ख़्वाबगाह - 1 Suraj Prakash द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ख़्वाबगाह - 1

ख़्वाबगाह

उपन्यासिका

सूरज प्रकाश

एक

एक बार फिर विनय का फोन। अब तो मैं मोबाइल की तरफ देखे बिना ही बता सकती हूं कि विनय का ही फोन होगा। वह दिन में तीस चालीस बार फोन करता है। कभी यहां संख्या पचास पार कर जाती है। और इतनी ही संख्या में व्हाट्सअप मैसेज। पहले बीच-बीच में मैं उसके मैसेज पढ़ लेती थी लेकिन जब देखा कि वही मैसेज कॉपी पेस्ट करके हर दिन और हर बार रिपीट किये जा रहे हैं और उनमें अपनी हरकत के लिए माफी मांगने के अलावा कुछ नहीं होता तो मैंने वे संदेश पढ़ने भी बंद कर दिये हैं।

अब तो मैंने अपने लिए एक दूसरा मोबाइल और नया नंबर ले लिया है और सभी परिचितों को भी उस नये नंबर से ही जवाब देती हूं या कॉल करती हूं।

कई बार सोचती हूं कि इस नंबर पर विनय के इतनी बार फोन करने से बचने के लिए मैं ये नंबर बंद भी तो कर सकती हूं लेकिन संकट ये है कि मेरा यह नंबर पिछले बारह बरस से यानी मोबाइल खरीदने के पहले दिन से ही चल रहा है और सभी रिश्तेदारों और परिचितों के पास यही नंबर है, बेशक जिसका भी फोन आता है, उसे मैं अपना नया नंबर भी दे देती हूं और इस मोबाइल को चलने देती हूं। याद करती हूं, इस नंबर के साथ पहला मोबाइल फोन विनय ने ही तो दिया था।

  • विनय से नाता तोड़े दस महीने होने को आये हैं और इस बीच हमने एक बार भी न तो बात ही की है और न ही चैट की है। हिसाब लगाऊं तो इस अरसे में वह हजारों बार मेरा नंबर डायल कर चुका है। इसके बावजूद हम दोनों में कोई संवाद नहीं हुआ है। न मैंने फोन एटेंड किया है, न कॉल बैक किया और और न ही उसके किसी मैसेज को पढ़ा या जवाब ही दिया है।

    इस बीच मुझे उसकी कोई खबर नहीं मिली है। मुझे नहीं पता कि वह अपने डिप्रेशन की दवा नियमित रूप से ले रहा है या नहीं और उसकी पीठ दर्द का क्या हाल है, लेकिन ये सब जानने के लिए उसका फोन उठाना पड़ेगा या मुझे खुद फोन करने की हिम्मत जुटानी पड़ेगी और मैं यही नहीं करना चाहती।

  • मैं खुद कई बार उसकी वजह से डिप्रेशन में आ जाती हूं और मेरी रातों की नींद हराम हो जाती है। मिसेज मालती अग्रवाल के केस में भी यही हुआ था। मैं गहरे अवसाद में आ गयी थी और मेरी रातों की नींद चली गयी थी। बन्नी तब सिर्फ आठ महीने का था और मेरा दूध पी रहा था। किसी भी तरह की मेरी बीमारी उसके लिए भी खतरनाक हो सकती थी। मैं ही जानती हूं कि मैंने तब अपने आपको कैसे संभाला था। दो बरस लग गये थे मुझे खुद को वापिस नॉर्मल करने में। उस बार तो उसके बहुत रोने गिड़गिड़ाने के बाद मैंने उसे माफ कर भी दिया था लेकिन अब उसे मैं इस हरकत के लिए माफ नहीं कर सकती।

  • उसकी एक बेहूदा हरकत की वजह से हमारा अबोला चल रहा है और बारह बरस से चला आ रहा बेहद खूबसूरत रिश्ता एक झटके में ही खत्म हो गया है। मुझे अंदाजा है कि उसने वह बेजा हरकत, हो सकता है, डिप्रेशन के असर में आ कर की हो, लेकिन की तो है। वैसे भी वह मेरे प्रति इतना पोजेसिव है कि मैं किसी से बात भी करूं, उसे गवारा नहीं है। उसका बस चले तो मुझे मुकुल से भी बात न करने दे। सारा झगड़ा ही उसके पोजेसिवनेस को ले कर है।

