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ख़ब्त - 1

" विजय के बापू मैंने तो आपसे पहले ही कहा था, पर आपकी जिद्द के सामने मेरी चलती कहा है ?
अब देख लिया ना, और जोड़ो सड़कछाप बिरादरी वालो से रिस्ता ".....
" सुलोचना अपने कमरे में चली जाओ, वरना चिंगारी को हवा लगते वक्त नही लगता " !
" बस यही दिन देखना बाकी रह गया था, लीजिए और मार डालिये, और अपनी यह भी हसरत पूरी कर लीजिए " !

मेन बाजार पास जगमगाती पुस्तैनी हवेली, लोगो की 24 क्लॉक चहल पहल, मेंन बाजार में रोज अलग-अलग चेहरे, कदम अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने को होते पर उनकी नजरें मेंन बाजार में आते ही कदमों के साथ बगावत पर उतर आती थी, कारण ब्याह के रंग में रंगी वो पुस्तैनी हवेली ! लास्ट 1 महीने से मेंन बाजार में सबकी आंखों का तारा ! ठीक दो साल पहले राजस्थान के सिरोही जिले की धटना !

सुलोचना और भानुप्रताप सिंह के बीच की कंकासी बातचीत और फिर सुलोचना गुस्से में पैर पछडाते हुए अपने कमरे में चली जाती है, विजय और भानुप्रताप सिहं दोनो बाप बेटे अभी भी मेंन हॉल में ही आराम कुर्सी पर बैठे हुए रोजमर्रा में लगे हुए है !

ऐ विजया, तू काहे का मर्द रे, " भानुप्रताप सिंह लोकल भाषा मे रोष अंदाज से विजय को झपटते है ! समझदार को सिर्फ इशारा ही काफी !
अपने बापूसा के बदले रवैये को देखकर विजय ने अपनी तरफ से थोड़ी सफाई रखना ही जरूरी समझा !
" पन बापूसा ", विजय कुछ कहता उससे पहले ही भानुप्रताप सिंह ने अपनी मुछो पर ताव रखते हुए विजय को एक ओर रसपान करा दी,
" रे गेला, एक वात री हमेंशा भान रख, मर्द ने हमेशा लाड़ और लात रे वचमे सुमेल बनाविने आपणी लुगाई ने राखनी आवनी चावै, तोझ एक कुँवर आपणी लाड़ी रे साथे डगला थी डगला मिलाविने अन संसारा में चाल सकें " !

भानुप्रताप सिंह ने उस वक्त अपने बेटे विजय से जो कहा, साहब वो मेरे समझ से तो परे था !
उनकी भाषा शैली रूवाबी मारवाड़ी थी ! धतूरे का नशा करने के बाद आदमी कुछ देर के लिए ही ख़ुमारी में रहता है पर अगर आदमी को धन-माया की मादकता लग जाए, फिर आदमी अपना हित-अहित कभी ज्ञात ही नही कर पाता !

भानुप्रताप सिंह ऐशो-आराम, धन-माया, मान-सम्मान के नशे में पूरी तरह से गलेडूब थे, भानुप्रताप सिंह अपने से नीचे जात-पात लोंगो को देखकर मन ही मन बड़बड़ाते हुए उन्हें कलियुगी दुर्योधन माना करते थे, जैसे पान के गल्ले या चाय के ठेले पर बैठी निच टोली का राह से आती जाती लड़कियों को एक टक निहारते रहना और अपने बहुमुखी विचार उनके सामने प्रस्तुत करते रहना !

भानुप्रताप सिंह अपने गाँव के अलावा अडोस-पड़ोस के गावो में भी इज्ज़तदार ठाकुरों में से एक नामचीन ठाकुर थे ! वो अपने गाँव के अलावा अड़ोस-पड़ोस के गाँवो के भी मुखिया थे ! क्या सही है औऱ क्या गलत ? अपने हिसाब से न्याय प्रणाली व्यवस्था बनाये रखते थे ! उनके न्यायालय के आगे किसी की भी हिम्मत नही थी कि वो उनके न्याय को गलत ठहरा सके ! अगर कोई अपराधी भूले-भटके उनके न्याय के सामने जाने की हिमाक़त कर भी लेता तो उसका हाल, " जल बिन मछली जैसा कर दिया जाता ! अपनी लोकल भाषा मे कहु तो, भानुप्रताप सिंह की छवि क्रूर तानाशाह हिटरल से कम नही थी !

