मनचाहा - 14 V Dhruva द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मनचाहा - 14

निशा- ओह..! थेंक्यू चन्टु.. love u beta...♥️ दीदी कहने के लिए वरना आजकल के बच्चे सीधा आंटी बोल देते है।
सेतुभाभी- अच्छा ये बताओ क्या लेंगे? ठंडा, गरम या कुछ नमकीन?
निशा- कुछ नहीं भाभी। हम कोलेज से कोफि पीकर आए हैं।
सेतुभाभी- एसा नहीं चलेगा, कुछ तो लेना ही पड़ेगा। पाखि तु बोल कुछ।
मैं- भाभी आप पौहे बना दिजिए।
निशा- अरे नहीं पाखि रहने दो ना।
मैं- तू एक बार भाभी के हाथ के पौहे खाले फिर बार-बार स्पेशियली खाने आएगी। भाभी आप वही बना दिजिए हम उपर कमरे में फ्रेश होने जाते हैं।

उपर कमरे में आकर हम दोनों फ्रेश होकर बेड पर लेट गए।
निशा- wow! पाखि तेरा बेडरूम वैसा ही है जैसा मुझे पसंद है।मुझे बिल्कुल ऐसा ही बेड पसंद है चारों तरफ़ हेंगीग पडदे वाला। तुमने सोनम कपूर की फिल्म खुबसूरत देखी है? बिल्कुल वैसा ही बेडरूम है तुम्हारा।
मैं- नहीं वो मुवी मैंने देखी नहीं पर अब जरुर देखूंगी।
निशा- उसमें कमरा थोड़ा अस्त-व्यस्त दिखाया गया था पर तुम्हारा कमरा एकदम सलीके से सजाया हुआ है। पता है मैंने मम्मा को मेरा रुम ऐसे ही सजाने को कहा था पर उन्होंने ने साफ मना कर दिया। कहती हैं इसी रूम को साफ करने में दम निकल जाता है, तो तु तो रहने ही दे। मेरी एक बुरी आदत है जो चीज में use करती हुं वह वहीं पर छोड़ देती हुं।
मैं- सबकी कोई न कोई बुरी आदत होती हीं है।
सेतुभाभी कमरे में आते हुए- जैसे हमारी पाखि पंद्रह मिनट में तैयार हो जाती है।
निशा- यह तो अच्छी बात है भाभी।
सेतुभाभी- वह पंद्रह मिनट में रेडी तो होती है पर आधि चीज तो भूल जाती है। जैसे कि दुपट्टा, लिपस्टिक, जूमके पहनना कुछ न कुछ भुल ही जाती है।
मैं - अगर बातें खत्म हुई हो तो वल्डबेस्ट पौहे खाएं?
निशा ने जैसे पहला निवाला गले से उतारा भाभी की तारीफ करने लगी,- वाह भाभी क्या पौहे बनाए हैं आपने! दिल खुश कर दिया।यकिनन बहुत ही अच्छे हैं। बुरा न मानो तो एक बात कहूं?
सेतुभाभी- बताओ तो सही।
निशा- अगर आपने पौहे ज्यादा बनाए हैं तो मुझे थोड़े घर ले जाने है। मेरी मम्मी खाने की बहुत शोकिन है मैं उनको चखाउंगी।
सेतुभाभी- ( थोडा गुस्से से) पाखि ये क्या कह रही है? हमारा खाना घर के बाहर जाएगा?
भाभी जब बोले तो निशा का मुंह देखने लायक था। उसे देख मैं और भाभी हंस पड़े। ?
सेतुभाभी- अरे मैं तो मजाक कर रही थी। जाते वक्त में जरुर पेक कर दुंगी। ये भी कोई बुरा मानने वाली बात है?

