बहुत समय पहले पहले की ये दास्तान मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ।मेरा नाम करन है। और मेरी उम्र अब इक्यावन वर्ष है। लेकिन उस समय, जब की मैं ये दास्तान आपको सुनाने जा रहा हूँ, मैं तब क़रीब इक्कीस वर्ष का रहा हूँगा।
मेरे परिवार में हम चार लोग हैं। मेरे पापा, मम्मी, छोटा भाई और मैं।
एक बार मैं अपने घर में अकेला बैठा टी.वी देख रहा था।
मुझे दरअसल, खाली समय में बस दो ही चीज़ें करना पसंद हैं। - एक तो हर प्रकार की किताब को पढ़ना। और दूसरा टी.वी देखना।
तो उस दिन इतवार(सन्डे) का दिन था। मम्मी-पापा छोटे भाई को साथ लेकर मामा जी के यहॉं घूमने गये थे।
वो लोग सुबह-सुबह ही मामा जी के यहॉं चले गये थे। मैने उनके जाने के बाद साफ़-सफ़ाई की, और खाना बनाया। उसके बाद बर्तन बगैरह साफ़ किए।
सब काम करने के बाद मैं कमरे में बैठकर टी.वी देख रहा था।
दरअसल, मुझे डरावनी फ़िल्म देखना बहुत पसंद था। तो मैं उस समय भी टी.वी में भूत-प्रेतों वाली फ़िल्म देख रहा था।
काफ़ी देर से मैं उस फ़िल्म को देख रहा था। तो मुझे भूख लगनी महसूस हुई। और मैं टी.वी को चला छोड़, किचन से खाना लेने के लिए चल दिया।
जब मैं किचन में अाने के लिए टी.वी के सामने पडे हुए सोफ़े से उठा, तो मुझे लगा कि कोई दूसरा व्यक्ति भी उस सोफ़े से मेरे साथ उठ खड़ा हुआ हो। जबकि इतने बड़े घर में सिवाय मेरे वहॉं कोई भी नही था। लेकिन मैने सोचा कुछ नही है, ये सब मेरे दिल का बहम है।
फिर मैं वहॉं से कुछ दूर चला तो, मुझे पायलों की छन-छन की आवाज़ आई। मुझे ऐसा लगा कि कोई औरत मेरे पीछे चल रही हो। मैने सोचा मम्मी-पापा, और भाई, शायद मामा जी के यहॉं से आ गये हैं। तो ये शायद मम्मी होंगी।
मैने पीछे मुडकर देखा तो वहॉं कोई भी नही था। और अब वो पायलों की छन-छन की आवाज़ आनी एक दम ख़त्म हो गई।
मुझे अब डर महसूस होने लगा। मेरी भूख बगैरह सब ख़त्म हो चुकी थी। और मैं मन ही मन हनुमान जी को याद करने लगा।
भगवान श्री हनुमान जी के नाम को जपने से कुछ देर तक शान्ति रही। बिल्कुल भी कुछ नही हुआ।
जब इतनी देर तक कुछ नही हुआ, तो मैने भी सोचा कि वो सब मेरे मन का वहम ही था। ऐसा-वैसा कुछ नही होता।
और फिर मैं खाना लाने के लिए किचन में गया। और खाना लाकर टी.वी के सामने उसी सोफ़े पर बैठ गया, और खाना खाने लगा।
जैसे ही मैने रोटी का पहला टुक़डा तोड़कर अपने मुँह की ओर ले जाना चाहा, तो अचानक मेरा हाथ बजाय मेरे मुँह की तरफ़ जाने के, सोफ़े के दूसरी ओर चला गया। वो रोटी का टुक़डा खुद व खुद मेरे हाथ से छूट गया और हाथ से छूटकर वहीं हवा में लटका रह गया। और थोडा-थोडा करके वो रोटी का टुक़डा पूरी तरह से ग़ायब हो गया। वो टुक़डा बिल्कुल इस तरह ग़ायब हुअा, जैसे कोई व्यक्ति उसे धीरे-धीरे चबाकर खा रहा हो।
मैं बुरी तरह से डर गया था। मुझे समझ ही नही आ रहा था कि मैं क्या करूं, क्या ना करूं..?
जैसे ही वो रोटी का टुक़डा ग़ायब हुआ, तो तुरन्त ही सोफ़े पर बिल्कुल मेरे बराबर में एक औरत प्रक्ट हो गयी।
आपको बता नही सकता कि वो औरत कितनी भयानक थी। मुझे बताने में भी डर लग रहा है।
वो ऐसी औरत थी, जिसके चेहरे के आधे हिस्से पर ख़ाल ही नही थी, सिर्फ़ हडि्डयॉं ही नज़र आ रही थीं। उसके आधा चेहरा ख़ून से लथ-पथ था। शरीर पूरा आग से जला हुआ था। और उसके कपड़ों पर बहुत ज़्यादा ख़ून लगा हुआ था।
उसने अपने कपड़ों और अपने चेहरे पर से ख़ून लिया, और मेरी ओर मेरे शरीर पर फेंका। जिससे मेरे पूरे मुँह पर और कपड़ों में "ख़ून के धब्बे" पूरी तरह समा गये। उसके बाद मैं बेहोश हो गया, और जब मुझे होश आया, तो मेरे घर के सभी लोग मेरे पास खड़े थे।
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मंजीत सिंह गौहर