एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर...6 डॉ अनामिका द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर...6

कुछ दिन गुज़र गए। पंचवटी की एक ही लता कम हुई थी लेकिन पंचवटी के बाकी पौधे मुर्झाये लगे थे। बेजान, नीरस, अजीब सा सूनापन बिखरने लगा था। परीक्षा नजदीक आ चुकी थी पर पढने का मन किसी का नहीं कर रहा था। सबके जहन में सिर्फ और सिर्फ रंजना थी... "पता नहीं वो आगे पढ सकेगी या नहीं? "
जिंदगी question marks बनती जा रही एक दिन रमा बोली "चलो स्टेडियम मे सब के सब वहाँ जाकर पढते हैं और "थोड़ा मन भी फ्रेश हो जाएगा"। फिर वहाँ थोड़ी मजाक मस्ती करेंगे। सौम्या ने सबकी तंद्रा तोडते हुए कहा " चलो चलो सब धमाचौकड़ी करते हैं "। इतना कहना था कि बेजान group में जान आ गई। उस दिन सबने खुलकर चाट पकौड़ी खाया। कबड्डी भी खेला। कुछ देर के लिए सब कुछ भूला दिया।
उसी दिन शाम को सौम्या ने पूनम को फोन करके बताया की उसके पापा का तबादला हो गया है वो भी अचानक खबर मिली है उन्हें। पूनम हड़बडा गई, " अरे ये क्या हो गया? शादी का अंजाना डर सभी सहेलियों को सताया करता था। पर तबादला तो सोच से परे था। लगता है किसी की नजर लग गई उनकी पंचवटी को.... फिर पूनम ने रमा और नूतन को बताया कि सौम्या के पापा का तबादला हो गया... वह भी बहुत दूर गुजरात... असम के डिगबोई Oil India refainery के कैंपस में पलने बढने वाली लड़कियां ऐसे बिछड़ जाएंगी इसकी कल्पना किसी को भी न थी। वह काली स्याह भरी रात.... उफ्फ्फ रमा, पूनम, और नूतन की नींद उड़ चुकी थी। ऐसा लग रहा था जिस्म निचूड़ गया हो और जान निकलकर गुजरात जा रही हो... एकदम मुर्दा सी जिंदगी हो गई। किसी का मन नहीं लग रहा था। जब चारो college पहूँची तो एक दुसरे को पकड़ कर लगभग 10/15 मिनट रोईं। किसी का ध्यान नही ं था कि उन चारों को रोता देख.... बहुत सारी लडकियों का झुंड इकट्ठा हो गया... सबको यही जिज्ञासा हो रही थी कि आखिर ऐसी क्या बात हो गई है कि आज पंचवटी की टीम रो रहीं हैं?
जब उनका रोना बंद हो गया तब भीड़ को पता चला कि उनकी पंचवटी की एक और लड़की बिछड़ रही है। इस बात से पूरा College स्तब्ध था। क्योंकि college एक ऐसी जगह हुआ करती है जहाँ सपनो ं की दुनिया बिराजती है युवा वर्ग जिंदगी के हसीन सपने college campuses में ही देखा करते थे...
लडकियों का College था इसलिए सभी लडकियों का एक दुसरे के साथ अटैचमेंट हुआ करता था। सौम्या के पापा का ट्रांसफर सबको खल गया। उस दिन भारी मन से सब अपने घर आ गईं ।लेकिन सौम्या के पापा को जाने में अभी लगभग पंद्रह दिन बचे थे।
अनमयस्कता को हटाने के लिए रमा ने एक दिन college में कहा, " चलो हम सब मिलकर सौम्या को ट्रीट देते हैं आसपास ही कहीं घुमकर आतें हैं और सौम्या के मनपसंद चीजों को उसदिन सब मिलकर उसे खिलाते हैं,"। पूनम बोली हां हां क्यों नहीं? " मेरे पास कैमरा है पापा को बोलकर उसमें रील भरवा लेती हूँ "। यह सुनकर नूतन खुश होते हुए बोली, " यार बडा़ मजा आएगा, हम सब खूब तस्वीरें निकलेंगे। खूब घुमेंगे। खूब मनपसंद चीजों को खाएंगे। अब सौम्या की बारी थी उसने तपाक से कहा, " सहेलियों जगह मैं डिसाइड करूंगी। सुनों "रिफाइनरी कैंपस का बौटनिकल गार्डन कैसा रहेगा"... ? वहाँ रेस्ट हाउस भी है और घर के पास भी है। "बोलो बोलो सब जल्दी जल्दी"।
नूतन ने कहा, " यार मेरे लिए दूर है पर कोई नहीं मेरे भैया छोडने लेने आ जाऐंगे।
बारिश का समय था धरती अमलतास और गुलमोहर से नहा रही थी। चारो ओर पलाश के वृक्ष और उसपर गहराई हुए नारंगी और सफेद पुष्प गुच्छ, "किंशुक कहाँ ?, जैसे वाक्य रविंद्र बाबू की याद दिला रहे थे। सभी सहेलियाँ प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की कविताओं में गोते लगा रही ं थीं।
