नयी सहर Ankita Bhargava द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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नयी सहर

नयी सहर

(गृहलक्ष्मी में प्रकाशित)

अंकिता भार्गव

निधी के सोने जाने के बाद पीछे पीछे मोहित भी अपने कमरे में चला आया| वह मुंह दूसरी ओर किये लेटी थी| मोहित समझ रहा था वह रो रही है मगर उसके आंसुओं का सामना करने की हिम्मत अभी मोहित में नहीं थी| लाइट बुझा कर वह भी लेट गया|

मोहित के दिलो दिमाग में झंझावत सा चल रहा था| अपने करीब आती मौत की आहट उसे साफ़ सुनाई दे रही थी| ‘मृत्यु! हे चिर निद्रे तेरा अंक हिमानी सा शीतल,’ अपने प्रिय कवि की ये पंक्तियाँ आज उसे झूठी लग रही थी| मृत्यु का अंक शीतल नहीं अपितु कष्टप्रद था| यदि उसे कुछ हो गया तो क्या होगा निधी का और उसकी अजन्मी संतान का? क्या वह कभी अपने पिता का मुख भी नहीं देख पायेगी? मोहित का जी घबराने लगा, वह पूरी रात सो नहीं पाया बस घड़ी की सुइयों के साथ वक्त को गुजरते देखता रहा|

अजीब मानसिकता होती है मनुष्य की| जीवन हर का सफ़र वह शून्य से शुरू करता है| सफलता के नित नए सोपान चढते हुए तो वह उत्साह से सराबोर होता है, उसे लगता है जैसे सारी दुनिया ही उसके कदमों तले हो, किन्तु यदि दुर्भाग्यवश उन ऊँचाइयों से गिरकर वह फिर वहीं, उसी शून्य पर गिर पड़े, जहाँ से चला था तो टूट कर बिखर जाता है| सब कुछ बेमानी हो जाता है उसके लिए, यहाँ तक कि अपना अस्तित्व भी| परेशानी और दुःख से घिरा इन्सान भी अपने चारों ओर एक खालीपन एक शून्य ही अनुभव करता है|

मोहित भी आज कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा था| टूट कर बिखर गया था, बिल्कुल हताश| मोहित हमेशा से ऐसा नहीं था, वह तो बहुत जिंदादिल और खुशमिजाज था| कुछ दिन पहले तक उसकी जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था| क्या नहीं था उसके पास, एक मल्टी नेशनल कंपनी में ऊँची पोस्ट, एक बेहद खूबसूरत पत्नी, माता-पिता जो उस पर गर्व करते नहीं थकते थे, जल्द ही आने वाली संतान की कल्पनाओं में खोया वह ख़ुशी के सातवें आसमान में विचर रहा था कि सब कुछ बिखर कर रह गया|

ज्यादा कुछ नहीं हुआ था बस कुछ दिनों से उसके सर में दर्द रहने लगा था| धुंधला-धुंधला सा दिखाई देता था, कल तो हल्का सा चक्कर भी आ गया| उसे लगा उसके चश्में का नंबर बढ़ गया है, डॉक्टर को दिखा लेना चाहिए| उसका पेशा ही कुछ ऐसा था कि गजेट्स के बिना उसका काम ही नहीं चलता था और शायद उसकी समस्या गजेट्स की देन ही थी|

“भैया मुझे लगता है मेरे चश्मे का नम्बर बढ़ गया है, आप अपने आई स्पेशलिस्ट दोस्त विक्रांत के साथ मेरा अपोइन्टमेंट फिक्स करवा दो में चेक-अप करवा आऊंगा|”

“अपोइन्टमेंट क्या होता है मैं और शैफाली हॉस्पिटल ही जा रहे हैं तुम भी साथ चलो, चेक-अप हो जायेगा| निधि जल्दी से मोहित का नाश्ता लगा दो,” मयंक ने कहा|

“जी भैया|”

डॉक्टर विक्रांत ने चेक-अप के बाद मोहित को चश्मे का नंबर बताने की बजाय कुछ और टेस्ट लिख दिए| जिन्हें पढ़ कर मयंक के चेहरे का रंग उड़ गया| अजीब तो मोहित को भी लगा मगर उस वक्त उसने ऑफिस जाने की जल्दी में ध्यान नहीं दिया|

अगले दिन मयंक मोहित को लेकर एक अन्य डॉक्टर सेनगुप्ता के पास पहुंचा| विक्रांत के बताये सभी टेस्ट्स की रिपोर्ट भी उन्हें दिखाई| डॉ. विक्रांत भी उनके साथ ही थे| सभी के चेहरों पर तनाव स्पष्ट था| “मोहित तुम्हारा काम हो गया है तुम घर चले जाओ तुम्हारी रिपोर्ट मैं ले आऊंगा,” मयंक ने कहा|

