ख़्वाबगाह - 5 Suraj Prakash द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ख़्वाबगाह - 5

ख़्वाबगाह

उपन्यासिका

सूरज प्रकाश

पांच

तभी मुझे विनय के शादीशुदा होने का पता चला था। मेरे जन्म दिन के सातवें दिन। हम दोपहर के वक्त यूं ही मालवीय नगर में मटरगश्ती कर रहे थे। तभी एक गोलगप्पे वाले को देख कर विनय ने कहा – चलो गोलगप्पे खाते हैं। देखते हैं कौन ज्यादा खाता है। मैं भला कहां पीछे रहने वाली थी। मैंने पैंतीस खाये थे और विनय ने तीस पर ही हाथ खड़े कर दिये थे। गोलगप्पे वाकई बहुत अच्छे थे और गोलगप्पों का पानी जायकेदार था। तभी विनय ने प्रस्ताव रखा कि ऐसे और इतने सारे गोलगप्पे बहुत दिन बाद खाये हैं। तुम एक काम करो। घर वालों के लिए लेती जाओ।

- एक शर्त पर कि तुम भी अपने घर वालों के लिए ले कर जाओगे। कौन कौन हैं घर में।

- सब हैं।

- सब में कौन कौन आते हैं। मैं पहली बार विनय के घर वालों के बारे में पूछ रही थी। कभी जरूरत ही नहीं समझी थी।

- मां, बड़ी भाभी, एक बहन और...

- और

- और हमारी धर्मपत्नी।

- कमाल है, तुम्हारी शादी कब हुई। कभी बताया नहीं कि तुम शादीशुदा हो। मैं हैरान थी कि इतनी बड़ी बात आज तक विनय ने मुझे नहीं बतायी।

- क्या बताता और कब बताता।

- कभी भी बता सकते थे।

- एक बात बता दूं। मेरी शादी के बाद भी तुम्हारे प्रति मेरे प्रेम में कोई कमी नहीं आयी है न। आयेगी भी नहीं। हमारी शादी तुमसे मुलाकात के दो महीने बाद ही हो गयी थी।

- कैसी हैं आपकी दुल्हन?

- अगर मेरे मनमाफिक होती तो मैं इस समय यहां तुम्हारे साथ गोलगप्पे खा रहा होता। इस बारे में हम कभी बात नहीं करेंगे। तुम बेशक मेरे घर वालों के लिए भी पैक करवा दो।

मैं हैरान हो रही थी कि वह इतनी बड़ी बात को इतने चलताऊ ढंग से कैसे बता रहा है। अगर वह बताता नहीं कि छ: महीने पहले उसकी शादी हो चुकी है तो मुझे पता भी न चलता। वैसे भी मुझे क्या फर्क पड़ने वाला था। मुझे उसका भरपूर प्यार मिल रहा था और हमने एक दूसरे को वचन दिया था कि मेरी या उसकी शादी के बाद भी हमारी दोस्ती में कोई कमी नहीं आयेगी। अब उसकी शादी हो चुकी थी तो क्या फर्क पड़ा था।

उसी शाम उसकी केयर और मेरे प्रति उसके प्यार का एक और सबूत मुझे मिल गया था।

हुआ ये था कि घर वापिस जाते समय मैंने गोलगप्पे और पानी की थैली उसी कैरी बैग में रख दिये थे जिसमें बाकी सामान और मोबाइल रखे थे। रास्ते में पता नहीं कैसे हुआ कि गोलगप्पों के पानी वाली थैली खुल गयी। जब मैं घर पहुंची तो मोबाइल जायकेदार पानी में जल समाधि ले चुका था। मैं मोबाइल की ये हालत देख कर खूब हंसी थी। तय था कि ये मोबाइल गोलगप्पों के पानी में लगातार इतनी देर तक डुबकी लगा कर बेकार हो चुका होगा। मैंने सिम कार्ड निकाल कर दूसरे मोबाइल में डाला था और हंसते हुए ये बात विनय को बतायी थी।

मैं हैरान रह गयी थी जब दो घंटे बाद ही मुझे विनय का फोन आया था कि जरा दो मिनट के लिए गली के बाहर आ कर मिलो।

