना।
सेतुभाभी को पौहे वाली बात याद आई।
सेतुभाभी- निशा अभी तो पौहे ठंडे पड़ चुके हैं, अगली बार पाखि के हाथो भिजवा दुंगी।
निशा- कोई बात नहीं भाभी अगली बार जरूर ले जाऊंगी।
निशा ने अवि को कोल किया और निशा के मुताबिक ही अवि बाहर ही थे। निशा ने उन्हें यहां का एड्रेस बताया। अवि पंद्रह मिनट बाद अपनी कार लेकर आ गए। आते ही उन्होंने बताया कि,- मेरा फ्रेंड विकास सामने के घर में ही रहता है। कविभाई ने विकास भाई को आवाज लगाई।
विकास भाई ने अवि को देख कहा- तु अभी यहां?
अवि- निशा आइ है पाखि के यहां उसे लेने आया हूं।
विकास- यहां तक आया है तो कुछ देर घर पर आजा।
अवि- नहीं अभी नहीं, फिर कभी आऊंगा।
कविभाई- विकास अभी ये यहां निशा को लेने आए हैं तो उस हिसाब से उसे किसके घर आना चाहिए??
विकास- भैया आप ही के घर।
कविभाई- तो...
विकास- आप अपने घर ही ले जाए मैं फिर कभी बुला लुंगा।
कविभाई से विकास भाई को डर लगता है और कविभाई इसी का फायदा उठाकर उन्हें डराते रहते हैं। हम सब घरवाले हंस रहे थे यह देख निशा ने पूछा क्या हुआ? तब मैंने उसे बताया भैया कैसे उन्हें डराते हैं। वो और अवि भी हस पड़े। रविभाई ने अवि को अंदर आने को कहा। पर देरी के कारण फिर कभी आऊंगा कह के सब को मिलकर बाहर से ही चले गए। हम सबने कुछ देर साथ में TV देखा फिर सोने चले गए।
(निशा के घर)
जब दोनों भाई बहन घर पहुंचे तो उनके मम्मी-पापा डिनर कर रहे थे।
निशा- हाय मम्मा, हाय पापा! डिनर इतना लेट?
भरतजी- अग्रवालजी के यहां गए थे। कुछ दिनो से बिमार है तो खबर पूछने गए थे। अभी थोड़ी देर पहले ही वापस आए।
गायत्रीजी- आजा खाना है तो डिनर रेडी ही है। अवि तु फ्रेश होकर आजा तेरी प्लेट लगा देती हुं।
अवि अपने कमरे में चला गया।
निशा- अरे नहीं बाबा, इतना खिलाया है पाखि की भाभी ने, मानो पेट फट जायेगा। क्या स्वादिष्ट खाना बनाती है उसकी दोनों भाभीया। मम्मा खाना बनाने में तुम्हारी टक्कर की है दोनों भाभीया।
गायत्रीजी- अच्छा, तब तो मुझे भी चखना पड़ेगा उनका बनाया खाना। ये अवि अबतक आया क्यों नहीं आवाज लगाती हुं। हमारा डिनर खत्म होने आया है, अकेले बैठकर खाना पड़ेगा उसे।
निशा- तुम्हें पता है मम्मा, वे सब हमेशा डिनर साथ में ही लेते हैं। और हमारे यहा देखो किसीको साथ बैठने की फुर्सत ही नहीं। पापा देर से आते हैं, भैया का भी ठीकाना नहीं होता। सब के साथ बैठकर खाने का मजा ही कुछ और है।
भरतजी- क्या करूं बेटा, तु पापा का काम जानती ही हो। अवि का मुझे पता नहीं कहां फिरता रहता है।?
गायत्रीजी डिनर करके अपनी प्लेट हाथ में लिए खड़ी हो रही थी और भरतजी पानी पी रहे थे। तभी,
निशा- आज मैं पाखि के साथ उसके घर बस में गई थी।
यह सुनते ही गायत्रीजी के हाथ से प्लेट नीचे गिर गई और भरतजी के मुंह से पानी फव्वारा ?️बनकर बाहर आ गया। और अवि जो कि सीढीयो से नीचे आ रहा था वह एक स्टेप चुंक गया। दो तीन सेकेंड के लिए स्टेच्यू जैसा माहौल बन गया।
भरतजी- जो कभी कार के सिवा कही पर पैर तक नहीं रखती वो बस में??