60 साल का हट्टा-कट्टा, काजल की डिब्बी सी बड़ी-बड़ी काली आखों वाला, गुस्सैल, व्यसनी घुमाड़ा, पाक मुछाडा, गेहुआँ वर्ण, कानों में बालियां, ठाकुरों वाली स्टाइल ( सफेद कुर्ता-धोती-साफ़ा पगड़ीधारी ) भानुप्रताप सिह का मायानगरी में विचरण करता मकने हाथी जैसा राजपूती प्रौढ़धारी व्यक्तित्व था !

" कुँवर, जल्दी जाइए, आपणी 3275 गाड़ी पावापुरी पासे बंद होगी है, उसे जस्ट पास नवा निशालिया डिप्टी कमिशनर सौरभ रा पहरा भी लागे है, जस्ट जोसफ़ ने फ़ोन उठें कहा है, " सुलोचना अपने विशालकाय कमरे से बाहर आकर विजय को सूचना देती है, जो सूचना जोसफ़ ( ट्रक ड्राइवर ) ने फ़ोन पे सुलोचना को दी थी " !
" बापूसा, 9976 डायरेक्ट जोसेफ़ पासे भेज दु के ?, " विजय अपने शरीर का पूरा भार आराम कुर्सी के हत्थे ( जिसमें हाथ रखने के लिए डंडे लगे हो ) पे डालते हुए खड़ा होता है, इस अवस्था को लद्धड़ कहा जाता है !
" रे डोफा, के इसने भी तेरा कुछ बिगाड़ा है ? सीधो खड़ो नी हो सके के ?, " काला कौआ और भानुप्रताप सिंह दोनो में एक बात की गहन समानता दोनों काए-काए एक पल भी बड़बड़ाए बिगर रह नही सकते थे, काए-काए बोलने के लिए जब भी दोनो अपनी चोंच खोले मतलब सत्यानाश : सामने वाला फिर सिर्फ 2 ही काम कर सकता है ! पहला या तो वो समझदार होगा तो कुछ जवाब दिए बिगर ही फर्र-फर्र होकर वहां से निकलना अपनी भलाई समझेगा और दूसरा वो अगर अपने देश के भावी पीएम योगी जैसा असल नाथ होगा तो उसके साथ दो-दो हाथ करके ही अपना मान रखनेवाला है !
" वे सकू बापूसा, " विजय का फंडा कुछ अलग और हटके है, इज्ज़त कभी बनी-बनाई नही मिलती, उसे भी कमानी पड़ती है. उसका सोचना भानुप्रताप सिंह से एकदम उल्टा पर है व्याजबी ! चाहे आप बड़े इज्ज़तदार, रईस ख़ानदान की औलाद ही क्यों न हो ? यह समाज आपकी तब-तक इज्ज़त नही करेगा, जब तक आपने अपने बलबूते पर कुछ महारथ हासिल नही की हो ! समाज मे रहना मतलब समाज के रीति-रिवाज के साथ रहना होगा, उनसे अगर आप कटकर रह रहे हो मतलब आप आने वाली अपनी चार पीढ़ियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते जा रहे हो ! समाज मे आपके नाम की थोड़ी तो दहशत होनी चाहिए वरना यह समाज आपकी जरा सी गलती पर आपके सामने उंगली उठाते वक्त नही लगाएगा !
" क्या आप भी ? हाथ धोकर पीछे ही पड़ गए हो, वो तो बच्चा है, आप भी बच्चे हो क्या ?
" लाड़ कर-करने तो उने बालक बना ने रख दिया है ? वो अब छोरा कोणी रीयो, ब्याह हो गया है उना " !