मैं हैरान थी कि अभी तो हम इतना समय एक साथ गुजार कर आ रहे हैं।

विनय के हाथ में एक पैकेट था - बोला था, ये घर जा कर देखना और वह वहीं से और कोई बात किये बिना लौट गया था।

घर आ कर पैकेट खोला था मैंने। ठीक वैसा ही मोबाइल मेरे सामने था। विनय पर तब मुझे खूब प्यार आ रहा था। पागल प्रेमी है मेरा। दो घंटे के भीतर दूसरा मोबाइल। अब उस पागल को मैं कैसे बताती कि मेरे पास ठीक एक जैसे दो मोबाइल थे।

  • अपनी शादी का दिन याद करती हूं। मेरा ब्राइडल मेकअप चल रहा था कि विनय का फोन आ गया था। मैं शादी के जोड़े में बैठी घर वापिस जाने के लिए भाई का इंतजार कर रही थी कि तभी पार्लर का दरवाजा खोल कर विनय अंदर आया था। उसे पता था मैं कहां जा रही हूं मेकअप के लिए। उसे मैं हर सुबह दिन भर के कामों के बारे में विस्तार से बताती थी। मैं उसे देख कर खुश हुई थी। उसके चेहरे पर भी रौनक थी। हम चाह कर भी तो पहले की तरह न तो हग कर सकते थे और न ही वह मुझे किस ही कर सकता था। एक खतरा भी था कि भाई किसी भी समय आ सकता था। जो ब्यूटीशियन मेरा मेकअप कर रही थी, वह अपना काम पूरा कर चुकी थी और उसने भाई को फोन कर दिया था मुझे ले जाने के लिए। विनय ने फुसफुसा कर कहा था कि तुम्हें शादी के जोड़े में देख लिया, अब सुकून मिल गया है, अब रात को तुम्हारी शादी में आऊंगा। मैं उसे जल्दी से चले जाने के लिए कह रही थी। भाई कभी भी आ सकता था। मैंने उससे कहा था कि वह शादी में न ही आये तो बेहतर। मैं नहीं चाहती थी कि उस पर किसी भी तरह की आंच आये या कोई उससे किसी तरह का सवाल पूछे। वह सिर्फ मेरा था और मैं नहीं चाहती थी कि वह सब की नजरों के सामने आये।

  • शादी के बाद भी विनय के साथ देर रात चैट करने का तरीका मुझे अपने आप ही मिल गया था। मुझे लगता है कि जब शादी के लिए लड़का और लड़की मिलें और रिश्ता तय हो तो कुछ इस तरह के जरूरी सवाल एक दूसरे से जरूर पूछ लेने चाहिये वरना दोनों की जिंदगी में दरारें पड़ने में देर नहीं लगती। मसलन, दोनों में से किसी को खर्राटे तो नहीं आते, या आपको अंधेरे में नींद आती है या रौशनी में। पति की शराब या सिगरेट पीने की आदत से फिर भी एडजस्ट किया जा सकता है लेकिन अगर पति या पत्नी को खर्राटे आते हों या एक को अंधेरे में नींद आती हो और दूसरे को रौशनी में तो यकीनन दोनों में से एक की हर रात खराब होनी ही है। आदत बदलते बदलते वक्त लगता है और आप इस आदत के सामने कुछ नहीं कर सकते।

    मुकुल और मेरे मामले में भी यही हुआ। दोनों समस्याएं उसी की तरफ से थीं। उसे रौशनी में नींद आती थी और खर्राटे भी आते थे। मुझे अंधेरे में बिलकुल शांत माहौल में ही नींद आती थी। शुरू शुरू में तो मैंने एडजस्ट करने की कोशिश की लेकिन हर रात करवटें बदलते ही बीतती और मैं हर दिन सिर भारी होने और नींद पूरी होने के कारण कुछ भी काम न कर पाती। तभी हम दोनों ने आपसी सहमति से अलग अलग कमरों में सोना शुरू किया था।

    अलग कमरे में सोने का ये फायदा जरूर हुआ कि मैं कुछ देर तक विनय से चैट कर सकती थी और दिन भर की खबरें लेने देने की रस्म अदायगी कर सकती थी।

