" आ जुबान रख, भरोसो कोनी के ? न मैं मुकरूँगा और ना मेरा विजया...
" अरे, भानु कर दी न छोटी बात, बिस्वास है तेरी जुबां पे, "
" और मुझपे, " और दोनों खिलखिलाहट हसने लगते है " !
भानुप्रताप सिह ने अपने इकलौते बेटे विजय की सगाई पड़ोसी गाँव मे अपने बालपन के खास मित्र ईश्वर सिह के वहा तय कर रखी थी !
सगाई, बिना किसी रीति-रिवाज ! बस बातो ही बातो में लगा और जुबान, " पहले जमाने की बात ही कुछ ओर थी, वैसे आज भी राजस्थान के ऐसे छोटे-मोटे गाँवो में नीम के पेड़, वट व्रक्ष की छत्रछाया नीचे अथवा गाँव में चौपाल के बीचों-बीच, अपनी मुछों को ताव देते अपनी जुबान की घर के मुखिया जन कीमत दाव पर लगाते है " !
" प्राण जाये पर वचन न जाये, " अक्सर दो मायकेलाल ही अपने जुबान की कीमत मरते दम तक निभाते है, माटी में तपने और पलने वाला लाल और दूसरा अपने ढंग से जीने वाला औघड़, जरूरी नही औघड़ मतलब सिर्फ तपस्वी हो, औघड़ यानी अपने धोड़े का खुद मालिक और खुद ही चालक, चाहे फिर परिस्थितिया कितनी ही विपरीत क्यों न हो ? भले प्राण क्यो न चले जाए पर दि जुबान दांव पर नही लगनी चाहिए !
भानुप्रताप सिह भी उनमें से एक, ऊपर से औघड़ स्वभावी तो दूसरी ओर सुदामा जैसा मित्र, ईश्वर सिह...
घोर अचंभा, भानुप्रताप सिह घमंडी, गरीबों से नफरत करने वाला, एक गरीब का खास मित्र कैसे हो सकता है ? बालपन अक्सर भेद नही देखता, अमीर-गरीब, जात-पात नही करता, बस जहां मन मिल जाए वही दिल अपना आशियाना, " फिर समय साथ उम्र और पैसों का बोझ भले न बढ़ने लगे पर दिल जिसे पहली बार मे अपना खास मान लेता है, उसके साथ वो अपनी बढ़ती उम्र, पैसे-टके बाद भी सच्ची यारी निभाते जाता है पर तब-तक ही, जब तक सामने वाले के माइंड में आर्थिक स्तर का लेवल एक समान हो हो...
भानुप्रताप सिह और ईश्वर सिह दोनो बालपन के खास मित्र, फिर भला घमंड उन दोनों की दोस्ती में तिराड़ कैसे कर सकता है, ऊपर से ईश्वर सिह के संतान रूप में एक ही लड़की, " उर्वशी सिह " !
" विजय भाई, आप और उर्वशी जी दोनो शादी से पहले कितनी बार मिले, " अपनी जेब से पेन निकालते हुए वकील ने विजय से अपना दूसरा सवाल पूछा " !
" बेशर्म है, के पूछ रहो है ", भानुप्रताप सिह गुस्से में दहाड़ उठें " !
" बापूसा, " आप शांति तो राखों , " विजय ने कहा " !
2 साल पहले, शनिवार, शाम के करीबन 6:00 बज रहे होंगे, आकाश में भयंकर गर्जना हो रही थी, जैसे कोई बहुत सारे हाथियों को आकाश में इधर-उधर दौड़ा रहा हो ! अंकिता नर्सिग होम एंड हॉस्पिटल की सीढ़ियों के बाहर येलो सलवार-सूट के ऊपर फूल वाइट शर्ट पहने और गले मे स्टेथॉस्कोप लटकाए खड़ी जवान लड़की, जो कभी ऊपर आकाश में, कभी अपने कोमल हाथों की कलाइयों में पहनी धड़ी में देखती है, तो कभी तेज तूफ़ान के लपटों में गुम कच्ची सड़क पर बस और रिक्शे की प्रतीक्षा में दूर-दूर तक...
उस लड़की को वहां खड़े-खड़े पौना धंटा होने को आया होगा पर आज न तो कोई बस और न ही कोई आने-जाने का साधन नजरें चढ़ रहा था, शायद क़ुदरत के मचाये ताडंव के कारण..