सुलोचना और भानुप्रताप सिंह दोनो अपनी-अपनी सोच मुताबिक़ बिल्कुल सही थे ! मा की ममतामयी धारणा बच्चे को कभी बड़ा नही होने देती, वही बाप की आगामी सोच बच्चें को अपनी उम्र से कभी ओर छोटा नही होने देती ! हर वक्त बाप की आगामी सोच बच्चे को उसका आने वाले कल का पाठ पढ़ाती है, " तेरा आने वाला समय बहुत कठिन है, तुम्हे अकेले अपने पैरों पर खड़ा होकर जूझना होगा, गिरना होगा और फिर लड़खड़ाते हुए सम्भलना भी होगा !
मैं आज हु, कल उठकर रहू या न रहू ! तुम्हे ही अपने घर और सबकी संभाल रखनी है, अब तुम बड़े हो गए हो, नासमझी जिद्द मत करा करो !
हर अध्याय में बाप को पत्थर दिल का ठोस टुकड़ा कहा गया है पर कुम्हार को उचित समय लगते मटके पर हल्की-फुल्की फ़टकार लगानी ही पड़ती है, तभी जाकर वो अपने मटको को मनचाहे आकार-रूप में ढालकर उनकी मार्केट वैल्यू बढ़ा सकता है !

" बावजी, बाहर डाकिया वालो आयो है, " नौकर रामु ने कहां " !
" तेरे हाथ मे मेहंदी लगी है के ", भानुप्रताप सिंह ने कहा " !
" ना, पन मने दस्तखत करना कोणी आवे " !
" ठीक जा, अपना काम देख, " भानुप्रताप सिंह ने कहां " !
" इसे रहन दो और यह देखों ", सुलोचना भानुप्रताप सिंह की ओर पोस्ट आगे करती है, जो पोस्टमैन लेकर आया था " !

भानुप्रताप सिंह जल्दबाजी से लिफ़ाफे को उलट-पुलट करके सेन्डर का नाम चेक करते है और फिर लिफ़ाफे के ऊपरी हिस्से को फाड़कर देखते है, " उन रंडी री इतरी हिम्मत, मारे कालजा ने नोटिस भेजने री ख़ातिरदारी करे " !
" क्या हुआ ? बोलने री तमीज रखो, ऐ घर है और इसे घर ही बने रहन दीजिए, " सुलोचना जरा सी पास आकर कहती है " !
" ख़ाक शांति राखे, ऐ देख, " तर्जनी उंगली के इशारों में भानुप्रताप सिंह पोस्ट से मिली FIR कॉपी सुलोचना से पढ़ने को कहते है " !
" ऐ के है ? , " सुलोचना अचम्भे में चौककर भानुप्रताप सिह से पूछती है !
" खत, था लाडकवाई वहु रो, " भानुप्रताप सिह आग बबुलाई में कहते है " !

हवेली का माहौल पूरा गरमाया हुआ था, क्या करे और क्या नही ? किसी को कुछ भी समझ नही आ रहा था ! पूरी दुनिया से लड़नेवाला नन्यायाधीश बाप अक्सर अपने ही घर मे अपने बहु-बेटे के सामने अपना ही आशियाना हारकर रह जाता है ! एक चांद अपने सितारों की जिद्द और फरमाईस आगे कभी नही टूटता, वो तब जरूर टूटकर अपनी उजास खोने लग जाता है, जब उसके बच्चे उसकी बातों को बीच मे काटना और उसे बात-बात पर टोकना चालू कर देते है, उसके उम्मीदमयी बच्चे जब उसकी अपेक्षा पर खरे नही उतरने लगते है या फिर उसके बच्चे अपने बाप और समाज के सामने वो सब कृत्य करने लगते है, जो वास्तव में समाज और दुनियादारी में घिनौने होते है !

" रामु, चरणवा, तेजा, सीता, काली, लक्ष्मी, सब यहां आहो, " भानुप्रताप सिह अपने सब विश्वासी नौकरो को एकमयी श्वास साथ आवाज लगाते है " !
" अब के हुवा ? " सुलोचना अपने दांपत्य जीवन साथ
जीवन यापन जरूर कर रही थी पर अपने प्राणाधार के स्वभाव से कभी चिरपरिचित नही हो पाई, आज तक जान नही पाई थी, " वो कब क्या करेंगे और कब क्या नही ? सुलोचना के लिए भानुप्रताप सिंह को समझना, " समुंदर की गहराइयों में उलझने जैसा काम था !