  • होना तो ये चाहिये था कि मेरी शादी के बाद विनय मुझे यह मौके देता और समझाता भी कि मैं अब मुकुल की तरफ ज्यादा ध्यान दूं और अपने घर परिवार की तरफ देखूं। वह चाहता तो हमारी मुलाकातों पर रोक लगा सकता था और हर दिन मुझसे मिलने या देर तक फोन पर बात करने के लिए मुझे मजबूर न करता। लेकिन हो इसका उल्टा रहा था। उसे पता था कि मैं ही उसके प्यार में पागल हूं। उसके लिए कुछ भी कर सकती हूं। और वह इस बात का पूरा फायदा उठाता।

  • एक बार मुझे और मुकुल को एक शादी के रिसेप्शन में हौज खास जाना था। हम घर से ही तैयार हो कर निकले थे। मैंने यूं ही दिन में विनय को बता दिया था कि हम शादी में हौज खास आ रहे हैं। तुम्हारे इतने नजदीक होते हुए भी तुमसे न मिल सकेंगे।

    मुझे क्या पता था कि विनय भी उस रिसेप्शन में मौजूद होगा। उसे देखते ही मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी थी। बेशक हम आपस में बात न कर सकें, कुछ घंटे आसपास रहने का सुख तो मिलेगा ही। मुकुल के साथ उसका परिचय कराने का रिस्क मैं बिल्कुल नहीं ले सकती थी।

    लेकिन विनय ने मुकुल को देखते ही मुंह बिचकाया था जैसे किसी बहुत बदसूरत या गलत आदमी को मेरे साथ देख लिया हो। मुकुल अच्छा खासा स्मार्ट और हर लिहाज से सुंदर आदमी है। ये बात अलग है कि हमारे मन नहीं मिलते।

    मुकुल को देखते ही विनय ने जो मुंह बिचकाया था, उसे देखते हुए मुझे दहशत होने लगी थी। वह खूंखार शेर की तरह इधर उधर घूम रहा था। ऐसे लग रहा था कि वह जरूर किसी न किसी को पीट डालेगा। मैं मुकुल की मौजूदगी में उसकी तरफ जी भर का देखने का रिस्क भी नहीं ले सकती थी।

    तभी मुकुल को कुछ दोस्त मिल गये थे। रिसेप्शन पार्टी में ड्रिंक्स का इंतजाम नहीं था। वह कुछ देर के लिए दोस्तों के साथ कहीं निकल गया था। मुकुल को मेरे साथ न देख कर विनय का मूड संवरा था लेकिन तब तक मेरा मूड खराब हो चुका था। भला कोई ऐसा करता है। ठीक है मैं उसे बहुत प्यार करती हूं लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि मैं अपने पति के साथ नज़र भी न आऊं।

    इस बात को ले कर मैं बाद के कई दिनों तक उससे खफा रही थी। विनय यही कहता रहा – इसमें मैं क्या करूं। मैं तुम्हें किसी के साथ बात करते हुए भी नहीं देख सकता। चाहे वह आदमी तुम्हारा पति ही क्यों न हो। तुम्हें ले कर मैं पोजेसिव हूं तो हूं। सो व्हाट। मैंने तुनक कर कहा था अगर इतने ही पोसेसिव थे तो मुझसे पहले ही चुपचाप शादी क्यों कर ली थी। इस बात का उसके पास कोई जवाब नहीं होता था। बाद में एक बार उसने बताया था कि उनके घर में मां की ही चलती है और पूरे घर के फैसले वे लेती हैं। कोई भी उनके खिलाफ नहीं जा सकता। उसकी शादी भी मां के दबाव के चलते ही हुई थी।

  • मुकुल के साथ सगाई और शादी के बीच के छ: महीने की मुलाकातों के छिटपुट अवसरों पर और शादी के कई महीने लगातार एक साथ बिताने के बावजूद मैं तब तक मुकुल को न तो पूरी तरह से प्यार कर पायी थी और न ही उसका पूरा प्यार मेरे हिस्से में आया था। हम बस पति पत्नी थे और कुछ भी नहीं। न अच्छे दोस्त और न ही प्रेमी प्रेमिका।