" ओह, शीट.. बैटरी लो, " जवान लड़की अपने फ़ोन में रह-रहकर आ रहे नोटिफिकेशन को देखकर कहती है " !
" व्हाट आई डु ? घर पर कैसे इन्फॉर्म करू ? प्लीज गॉड हेल्प मी, " उस जवान लड़की को कोई उम्मीद भी नजरें नही आ रही थी " !
20 मिनट से चल रहे तूफान की लपटें इतनी तेज थी, वहां सड़क पर सिर्फ धूल के गुब्बारे और अपने साथ तबाही उड़ाते ही नजरें आ रहा था !
धक-धक, ध-ध, धक-धक बुलेट का लाउड साउंड, कच्ची सड़क पर उड़ रहे धूल के गुब्बारों में से कोई अज़नबी अपनी मंजिल की तरफ जाता हुआ दिखाई दे रहा था ! उसके आँखों पर बेनेटन यूनाइटेड कलर का गॉगल्स, मुख पर काला रुमाल बांधा हुआ था और उसकी हाइट-बॉडी डब्लूडब्लूई रेसलिंग के जांबाज से कम नही थी, विराट कोहली दाढ़ी-स्टाइल और हेयर स्टाइल अर्जुन कपूर वाली, दिखने में खड़ूस सा प्रतीत हो रहा था पर बुलेट जैसी रॉयल बाइक के लिए फेस एंड बॉडी लैंग्वेज गर्ल्स की थिंकिंग हिसाब से एक-दम परफ़ेक्ट था !
वो अज़नबी गाँव की कच्ची सड़क पर भी अपनी रॉयल बाइक को 70 की स्पीड में खड़ी जवान लड़की को एक टक निहारते-निहारते दूर तक हाके जा रहा था ! खड़ी जवान लड़की बस और रिक्शे न मिल पाने और घर जाने के टेंशन में इतनी गुल हो रखी थी उसके आजु-बाजू से कौन गुजरा और कौन गुज़र रहा है, इन सबसे अंजान ",..
" ओ मैंम साहब ! कहाँ गुम हो, " और उस जवान लड़की की तन्द्रा भंग हुई " !
" कौन ? , " जवान लड़की ने उस बुलेट वाले लड़के से कहा " !
" क्या हुआ ? जाने के लिए कोई साधन नही मिल रहे है " ?
" तुम्हे मतलब और पहले यह बताओ, कौन हो तुम " ?
" पहचानों " ?
" मेरा टाइम वेस्ट मत करो, जाओ यहां से या अपने ढके मुह से रुमाल हटाओं " !
" ओक्के बाबा, लो अब ख़ुश ", बुलेट वाला लड़का अपने मुह पर बंधा काला रुमाल और अपनी आँखों से गॉगल्स हटाता है " !
" आप ", अचंभे से लड़की ने कहा " !
" हा और अब बैठो " !
" पर.., नही आप जाओ " !
" पर क्यो ? अभी बस और रिक्शे कुछ नही मिलने वाले " !
" क्यों ? लोग क्या कहेंगे " ?
" ठीक है फिर तुम लोगों की परवाह करो " !
" अरे.. वेट-वेट " !
" हा , " और फिर जवान लड़की उस लड़के की बुलेट बाइक पर बैठ जाती है और फिर लड़का अपनी बुलेट को सेल्फ स्टार्ट करता है " !
" वो तो भला हो इन रॉयल एनफील्ड वालो का, जो अपनी भारी भड़कम बाइकों में अब सेल्फ स्टार्ट की सर्विस दे दी है, वरना एक थप्पड़ में गिरने वाले लड़को की मज़ाल जो ऐसी गाड़ी को ले घूमे, " जवान लड़की बुलेट पर बैठते ही समूचे पतले पापड़ लड़को पर तंज कसती है " !
" और मैं, " दोनों खिलखिलाहट हँसते है, धूल उड़ती और बाइक अपने वेग में धक-धक करती दौड़ती जाती है, और बुलेट पर बैठी लड़की के मन मे हजारों सवाल खड़े होकर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाते जाते हैं " !
बुलेट बाइक पर बैठी जवान लड़की का रंग थोड़ा सावला है, उसका एक-एक देह किसानी रंगत, खेत और कामकाज से साँचों में कसा हुआ, व्यर्थ कहने के लिए उसके शरीर मे कोई लचक नही सिवाय उसके दो वक्ष उभार के, जो उसकी सुंदरता को बॉलीवुड अभिनेत्री बिपासा बसु जैसी बया करती है ! गालों पर गड्ढे और ज़ुबान तेज-तर्राट ताजी ग्रीन मिर्ची, देसी लड़की पर भाषा शैली विदेशी टाइप पर आदर भाव लिए... भारतीय नारी की यही विशेषता सारे जग में हमे अलग गर्व महसूस कराती है " !
" लो उतरो ", बुलेट वाले लड़के ने अपनी बाइक रोकी और कहा " !
" ओह, थैंक्स ", जवान लड़की बुलेट से नीचे उतरते हुए कहती " !
बुलेट फिर गियर में और फिर अपने वेग साथ मंजिल की तरफ दौड़ती जाती है !
" और सेकंड मुलाकात, " वकील ने विजय और उर्वशी सिह की पहली मुलाकात के किस्से के बाद पूछा " !
" गाँव के फक्शन में एक दूसरे को बस देखना हुआ था और इससे ज्यादा कुछ नही, " विजय ने कहा " !
" आपकी शादी और फर्स्ट नाईट के बारे में बताइए ", वकील ने अपना एक ओर सवाल निकाला " !
" बापूसा, " विजय ने कहा " !
" सर जी, आपको जरा बाहर जाना पड़ेगा ", वकील ने कहा " !
" रे..वकील ", भानुप्रताप सिह अपने पैरों पर दोनों हाथों का जोर देते हुए आराम कुर्सी से खड़े होते है और हवेली के अंदर चले जाते है और फिर विजय अपनी शादी और शादी के बाद के पहले पावन अहसास में एक-दूसरे के बदन पर अंगुलियों की धीमी-धीमी, गुदगुदाती हलचल और मदमोहक पसीने की टपकती बूंदों तक विस्तार से बताना चालू करता " !
आधे क्लाक बाद वकील ने विजय की सारी बातो को और किस्सों को सुनकर कहा, " आपकी बातों को सुनकर मुझे तो ऐसा कुछ भी नही लग रहा, उर्वशी जी ने आप पर केस क्यो किया ? अब तो अदालत में ही पता लग पाएगा.. आप निशिचत रहिए, आप निर्दोष ही साबित होंगे " !
" विजय भाई फिर भी आपको एक नसीहत देना चाहूंगा अगर आपकी इजाज़त हो तो" !
" हा, बोलो " !
जब आप दोनों पहली बार मिले तब आपको पूछना चाहिए था, " क्या आप/तुम इस सगाई को लेकर खुश तो हो ना " ! फॉर्मलटी ही सही पर बहुत जरूरी है ! आपको शादी से पहले उनसे मिलने जाना चाहिए था, उनको समझना चाहिए था, कॉल पर बात करके या रूबरू जाकर उन्हें अपने दिल की बात बतानी चाहिए थी ! उनके दिल मे आपके लिए हौले-हौले प्यार जगाना चाहिए था ! अपने भावी सपनो के बारे में बताना चाहिए था ! क्योंकि हर लड़की की इच्छा होती है कि उसका मिस्टर शादी से पहले उसको समझे, उससे बेइंतहा मुहब्बत करे और उसके सपनों के बारे में वो डिस्कस करे !
" यू नो, सगाई और शादी के बीच के टाइम को कपल्स के लिए गोल्डन टाइम कहा गया है ! इस गोल्डन टाइम में कपल्स में एक दूसरे को जानने की ललक रहती है, दोनों पर प्यार का खुमार चढ़ने लगता है, तो वहीं भविष्य को लेकर प्लानिंग भी करने लगते हैं ! पर एक बात उनसे थोड़ी दूरी बनाकर भी जरूर रखे ताकि शादी के बाद भी उन्हें बताने और बात करने के लिए कुछ बचे !
" सर, बहुत एक्सपीरियंस लगता है आपको ", विजय ने हँसते हुए कहा " !
" जी, कुछ खास नही ", वकील ने इधर-उधर देखकर कहा " !
" पर, समाज मे हमारे यह मिलना-जुलना गलत है ", विजय ने कहा " !
" समाज..हाथी के दांत जैसा है, दिखाने के कुछ ओर और खाने के कुछ ओर ", वकील ने कहा " !
" ओक्के, परसो अदालत में मिलते है, मैंने आपके केस को बारीकी से जांच किया है, आप 99.9 % निर्दोष हो ", वकील अपनी कुर्सी से उठकर विजय की ओर अपना हाथ बढाकर कहता है " !