निशा- मेरे पास एक्टिवा है पापा।
भरतजी- हां पर वो तो तुने मुश्किल से चार पांच बार चलाया होगा। तुझसे ज्यादा श्यामु इस्तेमाल करता है। (श्यामु घर का नौकर है)
अवि- तु सच में बस से गई?? मुझे लगा तु एवे ही बोल रही होगी। क्या बात है निशु, ऐसे ही बस में जाया कर।?
निशा- ओ हेल्लो, बार बार नहीं जाउंगी। कभी कभार ठीक है।
गायत्रीजी- हाय मेरा बच्चा। जा अब सोजा कल कोलेज भी है।
निशा- हां मेरी मीठी जलेबी, जाती हुं।
भरतजी- मैं क्या कड़वा करेला हुं?
निशा- अरे आप तो मेरे बड़े वाले गुलाबजामुन है।?
थोड़ी देर बातें करके सब सोने चले गए।
देखते ही देखते तीन साल बित गए।
हमारा ग्रुप अब रेंकर ग्रुप से प्रख्यात था कोलेज में। हमारी बेच में एक से दस में हम सब ग्रुप के ही स्टुडेंट्स थे। में इस बार भी तीसरे या कभी चौथे रेंक पर रहती हुं। पहले नंबर पर हमारी सिन्सियर मीना रहती है। हम सब आगे पीछे होते रहते हैं। हर बार कोलेज फंक्शन, इंटर कालेज कम्पिटीशन वगैरह होते रहते हैं। कोई नया केस ओप्रेशन का आया हो तो उसमें डिस्कशन चलता है। यहीं लाइफ हो गई थी।
मैं और निशा अब पक्के वाले फ्रेंड्स बन गए हैं। हम एक-दूसरे के घर नाईट आऊट भी करते हैं। सब फ्रेंड्स मेरे, दिशा के या फिर निशा के घर एक्जाम के टाइम पर इकट्ठा पढ़ते हैं। एकबार सब केंटिन में बैठे हुए थे। तभी राजा आया हाथ में गुलदस्ता लेकर और दिशा के सामने बैठ गया। और सीधा आइ लव यू कहकर प्रपोज कर दिया। सब अवाक रह गए कुछ वक्त के लिए। जब दिशा ने जवाब हां में दिया तो पूरे केंटिन में सब तालियां बजाने लगे, सीटीया बजाने लगे। हम सब बहुत खुश थे उन दोनों के लिए।
जैसे राजा उठा दिशा ने एक थप्पड़ उसके गाल पर लगा दिया। बेचारे राजा के चहेरे से सब नूर चला गया। सब एकदम से चुप हो गए और सोचने लगे ये क्या हो गया? एक मिनट तक दिशा राजा को घूरती रही फिर बोली,- पहले नहीं बता सकते थे, कितना इंतजार करवाया।
यह सूनते ही सब फिर से हुल्लड़ बुलाने लगे। उस वक्त अवि भी अपने ग्रुप के साथ केंटिन में थें। वे सब राजा को कोंगरेटस् कह रहे थे।
यह सब देख काव्या बोल पड़ी बिचारा इतने सालों से ऐसे ही मार खाता आ रहा था और आज प्रपोज करने पर भी मार खाई। तेरा क्या होगा राजा...।?
राजा- इसकी मार नहीं मिलती तो दिन अधूरा अधूरा लगता है। ?