नाक में रॉयल नथ, माथे पे बींदणी मांग टिका, भौहे बीच लाल चटक सुहागन बिंदी, साथ मे तेज तर्रार गुस्सा मानो, " रेगिस्तानी जमी पर धनुषाकार में फैली दो काली-काली झाड़ियो के बीच की भूमि से आग का गोला तपकर लाल हो रहा हो ", सरसीयू फूलों के रंग में रँगी और गोटे के किनारों से सजी पीली ओढ़नी ओढ़े, कांचली/अंगरखे की फूल बाहे और उसका रंग सिम्पल-लाइट पिला और उसके ऊपर डार्क पिले रंग की कुर्ती पहने, जो सिल्वर हैंडवर्क से सजी हुई है, और नीचे लहरिया डिजाइन से प्रिंटेड लहंगा/धांधरा, दोनो हाथो में एक-एक गोल्डन कंगन, सुलोचना अपनी उम्र का 40 वा बसंत देख चुकी है, फिर भी गोरा भर-भरा और खिल-खिला यौवन, जो किसी के भी दिलों में अपनी छाप छोड़ने के लिए काफी और ऊपर से मदहोशी कनहौज के मिट्टी के इत्र से खुद को महकाने का अलग ही एक ठकुरानी वाला शौख, जिसकी सौधी महक खेत-खलिहान और गाँव की तपती माटी में पड़ने वाली सीजन की पहली बरसात की याद दिला जाती है " !

" सब जन कान खोल ने सुन ल्यो ! ऐ आपणा विजय री वहु, आ हवेली मे आज रे बाद दिखनी नही चावै, गर आज रे बाद मनै आ हवेली में दिख गई और तुम में से किसी ने भी उन्ने हवेली अंदर आन दी, फिर समझो तुम सब री खैर नही, " भानुप्रताप सिह अपने सब एकजुट विश्वासी नौकरो को अपनी बात समझाते है, " तुम लोगो को क्या करना है और क्या नही ? और फिर सब नौकर एक साथ भेड चाल भाति गर्दन नीचे करे, " जी, साहब ", की हामी भरकर अपने-अपने निर्धारित सौपे कार्य मे लग जाते है !

भानुप्रताप सिह और सुलोचना ने अपनी तरफ से इन बुझे हालातों में सब पूर्ति करके देख ली थी ! कैसे अपनी बहू को केस वापस लेने के लिए मनवाया जाए ? उसके लिए साम, दाम, दंड, भेद सब नीतियां अपनाकर देख ली पर नतीज़न हाथ निराशा ही लगी और चार दिन बाद कोर्ट में केस की सुनवाई भी...

" अब क्या किया जाए ? सुलोचना अपने माथे पर हाथ धरकर विजय को कहती है " !
" मैंने अपनी तरफ से सब बनती-बिगड़ती कोशिश करके देख ली पर भरे हाथ निराशा ही लग रही है ", विजय ने अपनी तरफ से सफाई पेश की " !
" रहन दे, तू हाथ पर हाथ धरने ही बैठा रह ", भानुप्रताप सिह ने कहा " !

जो समाज भानुप्रताप सिह के आगे-पीछे घुमा करता था, आज वही समाज भानुप्रताप सिह और उसके परिवार को लेकर तरह-तरहा की बाते करने लगा हुआ था ! भरे समाज मे भानुप्रताप सिह और उसके परिवार वालो का निकलना दिनों-दिन दुशवार होते जा रहा था, हर कोई भानुप्रताप सिह की छवि के बारे में नुक्स निकालने में लगा हुआ था ! देश के भावी राइटर माँगी ने अपनी न्यू बुक " अलंग अघोरी " में समाज को लेकर लिखा है, " समाज के लोग भले हो सकते है पर समाज कभी भला नही हो सकता ! समाज मे भले लोगों को चुनना मतलब समाज से बुराई को जड़ से उखाड़ फेंकने जैसा है ! समाज के लोग भरे धड़े जैसे है पर समाज आधा भरे धड़े जैसा है, जो छोटी सी ठोकर में भी छलक ही जाएगा ! समाज को लेकर आप कभी निशिचत नही रह सकते !