मोहित समझ गया था कुछ गड़बड़ है तभी, भाई उसे जाने को कह रहे थे| वह जाने की बजाय दरवाजे की आड़ में खड़ा हो कर उनकी बातें सुनने लगा| उन लोगों की बातें सुन कर उसे अपने पावों के नीचे से ज़मीन खिसकती महसूस हुई| उसे ब्रेन ट्यूमर था| मयंक ने मोहित को डॉ.सेनगुप्ता के केबिन से बाहर खड़े देख कुछ नहीं कहा| कहने के लिए कुछ था भी नहीं|

घर पर सब उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे| मयंक घर में किसी को कुछ भी बताना नहीं चाहते थे| पर उनके सवालों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो सब कुछ जान कर ही ख़त्म हुआ| निस्तब्धता सी छा गयी थी कुछ पल के लिए कमरे में, कोई कुछ नहीं बोला| मॉम और निधी की आँखों से आंसुओं की झड़ी लग गयी|

“अरे तो क्या हुआ, एक छोटी सी बीमारी ही तो है, सब ठीक हो जायेगा तुम सब देखना| आई नो माई सन, ही इज अ चेम्पियन, वो इस बीमारी को भी वैसे ही हरा देगा जैसे स्कूल टाइम में दूसरे स्कूल की बेडमिंटन टीम को हरा देता था|” जाने क्यूँ आज पहली बार मोहित को पापा के ये होसला बढाने वाले शब्द खोखले से प्रतीत हो रहे थे|

जल्द ही मयंक ने मोहित का ट्रीटमेंट शुरू करवा दिया| ‘मयंक मोहित का ट्यूमर बिनाइन है, मेंलिग्नेंट नहीं, उसके ठीक होने की संभावना काफी ज्यादा हैं|” मयंक डॉ. सेनगुप्ता के इस आश्वासन के सहारे मोहित के ठीक हो जाने की उम्मीद बांधे थे|

ऊपर से सब सामान्य था मगर फिर भी काफी कुछ असामान्य भी था| घर की खुशियों को जैसे किसी की नजर लग गयी थी| अब वक्त बेवक्त हंसी ठहाकों की आवाजें आनी बंद हो गयी थी| सब अपने ही खोल में सिमटे से रहते थे| सोशल एक्टिविस्ट मॉम का ज्यादातर वक्त घर में उसके पास बीतने लगा, पापा हिम्मत दिखने की कोशिश करते मगर उनकी ऑंखें उनके दिल के हाल की चुगली कर देतीं, निधी के चहरे की चमक ही ख़त्म हो गयी| एक अनजाने डर का साया हर वक्त सबको घेरे रहता| इन सबके बीच शैफाली भाभी थी जो हर समय सबको सँभालने और हिम्मत देने की असफल सी कोशिश करती रहतीं|

इधर मोहित के भीतर कुछ टूट रहा था, उसे ऐसा महसूस होता था जैसे उसके उसका सब कुछ उसके हाथों से बंद मुठ्ठी की रेत सा छूटता जा रहा था| उसकी जॉब छूट गयी थी और साथ ही उसका ड्रीम प्रोजेक्ट भी जिसके लिए उसने जी तोड़ मेहनत की थी| ड्रीम प्रोजेक्ट की फाइल लेते समय मोहित के कलीग अजय की आँखों में उभरी चमक ने मोहित को तोड़ का रख दिया| नित्य प्रति की ये घटनाएँ मोहित को धीरे धीरे गहरे अवसाद की ओर धकेल रही थी|

जब मोहित को ओपरेशन के लिए हॉस्पिटल जा रहा था तो घर में एक अजीब सी स्तब्धता का माहौल था| निधि के चेहरे से आंसुओं की लकीरें सूखी नहीं थीं| मम्मा तो सुबह से कमरे में बैठी थी शैफाली के बहुत कहने पर बस दो मिनट के लिए बहार आई और मोहित को आशीर्वाद दे कर वापस चली गयी| मयंक मोहित को लेकर हॉस्पिटल चले गए| आज गाड़ी डॉ. विक्रांत चला रहे थे| मयंक तो मोहित का हाथ थामें पीछे की सीट पर बैठे थे| मोहित ने अपना सर मयंक के कंधे पर रख दिया और ऑंखें बंद कर ली जैसे अपनी हर फिक्र भाई को सौंप चुका हो|

मोहित का ओपरेशन हो गया और सफल भी रहा| हालाँकि अभी उसके पूरी तरह से ठीक होने में वक्त लगाना था पर मयंक को तसल्ली थी कि मोहित की जान को अब कोई खतरा नहीं था, बड़ी जंग उन्होंने जीत ली थी बाकी तो छोटी मोटी परेशानियाँ थीं जो धीरे धीरे ठीक हो जाएँगी|

मोहित अभी आई.सी.यू. में था, घर से कोई ना कोई हर रोज़ उससे मिलने जरुर आता था| मयंक तो अपनी ड्यूटी के बाद का सारा वक्त मोहित के साथ ही रहते| एक दिन उन्होंने मोहित को मुस्कुराते हुए खुशखबरी सुनाई कि वह पिता बन गया है, उसे एक बहुत ही प्यारी सी बेटी हुई है| शैफाली की देखरेख में डिलीवरी ठीक से हो गयी थी और अब निधी और उसकी बिटिया दोनों स्वस्थ थे|