सब इतने खुश थे तब रिधिमा ने भी अपनी बहन की शादी की बात कही। बीस दिन बाद उसकी बहन की शादी है और वह सबके शादी के कार्ड्स भी लाई थी।
रिधिमा- आप सब को शादी में जरुर आना है। पहले से कहे देती हुं किसी का बहाना नहीं सुनने वाली।
काव्या- पर घर से परमिशन लेनी पड़ेगी, मिलेगी तो जरूर आउंगी।
हम सब ने भी यही जवाब दिया रिधिमा को।
रिधिमा- मैं पापा से बोल दुंगी वह आप सब के घर बात कर लेंगे। सब फंक्शन पांच दिन पहले शुरू होने वाले हैं तो उस हिसाब से सब को जल्दी आना है। सब मिलकर हंगामा करेंगे।
एक सप्ताह बाद नैनीताल में रिधिमा की बहन की शादी है। हम सब को पर्सनली निमंत्रित किया है रिधिमा के मम्मी पापा ने। अंकल आंटी ने हम सब के घर पर फोन करके परमीशन दिलवा दी थी शादी में आने के लिए। सब पहली बार साथ नैनीताल जाने वाले थे तो एक्साइटेड थे। दिवाली के बाद की छुट्टीया थी तो अवि और रविभाई भी साथ चल रहे थे। रिधिमा ने उन्हें भी इन्विटेशन दिया था।
मैं कोलेज के पहले साल से ही रविभाई को राखि बांधती हुं। पहले साल रक्षाबंधन के दिन सुबह सुबह अचानक रविभाई घर पर आए थे।
रक्षाबंधन के दिन मैं दोनों भाई को राखियां बांधने के लिए तैयार होकर नीचे आई। नीचे आई तो रविभाई सोफे पर बैठे हुए थे। मेरे रविभाई उस रविभाई से बात कर रहे थे।
मेरे रविभैया- क्या बात कर रहे हैं, तुम्हारा नाम भी रवि है। ? कमाल हो गया...
रविभाई- हां भैया यह तो हे। और अब से आपकी और मेरी बहन एक ही है। मैंने मेरे दोनों भाई और भाभीयों को पहले बिठाया, सबकी आरती उतारी और सबको राखि बांधी। बाद में रविभाई और चन्टु बन्टु को बिठाया उनकी भी आरती उतारी और सबको राखि बांधी। रविभाई को राखि बांधते वक्त मैंने उनकी आंखें नम होती हुई देखि थी। मुझे याद है तब रविभाई ने एक ड्रेस तोहफे में दिया था।
दूसरे और तीसरे साल की रक्षाबंधन में मुझे रविभाई के मम्मी पापा ने अपने घर बुलाया था। पहले साल की रक्षाबंधन के बाद जब एकबार मैं कोलेज केंटिन में बैठी थी तब रविभाई मेरे पास आए थे। बातें बातों में रविभाई ने तब बताया था कि चार साल पहले एक रोड एक्सिडेंट में उनकी बड़ी बहन की डेथ हो गई थी। तब से किसी से उन्होंने राखि नहीं बांधवाइ थी।
उनका कहना था कि जब तुने कहा था कि मैं आपको रविभाई बुलाऊंगी तब लगा मेरी बहन वापस आ गई। उस वक्त से तुझसे एक लगाव सा हो गया है।
हम दोनों भाई बहन अक्सर एक दूसरे के घर आते जाते रहते हैं। दोनों घर के सदस्य भी एक-दूसरे के घर आने जाने लगे हैं, सब एक फेमिली बन गए हैं। हां पर कभी भी रवि भाई और मैं उनके या मेरे फ्रेंड्स की कोई बात नहीं करते। उसमें निशा भी आ गई और अवि भी। सबसे कोमन हम दोनों का स्वभाव है। हमारी पसंद नापसंद भी काफी हद तक मिलती-जुलती है। और हम कोई बात भी एक-दूजे से नहीं छिपाते। एक बार कोलेज में किसी लड़के ने मुझे प्रपोज किया था। मैंने यह बात रविभाई को बताई तो क्या धोया था उस लड़के को भाई ने। तब काव्या बोली थी तेरा ये भाई किसी लड़के को तेरे आसपास भी फटकने नहीं देगा। यह मेरी सुरक्षा कब तक करते हैं देखते हैं।
क्रमशः