आज अदालत में केस की सुनवाई, विजय सिंह अपने पूरे परिवार और वकील साथ अदालत में आया हुआ है तो दूसरी ओर उर्वशी सिंह अकेली अपने वकील के साथ..
" जब बात बैठने हल हो सके फिर के जरूरत है पुलिस और केस रे चक्कर काटवा री, " ईश्वर सिंह अपनी बेटी उर्वशी सिंह को अदालत में जाने से पहले लास्ट बार समझाने का एक ओर झूठा प्रयास करते है " !
" पप्पा, मुझे कुछ नही समझना, मेरे साथ आपको अदालत आना है या नही ? " उर्वशी लास्ट बार अपने घरवालों को पूछती है " !
" मर जाहु पर अदालत तो कोणी आऊ, " गुस्से में ईश्वर सिंह कहता है " !
उर्वशी सिंह को अदालत से आने वाले परिणाम का पता है ! उसे यहाँ तक मालूम है उसे सब जगह से नकार लिया जाएगा ! समाज मे उसको बदनामी सिवाय कुछ नही मिलेगा फिर भी उसकी जिद्द है, " शादी के बाद कि पहली नाइट से दस दिनों तक उसके साथ जो हुआ वो और किसी के साथ न हो " !
" अदालत की कार्रवाई चालू की जाए, " जज साहब ने कहा " !
" जज साहब, " विजय सिंह का वकील केस की एक नकल जज साहब को देता है " !
" सेवा में,
श्रीमान प्रभारी निरीक्षक/थानाध्यक्ष
पुलिस स्टेशन कोतवाली,
सिरोही : - 307001
विषय : - वैवाहिक बलात्कार या मैरिएटल रेप केस हेतु !
महोदय/महोदया,
सविनय निवेदन है कि उपरोक्त पीड़िता उर्वशी सिंह W/O विजय प्रताप सिंह ! जो कि उनके पति विजय प्रताप S/O भानुप्रताप सिंह द्वारा तारीख़ 18/04/2017 की रात से 28/04/2017 तक अपनी पत्नी के मर्ज़ी के विरूद्ध ज़बरन सबंध बनाए गए ! जिसके तहत मुज़रिम पर आईपीसी की धारा 375 और 376 लगाई जाती है ! पीड़िता द्वारा चश्मदीद गवाह तौर मेड़िकल रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है जो कि इस नकल कॉपी साथ जोड़ दी गई है !
सादर अनुरोध है की उचित धाराओं में अभियोग (FIR) दर्ज कर आवश्यक कारवाही करने की कृपा करें !
दिनांक :- 28/04/2017
प्रार्थी/प्रार्थनी
उर्वशी सिंह
" मन ही मन नकल कॉपी को गुनगुनाकर जज साहब अपनी आवाज के माइक को बुलुन्द करते है, " बड़ा विचित्र केस है " !
और फिर भरी अदालत में विजय सिंह का वकील उर्वशी सिंह को, तो कभी विजय सिंह को, तो कभी भानुप्रताप सिंह को, तो दूसरी बाजू से उर्वशी सिंह का वकील भी एक-एक करके सबको कटधरे में बुलाता है और सवाल-जवाब का प्रचंड मचाता है, जीत का पलड़ा पूरी तरहा से विजय सिंह की ओर है बस पाँचेक मिनट बाद जज साहब इस केस का परिणाम सुनाने वाले है !
और पाँचेक मिनट बाद, " तमाम सबूतों और गवाहों को मद्देनजर रखते हुए अदालत इस नतीजे पर पहुची की विजय प्रताप सिंह निर्दोष है और उर्वशी सिंह को अपने वैवाहिक जीवन पर पूर्ण विचार करने का अदालत आदेश फरमाती है " ! और फिर अदालत में बैठे सगे-सबंधी गपशप में हा-ओ-हल्ला करने लगे अदालत बिखरने लगी तभी जज साहब, " ऑर्डर-ऑर्डर... , उर्वशी जी आप कुछ कहना चाहोगें " !
" हा ", उर्वशी सिंह अपनी जगह पर से सर हिलाती है " !
" जो भी कहना है आपको कटघरे में आकर कहिए ", जज साहब ने कहा " ! और फिर उर्वशी सिंह अपनी जगह से उठकर अदालत के कटघरे में जाकर खड़ी हो जाती है " !