मयंक अपनी ही रौ में मोहित से बातें कर रहे थे और वह जैसे कहीं दूर अपने आप में ही खोया हुआ था| उसे इस वक्त निधी के पास होना था मगर वह तो यहाँ था हॉस्पिटल के इस आई.सी.यू. वार्ड में. उसने अपनी ऑंखें बंद कर लीं मानो सोने की कोशिश कर रहा हो| मोहित उसकी मन:स्थिति से वाकिफ थे अत: उन्होंने भी उसे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दिया|

एक रोज़ मोहित से मिलने शैफाली हॉस्पिटल आई और अपने पर्स से एक तस्वीर निकाल कर उसकी आँखों के सामने कर दी| यह मोहित की बेटी की तस्वीर थी| उस तस्वीर के रूप में शेफाली जैसे मोहित के लिए जिंदगी की लहर ले आई थी, मोहित के भीतर भावनाओं का ज्वार सा उठा और उसी आवेग में उसके हाथ में एक हल्का सा कम्पन हुआ जो मयंक से छुपा ना रह सका| उछल पड़े मयंक, ख़ुशी से उनकी ऑंखें भर आईं| उसके बाद तो शैफाली ने उस वार्ड की सारी दीवारों को नन्हीं की तस्वीरों से सजा दिया|

मयंक ने डॉक्टर सेनगुप्ता से बात करके मोहित को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करवा लिया| उन दोनों का ही मानना था कि घर में अपनों के बीच मोहित की रिकवरी ज्यादा अच्छे से और जल्दी होगी| मयंक और विक्रांत ने मोहित को उसके बिस्तर पर लिटाया पास ही झूले में गुड़िया भी लेटी थी| मोहित की नज़रें उस पर टिक गईं, वह भी टुकुर टुकुर पापा को देख रही थी|

निधी ने गुड़िया को गोद में उठाया और उसे लेकर मोहित के पास रख दिया| वह मोहित का हाथ बच्ची के ऊपर रखते हुए बोली, “देखो गुड़िया पापा|” बच्ची कुछ देर मोहित की ओर देखती रही फिर उसने अपने नन्हे से हाथ में मोहित की उंगली थाम ली| पहली बार मोहित ने अपनी बच्ची के स्पर्श का अनुभव किया, उसके रोंगटे खड़े हो गए| यह दूसरी बार था जब जिंदगी ने एक खुशनुमा लहर की तरह उसे छुआ था|

मोहित देर तक उसे निहारता रहा और वह भी टुकुर टुकुर देखती रही बिलकुल शांत जैसे पिता-पुत्री में बातें हो रही थी| मोहित को लगा जैसे ज़िन्दगी कहीं उसके आस पास ही है और उसे तलाश रही है| अब वह जीना चाहता था, ठीक होना चाहता था| सिर्फ़ और सिर्फ अपनी परी के लिए|

निधी की मेटरनिटी लीव्स अब ख़त्म हो गयी थी| उसने फिर से ऑफिस जाना शुरू कर दिया| घर-ऑफिस और बच्ची की जिम्मेदारियों से घिरी निधी कभी कभी चिढ जाती और कभी थक कर रोने लगती| मगर जल्दी ही अपने आंसू पोंछ कर होठों पर मुस्कान सजा फिर से सभी मोर्चों पर डट जाती| उसकी ऐसी हालत देख कर मोहित खुदको बहुत असहाय महसूस करताज

दिन भर घर के सभी लोग अपने अपने कामों में व्यस्त रहते थे| किसी के भी पास मोहित से बात करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं होता था| जबकि अब मोहित के पास वक्त ही वक्त था| उसे वो पुराने दिन याद आते जब वह अपनी व्यस्तता के चलते निधी और परिवार को वक्त नहीं दे पता था| और कभी कभी तो निधी को नाहक ही डांट भी देता था| अब उसे अपनी पुरानी गलतियों पर पछतावा हो रहा था|

तब उसके पास किसी की बात सुनने का वक्त नहीं था| आज जब वक्त था तो कोई उसके पास नहीं था जो उससे बातें कर सके सिवाय परी के| वह सारा दिन परी के साथ खेलता, सारी दुनिया की बातें कर लेता और परी भी अपने पापा का पूरा साथ देती|

मोहित समय के साथ ठीक हो रहा था और परी भी बड़ी हो रही थी, मोहित वॉकर लेकर चलने लगा था तो परी भी अब घुटनों के बल ज़मीन नापने लगे थी| निधी ने उसके पावों में छोटी छोटी पायल पहना दी थी| पायल की रुनझुन से चौंक कर जब नन्हीं परी इधर उधर देखने लगती तो मोहित हंस देता|

धीरे धीरे हालात खुशनुमा हो रहे थे| मोहित के जीवन में एक नयी सहर दस्तक दे रही थी जो खुशियों और जिंदगी से भरपूर थी| मोहित भी निधी का हाथ थाम कर अपनी नन्हीं सी पारी के लिए इस नयी सहर का स्वागत करने के लिए तैयार था।

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