पहला एस एम एस - 3 (32) 1.4k 1.2k 8 पहला एस एम एस -3 राज का ख़्वाब तो टूट जाता है । परन्तु यह ख़्वाब दूसरे ख़्वाबों सा नही था । अक्सर ख़्वाब नींद खत्म होते ही भुला दिए जाते । इस ख़्वाब ने तो यादों को और ताजा कर दिया । अब तो राज को एक पल भी चैन नही था । वह जेनी की तलाश करे तो कैसे ? राज के पास जो कुछ रास्ते थे भी उन रास्तों पर चलकर जेनी तक पहुंचना शोलों पर चलने के जैसा था । शोले भी ऐसे वैसे नही की पैर जलेंगे जरा सी चूक हुई तो पूरा जीवन कलह से बीतेगा । खैर इस वक्त राज के पास एक ही रास्ता था । जेनी और राज की मुलाकात जहाँ हुई थी , उस घर से ही जेनी का पता मिल सकता था । लेकिन वहाँ अब रानू भाई तो रहते नही । कुछ व्यक्तिगत कारणों से पारिवारिक विवाद हुए तो उन्होंने भी वहाँ रहना छोड़ दिया । वहाँ अब राज के ससुराल वाले रहने लगे थे । राज के ससुर के रिटायरमेंट के बाद सब वहीं रहने लगे । राज को उम्मीद थी कि यदि जेनी अब भी उसी मोहल्ले में रहती होगी तो उसके ससुरालियों से जरूर मिलती होगी । क्योंकि वह कमरा छोड़ कर गई थी रिश्ता तोड़कर नही । उसका व्यवहार ऐसा था कि मिलने पर बिना बोले रह ही नही सकती थी । राज की सास से जेनी की अच्छी बनती भी थी । जेनी उन लोगों से जरूर मिलती होगी , ऐसा राज को पूरा अनुमान था । राज के सामने समस्या यह थी कि वह ससुरालियों से कैसे पूछेगा ? यदि उन लोगों को शक हो गया तो बेवजह बवाल होगा । जीवन भर राज और उसकी पत्नी के रिश्तों में खटास पैदा हो जाएगी । राज को यह पता था कि राज को नीचा दिखाने का कोई भी अवसर उसके ससुरालिये छोड़ेंगे नही । इसलिए राज और जेनी की मोहब्बत एक राज़ ही रहे तो बेहतर है । एक दिन राज कुछ लोगों को व्हाट्सअप पर मैसेज कर रहा था कि अचानक जेनी का मोबाइल नंबर व्हाट्सअप सम्पर्क में दिखा । राज को लगा कि यदि यह नंबर जेनी चला रही होगी मेरे मैसेज का जबाब जरूर आएगा । राज ने फटाफट मैसेज टाइप किया । हाय ! जेनी हाऊ आर यु । ज्यादा कुछ नही लिखा क्योंकि राज को डर था कि यदि यह नंबर जेनी के घर के किसी अन्य सदस्य के पास हुआ तो जेनी से पूछताछ होगी । जिससे वह मुसीबत में पड़ सकती है । इसलिए जरूरी था कि संक्षेप में में हाल चाल लेते हुए पता किया जाए कि यह नंबर कौन चला रहा है । दो तीन दिन तक राज मैसेज के जबाब का इंतजार करता रहा । मैसेज पढा गया परन्तु कोई जबाब नही आया । राज ने अपनी बात जेनी तक पहुंचने के लिए शेरो शायरी का भी इस्तेमाल किया । ताकि किसी को शक न हो कि कोई बात करना चाहता है । जेनी तो राज के मैसेज पढ़ते ही समझ जाएगी । फिर भी कोई जबाब नही आया । राज जेनी की याद में रोज कुछ न कुछ लिखता । मैसेज प्रतिदिन पढा जाता परन्तु जबाब नही मिलता । धीरे-धीरे राज का शक यक़ीन में बदल रहा था । राज को यक़ीन होने लगा कि यह नम्बर जेनी ही चला रही है । शायद नाराज़गी की वजह से बात नही करना चाहती । राज को यक़ीन इसलिए हो रहा था कि यदि कोई और होता तो नाराज़गी जाहिर करता या ब्लॉक कर देता , हर मैसेज खोलकर पढ़ता नही । जब राज जबाब न आने से बहुत परेशान हो गया तो उसने लिखा , हाय ! जेनी कैसी हो तुम्हारा भाई धीर कैसा है ? कभी जबाब तो दिया करो । दूसरी तरफ से जबाब आया कि सब ठीक हैं । राज