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दूसरी बार पहला प्यार

'जी! क्या मैं इस सीट पर बैठ सकता हूँ?' केदार बाबू ने बगल बाली सीट पर बैठी महिला से  कहा, 
पर महिला बस की खिड़की से बहार के नजारे देखने में इस तरह खोई हुई थी कि उसे केदार बाबू की बात सुनाई ही नही पड़ी तो केदार बाबू ने उस से फिर पूछा 'जी! मैने कहा क्या मैं इस सीट पर बैठ सकता हूँ?'
महिला ने जैसे ही पलट कर केदार बाबू कि ओर देखा तो दोनों एक दूसरे को देखते ही रह गए, क्योकि ये महिला कोई और नही बल्कि कुसुम थी वो कुसुम जिसके साथ जीने मरने की कसमें खाई थी उसने, वो कुसुम जो उसका पहला और आख़री प्यार बनी, वो कुसुम जो 25 साल पहले उसे अकेला छोड़ कर चली गयी थी।

           उनसे नजर आज फिर मिल गयी,
          टूटे हुए दिल को दीवाना कर गयी।
            हम तो कब से बेरंग थे साहिब,
     वो मोह्हबत के रंग में हमें फिर रंग गयी।

    25 साल पहले

कॉलेज का पहला दिन था, बरसात बहुत जोर से हो रही थी। जैसे हो कॉलेज के लिए ऑटो में बैठी तभी केदार वहाँ आ गया।
जी! क्या में इस सीट पर बैठ सकता हूँ?, केदार ने पूछा।
जी बिल्कुल नही, कुसुम ने ज़बाब दिया।

केदार- देखिये मुझे आगे कॉलेज तक ही जाना है प्लीज छोड़ दिए वहाँ तक।
कुसुम- देखिये ये ऑटो मैने किआ है आप कोई और ऑटो कर लीजिए
केदार- बरसात बहुत जोर से हो रही है और यहां कोई और ऑटो भी नही है प्लीज्  कॉलेज तक छोड़ दीजिये...आधे पैसे मैं दे दूंगा ऑटो के
आधे पैसों की बात सुनकर कुसुम ऑटो शेयर करने के लिए तैयार हो जाती है ।
कुछ दूर चलते ही रेडियो पर लता जी गुनगुनाने लगती हैं  'लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो न हो'
लता जी के साथ कुसुम भी गुनगुनाना शुरू कर देती है तभी केदार बोल पड़ता है 'आप को भी लता जी के गाने अच्छे लगते हैं? मुझे भी लता जी के गाने बहुत अच्छे लगते हैं... खासकर ये वाला।

