The Author Lakshmi Narayan Panna फॉलो Current Read पहला एस एम एस By Lakshmi Narayan Panna हिंदी प्रेम कथाएँ Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books पतंग उड़ायें पर सावधानी से पतंग उड़ायें प... डेविल सीईओ की मोहब्बत - भाग 82 अब आगे,वही जब दिनेश, अर्जुन की साइड का दरवाजा खोलकर बस अराध्... रेड्यूस द इम्पेक्ट ऑफ डिजीज A Common Researcher’sरेड्यूस द इम्पेक्ट ऑफ डिजीजकुछ विचार:-ब... छावां - भाग 1 श्री गणेशाय नमः। ये कहानी है इसे राजकुमार की जिसने... अपराध ही अपराध - भाग 25 अध्याय 25 पिछला सारांश: कीरंनूर जाकर वापस आए धनंजय शि... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Lakshmi Narayan Panna द्वारा हिंदी प्रेम कथाएँ कुल प्रकरण : 7 शेयर करे पहला एस एम एस (25) 4.5k 8k 7 पहला एस एम एस भाग-2 लगभग 10 महीने बीत जाने के बाद भी राज की जेनी से कोई भी मुलाकात नही होती है । राज जेनी को मोबाइल पर कॉल करने के बहुत से प्रयासों के असफल होने के बाद भी भूल नही पा रहा है । राज को अभी भी यही लगता है कि जेनी ने उसे भुलाया नही । बात कुछ और ही है, पहले तो राज इस बात में उलझा रहा कि उसका और जेनी का जो रिस्ता है, वह कहीं मात्र वासना तो नही ! इस कारण कोई भी निर्णय लेना उसके लिए सम्भव नही था । वह जेनी से बात करने के लिए बेचैन तो था, परन्तु यह सोचकर शांत हो जाता था कि आखिर उसका और जेनी का रिश्ता ही क्या है । फिर भी मोहब्बत को भुला पाना उसके लिए आसान नही था । फिर एक दिन की बात है, राज अपने कमरे पर अकेला लेटा आराम कर रहा था । कि अचानक दरवाजे पर दस्तक होती है । कोई दरवाजे पर नॉक कर रहा था । राज ने सोंचा कोई दोस्त होगा जो परेशान कर रहा है । दोपहर का समय था राज रात्रिपाली की ड्यूटी करके आया था । इसलिए नींद बहुत आ रही थी उठने की इच्छा नही थी । लेकिन दरवाजे पर लगातार खट-खट की आवाज सोने भी नही दे रही थी । राज दरवाजा खोलता है ! और दरवाजे पर अपने दोस्तों के बजाय किसी और को देखते ही ! आश्चर्य में पड़ जाता है । उसके मुँह से अवाक ही निकल पड़ता है, अरे !……,ओह ! तुम ……यहाँ कैसे ? तुम्हें यहाँ का पता कैसे मिला ? दरवाजे पर कोई और नही, वही थी जिसके ख्यालों में राज खोया रहता था । राज मन ही मन खुश तो बहुत था, लेकिन उसे अपनी आंखों पर भरोसा नही हो रहा था । उसको डर भी लग रहा था कि अगर जेनी के बारे में उसके दोस्तों को पता चला तो क्या सोंचेंगे । राज को इस बात का भी डर था कि बैचलर हॉस्टल में उसका बिना बताए आना ठीक नही था । अगर वह बात करके आती तो राज उसके लिए गेस्ट हाउस बुक कर लेता । राज तो सोंच में पड़ गया, उसे समझ नही आ रहा था कि वह करे क्या ? जेनी उससे कब से बोल रही थी अरे ! अंदर आने को नही बोलोगे ! क्या, ? जब राज का ध्यान जेनी की बात पर गया तो सॉरी बोल कर कहता है । हाँ, क्यों नही ? राज जेनी को कमरे में बिठा कर पुनः सोंच में पड़ जाता है । जेनी को राज का यह व्यवहार बिल्कुल भी जँच नही रहा था । उसने राज से कहा, क्या हुआ ? क्या आपको मेरा आना अच्छा नही लगा ? राज ने कहा ऐसी कोई बात नही है, बस मैं सोंच रहा था, अगर तुम बता कर आती तो तुम्हारे ठहरने की उचित व्यवस्था कर देता । खैर कोई बात नही शाम तक व्यवस्था कर दूँगा । लेकिन तुम यहाँ तक पहुंची कैसे ? तुम्हारे पास तो यहाँ का पता भी नही था । तब जेनी फूटकर रोने लगी, और रोते हुए राज से लिपट गई, राज का कंधा अपने मोहब्बत के आंसुओं से भिगोते हुए कहने लगी, मैंने प्यार किया है तुम्हे ! तुम भूल सकते हो लेकिन मैं नही भूल सकती ? क्या तुम्हें मेरी बिल्कुल भी याद नही आई ? मैंने तो तुमसे पता पूछा था, लेकिन तुमने तो पता बताना भी जरूरी नही समझा । क्या वे वादे जो हमने एक दूसरे से किये थे ! सब झूठे थे ? उसकी आंखें जैसे दरिया हो गईं थीं, जिनमें से जल की धारा लगातार बहे जा रही थी । ऐसा लग रहा था कि ए आँशू विरह की अग्नि को शांत करने का भरकस प्रयास कर रहे हैं । परंतु यह आग इतनी भयंकर रूप धारण कर चुकी थी, कि जेनी के आँशू उसे बुझाने को कम पड़ रहे थे । शायद इस अग्नि को बुझाने के लिए ही जेनी राज के पास कुछ आँशू उधार लेने आई थी । उसके बहते हुए आँशुओं ने राज के दर्द को आवाज दे ही दी । अब वह भी आँशुओं का सैलाब ले आया । जेनी से बोला, ऐसा नही है जेनी कि मैंने तुम्हें भुला दिया । अपना एक-एक वादा आज भी याद है मुझे । मैंने तो तुम्हे हर एक पल याद किया । तुम्हे खोने के आभास मात्र से डर जाता था मैं । उस दिन की गलती के लिए मुझे माफ़ कर दो । उस दिन जानबूझकर मैंने ऐसा नही किया कि तुम्हे कॉल न करूं दरअसल उस दिन मैं व्यस्तता के चलते भूल ही गया कि तुमसे बात करनी है । जब याद आया तो तुमने कॉल रिसीव ही नही किया । उसके बाद मैंने एक बार नही सैकड़ों बार कॉल किया पर तुमने…… इतना कहकर पुनः फूट-फूटकर रोने लगा और इसके आगे कुछ कहे कि जेनी के होठों ने रोक लिया राज के दर्द से फड़फड़ा रहे होंठों को । जैसे कि वह नही चाह रही हो कि राज अतीत के पन्नों में खोकरके इस तरह पश्चाताप की अग्नि में जले । शायद वह विरह की पीड़ा को महसूस करने के बाद ही तो इतनी दूर आई थी । जिसको मिलने की हसरत में वह यहाँ तक पहुँची थी, जरूर उसका उद्देश्य उसे रुलाना तो नही था । सालों से मोहब्बत की प्यासी आत्माएं और उनके दर्द एक हो जाने को बेचैन थे । वे धीरे-धीरे करके एक दूसरे में उतरते जा रहे थे, अब एक-दूसरे के दर्द को स्पष्ट सुन रहे थे । दोनो के अपने-अपने बहुत से गीले शिकवे थे । इसलिए दोनों में एक-दूसरे से नाराजगी भी बहुत थी । जेनी अपना संयम खोये की उसे एहसास हुआ कि किस तरह और कितने दिनों वह राज की याद में तड़पी है । तुरन्त राज को झटकते हुए कहती है, नही……! ये क्या ? मैं फिर से तुम्हारे जाल में फंस रही हूँ ? नही ! अब प्यार नही हो सकता । तुम्हे मेरे सवालों का जवाब देना होगा । राज भी कुछ कम नही तड़पा था, वह जेनी के हर सवाल का जवाब देने को तैयार था । उसने कहा पूंछो मैं तो चाहता था कि मैं वह सब तुमसे कह सकूँ की क्या हुआ कि मैं तुमसे बात नही कर पाया । जेनी ने कहा मैंने तुम्हारा कॉल रिसीव नही किया, तो क्या, तुमने खोजने की कोशिश की ? तुम तो कहते थे अबकी आऊंगा तो जरूर मिलूंगा । फिर क्या हुआ ? क्या इतने दिनों में तुम एक बार भी लखनऊ नही आये ? लेकिन तुम्हे क्या ? मैं हूँ कौन ? मेरी जरूरत ही क्या है? गलती भी तो मेरी है कि तुमसे प्यार कर बैठी । यह जानते हुए की तुम शादीशुदा हो, लेकिन इतना बता दो की मैंने कब कहा कि तुम अपना परिवार छोड़ दो ? कब कहा कि मुझे अपनी जिंदगी बना लो ? बस एक ही आरजू थी कि हम एक दूसरे को याद रक्खेंगे । मैं नही जानती की तुमसे प्यार क्यों और कैसे हो गया, बस जब तुम्हारे दर्द को एहसास किया, तुम्हारी तकलीफों और संघर्ष को देखा । बहुत सी परेशानियों के बावजूद सबके के तुम्हारी आँखों में जो प्यार मैंने देखा, उसी के कारण न जाने मैं कैसे, न चाहते हुए भी, तुमसे प्यार कर बैठी । तुमने कहा था एक दुखी व्यक्ति एक दुखी व्यक्ति का दर्द समझ सकता है । तो मैंने कहा आज आप यह सब जो कह रहे हैं, वक़्त बदलते भूल जाएंगे, आप हम सबको भी भूल जाएंगे । तब तुमने ही तो वादा किया था, और कहा कि मैं अपनों भूल जाऊं ऐसा हो ही नही सकता । मैं तुमको वह वादा याद दिलाने आई हूं । तुमने कहा था हम भले ही एक न हो सकें फिर भी एक दूसरे से मिलेंगे जरूर । तुमने वादा किया और यह भी कहा कि, तुम दोस्तों और दुश्मनो को कभी भूलते नही, परन्तु मुझे तो तुमने भुला ही दिया । दोस्त न सही दुश्मन ही सही । तुमने अपनी जुबान का भी तो ख्याल नही रखा । राज अपनी नजरों में शर्मिंदगी महसूस कर रहा था । वह कुछ कहना चाहता था पर जेनी प्रश्न पर प्रश्न किये जा रही थी । अपने प्रश्नों का उत्तर भी नही सुन रही थी जैसे कि वह राज के सभी उत्तर पहले से जानती हो । राज ने कहा अब, माफ भी कर दो न, तुम्हारे हर सवाल का जवाब दूँगा । लेकिन अब बस करो मैं और बर्दाश्त नही कर सकता, कहीं खुद की नजरों में इतना न गिर जाऊं की फिर कभी उठ न सकूँ । एक बार मेरा जवाब भी तो सुन लो । जेनी ने कहा जवाब तो तुम्हे आता है मैं जानती हूँ, किसी न किसी तरह आप खुद को सही साबित करके मेरी ही गलती देंगे । राज ने जेनी को आगोश में लेते हुए प्यार से शांत कराया कुछ समय के लिए खामोश हो गया खुद भी और जेनी के होंठो को एक लंबी लिप् किश से खामोश कर दिया और धीरे-धीरे उसे एहसास दिलाता गया कि वह उसके साथ है । वह समझ चुका था कि जेनी ने बरदाश्त की सीमा तक उसका इंतजार किया । लेकिन जब वह अपने दिल को संभाल नही पाई तो दौड़ी चली आई उसके पास, अपना दर्द बयाँ करने । कुछ देर के लिए एकदम सन्नाटे का माहौल बन गया । कोई आवाज नही, गीले शिकवे, कुछ भी नही, बस मध्यम-मध्यम सिर्फ महसूस की जा सकने वाली सांसों की मधुर ध्वनि जिसे वे दोनों ही सुन सकते थे । जब जेनी अपने दर्द की कल्पना से बाहर हकीकत में आई तब राज ने अपनी बात कहनी चाही, जेनी मुश्कराई, और सिर हिलाते हुए संकेत दिया कि वह राज को सुनने के लिए तैयार है । राज