हम बाते कर रहे थे तब तक मिताभाभी आ गए थे। हम सब पौहे खत्म करके निचे आ गए। चन्टु बन्टु TV पर कार्टून देख रहे थे‌ टोम एंड जेरी।
निशा- wow! यह तो मेरा फेवरेट कार्टून है। मैं बचपन से देखती आ रही हुं। मम्मी और भैया कहते हैं कार्टून देखते देखते तु खुद भी कार्टून दिखने लगी है। तेरा पति भी कार्टून जैसा ही ढुंढना पड़ेगा।
मैं- हम दोनों का ये शौक तो same है। तुम्हें पता है बचपन में popay the sailor man आता था। वो मेरा सबसे फेवरेट कार्टून था। पर अब चैनल वाले वो दिखाते ही नहीं।?
मैंने निशा को मिताभाभी से मिलवाया।

मिताभाभी- निशा आज का डिनर हमारे साथ ही करना।
निशा- नहीं नहीं भाभी, मैं आज घर जाकर आराम ही आराम करने वाली हुं।
मिताभाभी- नहीं नहीं क्या? यह भी तो घर ही है यहां आराम कर लेना। हां पर तुम्हारे घर से छोटा जरुर है।
निशा- घर छोट हो या बड़ा हमे फर्क नहीं पड़ता। हमे तो बस सामने वाले से प्यार ही मिलना चाहिए। जो आप सब भरपूर दें रहें हैं।
मिताभाभी- बस तो तय रहा आज डिनर तुम यहीं करोगी। कल पाखि ने तुम्हारे घर डिनर किया था न तो आज तुम्हारी बारी। अगर तुम्हारे घर पर पूछना है तो मैं पूछ लेती हुं।
निशा- नहीं भाभी पूछने की जरूरत नहीं है मैं बता देती हुं बस। आज तों आपके हाथ का खाना खाकर ही जाउंगी।
मिताभाभी- ये हुई न बात।?
मैं- आंटी को बोलना मै अपनी स्कूटी पर तुझे घर छोड़ दुंगी।
निशाने फोन करके अपनी मम्मी को बताया और कहा कि डिनर के बाद निशा घर छोड़ देगी तो आंटीजी ने साफ मना कर दिया। कहा कि रात को तुम दोनों तो साथ आ जाओगी पर वापस पाखि को अकेले जाना पड़ेगा। मैं अवि को भेज दुंगी तुम्हें लेने। तुम्हें आना हो तब भैया को फोन कर देना।
निशा- ठीक है मम्मा, अब फोन रखिए चलिए।
फोन रखने के बाद मैंने निशा से कहा- एसा मत बोलो आंटी को बात कर रही है ना वो।
निशा- पाखि ‌तु मेरी मम्मी को नहीं जानती। फोन पर वो नोनस्टोप दो घंटे बात कर सकती है। अभी फोन न रखती तो आधा घंटा निकाल देती। तु छोड़ ये सब हम तेरे कभरे में चलते हैं घर पर तो ऐसा कमरा मिलेगा नहीं बस यही एंजॉय कर लेती हुं तेरे साथ।
हम उपर मेरे कमरे में आए। यहां वहां की बातें करते करते सात बज गए। निशा ने पूछा- पाखि एक बात पूछूं?
मैं- हां, पूछ्ना निशा।
निशा- तु अब से मुझे निशु ही बुलाया कर। मेरे नजदीक जो है वह मुझे निशु ही बुलाते हैं। अच्छा एक बात बता तेरा कोई बोयफ्रेंड-शोइयफ्रेंड है क्या????
मैं- (हंसते हुए) क्या बोल रही है। तु कबसे मेरे साथ है तुझे लगा कभी मैं किसी से बात करती हुं या और कुछ? वैसे तेरी जानकारी के लिए बता दूं मेरा कोई बोयफ्रेंड नहीं है।?
निशा- सच में?
मैं- तुझे गलत लग रहा है?
निशा- नहीं गलत तो नहीं लग रहा बस तसल्ली के लिए पूछ लिया। वैसे किसीने आज तक तुम्हें प्रपोज नहीं किया?
मैं- नहीं, अभी तक तो नहीं। स्कूल में भी मेरे ज्यादा फ्रेंड्स नहीं थे। तब सब मुझे पढ़ाकू पाखि बोलते थे। कोलेज में आकर इतना खुल के बोल पा रही हुं।
निशा- कोई नहीं, कोलेज में कोई मिल जाएगा।
मैं- मिले या न मिले शादी तो घरवालों की मर्जी से ही करुंगी। वैसे एसा कुछ है नहीं की मेरी पसंद से मेरी शादी नहीं करवाएंगे। पर मैं इस प्यार व्यार के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती। तु बता अपने बारे में तेरा कोई बोयफ्रेंड या कोई ऐसा जीसे तु पसंद करती हैं?
निशा- अब तुमसे क्या छिपाऊं, मैं तुझपे ट्रस्ट तो कर ही सकती हुं। तुझे मेरी कसम किसीको बताना नहीं। तेरा रविभाई जो है ना... वहीं...
मैं- तुम दोनों कपल हो? ? छुपी रुस्त...म!
निशा- मेरी बात तो सुन पहले। हम कपल नहीं है बाबा। सिर्फ मैं उसे पसंद करती हुं एकतरफा प्यार ही समजलो। अविभाई की वज़ह से प्रपोज करने से डरती हुं। कही मेरे कारण उनकी दोस्ती तूट न जाए।?
मैं- ओह! कबसे ये लगा कि तु उनको पसंद करती हैं?
निशा- बचपन से।
मैं- क्या? बचपन से?? अबतक एक बार कहा भी नहीं या कोइ हींट भी नहीं दी तुने उनको?
निशा- उल्लू है वह, कुछ नहीं समझता। उसे तो हम बचपन के फ्रेंड ही लगते है।
मैं- एकबार बोल के तो देख, शायद उसे भी तु अच्छी लगती हो। कहने में क्या जाता है?
निशा- में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। एसा ना हो की बातचीत भी बंद करदे। देखते है, अभी कहा शादी करनी है।
मैं- एसा न हो उनके मम्मी-पापा कोई लड़की पसंद करले और तु बिना कहे रह जाए।
निशा- अपना अपना नसीब। ?
मैं- यह भी है। तु कहे तों बात करु रविभाई से?
निशा- अबे मरवाएगी क्या? तु चलने दे जो चल रहा है plz।