लता जी के गाने सबको अच्छे लगते हैं, कुसुम चिढ़कर बोलती है,
चिपकू कहीं का (धीरे से)।
केदार- आपने मुझे चिपकू बोला?
कुसुम- नही मैने तो नही बोला।
केदार- झूठ मत बोलिये मैने अपने कानों से सुना है, आपने अभी मुझे चिपकू बोला।
कुसुम- आपके कान बज रहे होंगे, मैने नही बोला आपको चिपकू।
केदार- देखिये मैडम! मेरे कान हैं कोई बाजा नही जो बज रहे होंगे।
कुसुम- हाँ ठीक है बोला चिपकू, अब बताओ क्या करोगे...नही बताओ न कर क्या लोगे? एक तो इन्हें ऑटो में बिठाओ ऊपर से इनकी बातें भी सुनो।
केदार- अरे ऑटो में बिठाया तो क्या कुछ भी बोलेंगी आप और मैं चिपकू नही हूँ वो तो मेरा नेचर ही थोड़ा अच्छा है, सब आप जैसे खड़ूस नही होते हैं।
कुसुम- तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी मुझे खड़ूस बोलने की! अभी उतरो बाहर।
कुसुम ऑटो रुकवा कर केदार को बाहर उतार देती है, केदार के उतरते ही कुछ दूर चलने के बाद ऑटो खराब हो जाता है और कुसुम को भी उतरना पड़ता है। ये देख कर केदार को हँसी आ जाती है।
कुसुम- अब हँसो मत तुम, लगता है तुम्हारी बददुआ से ही ऑटो खराब हुआ है।
केदार- अच्छा ठीक है नही हँसता हूँ। तुम भी कॉलेज जा रही हो?
हां, कुसुम ने जबाब दिया
'सच में चिपकू है ये तो' कुसुम ने मन में सोचा।
मेरा नाम केदार है और तुम्हारा?
कुसुम।
अच्छा नाम है।
दोनों अपने अपने छातों के नीचे बातें करते करते कॉलेज पहुंच गए या ये कहूँ तो ज्यादा सही रहेगा कि केदार बोलते बोलते कॉलेज पहुँच गया और कुसुम सुनते सुनते कॉलेज पहुँच गयी।
पूरे रास्ते कुसुम केदार की बाते सुनते सुनते पक चुकी थी वो सोच रही थी कि, कितना बोलता है ये!
कुसुम रस्ते भर यही दुआ करती आई की ये लड़का
उसकी क्लास मे न हो।
पर हमारे चाहने या न चाहने से क्या होता है अंत में तो वही होता है जो ऊपर वाले को मंजूर हो और यहां भी ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था
केदार कुसुम की ही क्लास में था अब केदार कुसुम से रोज बातें किया करता था या कुसुम के शब्दों में बोलू तो अब केदार कुसुम को रोज पकाता था।
कुसुम को केदार की बातों से बहुत चिढ़ होती थी धीरे धीरे ये चिढ़ कब उसकी आदत बन गयी और कब ये आदत उसे अच्छी लगने लगी उसे पता ही नही चला।
अब दोनों को एक दूसरे की बातें अच्छी लगने लगी थी। अगर कभी कुसुम कॉलेज नही आती तो केदार दिन भर उसके बारे में सोचता और अगर केदार कॉलेज नही आता तो कुसुम उसके बारे में दिन भर सोचती। क्लास के बीच में भी दोनों सब से बचकर आँखों ही आँखों में बातें कर लिया करते थे।
दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया था ये बात पूरे कॉलेज को पता चल गई थी सिवाय उन दोनों को छोड़कर पर कुछ समय बाद उनको भी इस प्यार का यहसास हो गया और आँखों के इशारे चलते रहे।

आज का दिन
      

दोनों ने कभी सोचा नही था कि ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर किस्मत उन्हें फिर एक साथ ला कर खड़ा कर देगी आज इतने सालों बाद एक दूसरे को देखकर दोनों समझ नही पा रहे थे कि कहाँ से शुरु करें कितना कुछ था पूछने को, कितना कुछ था बात करने को, हज़ार सवाल थे दोनों के मन मे और दोनों के दिलों के उत्साह और ख़ुशी की लहर दौड़ रही थी।

कुसुम- कितने सालों बाद मिल रहे हो... 25 साल।
केदार- 25 साल, 7 महीनें, 9 दिन।
कुसुम- यहाँ कैसे?
केदार- अब यहीं तबादला हो गया है, आज पहला दिन है ऑफिस में, वहीं जा रहा हूँ। तुम कहाँ जा रही हो?
कुसुम- एक सिलाई सेंटर में काम करती हूँ वहीं जा रही हूँ।
केदार- कब से हो यहाँ?
कुसुम- शादी के बाद से ही यहीं हूँ।
केदार- तुम्हारे पति कैसे है?
कुसुम- शायद तुमने मुझे गौर से नही देखा।
कुसुम के गले में न तो मंगलसूत्र था और न ही मांग में सिंदूर। बदन पर पुरानी सी बेरंग रंग साड़ी लपेट रखी थी।
केदार- कब हुआ ये सब?
कुसुम- बहुत पहले...बस सात साल ही हुए थे शादी को और वो चल बसे। दिन रात शराब के नशे में धुत रहते थे, दिन में कितनी बार मुझ पर हाथ उठाया जाता था कभी हिसाब नही रखा मैने, सब कहते थे दूसरी रखी हुयी थी उहोंने।
केदार- पर तुम क्या कहती थी?
कुसुम- क्या फर्क पड़ता है मेरे कुछ कहने या न कहने से? मेरे कुछ कहने से न तो कभी मेरे पति को फर्क पड़ा और न ही मेरे माँ बाप को...जब मैने तुम्हारे बारे में घर पर बताया तो मेरा कॉलेज ही बन्द
करवा दिया और जब तुम्हारे साथ दुनिया बसाने निकल पड़ी तो वापिस ला कर एक हैवान से शादी करा दी; तुमने शादी की या नही?
केदार- नही, और न ही कभी तुम्हारे सिवाय किसी और के बारे में सोचा।
कुसुम- अच्छा चलती हूँ, मुझे यही उतरना होगा।

