खुद के सहारे बनो तुम Ajay Amitabh Suman द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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खुद के सहारे बनो तुम

(१)

मौजो से भिड़े हो पतवारें बनो तुम

मौजो से भिड़े हो ,
पतवारें बनो तुम,
खुद हीं अब खुद के,
सहारे बनो तुम।


किनारों पे चलना है ,
आसां बहुत पर,
गिर के सम्भलना है,
आसां बहुत पर,
डूबे हो दरिया जो,
मुश्किल हो बचना,
तो खुद हीं बाहों के,
सहारे बनो तुम,
मौजो से भिड़े हो ,
पतवारें बनो तुम।


जो चंदा बनोगे तो,
तारे भी होंगे,
औरों से चमकोगे,
सितारें भी होंगे,
सूरज सा दिन का जो,
राजा बन चाहो,
तो दिनकर के जैसे,
अंगारे बनो तुम,
मौजो से भिड़े हो,
पतवारें बनो तुम।


दिवस के राही,
रातों का क्या करना,
दिन के उजाले में,
तुमको है चढ़ना,
सूरजमुखी जैसी,
ख़्वाहिश जो तेरी
ऊल्लू सदृष ना,
अन्धियारे बनो तुम,
मौजो से भिड़े हो,
पतवारें बनो तुम।


अभिनय से कुछ भी,
ना हासिल है होता,
अनुनय से भी कोई,
काबिल क्या होता?
अरिदल को संधि में,
शक्ति तब दिखती,
जब संबल हाथों के,
तीक्ष्ण धारें बनों तुम,
मौजो से भिड़े हो,
पतवारें बनो तुम।


विपदा हो कैसी भी,
वो नर ना हारा,
जिसका निज बाहू हो,
किंचित सहारा ।
श्रम से हीं तो आखिर,
दुर्दिन भी हारा,
जो आलस को काटे,
तलवारें बनो तुम ।
मौजो से भिड़े हो ,
पतवारें बनो तुम।


खुद हीं अब खुद के,
सहारे बनो तुम,
मौजो से भिड़े हो,
पतवारें बनो तुम।

(२).

राष्ट्र का नेता कैसा हो?

राष्ट्र का नेता कैसा हो?
जो रहें लिप्त घोटालों में,
जिनके चित बसे सवालों में,
जिह्वा नित रसे बवालों में,
दंगा झगड़ों का क्रेता हो?
क्या राष्ट्र का नेता ऐसा हो?


राष्ट्र का नेता कैसा हो?
जन गण का जिसको ध्यान नहीं,
दुख दीनों का संज्ञान नहीं,
निज थाती का अभिज्ञान नहीं,
अज्ञान हृदय में सेता हो,
क्या राष्ट्र का नेता ऐसा हो?


राष्ट्र का नेता कैसा हो?
जो अनसुनी करे फरियादें ,
करता रहे बस खाली वादें
हो नियत नेक ना इरादे ,
कि फ़कत मात्र अभिनेता हो,
क्या राष्ट्र का नेता ऐसा हो?


राष्ट्र का नेता कैसा हो?
निज परिवार की हीं सोचे,
जन के तन मन धन को नोंचे,
रचते रहे नित नए धोखे,
क्या कलियुग हो, क्या त्रेता हो,
क्या राष्ट्र का नेता ऐसा हो?


राष्ट्र का नेता कैसा हो?
जो अरिदल का सम्मान करें,
हो राष्ट्र भक्त अपमान करे,
औ जाति धर्म विषपान करे,
जन को विघटित कर देता हो,
क्या राष्ट्र का नेता ऐसा हो?


राष्ट्र का नेता कैसा हो?
चाहे कोई हो मज़बूरी,
जनता से बनी रहे दूरी,
वादें कभी भी ना हों पूरी,
पर वोट नोट से लेता हो,
क्या राष्ट्र का नेता ऐसा हो?


राष्ट्र का नेता कैसा हो?
ऐसों से देश बनेगा क्या?
ऐसों से देश बचेगा क्या?
कोई अब और कहेगा क्या?
जो राष्ट्र मर्म विक्रेता हो,
क्या राष्ट्र का नेता ऐसा हो?

(३).

अब समझ में आया,
कि राज क्या है?
इस शहर में जीने का,
अंदाज क्या है?


अकड़ के जो खड़ा था,
नाहक हीं लड़ पड़ा था,
तूफान का था मौसम,
पर जिद पे मैं अड़ा था।
गिरी जो मुझपे बिजली,
ये गाज क्या है?
तब समझ में आया,
कि राज क्या है?
इस शहर में जीने का,
अंदाज क्या है?


बदली हुई फ़िजा है,
बहना अब भा गया है,
दबी प्यार की थी बातें,
कहना अब आ गया है,
झंकार सुन रहा हूँ,
आवाज क्या है?
अब समझ में आया,
कि राज क्या है?
इस शहर में जीने का,
अंदाज क्या है?


इस शहर को शायद अब,
जान मैं गया हुँ,
जागीर न किसी की ,
पहचान मैं गया हूँ,
नई बज रही है विणा,
ये साज क्या है?
अब समझ में आया,
कि राज क्या है?
इस शहर में जीने का,
अंदाज क्या है?


नहीं एक के हीं हाथों,
ये शहर चल रहा है,
बदली हुई हुकूमत है,
शहर फल रहा है,
ना तख्त है किसी की ,
ये ताज क्या है?
अब समझ में आया,
कि राज क्या है?
इस शहर में जीने का,
अंदाज क्या है?


तन्हा रहा ना मैं तो,
बदला हुआ है मौसम,
मन के गुबारे गायब,
ये दिल हुआ है रोशन,
बदलती हुई हवा के,
मिजाज़ क्या है?
अब समझ में आया,
कि राज क्या है?
इस शहर में जीने का,
अंदाज क्या है?


रातें बदल गई हैं,
कि शोर थम गया है,
सुनी हुई आंखों से ,
गम कम गया है,
स्वर्णिम हुआ सवेरा,
आगाज नया है,
अब समझ में आया,
कि राज क्या है?
इस शहर में जीने का,
अंदाज क्या है?


है कैसा ये भरोसा,
ये नाज क्या है?
इस शहर में जीने का,
अंदाज क्या है?

अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित