एक मोहब्बत ऐसी भी Shubham Prajapati द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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एक मोहब्बत ऐसी भी

उस शाम उसे पहली बार देखा जब वो हमारे सामने वाले घर में अपने घर वालों के साथ रहने आया। मैं बालकनी पर खड़ी थी और वो नीचे ।उससे जब नजरें मिलीं तो बक्त जैसे धीमा सा हो गया था, हवाओं के साथ-साथ संगीत की धुनें भी बहनें लगीं थी, आसमान में चाँद आज और भी तेज़ चमकने लगा था,  जीवन इस पल से ज्यादा खूबसूरत कभी नही था उस एक पल में ही ज़िन्दगी सार्थक लगने लगीं थी जैसे इसी पल के बारे में तो मैं हमेशा सोचती रहती थी, जैसे यही तो वो पल था जिसकी मैं हमेशा से कल्पना करती आ रही थी। 
     रॉकी... हाँ यही नाम था उसका; रॉकी इस नाम को सुनते ही मेरे दिल में जैसे सच में सितार बजने लगते थे। हम एक दूसरे को मिनटों नही घण्टों तक यूं ही बिना कुछ बोले ताकते रहते थे। मैं जब बढ़ी माँ के साथ शाम को पार्क में घूमने जाती तो वो भी अपने बढ़े बापू के साथ घूमने आता था हम दोनों एक दूसरे की उल्टी दिशा में पार्क के चक्कर लगाया करते थे और उस एक चक्कर में हमारी आँखें दो बार चार हुआ करती थी हम कुछ नही बोलते पर हमारी आँखे न जाने कितनी सारीं बातें कर लिया करती थी। 
      बढ़ी माँ हमारे घर में सबसे बढ़ी है उनका नाम पुष्पा गुप्ता है पर मैं उन्हें बढ़ी माँ ही कहती हूँ। उनका एक लड़का है जिसका नाम है पुष्पेंद्र गुप्ता, पुष्पेन्द्र जी की पत्नी का नाम है रजनी गुप्ता उन दोनों का एक लड़का और एक लड़की है लड़के का नाम राज है और लड़की का नाम पूजा है। ये परिवार भी बाहर से देखने पर आम परिवारों की तरह ही लगता है पर थोड़ा करीब से देखने पर और परिवारों की तरह इस परिवार में भी कुछ ऐसी बातें है जिनके बारे में कोई नही जानता या बहुत ही सीमित लोग जानते हैं, पर मुझसे कुछ नही छिपा है मैं सबके बारे में सब कुछ जानती हूं, कैसे ? ये आपको अंत में खुद व खुद पता चल जाएगा । क्या आप भी जानना चाहते है इस परिवार की वो बातें जो मेरे अलावा कोई नही जानता तो किस से शुरुआत करूँ? 