के बारे में तो जेनी ने कुछ पूछा ही नही । यह बात उसे बहुत तकलीफ दे गई । राज को लगा कि मोहब्बत कुछ नही बस जिस्मों की भूख है । शायद जेनी को उससे कोई उम्मीद नही रही इसलिए वह इग्नोर करने लगी है । या फिर उसको कोई और मिल गया होगा । क्रोध में राज बहुत कुछ सोंचता फिर यह सोंचता नही जेनी वादा नही तोड़ सकती । नाराजगी खत्म होते ही जबाब देगी । राज फिर लगातार प्रतिदिन मैसेज भेजता रहा । जबाब में बस इतना ही कि सब ठीक हैं । इतने जबाब से राज को एक उम्मीद तो बनी थी कि शायद एक दिन जेनी जरूर बात करेगी । यह उम्मीद भी उस दिन खत्म हो गई जब राज की सब्र का बाँध टूट गया और उसने सोंच अब कोई भी फोन चला रहा हो जेनी से अपनी बात जरूर कहेगा । क्योंकि उसे विश्वास था कि मोबाइल उसी के पास है । इसलिए बदनामी का डर खत्म हो गया , तब राज ने लिखा । जेनी कुछ बात तो करो , क्यों अभी तक नाराज हो ? मेरे पास अपनी मोहब्बत बयान करने के लिए शब्द नही हैं । कुछ मजबूरियाँ हैं जिनके कारण तुम्हें अपना नही सकता परन्तु हम एक अच्छे दोस्त तो रह ही सकते हैं । प्यार का मतलब सिर्फ इतना ही तो नही की हम जीवन भर एक दूसरे के हो जाएं । एक दूसरे के सुख दुःख को साझा करके भी तो अपनी दोस्ती अपना प्यार जाहिर कर सकते हैं । एक मेरे पिता और दूसरी तुम ही तो थी जो मुझे सबसे ज्यादा समझ सकती थी । पिता जी भी इस दुनिया मुझे अकेल छोड़ गए । अब कौन है जो मेरी भवनाओं को समझ सकता है , सिवाय तुम्हारे । जब कभी मन उदास होता है तुमसे बात करने का मन करता है तब जब तुमसे बात नही होती तो बहुत कष्ट होता है । सच्चे दोस्त एक अच्छे जीवनसाथी कही अधिक मायने रखते हैं । तुम्हारा प्यार शायद मेरा नशीब न बन सके लेकिन तुम्हारी दोस्ती नही भुला सकता । कम से कम इतना पूछ ही लेती की कैसा हूँ ? पहले जब गरीब था तुम्हारे जैसी दोस्त और मेरे पिता जी थे जो मुझे हमेशा एक ताकत देते थे । आज नौकरी मिल गई गरीबी दम तोड़ रही है लेकिन साथ ही रिश्तों को दम तोड़ते नही देख पा रहा हूँ । अक्सर लोग दुश्मन से भी हाल चाल पूँछ ही लेते हैं । हमारे बीच कुछ न होते हुए भी दोस्ती का पावन रिश्ता तो है ही । इस मैसेज के बाद उधर से जवाब आया । उधर से पूछा गया कौन सी नौकरी लगी है ? हमें तो कभी बताया नही आपने । राज ने उत्तर दिया बताया तो था । क्यों अनजान बन रही हो ? अगर बात नही करनी तो कह दो बहाने तो न बनाओ । मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि मेरी वजह से हमारी दोस्ती न टूटे यदि तुम नही चाहती तो आज के बाद मैं कोई बात नही करूँगा । उधर से फिर जवाब आता है । मित्र आप बहुत अच्छे इन्शान हैं । मुझे भी अपना मित्र समझें लेकिन मैं कोई जेनी नही हूँ । दो माह पहले इंडिया आना हुआ तब मैंने यह नंबर लिया था । जेनी का नम्बर बदल गया है । राज को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतने दिनों तक न जाने किसके पीछे पड़ा रहा । परन्तु इतना साफ था कोई भी हो बहुत ही सुलझा हुआ व्यक्ति है । तब राज ने पूछा मित्र आप कौन हैं , कहाँ रहते हैं ? उधर से जवाब आया । मैं एम्स्टर्डम में जॉब करता हूँ लखनऊ का रहने वाला हूँ । मित्र जेनी के बहुत कॉल आते हैं । जेनी का पता चले तो बताना की क्या कहूँ उनसे ? राज ने कहा मुझे खुद ही नही पता तो मैं क्या कह सकता हूँ , पता चलने पर जरूर बताऊंगा । मुझे क्षमा करें मित्र मैंने आपको कॉल करके बहुत परेशान किया । कृपया अपना नाम तो बता दीजिए । उसने अपना नाम पी. के. मिश्रा बताया और कहने लगे कि मित्र मेरी पत्नी को लविंग पोएट्री बहुत पसंद है इसलिए शायरी भेजते रहिएगा । मैंने काफी वक़्त तक इसीलिए आपसे अपना परिचय छूपाये रखा । राज ने दोस्ती निभाने का वादा किया और पुनः जेनी की तलाश के नए सूत्र खोजने लगा । अब राज की तमन्ना सिर्फ इतनी थी कि एक बार वह जेनी से मिले और उसे अपनी दोस्ती की गहराई समझा सके , उसे बता सके कि जेनी उसके जीवन में क्या अहमियत रखती है । एक दिन राज को ख्याल आया कि उसके दोस्त दर्पण की मोबाइल शॉप उसी मोहल्ले में है । यदि जेनी ने अपना मोबाइल बदला है तो रीचार्ज करवाने के लिए शायद उसकी शॉप पर आती जाती रहती हो । बस क्या था कि राज ने अपने दोस्त दर्पण को कॉल किया । उसे अपनी प्रेम कहानी विस्तार से बताई । दर्पण भी राज की कहानी से प्रभावित हुआ और उसकी तलाश में साथ देने को राजी हो गया । कुछ दिन बाद दर्पण ने कुछ सूत्र बताए कि शायद जेनी और उसकी बहन मोबाइल खरीदने के लिए शॉप पर आईं थीं । मोबाइल खरीदने के जो फॉर्म भरा था उसमें उन्होंने अल्टरनेट मोबाइल नंबर जरूर लिखा होगा । राज ने कहा तो भाई खोज कर बताओ शायद बात हो जाये और उस फॉर्म में नए सिम का भी तो नम्बर हो सकता है । दर्पण ने कहा मैं देखकर एक दो दिन में बताता हूँ । दो दिन बीत गए जब दर्पण का कोई जवाब नही आया तो राज ने फिर कॉल किया । दर्पण ने कॉल रिसीव नही किया । राज को चिंता होने लगी कि शायद दर्पण उसकी मदद नही करना चाहता । फिर भी आशा की एक किरण थी कि बात किये बगैर किसी निर्णय पर नही पहुँचा जा सकता , मित्र पर इतना भरोसा तो होना ही चाहिए । आखिरकार दर्पण ने एक दिन काल किया कहने लगा भाई क्लियर नही हो रहा कि वही लड़की है । ऐसे ही किसी की सूचना देना ठीक नही होगा । उस लड़की के बारे में कुछ और बताएं जिससे कि उसे ढूंढने में आसानी हो । राज ने कहा जेनी उसी महल्ले में रहती है उसकी बहन वहीं किसी क्लीनिक में काम करती है । दर्पण ने कहा एक क्लीनिक है जहाँ एक लड़की काम करती है । मैं उसे जनता हूँ अगर वही उसकी बहन होगी तो पता कर लूँगा । राज को कुछ राहत हुई कि शायद अब तलास खत्म हो जाएगी । उसे भरोसा था कि यह वही लड़की होगी । परन्तु राज की तलाश यहीं खत्म होने वाली नही थी । दर्पण ने राज को कॉल किया और बताया कि उसने उस लड़की से बात की , वह किसी जेनी को नही जानती । राज एक बार फिर असफल हो गया । परन्तु राज धीरे धीरे जेनी के करीब पहुंच रहा था । उसे और भी कई रास्ते नज़र आने लगे थे । राज ने एक आखिरी प्रयास समझकर रानू को कॉल किया और जेनी के बारे में पूछने लगा । रानू ने कहा तुम शादीशुदा होकर उसके पीछे क्यों पड़े हो । तब राज ने कहा यदि एक लड़का किसी लड़के के साथ अपनी दोस्ती निभा सकता है तो किसी लड़की के साथ क्यों नही ? हमारे समाज में एक बहुत बड़ी विकृति है , रानू भाई की एक लड़की और लड़के के बीच सभी रिश्तों पर शारीरिक सम्बन्धों का सन्देह किया जाता है । एक लड़की और लड़के बीच शारीरिक सम्बन्ध हो जाना