    एक बार उसे ढेर सारे पैसे कहीं से मिल गये थे तो मैंने हंसते हुए कहा था कि बैंकाक हो आओ। रीचार्ज हो जाओगे तो बोला था कि मैं बैंकाक जाने के बजाए तुम्हारे पीछे जासूस लगाना ज्यादा पसंद करूंगा। पता तो चले कि किस किस से मिलती हो। तब मैंने जवाब दिया था कि जासूस के पैसे मुझे दे दो और मैं अपने मोबाइल में एक चिप डलवा लेती हूं। मेरे मूवमेंट की और कांटैक्ट्स की पल पल की खबर मिलती रहेगी। सारी कॉल्स भी रिकार्ड करती रहूंगी। लेकिन उसके शक का क्या करूं। मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं है। इस मामले में तो उसने मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ दी हैं।

  • मैं जानती हूं कि मैं उसे बेहद प्यार करती हूं और इस बात को वह भी जानता है। अब दस महीने के अबोले के बाद भी मैं उसे दिल से निकाल नहीं पायी हूं और न ही वह मुझे भुला पाया है और मिलने के लिए एक तरह से छटपटा रहा है। राह देख रहा है कि मैं उसे माफ कर दूं और वह भागा भागा चला आए। मुझे पता है, और वह भी पूरी उम्मीद लगाए बैठा है कि मैं किसी भी दिन टूट जाऊंगी और फिर से उसकी गोद में सिर रखे चुपचाप लेटी रहूंगी।

    इसके पीछे कोई कारण नहीं है। किसी को प्यार करने के पीछे कारण नहीं गिनाए जाते। बस करती हूं। दिन का कोई ऐसा पल नहीं होता कि मैं उसे बेहद याद न करती होऊं या दिन भर का कोई भी काम ऐसा नहीं होता जिसके साथ उसकी यादें न जुड़ी हुई हों। बेशक इन दस महीनों में मैं कई बार कमज़ोर पड़़ी हूं और उसका फोन आने पर मोबाइल उठाने को बस हाथ उठा ही है या खुद मेरी तरफ से बस, उसका नंबर डायल करने की ही देर रही कि मैंने खुद को किसी तरह संभाला, बेशक बाद में ज़ार ज़ार रोती रही हूं।

    विनय को ले कर इन दस महीनों में मैं कितना रोयी हूं इसकी कोई गिनती नहीं है। कितनी बार मैं उसे याद करके रात-रात भर रोती रही हूं। कितनी बार मुझे लगा है कि पहले की तरह विनय चुपके से आयेगा और एक शब्द भी बोले बिना या बोलने को मौका दिये बिना वह मुझे गले से लगा लेगा और सब कुछ ठीक हो जायेगा।

    बेशक इस अरसे में वह दोबारा मेरे घर आने की हिम्मत नहीं कर पाया है। सिर्फ बार-बार फोन करके और मैसेज भेज करके मेरा इम्तिहान लेता रहा है। मैंने ही फोन नहीं उठाया है न किसी मैसेज का जवाब ही दिया है।

  • मैं नहीं जानती कि अब हम पहले की तरह फिर से एक हो पायेंगे या नहीं और फिर से मेरे जीवन में पिछले दस महीने से पसरी दुख की बदली छटेगी या नहीं। कितनी बार मैं कमजोर पड़ी हूं और पहले की तरह उसकी तरफ जाने के लिए कार निकाली है कि अचानक जा कर विनय को सरप्राइज दूंगी लेकिन फिर पता नहीं क्या हुआ कि तैयार होते होते मेरी जो रुलाई शुरू हुई, मैं खुद को देर तक संभाल नहीं पायी। घर से निकलना तो दूर, मैं चेंज ही नहीं कर पायी और हर बार की तरह दिन में ही वोदका की बोतल खोल कर बैठ गयी। न ये सोचा कि बन्नी स्कूल से आता ही होगा और आते ही खाना मांगेगा और न ही ये सोचा कि मुकुल या कोई और आ गया तो क्या सोचेगा। वोदका के हलके नशे में खुद को भूलने के बजाय मैं रोती ही रही हूं।

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