      तो चलिए बढ़ी माँ से ही शुरूं करती हूँ, जब बढ़ी माँ के पति का देहांत हुआ था तब वो बहुत अकेली पड़ गयी थी खुद में ही कहीं खोई सी रहने लगी थीं एक तरफ तो उनको अपने जीवन साथी के जाने का गम था तो दूसरी तरफ बिधवा जीवन का बोझ। एक बिधवा से उसके सारे सौख और श्रंगार छीन लिए जाते हैं और उसके पीछे कहीं न कहीं ये तर्क होता है कि 'तेरा पति तो मर गया है तो फिर ये सब किसके लिए कर रही है?', 'अब ये सब किस काम का?' ये सारी बातें सुनकर ऐसा लगता है जैसे एक औरत का जीवन उसके पति से शुरूं होकर उसी पर खत्म हो जाता है, जैसे एक औरत खुद के लिए तो कभी जी ही नही सकती, जैसे न ही उसकी कोई इच्छाएं होती है और न ही कोई सपने। जब हर रात सब सो जाते है तो बढ़ी माँ चुपके से अपने सन्दूक से अपनी कुछ पुरानी रंगीन साड़ियां निकाल कर आईने के सामने जाकर खड़ी हो जाती हैं और फिर अपने सारे कपड़े  निकाल देती है और वो रंगीन, पुरानी (पर चमकदार) साड़ी पहन लेती है और फिर ऐसे घबरा जाती है जैसे कोई उन्हें देख रहा हो और तुरन्त अपने कपड़े बदल लेती हैं। उनकी आंखों से आंसुओं की बाढ़ आ जाती मानो वो किसी अपराध बोध में हो। ऐसी ही पता नही कितनी ख्वाईशो को बो यूं ही छिप छिपकर पूरा कर लेती हैं और फिर ऐसे रोतीं हैं जैसे उन्होंने कोई गुनाह कर दिया हो। 
       चलिये अब बात करते हैं बढ़ी माँ के इकलौते बेटे मिस्टर गुप्ता के बारे में मिस्टर गुप्ता दो जबान बच्चों के बाप है पर अब तक इनकी जवानी नही गयी आज भी महाशय बढ़े रंगीन मिजाज हैं। वो मिसेज़ शर्मा है न? अरे वही जिनकी बेटी को घर छोड़ने रोज नए नए लड़के आते है (वैसे मुझे क्या! मैं तो वैसे भी काफी ओपन माइंडेड हूँ वो तो आपको अपना समझ कर बता दिया)... दिनभर मिस्टर गुप्ता और मिसेज़ शर्मा के नैन मट्टके चलते रहते हैं और जब मिस्टर गुप्ता घर पर अकेले होते तो मिसेज़ शर्मा घर पर आ जाती हैं और दोनों एक कमरे में बंद हो जाते और घण्टों तक यूं ही बंद रहते (वेसे मुझे क्या सबकी अपनी अपनी ज़िंदगी है। मैं तो काफी ओपन माइंडेड हूँ वो तो आपको अपना समझकर बता दिया बरना मैं किसी के मामले में नही पड़ती।) । मिस्टर गुप्ता की पत्नी मतलब मिसेज गुप्ता उन्हें भी कुछ कम न समझे आप उनके भी अपने ही सौख हैं हर दूसरे दिन किटी पार्टी में जाया करती है और जुआ भी खेलती हैं वैसे उड़ती उड़ती ख़बर मिली है कि मैडम पर 2 लाख का कर्ज़ है... हूं...जुआरी औरत कहीं की।
     इनके बच्चों का भी कोई जबाब नही बेटा रात भर अपनी गर्लफ्रेंड(जो किसी नीची जाति की है) से फोन पर बात करता रहता  है और अपने लैपटॉप में साइलेंट मोड पर पता नही कैसी कैसी फिल्में देखता रहता हैं! मैं तो चुपचाप एक कोने ने बैठी उसे देखती रहती हूँ लेकिन अब मैं उसके कमरे में नही सोती। वो भी जवान है और मैं भी कल को अगर मेरे साथ कोई ऊंच नीच हो गयी तो मैं तो किसी को मुंह तक दिखाने के लायक नही रहूँगी। अब बात करते हैं मोहतरमा पूजा की...पता है इसका चक्कर वो दो गली छोड़कर जो आवारा सोनू गुप्ता रहता है न जिसने दो लड़कियों को प्रेगनेंट करके छोड़ दिया...अरे नही नही नही इसका चक्कर उस सोनू के साथ नही बल्कि उसकी बहन सोनम गुप्ता के साथ चल रहा है; हे भगवान! समलिंगी सम्बन्ध। वैसे मैं तो काफी ओपन माइंडेड हूँ लेकिन फिर भी 'समलिंगी सम्बन्ध'! हम लोगों में नही होता ये सब, इससे अच्छा तो होता कि सोनू के साथ ही चक्कर चला लेती।
       पार्क में हो रही हम दोनों की मुलाकातों से हमारी नजदीकियां और बढ़ रहीं थीं और हमारे साथ साथ बढ़ी माँ और बढ़े बापू की नज़दिकियाँ भी बढ़ने लगी थी लग रहा था जैसे इस उम्र में दोनों को कोई मिल जाएगा अपना दुख दर्द बांटने के लिए बढ़े बापू कभी कभी रॉकी को लेकर अब हमारे घर भी आ जाया करते थे जिससे मेरी खुशी का तो ठिकाना ही नही रहता था हम दोनों साथ में बैठ जाया करते थे और वो दोनों (बढ़ी माँ और बढ़े बापू) आपस में बातें करने लगते थे। दिन गुजरते गए और नज़दीकियां बढ़ती गयी हम दोनों एक दूसरे के प्यार में पागल हो गए थे अब मैं जान गई थी कि प्यार किसी की जात, धर्म रूप रंग देखकर नही होता ये तो जिससे होना होता है उससे हो जाता है प्यार प्यार है फिर चाहे वो किसी के भी बीच हो, मैं राज का उसकी गर्लफ्रेंड के लिए और पूजा का सोनम के लिए प्यार अब अच्छी तरह समझ सकती थी। हमारे साथ साथ शायद वो दोनों भी प्यार के मायाजाल में फस चुके थे। मैं पता नही कितने दिनों के बाद बढ़ी माँ के चेहरे पर इतनी खुशी देख रही थी ऐसी खुशी ऐसी चमक आखरी  बार मैने तभी देखी थी जब उनके पति जिंदा थे उनको थोड़ा और जीने के लिए एक उम्मीद मिल गयी थी, एक सहारा मिल गया था लेकिन पता नही क्यों लोगों को उनकी खुशी नही दिखाई दी और आस-पड़ोस के लोगों ने दोनों के बारे में बातें बनानी शुरूं कर दीं कुछ कहते "देखो तो इस उम्र में इन्हें रंगरलियां मनाते हुए शर्म तक नही आ रही।" कुछ कहते "बुढ़ापे में जवानी चढ़ी है दोनों को।" कुछ कहते "समाज क्या कहेगा? एक बार भी नही सोच।", कुछ तो कहते "प्यार अंधा होता है सुना था पर बूढा होता है ये नही सुना था...पर इस उम्र में करेगा क्या प्यार?" 
      दोनों परिवार के लोग भी परेशान हो गए और उन्हें भी उन दोनों का मिलना जुलना अब फूटी आंख नही भाता था दोनों के बच्चे अपने माँ बाप को ऐसे ऐसे डांटते जैसे वो अपने बच्चों को भी डांटते कभी दोनों बस सुनकर रह जाते मिस्टर और मिसेज गुप्ता कई बार बढ़ी माँ से कहते कि "ये सही नही है" तब मेरे मन में सिर्फ यही सवाल आते कि क्या जो इन दोनों ने किया वो सही है? क्या अपनी पत्नी के अलावा किसी और औरत के साथ सम्बन्ध बनाना सही है, क्या अपनी पत्नी को धोखा देना सही है? क्या जुए में लाखों रुपये लगा देना सही है? 