स्वाभाविक है परन्तु इस प्रकार के सम्बंध उन सम्बन्धों से कहीं अधिक पवित्र हैं जो केवल मानशिक शुख के लिए चोरी छुपे बनाये जाते हैं । जिनमें भावनाओं के लिए कोई जगह नही होती । ऐसे बहुत सन्त बने फिरते हैं जो सारे कुकर्म करने के बाद भी धर्म और संस्कारों की चादर में छिप जाते हैं । यही लोग हैं जिन्होंने समाज को विकृत कर दिया है । यदि कोई पुरुष मुसीबत के वक़्त अपनी महिला मित्र की मदद करना चाहता है तो सबसे पहले उसके परिवार वाले उसके चरित्र पर उँगली उठा देते हैं । इस बदनामी के डर से बहुत से लोग एक दूसरे को चाहते हुए भी उनकी मुसीबत में साथ नही खड़े हो पाते । रिश्तों के बीच उन्हें गन्दगी ही दिखती है जिनके दिमाग में गन्दगी भरी होती है । यह सच है कि एक महिला और पुरुष की दोस्ती में सेक्स सम्बन्ध एक कारण हो सकते हैं , क्योंकि यह प्राकृतिक है। इसका मतलब यह भी नही की जिससे दोस्ती हो उससे सम्बन्ध न बने तो रिश्ता तोड़ दें , उससे यह सोंचकर बात न करें कि लोग क्या सोंचेंगे । यही होता भी है लोग अपनी भावनाओं को मारकर जी रहे हैं । साथ ही इस सोंच के कारण लोग अपनी महिला मित्र के साथ दोहरा व्यवहार करने को मजबूर हो जाते हैं । मैं भी मजबूर हूँ , डरता हूँ कि यदि यह बात मेरी पत्नी को पता चली तो वह उपद्रव मचा देगी । क्योंकि लोग रिश्तों को प्रोपर्टी का सर्टिफिकेट समझते हैं और रिश्तेदारों को अपनी प्रोपेर्टी । यदि एक दोस्त दोस्त की भावनाएं समझे , पति पत्नी की , पत्नी पति की , रिश्तों को भवनाओं से जोड़ें अधिकार से नही तो वाकई दुनिया खूबसूरत लगेगी । इतनी बेबसी और उदासी नही होगी । ये जो हर पल डर डर के जी रहे हैं वह बस एक दूसरे पर अधिकार करने , अधिकार छीनने और अधिकार दिलाने की जद्दोजहद भर है । रानू कहने लगे भाई बस करो तुम्हारी बात कोई नही समझ सकता । तुम एक काम करो मनीष से बात करो वह जेनी के भाई धीर के साथ ज्यादा रहता है । वह बता देगा वे लोग कहाँ रहते हैं । राज ने कहा हाँ अब ठीक है , बेवजह इतना लेक्चर देना पड़ा सीधे-सीधे बता देते तो कितना अच्छा होता सबका समय बचता । अब राज को पहुंचना था लखनऊ क्योंकि उसकी तलाश बस चंद कदम दूर थी । राज लखनऊ पहुँचता है और मनीष का पता लगाता है लेकिन वह उस दिन घर नही होता है । इस तरह राज को एक बार फिर निराशा ही हाथ लगी । परन्तु राज को जेनी की निकटता का आभास हो रहा था । उसका विश्वास बढ़ता जा रहा था कि वह जेनी से जल्द ही मिलेगा । राज की मनीष से मुलाकात तो नही हुई लेकिन सुबह उसने जेनी के भाई को एक नज़र जरूर देखा था । उसे देखे हुए काफी वक्त हो गया था इसलिए राज ठीक से पहचान नही पाया । इसलिए यह सोंचकर नही बोला कि मनीष से जानकारी लेकर मिल ही लेगा । अब गए हैं रास्ता साफ है तो कौन बड़ी जल्दी है । राज ने मनीष के घर पर गया तो पता चला वह कहीं गया है कल आएगा । मनीष के न मिलने पर राज को अफसोस हुआ कि यदि वह एक बार पूछ लेता तो शायद जेनी तक आसानी से पहुंच जाता । फिलहाल किस्मत ने राज को उसी दिन एक और मौका दिया । शाम के वक़्त राज टहलने निकला । कहा जाता है कि जब मन खुश हो तो खुशियाँ दौड़कर आती हैं । लखनऊ की खुशनुमा शाम का बयान शब्दों नही किया जा सकता है । जैसा कि ऊपर बताया मन खुश होने