नीचे से डिनर के लिए सेतुभाभी ने आवाज़ लगाई। हम नीचे गए तब दोनों भाई आ चुके थें। मैंने उनसे निशा को मिलवाया।
कविभाई- निशा तुम दिशा के बाद दूसरी फ्रेंड हो जो इतनी जल्दी घर आई। वरना ये जल्दी कभी किसी सहेली के घर जाती नहीं और किसी सहेली को अपने घर लाती नहीं। आप लोग तो नसीबवाले है कि आपको हमारा घर देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।?
रविभाई- बस हां, ज्यादा मत चिढ़ा उसे। तुम्हें पता है ना इसे चिढ़ाने पर क्या होता है?
निशा- कया होता है भैया?
रविभाई- सब घर वाले आपस में मिल जाते हैं और जिसने भी इसे चिढ़ाया हो उसकी वाट लगा देते हैं।?
सब हंसते हंसते डाइनिंग टेबल पर आ गए। दोनों भाभीझ ने आज बहुत बढ़िया खाना बनाया था। निशा तो उंगलियां चाटती रह गई।
कविभाई- आज खाना अच्छा है क्यों भाई, लाजवाब।
मिताभाभी- क्यो, रोज अच्छा नहीं होता?
कविभाई- अच्छा होता है ना, सुबह पेट अच्छे से साफ हो जाता है।
मिताभाभी- क्या मतलब? पेट साफ करने के लिए खाते हैं?
भाभी अपनी जगह से खड़ी हुई और कविभाई जो अबतक खा रहे थे उनकी थाली किचन में लेकर ये कहकर चलने लगी कि,- जहां अच्छा स्वाद मिले वहीं चले जाना। और भैया पिछे पिछे किचन में थाली वापस लाने मानो दौड़ पड़े। किचन में दोनों कि मीठी नोंकझोंक सुनाई दे रही थी। तभी
रविभाई- चुपचाप खाना नहीं खा सकता था? मैंने कहा आज तक कुछ? खाना अच्छा हो या बुरा खा ही लेता हुं।?
सेतुभाभी- आपकी थाली उठाऊं?
रविभाई- अरे मैं कहा कुछ...????
मैं, निशा, और चन्टु बन्टु सब हंस रहे थे।

क्रमशः