भाग-5
राज उस शॉप में गया । शॉप में प्रवेश करते ही रिसेप्शन और अपना बैग जमा करने के लिए काउंटर था । राज ने अपना बैग जमा किया और खरीदारी के लिए अंदर शॉप में गया । खरीदारी तो मात्र बहाना थी । स्टाफ से पूछने से पहले राज ने सर्च करना बेहतर समझा । राज ने सोंचा यदि वह यहाँ काम करती होगी तो अगर रिसेप्शन पर नही दिखी तो शायद सेल्स गर्ल्स का काम करती हो । शॉपिंग करते वक़्त पूरी शॉप में कहीं न कहीं तो दिख ही जाएगी । राज सोंच ही रह था कि कहाँ से शुरू करूँ कि अचानक उसकी नजर एक दुबली पतली स्टाफ गर्ल पर पड़ी । देखते ही लगा शायद वह जेनी है । रिसेप्शन के पास ही खाने पीने के किचेन आइटम के काउन्टर पर वह नीचे बैठकर कुछ सामान व्यवस्थित कर रही थी । बैठे होने के कारण राज उसे ठीक से पहचान नही पा रहा था ।
अब राज उसी काउन्टर के तरफ बढा । जैसे ही उसके पास पहुँचा कि एक बुजुर्ग आदमी ने उससे बुलाकर आइटम्स की जानकारी लेने लगा । खैर जल्द ही उन्हें समझा कर वह पलटी , उसे देखते ही एक पल को राज को अपनी आँखों पर भरोसा नही हो रहा था । राज तलाश खत्म हो चुकी थी । लेकिन राज के शब्द न जाने क्यों उसकी जुबान पर नही आ रहे थे , उसे अपनी जुबान बेजान सी प्रतीत हो रही थी । वह कुछ बोलने चाहता था लेकिन बोल नही पा रहा था । जेनी ने भी राज को देखा लेकिन बोली नही एक पल के लिए रुकी फिर न जाने क्या सोंचा और अपने काम में लग गई । शायद उसकी भी वही हालत थी जो राज की थी । वह बार बार राज की तरफ देखती ऐसा लगता कि उसने राज को पहचान लिया फिर जल्द ही किसी और काम में लग जाती । राज को लगा वह बोलेगी , वह कुछ भी बोली तो नही परन्तु वह किसी सोंच में जरूर थी । राज को देखने से पहले वह जिस तरह से अपने काम में व्यस्त थी अब वैसा नही था वह कभी दूसरी तरफ जाती फिर पलटी राज देखती फिर ऐसा दिखाने का प्रयास करती की उसने उसे नही देखा । राज भी बार बार उसकी तरफ देखता फिर नजरें फेर लेता । काफी दिनों बाद मिलने के कारण शायद दोनो ही एक दूसरे से कहने को बहुत से शब्द मन मे दबाये हुए थे जो आज जुबान पर नही आ रहे थे इसलिए एक दूसरे को अनदेखा कर रहे थे । राज के शब्द जुबान पर आने को आतुर थे लेकिन जुबान साथ नही दे रही थी । इसलिए वह वहाँ से दूसरी तरफ चला गया । जैसे ही वह उसकी आँखों से ओझल हुआ वह बेचैनी भरी आँखों से इधर उधर तलाशने लगी । राज उसकी आँखों की बेचैनी देखर समझ गया कि वह जेनी ही है और उसने उसे देख लिया है । राज जब वह खुशी की बेहोशी से बाहर निकला तो फिर घूमकर उधर गया और बोला ....
..ज ...ज..जेनी ! तुम ।
जेनी ने पलटकर देखा और फिर देखती रह गई । रिसेप्शन पर बैठे स्टाफ यह सब देख रहे थे । उन्हें कोई शक हो कि इससे पहले राज फिर बोल पड़ा ..
क्या हुआ जेनी ? पहचाना नही क्या ?
जेनी-अरे !आप यहाँ कैसे ?
मुझे विश्वास नही हो रहा ।
राज-क्यों ? क्या मैं यहाँ नही आ सकता ।
जेनी-नही मेरा यह मतलब नही है । आप कब आए ? बड़े दिनों बाद मिले !
राज-आया तो कई बार बस यहाँ पहली बार आया हूँ ।
जेनी-यहाँ कैसे आना हुआ ?
क्या कुछ लेना है ?
राज- जो लेने आया था वह तो मिल गया । अब देखता हूँ कुछ पसन्द आएगा तो और कुछ ले लूँगा ।
जेनी -क्या लिए हैं ।
राज-मैं तो सिर्फ तुम्हे खोजते हुए यहाँ आ गया और तुम मिल भी गई ।
जेनी-बड़े दिनों बाद मेरी याद आई ।
राज -याद तो रोज करता था , परन्तु तुमसे मिलता कैसे । तुम्हारा कुछ अतापता तो रहता नही । तुमने अपना नम्बर भी बदल दिया और बताया भी नही ।
जेनी-सॉरी , मेरा मोबाइल खराब हो गया था इसलिए बाद में वह नम्बर बन्द हो गया ।
राज -ठीक है परन्तु मेरा नम्बर तो था न तुम्हारे पास , कभी कॉल ही कर लेती ।
जेनी-आपका नम्बर उसी फोन में सेव था इसलिए मिल नही पाया ।
राज-मैं सोंच रहा था अब न जाने कहाँ रहती होगी । ढूंढ भी पाऊंगा या नही । खैर एक दिन धीर मिल गया तो उसने बताया की सभी लोग वहीं रह रहे हैं । उससे मैंने तुम्हारा फोन नम्बर भी मांगा था लेकिन उसने जो नम्बर बताया वह भी नही लगा । तब मैं तुम्हे खोजते हुए यहाँ आ गया ।
जेनी-हाँ उसने बताया था कि जीजा मिले थे , आपका नम्बर माँग रहे तो मैंने गलत नम्बर बता दिया । मैंने उससे कहा था , तो सही नम्बर बताना चाहिए था । लेकिन आपको भी तो उसे नम्बर देना चाहिए था ।
राज-चलो कोई बात नही । अब तो नम्बर दे दो नही तो फिर यहीं आना पड़ेगा ।
जेनी-ठीक है आप खरीदारी कर लीजिए मैं अभी नम्बर देती हूँ ।