" विजय जी, आप मुझे एक बार फिर शुरुवात से अब-तक का एक-एक किस्सा और उर्वशी जी के साथ बिता आपका हर समय और भी सब-कुछ बता सकते हो ", वकील बाबू ने कहा " !
" सब कुछ ", विजय सिंह ने एतराज़ जताने के स्टाइल में मुह बिसकाते हुए कहा " !
" ऐ गेला, तने कोई प्रॉब्लम है ", भानुप्रताप सिंह ने कहा " !
" ना, बापूजी ", विजय सिंह ने कहा " !
" फिर, बक ", भानुप्रताप सिंह ने कहा " !
" जी, आपको सब कुछ मुझे बताना होगा, आप उन्हें कब से जानते हो, आपकी सगाई, शादी और अंदर तक कि बात, घर मे व्यवहार, समझ रहे हो ना, मैं कहना क्या चाहता हु ? बैडरूम तक कि हर एक गोपनीय बात ", वकील ने अपने जेब से पेन निकालते हुए कहा " !
" वकील हो के जासूस ? " विजय ने कहा " !
" बेटा, सब बता दे, बला छुटे फिर उससे ", सुलोचना ने कहा " !
" मैं तब ही आपको इस केस से सुरक्षित बाहर ले आ सकता और जान पाहुगा की, " उर्वशी जी ने ऐसा क्यों किया ? ", वकील ने कहा " !
" ऐ विजया, बताने में शर्म आवे के ", भानुप्रताप सिंह का बात-बात पर भड़क जाना, उनकी पुरानी आदत रही है " !
" ठाकुर सा, आप कमरे में आ जाओ ", सुलोचना ने समझदारी से काम लिया और भानुप्रताप सिह को जबरदस्ती अपने कमरे में लेकर चली गई " !
" जी, आप भी विराजिए, " वकील ने भानुप्रताप सिह को रुकने के लिए कहा " !
" जी, आप भी मैम, " वकील ने फिर से अपनी बात पर जोर देकर कहा " !
" रे भई, बोल के-के पूछनु है ", भानुप्रताप सिह ने कहा " !
" सगाई से लेकर अब-तक, " वकील ने कहा " !
" हा, तो सुन..." , भानुप्रताप सिह अपनी बात चालू करते है " !

हवेली के जस्ट सामने बड़ा सा गार्डन बना हुआ है, वकील और विजय सिंह दोनो गार्डन में आराम कुर्सी पर बैठकर सवाल-जवाब कर रहे है, गार्डन के बीचों-बीच थ्री टायर कैसल का फव्वारा लगा हुआ है, जो कि छोटी-छोटी रंगबिरंगी चित्रकूट लाइटों से सजाया हुआ है, शाम का समय होने के कारण हवेली और गार्ड़न दोनो अपने रंग में पूरी तरह से रंगे हुए मालूम पड़ते दिखाई दे रहे है ! गार्डन के एक छेड ओर तुलसी के बहुत सारे पौधे लगे हुए है, जो कुछ मन्नताई धागों से बंधे हुए है, तो दूसरी ओर लाइनसर गुलाब, चम्पा, जस्मिन, रात-रानी, केले, पान आदि के पौधे लगे हुए है ! फ़व्वारे के आस-पास मनीप्लांट भी लगा हुआ है, जो सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है ! हवेली के अंदर जाने के लिए दो बड़े-बड़े गेट बने हुए है, एक गेट लेजर कट सीएनसी वर्क डिजाइन लोखड़ की जाली से बना हुआ है, जो हवेली के सामने गार्डन के बाहर चार-दिवारी साथ बनाया हुआ है, पर इस गेट से एंटरेस बंद किया हुआ है, दूसरा गेट सांगवान के लकड़े से बना हुआ है, जिस पर कुछ नक्साई की हुई है, जो कि हवेली के पिछले भाग ओर बना हुआ है, जिस ओर से आने-जाने का लगा हुआ होता है !

क्रमशः

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