  • ये विनय का ही टोटका था कि उसने इग्नू में मेरा एमबीए में एडमिशन करवा दिया था। सिर्फ हमारी मुलाकातों के लिए समय निकालने के लिए। बेशक मैं एक दिन भी क्लास में नहीं गयी थी। विनय ही मेरे लिए एमबीए की ढेर सारी किताबें और नोट्स् ले आया था। बीच बीच में सेंटर से डाक से नोट्स भी आ जाते थे जिससे घर में भ्रम बना रहता कि मैं सचमुच एमबीए कर रही हूं। मुकुल भी यही मान कर चल रहा था कि मैं बीच बीच में जो चार पांच घंटों के लिए गायब हो जाती हूं दरअसल एमबीए की क्लासेस के लिए या टेस्ट देने के लिए जाती हूं।

  • विनय की ही सलाह पर मैंने एक कंपनी में सर्विस करनी शुरू कर दी थी। मैं नौकरी के लिए गाजियाबाद से कनाट प्लेस आती। हमें इस तरह से मिलने के कई मौके मिल जाते। कभी कभी ऐसा भी होता कि मैं ऑफिस से छुट्टी ले कर सारा दिन विनय के साथ बिताती या किसी ट्रेनिंग वगैरह का बहाना बना कर उससे मिलती। वह अक्सर मुझे पिक करने के लिए अपनी कार में हमारे ऑफिस के गेट पर खड़ा मिलता। मैं मना भी करती कि इतने ट्रैफिक में अस्सी नब्बे किमी का चक्कर लगाने की कोई तुक है क्या लेकिन विनय अपनी बात मनवाना जानता था, दूसरे की बात सुनना नहीं।

    एक बार इसी तरह से विनय ने मुझे ऑफिस के बाद पिक किया था। हमने कॉफी पी थी और विनय मेरे घर तक छोड़ने आने वाला था। वह सिर्फ मुझे मेरे ऑफिस से मेरे घर तक छोड़ने आने के लिए इतनी लंबी दूरी तय करके आता था। मेरे घर के पास एक सुनसान जगह पर हम दोनों कार में बैठे पिछले एक घंटे से एक दूसरे को विदा तो कह रहे थे लेकिन विदा हो नहीं रहे थे। अंधेरा घिरने लगा था, मुझे भी देर हो रही थी और विनय को भी वापिस जाना था लेकिन विदा होने की घड़ी पिछले एक घंटे से आ ही नहीं रही थी। बातों बातों में कोई न कोई ऐसी बात निकल आती कि बातों का सिलसिला फिर से चल पड़ता।

    आखिर हमने तय किया कि अब हमें विदा हो ही जाना चाहिये। विनय हमेशा मुझे घर से दो गली पहले छोड़ देता था। वह हमेशा बीच में सुनसान रास्ते में बात करने के लिए गाड़ी रोकता। हम दोनों एक लॉंग किस करते और गाड़ी आगे बढ़ती। विनय किस करने के लिए मेरी तरफ झुका ही था कि पुलिस की वैन एकदम पीछे दिखी। उन दिनों पुलिस इस तरह के मामलों में बहुत सख्त हो गयी थी कि सड़क पर अंधेरे का फायदा उठा कर युवा जोड़े इस तरह की हरकतें सरेआम न करें। वैन की तेज लाइट विनय ने देख ली थी। एक पुलिस वाला वैन से उतर कर हमाारी कार की तरफ आ ही रहा था कि विनय ने खूब तेज गाड़ी दौड़ाई थी और गलियों मौहल्लों में चक्कर काटते हुए किसी तरह से खुद को और मुझे पुलिस की निगाहों में आने से बचाया था। मैं बुरी तरह से घबरा गयी थी। विनय ने मौका देख कर मुझे बीच में ही उतार दिया था। उस दिन जरा सी भी चूक हो जाती तो घर पर सफाई देना मुश्किल हो जाता। इस घटना के बाद विनय कई दिन तक मेरे ऑफिस की तरफ ही नहीं आया था।

    ***