" यह अदालत का नियम तो नही है पर मेरा यह अपना एक नियम है, मैं जिस भी अदालत में अपनी सेवा का फर्ज बजाता हु उस अदालत में केस हारने वाले को अपनी तरफ से अदालत के नतीज़े के अंत मे एक मौका दिया जाता है, ताकि वो अपनी बात फिर से सबके सामने रख सके "....
" ऑर्डर.. ऑर्डर, हा तो उर्वशी जी ", जज साहब ने कहा " !
" जी, धन्यवाद ! हर लड़की का अपना एक ख्वाब होता है, उसका पति उसको शादी से पहले समझे, उससे बात करे, उसके साथ भविष्य का प्लांनिग करे ! उस लड़की के अपने कुछ सपने है उसका पति उसके साथ कदम से कदम ताल मिलाकर उन्हें पूरा करे, उसे बिन मांगे हिम्मत दे पर हमारे रिलेशनशिप में ऐसा कुछ भी नही था ! चलो मान लिया, हमारे समाज में शादी से पहले मिलना-झूलना और बातें करना गलत माना गया है ! ठीक है, मुझे इससे कोई आपत्ति नही थी और है ! पर शादी की पहली नाइट मेरे साथ क्या हुआ ? पता है, यह सिर्फ मेरी ही नही यहां पर बैठी और समूची औरत जाती की प्रॉब्लम है ! शादी की पहली नाइट को हमारे साथ सुहागरात नही बल्कि बलात्कार होता है ! एक बार भी हमें इसके लिए पूछा तक नही जाता बस ऐ मर्द लोग सीधे हमारे वक्ष को मचलने लग जाते है, आखिर क्यों ? क्यो एक बार भी इसके लिए हमसे सहमति नही ली जाती ! उनके होंठ क्यों हमारे होठों पर बिना पूछे रख दिये जाते है ! उनके मुह से आती दुर्गंध से हमारे मन और मस्तिष्क पर क्या गुज़रती है, पूछा है कभी ! आखिर क्यों हमसे पूछा तक नही जाता, इसके लिए हमसे सहमति नही ली जाती, बस इसलिए ही कि हम एक औरत जात है " !
आज इस कोर्ट ने मुझे दोषी ठहरा दिया, क्योकि मैं अपना पक्ष आपके सामने सही ढंग से नही रख पाई ! बस मैं तमाम सबूतों को आपके मद्देनजर नही रख पाई, बस इसलिए ही " ! पर जज साहब, " आपने कभी सोचा, कितना मुश्किल होता है एक औरत के लिए किसी अज़नबी के सामने पहले दिन ही अपनी आबरू को खोल कर रखना...
मेरी एक चीख़ आगे सारे जग को झुका देने वाले बाप ने यु नो मुझसे क्या कहा, " मैं उनके लिए पराई हो गई हूं ! आज मैं अदालत को अकेली आई हूं क्योकि उनको अपनी बेटी के साथ अदालत आने में शर्म आ रही थी " ! शादी के बाद उसका सगा बाप भी क्यों सगा नही रहता ? ससुराल में बेटी कितने भी कष्ट में क्यों न हो ? उस दर्द को बस बाहर नही आने देना चाहिए वरना घर को इज्ज़त...
जज साहब, इतना ही नही शादी की पहली नाइट को हमारे साथ रोमांस नही किया जाता बल्कि अपनी हवस और मन को शांत करने के हर एक यथासम्भव प्रयास किये जाता है ! ऐ मर्द लोग अपना लिंग हमारे पिछवाड़े तक में धुसेड़ देते है, आखिर क्यों ? इतना ही नही इनका लिंग हमारे मुह तक मे..." ! और बताती हु हक़ीक़त, " ऐ लोग पहले दिन हमे अपने फोन में आपत्तिजनक वीडियो बताते है, और उस वीडियो में जो-जो होता है, वो हमें भी करने को कहते है " !
जज साहब, बस यही हक़ीकत है सुहागरात की, मेरे इस अदालत में न्याय की, जो मेरे साथ हुआ ऐसा ओर किसी के साथ न हो !
मुझे यहां तक पता है, अब यहां से जाने के बाद मेरा कोई ठिकाना रहने वाला नही है पर फिर भी मुझे सब कबूल है !
बेटी, आज तुम केस हारी जरूर हो पर सबका दिल जीत गई हों, " भानुप्रताप सिंह रोते-रोते दोनो हाथों को जोड़कर कहता है " !
आज अदालत में सबके चेहरों पर केस जीत जाने का मलाल था, शर्म थी, चेहरे झुकें हुए थे, अफ़सोस ही अफ़सोस था..