ने कहा जेनी उस दिन के बाद मैं कई बार लखनऊ आया । जब जब लखनऊ आया तुम्हे जरूर याद किया, लेकिन तुम्हारा कॉल न लगने की वजह से तुमसे मिल नही पाया । ऐसी बात भी नही की मैंने तुम्हें खोजा नही, मुझे तुम्हारा घर तो पता नही था, न ही तुम्हारे किराये के कमरे का पता था । पछली बार जब मुलाकात हुई तब तुमने मुझे जिस गली में अपने कमरे के होने के बारे में बताया था । मैं उस गली में हर बार जाता था, जब भी लखनऊ आया सुबह और शाम उधर एक बार जरूर गया । लेकिन उधर न तो मुझे तुम कभी दिखी और न ही तुम्हारे घर का कोई सदस्य जिसे मैं जानता हूँ । आज लगभग 10 महीने पूरे होने को हैं, तुम्हारी याद में कैसे जिया हूँ, मैं ही जनता हूँ । अब जब मुझे कोई रास्ता नही दिख रहा था तो मैंने निश्चय किया था कि, अब तुम्हारे पापा को ढूंढूंगा । उनके बारे में भी मेरे पास कोई सही जानकारी नही थी । बस इतना जनता था कि, वे विवेकानंद हॉस्पिटल में सुरक्षा गार्ड हैं । मुझे उनका नाम भी नही याद आ रहा था, इसलिए कई बार मैं वहाँ पहुंचकर वापस आ गया । उनका नाम मुझे कुछ-कुछ याद था, बस उसी के सहारे मैं इस बार तुम्हे खोजने का आखरी प्रयास करना चाहता था । मुझे पूरा भरोसा था कि एक न एक दिन तुम्हे जरूर ढूंढ लूँगा । बस इतना ही डर लगता था कि कहीं तुमने ही तो मुझे नही भुला दिया । फिर भी एक भरोसा जो तुम पर बना था वही मुझे बल देता था, उसी ने हमारे प्यार को जिंदा रखा । वरना आज के समय में सेकंडों में प्यार और प्यार करने वाले बदलते हैं । फिर भी न जाने क्यों मुझे इतना तो यकीन थ की तुम तब तक नही भूल सकती, जब तक मैं नही । क्योंकि हमारा रिश्ता जिस्मों का नही रूहों का रिश्ता है, भावनाओं का रिश्ता है । जिस्म फ़ना हो जाएंगे लेकिन भावनाएं नही । जब तक भावनाएं जीवित रहेंगी तब तक हमारे प्यार का अस्तित्व बना रहेगा । मैं भी तुम्हे भूल नही सकता क्योंकि ऐसा दोस्त, ऐसा साथी बड़ी मुश्किल से मिलता है । तुम ऐसी दोस्त हो जिसने कभी मेरे परिवारिक रिश्तों को तोड़ना नही चाहा वरना आज कल तो इस बात से भी डर लगता है । जिसे हम अच्छा समझ कर प्यार कर लेते हैं, वह परिवार के लिए जहर बन जाते हैं । जेनी ने कहा झूठ बोल रहे हो, सब झूठ, आप बस मीठी मीठी भावुक बातें ही करते हो । अगर तुममे चाहत होती तो मुझे यहाँ आने की जरूरत न पड़ती । अगर मैं तुम्हे खोज सकती हूँ तो फिर तुम मुझे क्यों नही खोज पाए । राज ने कहा बस वक़्त की कमी और इस डर से की कहीं खोजने के चक्कर में तुम्हे बदनाम न कर दूं । साथ ही राज जेनी के चेहरे पर मुस्कराहट लाने के लिए एक शेर कहता है…… "वक़्त ने बांध रक्खी हैं मेरे पैरों में बेड़ियाँ । वरना दोस्तों से हम कभी भी दूर न होते ।। रोते - रोते जेनी कि आँखो का काजल उसके उसके गोर कपोलों पर स्पष्ट दिखाई दे रहा । आँशुओं के साथ घुलकर यह जो आंखों से बाहर हो चुका था । उसकी आँखों मे सिर्फ प्यार झलक रहा था । राज ने जेनी के गालों से काजल के स्याह निशानों को पोंछते हुए कहा… "इल्तज़ा थी बहारों