एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर - भाग - 2 डॉ अनामिका द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर - भाग - 2

 बात उन दोनों की है जब अनामिका शोध छात्रा थी,' अर्थात एम ए द्वितीय वर्ष की' और उन दिनों महाविद्यालय में द्वितीय वर्ष में लघु शोध करना होता था साथ ही किसी विद्यालय में ढाई तीन महीने पढाना होता था। 
          अत: एक दिन वो  समय भी आ गया जब सभी को शोध कार्य हेतु अलग अलग गट मेंं बांंट दिया गया। सभी  छात्राएँ अपने अपने काम में लग  गईं । एक दिन उनकी सुपरवाइजर ने कहा  अनामिका तुम 10 से 15 दिन लगभग कक्षा दसवीं को पढाओगी। समय सारणी के अनुसार अनामिका दसवीं कक्षा में पढाने जाने लगी। शीघ्र ही सभी विद्यार्थी अनामिका से घुल मिल गए। प्रत्येक दिन विषयानुसार पढाना शुरू हो गया। अनामिका जब पढाती तो सारे विद्यार्थी ऐसे खो जाते किसी ने सममोहन कर दिया हो।
एक छात्रा उसकी बात ऐसे सुनती कि जैसे किसी ने उसे बोतल में उतार लिया हो। उसे ऐसे देखते वो पूछ लेती अनामिका" क्यों आभा कुछ समझ आया या नहीं?"
आभा हां में सर हिला दिया करती। एक दिन अनामिका ने "मां की ममता" नामक पाठ पढाया। अनामिका ने पढाने के बाद कक्षा में एलान किया कि कल सभी विद्यार्थी माता का ममत्व पर चर्चा करेंगे फिर सभी "माता का ममत्व" पर निबंध लिखेंगे  और "कल कोई अनुपस्थित नहीं होगा"।  दुसरे दिन कक्षा के शुरुआत में ही अनामिका ने कुछ देर आपसी चर्चा के बाद निबंध लिखने की अनुमति दे दी। सब ने बीस पच्चीस मिनट में अपना निबंध लिखा लिया। अब अनामिका ने कहा" सभी विद्यार्थी एक एक कर के मेरे पास आएंगे और अपना लिखा निबंध पढकर मुझे सुनाएंगे। इतना कहते ही सभी एक एक करके अपना निबंध सुनाने लगे। जब सबने सुना लिया और आभा की जब बारी आयी तो ,तब आभा धीरे से उठकर अनामिका के कान में आकर कहने लगी, "मैडम एक  Request है आपसे, " मैं सबके सामने इस निबंध को नहीं पढ सकती", इसे मैं सिर्फ आपको अकेले में पढकर सुनाना चाहती हूँ। अगर आप स्टाफ रुम में चलें तो वही ं "मैं आपको मेरा निबंध सुना दूं"। अनामिका असमंजस में पड़ गई। ऐसा क्या हो सकता है इस निबंध में जो आभा सबके सामने नहीं पढ सकती। आभा बड़ी कौतुक भरी नजरों से देखने लगी कि मैडम उसकी बात मानती है कि नहीं। अंत में आभा उसकी ओर देखते हुए बोली चलो"' हम चलते हैं स्टाफ रूम में'। वहाँ   जाने के बाद अनामिका कौतुहल से हतप्रभ होकर आभा से निबंध सुनने के बजाय निबंध खुद पढने लगी••
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हे राम ये क्या लिखा था..
माँ क्या होती है मैं नहीं जानती।  मैडम माँ की ममता आपने क्लास में पढाया। बहुत अच्छा लगा। पर माँ की ममता क्या होती है मुझे नहीं मालूम बस आपको देखकर कुछ कुछ ममता का आभास होता है। मुझे इतना लिखना भी नहीं आता या यूँ आप कहें की मैं लिख न सकूंगी। ऐसा नहीं की मैं निबंध लिख नही सकती। अपितु ये बता दूँ कि माँ के बारे में इतना नहीं जानती। बस इतना पता है उसने मुझे जन्म जरूर दिया है पर उसकी ममता मेरे लिए दुर्लभ है। क्योंकि "मैडम मेरी माँ एक वैश्या है "
उसका काम ग्राहक को खुश करना है न की ममता लुटाना। उसने आज तक मुझे कभी गोद में उठाकर प्यार नहीं किया। न ही कभी प्यार से बात करती है न ही उसे इस बात का एहसास है कि आभा भी एक स्त्री देह है उसमें भी ममता है वह उससे अलग जिंदगी जीने को इच्छुक होगी। नहीं  वो तो बस पैसा कमाने में लगी है और हाँ, शायद कुछ दिनों के बाद मैं भी बेच दी जाऊं... 
मैडम मैं जीना चाहती हूँ।  अपने अस्तित्व को बचाना चाहती हूँ आपलोगो ं की तरह मैं भी अपना विस्तार करना चाहती हूँ। 
अगर मैं इस नर्क से मुक्त हो गई तो मेरा कदम स्वतंत्र रूप से इज्जतदार नौकरी की तरफ होगा। "मैडम मैने आपकी आंखों में ममता देखी है जो " एक माँ की नजरों में बेटी के प्रति होता है, मुझे बचा लो मैडम जी....  प्लीज बड़ी मेहरबानी होगी। 
अनामिका हतप्रभ हो गई। उसने उसे विश्वास दिलाता हुए कहा.. "आभा मैं अवश्य ही तुम्हारी मदद करूँगी... 
आज अनामिका को कुछ अलग सा लग रहा था..  कबीर साहेब की वो पंक्ति याद आ रही थी" कबीरा तेरे देश में भांति भांति के लोग....