दिन तय हुआ फिर सबकी सब उस निश्चित दिन का बेसब्री से इंतजार करने लगीं। तय हुआ कि सभी घर से सुंदर सुंदर और व्यंयंन बनाकर लाएंगी। ताकि ज्यादा समय घुमनें, तस्वीरें निकलवाने और गप्पा गोष्ठी में दे सकें। आखिर वो दिन भी आया... और दिन था रविवार और पंचवटी की सौम्या का जन्मदिन??? का यादगार दिन। जो कभी नहीं भुलाया जा सका।
खूब तस्वीरें ली गईं। ???? पेड़ पर चढ चढकर। वह भी गुलमोहर और अमलतास के पेड़? पर चढकर फोटो निकलना पंचवटी की ग्रुप कभी न भूल सकी। सबसे बड़ी बात उस दिन गुलमोहर की टहनियों पर बैठकर केक काटा गया। क्या वो दिन थे..? आह भर जाया करती है आज भी उन पंचवटियों के दिल और दिमाग में... पुरानी यादें संचित है। समय पंख लगाकर ऐसे उड़ रहा था कि एक महिना तीव्र गति से गुजर गया... पता ही न चला।
अब वो दिन भी आ ही गया। सभी सहेलियों ने अपने मन मुताबिक छोटे छोटे गिफ्ट खरीद लिए अपनी सहेली सौम्या के लिए। किसी ने एलबम दिया, किसी ने रूमाल में नाम लिखकर दिया, किसी ने गुलदान दिया और नूतन ने अपने हाथोंGreeting card ? बनाकर दिया। और उसमें सुंदर शायरी लिखकर दिया। सौम्या के जाने से सब दुखी इसलिए भी थे कि सभी सहेलियाँ सौम्या को follow करतीं थीं।और सौम्या से सब की सब बहुत प्यार करतीं थीं उसके चलने का स्टाइल, बोलने का स्टाइल, Body language, कपड़े पहनने का अनूठा अंदाज सब कुछ फौलो करतीं थीं.... इसलिए कई बार सौम्या के अंदर एक Sophisticated person का attitude आ जाता। "हाहाहाहा" सहेलियों के बीच सलैब बनने का अंदाज ही अलग होता है..
सौम्या इस बडाई के चक्कर में हमेशा हर बार की तरह मंत्र मुग्ध हो होती रही" पर बाकी सहेलियों को कई बार उसका चलना, इतराना, बोलना, हंसना, या अलग सा महसूस होता।
शायद अहम भाव की मौजूदगी ... पर सब उसकी दिवानी थीं या "यूँ कहा जाए, कि उसपर जान न्यौछावर करने वाली। जो भी हो सौम्या से वो सबसे ज्यादा प्यार करतीं थीं "और अब पंचवटी की ,यह प्यारी सी जान चली जा रही थी सबको छोड़कर
अब वह समय आया जब सौम्या का सामान शिफ्ट होने लगा। सभी पंचवटियों की चंडाल चौकड़ी वहाँ पहूँची। सब गले मिलकर खूब रोयीं। रंजना की विदाई का पल याद आ गया। सबने फिर उसदिन कसमें खायीं, वादे लिए, और गले मिलकर खूब रोयीं.... "उफ्फ्फ कैसा बेरहम दृश्य था? "कोई भी देखकर रो दे", कसमें वही थे.. " चाहे कुछ भी हो जाए आगे पढाई जारी रखनी है.. " नौकरी भी करनी है"।
अचानक सौम्या रोते रोते बोल पडी़, "एक बात बोलूं? मैं एक अलग प्रतिज्ञा लेना चाहती हूँ... सबने कहा, "क्या क्या? "
सौम्या प्रतिज्ञा करते हुए बोली.. "मैं वचन लेती हूँ कि पढाई जारी रखूंगी... नौकरी भी करूंगी.. दहेज मांगने वालों से शादी कभी नहीं करूंगी,... और लव मैरिज करूंगी... " सभी सहेलियाँ हैरान परेशान.... हाहाहा हाहाहा,.... सब रोते रोते हंस पडीं
किसी ने ठीक ही कहा है, " दुनिया जाए जहन्नुम में, हमें तो ताज चाहिए "... और फिर आंटी, अंकल अपनी पांच बहनों और एक भाई के साथ गाड़ी में बैठ गई.... और ऐसे विदा हो गई जैसे दुनिया की भीड़ में खो गई.... लेकिन तीनों सहेलियों को याद रही... पर सौम्या सबको भूल गई... बडौदा की भीड़ ने उसपर जादू कर दिया... लेकिन ये जादू बेकार नहीं था.. समय बढता रहा अबाध गति से... पर ख्यालों से पंचवटियां कभी अलग ना हो सकीं....
..... आगे तीसरी सहेली के बिछड़ने का समय आया... उसे अगली कड़ी में पढें...
क्या ये पांचों कभी मिल पायीं...?
इसका पता सबसे अंत में चलेगा। ....

# डॉ रीना सिन्हा "अनामिका"