शायद नही। तो इन लोगों को किसने अधिकार दे दिया सही और गलत तय करने का जो खुद ही गलत है। 
       अब बढ़ी माँ और बढे बापू एक दूसरे से ज्यादा नही बोलते लेकिन अगर कभी कहीं वो एक दूसरे को मिल जाते तो थोड़ा हस जरूर लेते पर लोगों को इससे भी दिक्कत थी तो दोनों के घर वालों के फिर से कान भरे जाने लगे और इस बार दोनों परिवार मिलकर कुछ योजना बनाते हैं (मेरी, रॉकी, बढ़ी माँ और बढ़े बापू की अनुपस्थिति में) शाम को घर में काफी अच्छा खाना बनाया जाता है जिसमे वो सारी चीजें थी जो बढ़ी माँ को पसंद थी खाने के बाद सबको मीठे में खीर दी गयी। फिर सब सोने चले गए और मैं बालकनी पर जाकर रॉकी के इंतज़ार में खड़ी हो गयी पर रॉकी नही आया मैं वापस अंदर चली जाती और जब मन नही लगता तो फिर निकलकर देखती की शायद अब वो बाहर आ गया होगा पर वो नही आया होता था। जब वो बाहर नही आया तो मुझे काफी डर लगने लगा कि कहीं कुछ अनहोनी तो नही हो गयी पहले तो कभी उसने इतनी देर नही लगाई पूरी रात बेचैनी में गुजरी सुबह होती ही मैं बढ़ी माँ के कमरे में गयी उन्हें बहुत जगाने कि  कोशिश की पर वो न जगीं तो मैने फिर सोर मचा कर घर के और लोगों को इखट्टा किया सब आये और सब जोर से रोने लगे अब बढ़ी माँ इस दुनिया में नही रहीं थीं मैं गला फाड़कर जोर जोर से रोना चाहती थी क्योकि वहीं तो थी जो मुझे इस घर में लायीं थीं पर मैने फिर अपने जज़्बातों पर काबू किया और खुद को संभाला और भगती हुई बढ़े बापू के पास गई पर वहाँ जाकर तो और भी टूट गई मेरे सामने रॉकी का मृत शरीर पड़ा था और बढ़े बापू रोये जा रहे थे और पड़ोसियों से कह रहे थे कि "बेचारे को खीर बहुत पसंद थी रात को खाने के बाद खीर के लिए बहुत भौंक रहा था तो मैने अपने हिस्से की खीर इसे खिला दी तब से ही कुछ नही बोला बेचारा"
       रॉकी के गले में लाल रंग का पट्टा था और वो अभी भी ज़ंजीर से बंधा हुया था मैं उसे देखकर खुद को न सम्भाल पाई और जोर जोर से रोने लगी मेरा पहला प्यार अब इस दुनिया मे नही था उस दिन मैने अपने दो करीबी लोगों को खोया एक तो बढ़ी माँ और दूसरा रॉकी। 
        लोगों को बढ़ी माँ और बढ़े बापू का प्यार उचित नही लगा तो शायद इन्हें राज और उसकी गर्लफ्रेंड के बीच का प्यार उचित लगेगा...अरे नही मैं तो भूल ही गयी थी राज की गर्लफ्रेंड तो अछूत है तो इनकी नज़र में वो उचित प्यार नही है तो शायद इन्हें भी सम्मान और इज़्ज़त के नाम पर मार डाला जाता,  हो सकता है कि इन लोगों को पूजा और सोनम के बीच का प्यार उचित लगे क्योकि वो तो दोनों ही एक ही जात की है और उचित उम्र भी है दोनों की, दोनों जवान है...नही नही नही वो कैसे हो सकता है वो तो दोनों लड़की है तो इनकी नज़र में इनका प्यार भी उचित नही है तो शायद इन्हें भी सम्मान और इज़्ज़त के नाम पर मार डाला जाता।
 रॉकी और बढ़ी माँ की मौत के बाद मेरा इंसानों और इंसानियत पर से भरोसा उठ गया था एक दिन में वही बालकनी पर अपनी ज़ंजीर से बंधी थी रास्ता बिल्कुल साफ था मुझे लगा यही सही मौका है यहाँ से भागने का, मैने पूरे जोश के साथ आपने आपको खींचा और वो जंजीर एक ही झटके में टूट गयी और मैं काफी तेज़ी से वहाँ से बहुत दूर भाग गई इतने दूर जहां कोई भी इंसान न हो।
         शेर, चीता, सांप, कुत्ता इन सबको तो इंसानों ने बेकार में ही बदनाम कर रखा है अगर आपको सच में इस दुनिया का सबसे खतरनाक जानवर देखना है तो उठो और आईने के सामने जाकर खड़े हो जाओ।
        बातों बातों में मैं तो अपना नाम बताने ही भूल गयी जी मैं हूँ  सिम्मी (रॉकी  की बिधवा) ।