से तुमसे सन्देश कह देना । कहीं प्यासा न मर जाऊं चली आना घटा बनकर ।।" जेनी राज के इतनी करीब होकर अब शायद उसे फिर नही खोना चाहती, राज भी जेनी को दूर नही होने देना चाहता था । इसलिए दोनों ही एक दूसरे से लिपटकर भावनाओं के सुंदर शहर, के गहरे और प्रेम से परिपूर्ण समंदर में तैरने लगे । कभी वे एक दूसरे पर उस समंदर के पानी की बून्दे छिड़कते तो कभी तसब्बुर की खूबसूरत फुलवारी से चुने हुए फूलों के पंखुड़ियाँ एक दूसरे पर फेंकते । सब कुछ एक ख़्वाब जैसा लगा रहा था । लेकिन इतना ख़ूबसूरत ख़्वाब तो राज और जेनी सारी उम्र जीने को तैयार रहते । वे दोनों मौजों के समंदर में गोते लगा रहे थे, बिल्कुल बेपरवाह बस एक दूसरे के सिवा कुछ भी नही । एक लंबे अरसे के बाद जो मिले हैं तो कुछ और क्या सोंचना । राज और जेनी दोनो ही परम् आनंद की अनुभूति कर रहे थे । आज वे दोनों बहुत खुश थे शायद उनकी खुशी देखकर ही बागों में फूल मुस्करा रहे थे, अपनी खूबसूरती पर इतरा रहे थे, और भृमर उनका रस चूसने को बेताब थे । फूल भले ही हवाओं का सहारा लेकर मस्ती में झूम रहे हों और भँवरों से अपना दामन छुड़ा लेते हों परन्तु पुनः तुरन्त ही उनके आगोश में आ जाते, फूल भी मानो लूट जाने को तैयार थे । वे अपनी ख़ुशबू से पूरे चमन को महका रहे थे, फूल की जिंदगी का तो मकसद ही है मोहब्बत पर कुर्बान हो जाना । उसकी तो पूरी जिंदगी ही त्याग है, समर्पण है । उसकी इच्छा भी बड़ी नही, बस कोई भँवरा उसे चूम भर ले वह इतनी मोहब्बत में तो जान लुटा दे । फुल का अपने चाहने वाले के प्रति यह त्याग और समर्पण देखकर । कोई भी उसकी महानता को नकार नही सकता शायद इसीलिए पुष्प ही प्रेम की निशानी कहलाया । वैसे भँवरे के प्रेम पर भी कोई शक नही, उसके सिवाय कौन है जो पुष्प की खूबसूरती की कद्र कर सकता । एक वही तो है जो अपना सारा जीवन उसके इर्दगिर्द मंडराता है । फिर भी पुष्प और भृमर में पुष्प ही महान है क्योंकि भृमर के प्रेम में कुछ स्वार्थ छुपा होता है, जबकि पुष्प का प्रेम अमर और निःस्वार्थ है । पुष्प की भाँति ही जेनी का प्रेम भी एक अमर प्रेम है वह राज के प्रेम में दौड़ी चली आई, और निःस्वार्थ स्वयं को समर्पित कर दिया राज की बाहों में । राज तो भृमर के जगह भी नही पहुंच पाया । अब राज को कुछ समझ आ रहा था कि जेनी उसके प्रेम को अमर करने ही आई है । वरना राज ताउम्र खुद को माफ़ नही कर पाता, जब उसे जेनी के प्रेम की निःस्वार्थता और प्रगाढ़ता का पता चलता । भृमर पुष्प के करीब था पुष्प अपनी मस्ती के पूरे शबाब पर था, वह पुष्प से जीवनदायी अमृत प्राप्त करने ही वाला था कि अचानक आहट हुई जिसने उसके प्रयोजन में खलल डाल दिया । फ़िज़ा में उठी हलचल ने पुष्प और भृमर को जुदा कर दिया । इधर जेनी और राज भी अपने मोहब्बत की कस्ती पर सवार हो रहे । मगर यह क्या ? क्या राज और जेनी हर बार की तरह फिर से जुदा हो जाएंगे ? संकेत तो कुछ ऐसे ही मिल रहे थे, हवाएं विपरीत हो रहीं थीं । हवाओं के तेज झोंके को पुष्प का कोमल तना सह नही पाया, हवाओं के थपेड़ों ने उसे भृमर से दूर कर दिया । भृमर भी अपने कमजोरो पंखों से हवा के वेग को झेल नही पाया, हवा के तेज झोंके से वह पुष्प की पहुंच से दूर हो गया ।