25 साल पहले

कुसुम और केदार के घर बालों ने दोनों के रिश्ते को कुबूल करने से इंकार कर दिया। अब दोनों के पास घर से भागकर शादी करने के अलावा और कोई रास्ता नही था। दोनों भागकर बहुत दूर एक कस्बे में चले जाते हैं वहां एक कमरा किराये पर लेते हैं कुसुम केदार से कहती है- तुमने मुझे ई लव यू क्यों नही बोला?
केदार- यही सवाल मैं तुम से पूंछो तो?
कुसुम- पहले तो लड़के बोलते है।
केदार- किसने कहा कि पहले लड़के बोलते हैं?
इतना कहकर केदार रेडिओ ऑन करता है तो रेडियो पर लता जी का वही गाना आ रहा था जो उन दोनों को बहुत पसंद था "लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो न हो"
कुसुम केदार के कंधे पर सर रख देती है और केदार उसके चेहरे पर आ रहीं उसकी घनी ज़ुल्फो को अपनी उँगलियों से पीछे करता है और उसके हाँथ को अपने हाँथ में थाम लेता है। दोनों उस लम्हे में खो जाते हैं, ऐसा लगता है जैसे वक्त थम सा गया हो।
केदार कहता है, अगर अभी मौत भी आ जाये तो फिर भी कोई गम नही होगा ।
तभी दरबाजा अचानक खुलता है और कुसुम के घर वाले कुसुम को घसीटते हुए ले जाते हैं, कुछ दिन बाद कुसुम की शादी उसकी मर्जी के खिलाफ करा दी जाती है।

वर्तमान

सुबह काम पर जाते हुए और शाम को काम से वपिस आते हुए अब रोज कुसुम और केदार की मुलाकात होने लगी थी बस में बजने बाले गाने इन मुलाकातों को और भी हसीं बना देते थे।
दोनों के बीच में मुहब्बत फिर उभरने लगी थी।
दोनों ने  न ही तो पहले कभी एक दूसरे को ई लव यू बोला था और न ही अब, फिर भी बस के सभी लोगों को दोनों के बीच की नजदीकियां दिखाई देने लगीं थी।

              मेरे दिल के किसी कोने में,
                 आज भी तूँ बस्ती है।
                 मुझे देखकर चुपके से,
                 आज भी तूँ हँसती है।
          तूँ बहुत भोली है शायद इसीलिए,
             मेरे दिल में छिपे तेरे प्यार को
          तेरे सिवाय पूरी दुनिया समझती है।

एक शाम लौटते समय लता जी का वहीं गाना बजने लगा जिससे उन दोनों की कई यादें जुड़ीं हुयीं थी
कुसुम केदार के कंधे पर सर रख देती है और केदार उसके चेहरे पर आ रहीं उसकी घनी ज़ुल्फो को अपनी उँगलियों से पीछे करता है और उसके हाँथ को अपने हाँथ में थाम लेता है और उसकी आँखों में आँखें डालकर कहता है- ई लव यू कुसुम।
कुसुम- ई लव यू टू।
तभी बस एक दुर्घटना का शिकार हो जाती है और दोनों साथ साथ इस दुनिया को छोड़कर चले जाते हैं।
अगले दिन अख़बार में खबर थी, "बस हादसे में अधेड़ दम्पत्ति की मौत"
     जिन्हें ज़िन्दगी कभी एक न कर सकी उन्हें मौत ने एक कर दिया।


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