पर खुशियाँ ढूंढकर मिलती हैं , बिल्कुल वही हुआ । अचानक राज को जेनी का भाई दिखा । वह जनरल मर्चेंट की शॉप से कुछ सामान खरीद रहा था । उसे देखकर पहले तो राज ठीक से पहचान नही पाया क्योंकि काफी वक़्त से मुलाक़ात भी नही हुई थी , और बच्चों में उम्र के साथ बदलाव भी अधिक होते हैं । फिर भी राज ने सोंचा एक बार पूछ तो लिया जाए शायद वही हो । राज उस शॉप पर गया और उससे पूछा क्या वह धीर है ? उसने कहा नही धीरेश । राज ने कहा नाम तो लगभग वही है जो मैं पूछ रहा हूँ । क्या मुझे नही पहचाना ? कुछ सोंचने के बाद बोला हाँ ! पहचान गया जीजा जी । राज ने कहा चलो अच्छा हुआ पहचान तो गए । घर के हलचल पूछे और कहा , धीर बहुत दिन हुए तुम लोगों का अतापता ही नही चला कहाँ रहते हो ? धीर ने बताया यहीं पास में ही तो रहते हैं । राज ने कहा ठीक है कोई नंबर हो तो दो तुम्हारी दीदी का पहले वाला नम्बर तो लगता ही नही , अगर तुम लोगों से बात करनी हो तो कैसे होगी ?अब तो मैं भी बहुत दूर रहता हूँ कभी कभार बात तो हो जाएगी । पहले तो उसने कहा मुझे नम्बर याद नही है । फिर कुछ सोंचकर उसने एक नम्बर लिखवाया फिर कहा उसे जल्दी है बाद में मिलते हैं । इतना कहकर वह चला गया । कुछ देर बाद वह पुनः आया और कहने लगा । अरे! जीजा वह नंबर गलत हो गया है । उसे डिलीट करके दूसरा नम्बर लिख लीजिए । राज को कुछ शक हुआ तो उसने वह नंबर डिलीट नही किया उसी के साथ दूसरा नंबर भी सेव कर लिया । धीर ने पहले अपनी माँ का नंबर भी दिया था , उसके कहने पर राज ने माँ का नंबर डिलीट कर दिया । धीर ने फिर कहा पहले जो दीदी का नम्बर बताया था उसे भी डिलीट कर दीजिए तो राज ने तत्काल का नम्बर दिखाकर कहा देखो वह नम्बर हट गया । इसी वक्त दर्पण भी वहीं आ गया और धीर से परिचय भी हो गया । परन्तु शायद राज को अब दर्पण की मदद की जरूरत नही थी । राज को यह तो क्लियर हो गया कि वे सब यहीं रहते हैं परन्तु उनका मकान ढूंढना अब भी मुश्किल था । घनी बस्ती थी तमाम तो रास्ते थे अगर वह धीर के साथ जाता तो ही सम्भव था । खैर कोई बात नही राज ने सोचा नम्बर तो मिल ही गया है । अब जेनी से मुलाकात हो ही जाएगी । अगले दिन राज ने जेनी के नम्बर पर फोन किया लेकिन यह क्या वह नम्बर तो स्थाई रूप से बंद हो चुका था । कई दफा कोशिस करने बाद भी नम्बर नही लगा तो राज समझ गया । धीर ने उसे गलत नम्बर दिया था ...... शेष अगले भाग में ........ *** ‹ पिछला प्रकरणपहला एस एम एस › अगला प्रकरण पहला एस एम एस - 4 Download Our App रेट व् टिपण्णी करें टिपण्णी भेजें Kartik 1 महीना पहले vandana khare 2 महीना पहले Right 4 महीना पहले Hadiyal Parsoram 6 महीना पहले Sangeeta Matani 6 महीना पहले अन्य रसप्रद विकल्प लघुकथा आध्यात्मिक कथा उपन्यास प्रकरण प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं Lakshmi Narayan Panna फॉलो शेयर करें आपको पसंद आएंगी पहला एस. एम .एस. द्वारा Lakshmi Narayan Panna पहला एस एम एस द्वारा Lakshmi Narayan Panna पहला एस एम एस - 4 द्वारा Lakshmi Narayan Panna पहला एस एम एस - 5 द्वारा Lakshmi Narayan Panna पहला एस एम एस - 6 द्वारा Lakshmi Narayan Panna पहला एस एम एस - 7 द्वारा Lakshmi Narayan Panna