… अभी अभी तो राज और जेनी मिले थे, अभी तो बहुत सारी बातें करनी थीं । उनके लिए मुलाकात इतनी जरूरी थी कि जैसे कोई प्यासा पानी एक बून्द को मात्र देख भर ले तो जी उठे । इसलिए जब दोनों सामने आए तो वे बहुत सी बातें याद ही नही आ रहीं थी जो कहानी थीं । लेकिन ये क्या ! फिर, फिर कोई आ गया राज को डिस्टर्ब करने । राज को एक आवाज सुनाई दे रही थी ..... धीरे-धीरे जेनी का चेहरा धूमिल हो रहा था, राज जेनी के हाथ पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाने का भरकस प्रयास कर रहा था । परंतु न जाने क्यों उसकी पकड़ कमजोर हो रही थी । जेनी भी जोर जोर से कह रही थी, राज ! मुझे छोड़ना नही मैं तुमसे दूर नही जाना चाहती । जैसे-जैसे जेनी अदृश्य हो रही थी, दूसरी तरफ से आ रही आवाज स्पष्ट हो रही थी । कोई कह रहा था क्या ड्यूटी नही जाना है ? आठ बजे गए हैं …… राज ने आँखें खोली, वहाँ कोई जेनी नही थी । राज को ऐसा लग रहा था, अभी-अभी तो जेनी यहीं थी । अचानक क्या हुआ । उसने समय देखा वाकई इस वक़्त रात्रि के आठ बजे रहे थे । अभी ड्यूटी का समय हो गया था । खैर ख़्वाब था तो टूटना ही था क्योंकि "ख्वाबों की जिंदगी उतनी ही होती है जितनी हमारी जिंदगी में नींद" कभी-कभी कुछ खूबसूरत ख़्वाब टूटने पर बड़ी तकलीफ देते हैं । पर क्या करें ? ख्वाबों का तो अंजाम ही टूट जाना है, यह जानते हुए भी आदमी ख्वाबों को हकीकत मान लेता है। इस तरह राज और जेनी का मिलन एक बार पुनः अधूरा रह गया । ख़्वाब टूट चुका था राज को अपने मिलन के अधूरा रह जाने का कोई गम नही था । बस तकलीफ इस बात की थी, की ख़्वाब में भी वह जेनी से उसका पता नही पूँछ पाया । और न ही जेनी ने कोई कॉन्टैक्ट नम्बर दिया । मिलने की बेकरारी और बढ़ गई थी, पर रास्ते वैसे ही पहले की तरह धुंधले से दिखाई दे रहे थे । राज एक बार फिर तन्हा हो चुका था ख़्वाबों की महबूबा ख़्वाब के साथ ही गायब हो चुकी थी । ड्यूटी का समय हो गया था राज ने मुँह धोया, कुल्ला ब्रुस किया और ड्यूटी के लिए तैयार हो गया । आज की रात्रि ड्यूटी थी मन तो लग नही रह था । लेकिन राज को एक बात का एहसास हो रहा था कि यह ख़्वाब शायद इसलिए था कि जेनी उसे अभी भी याद करती है । राज ने उसे ढूंढने की सही कोशिस नही की, वरना मुलाकत जरूर हो जाती । शायद यह प्रकृति का एक इशारा था कि जेनी उसे किस तरह याद कर रही, क्योंकि राज को तो लगने लगा था कि इतना वक़्त बीत जाने पर जेनी ने शायद उसे भुला दिया होगा । इस ख़्वाब ने मर रही मोहब्बत में जान फूंक दी । राज ने जेनी की तलाश करने का पुनः निर्णय लिया । और उम्मीद करता है कि जल्द ही मुलाकात होगी …… शेष भाग -3 में …… कलमकार लक्ष्मी नारायण "पन्ना" ‹ पिछला प्रकरणपहला एस. एम .एस. › अगला प्रकरण पहला एस एम एस - 3 Download Our App