ख़्वाबगाह - 2 Suraj Prakash द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ख़्वाबगाह - 2

ख़्वाबगाह

उपन्यासिका

सूरज प्रकाश

दो

बेशक इस पूरे घटनाक्रम में मेरा कुसूर नहीं है लेकिन....। इस लेकिन का मेरे पास कोई जवाब नहीं है। ऐसे कैसे हो गया कि जिस आदमी के लिए मैंने अपना सर्वस्व निछावर कर दिया, अपना दीन ईमान, चरित्र, परिवार, पति, अपने बच्चे सब को पीछे रखा और सिर्फ उसके लिए पिछले 12 वर्षों से हलकान होती रही, उससे मिलने के लिए, संबंध बनाए रखने के लिए हर तरह के रिस्क उठाती रही, उसने मेरे ही घर पर आ कर मुझे थप्पड़ मारे। एक नहीं दो, और वह भी काम वाली नौकरानी के सामने।

इस घटना के एक दिन पहले तक सब कुछ ठीक चल रहा था। बीच बीच में उसका प्यार बढ़ भी जाता और ऐसे भी मौके आते कि हम दो-दो महीना न मिल पाते। सिर्फ फोन या व्हाटसअप के जरिये संपर्क में रहते।

बेशक वह होम फ्रंट पर पूरी तरह से टूटा हुआ और हारा हुआ था लेकिन वह कभी लेकिन भूल कर भी कभी इसका जिक्र ना करता। वह कभी नहीं चाहता था कि मैं उसकी पर्सनल परेशानी सुनकर खुद को किसी तकलीफ में डालूं। वह प्रेजेंट में जीना जानता था और हमारी मुलाकात का एक एक पल जीने में विश्वास करता था।

यही बात हम दोनों को जोड़े हुए थी और मुझे उसके और नजदीक ले जाती थी। बेशक मुझे नहीं पता था कि मालती अग्रवाल के मामले के बाद एक और हादसा होगा और इस हादसे का शिकार मैं ही होऊंगी।

  • मेरे बारे में शक्की वह पहले से ही था। मुझ पर अपना पूरा हक समझता था। ये बात खराब लगने के बादजूद मैं उससे इस बात पर नाराज़ नहीं होती थी। हंस कर टल जाती थी। लेकिन इधर उसने कुछ अरसे से मेरा मोबाइल चेक करना शुरू किया था और मुझ पर, मेरे संबंधों पर, मेरे मोबाइल पर, मेरे व्हाट्सएप पर, फेसबुक पर निगाह रखनी शुरू कर दी थी। वह कहीं भी मिले, कितने भी अरसे बाद मिले, उसका पहला काम यही होता था कि वह मेरा मोबाइल हाथ में उठाता, मुझसे पासवर्ड मांगता और सारे ऐप्स देखता। इसके साथ ही उसकी बड़ बड़ शुरू हो जाती।

    शुरू शुरू में तो मैंने इसे जाने दिया था लेकिन कुछ अरसे से उसकी यह हरकत बढ़ती चली जा रही थी। मुझे पता था कि वह मेरी वजह से, अपने परिवार की वजह से और अपने कारोबार की वजह से गहरे डिप्रेशन में है और उसे फियर साइकोसिस डायग्नोस हुआ है। इस सबके बावजूद वह डाक्टर की बात मानना, काउंसलर के पास जाना और दवा लेना टाल रहा था। उसने खुद बताया था और उसके मैसेजेस से भी पता चला था कि वह इधर पीने ज्यादा लगा था। ये मेरे लिए चिंता की बात थी लेकिन अपने घर में बैठे हुए उसके लिए कुछ भी नहीं कर सकती थी।

    मेरी भी सीमाएं थीं। मैं अब हर बार भागकर उसके पास नहीं जा सकती थी, उसे डाक्टर के पास ले जा सकती थी, दवा दिला सकती थी, लेकिन हर बार उसे दवा खिला तो नहीं सकती थी। उसका अपना घर बार था और मेरा अपना घर बार था, जैसा भी था, था तो सही।

    मुझे हर समय डर लगा रहता कि उसे कहीं कुछ हो न जाए। मैं ही पिछली बार उसे साइक्रियाटिस्ट के पास ले गयी थी लेकिन इस बात को भी दो बरस होने को आये थे। न उसका पीना कम हुआ था और न ही दवा लेना रेगुलर हुआ था और न ही उसकी हालत सुधरी थी।

  • कई बार विनय मुझसे इस तरह व्यवहार करने लगता, मानो मैं उसकी ब्याहता हूं और मुकुल उसका रकीब है, और मेरा अनचाहा प्रेमी है। यह सब सोच कर मुझे तकलीफ होती कि असल में तो मैं मुकुल से बेईमानी करके उसका साथ दे रही हूं लेकिन विनय यही मान कर चलता था कि मैं उसके साथ ही बेईमानी कर रही हूं और उसे पूरा समय क्यों नहीं देती। मैं उसके समय में से समय चुराकर मुकुल को क्यों दे रही हूं। वह बिल्कुल नहीं चाहता था कि मैं मुकुल को उसका वाजिब हक दूं। मैं बेशक तन मन से विनय के प्रति पूरी तरह से समर्पित थी लेकिन यह कभी भी संभव नहीं था मैं अपना घर बार छोड़कर उसके पास रहने के लिए चली जाती या वह अपना घर छोड़ छाड़ कर मेरे पास रहने के लिए चला आता। हम दोनों शादीशुदा थे और अपने अपने पार्टनर, अपने-अपने परिवार, अपने-अपने समाज से बेईमानी करके एक दूसरे से जुड़े हुए थे। एक दूसरे को समय दे रहे थे। बेशक हम दोनों ही अपने अपने पार्टनर की तुलना में एक दूसरे को बेहतर तरीके से समझते थे और बेहतर केयर भी कर रहे थे, इसके बावजूद विनय मुझ पर हमेशा एकाधिकार चाहता और उस तरह से व्यवहार भी करता। जबकि मैंने कभी यह नहीं चाहा वह अपने बीवी बच्चों को कम समय दे, उन पर कम ध्यान दे और उनकी देखभाल न करे। मैं हर बार उससे उसके परिवार के बारे में, बच्चों के बारे में पूछती थी, उनकी बेहतरी के बारे में उससे कहती थी लेकिन विनय न जाने किस मिट्टी का बना था, मुझसे ही उलझने लगता कि हमारे पास मुलाकात का थोड़ा-सा ही समय होता है और उसमें भी तुम मेरी बीवी का जिक्र करने लग जाती हो। उसके लिए जो कुछ करना है, मैं कर लूंगा। ये तुम्हारी चिंता नहीं है।

  • थप्पड़ मारने की वह हरकत भी सिर्फ इतनी सी बात पर थी कि मैं फेसबुक पर या व्हाट्सएप पर इतने लोगों से संपर्क क्यों करती हूं और मेरा फोन क्यों इंगेज रहता है। या देर रात तक व्हाट्सअप ऑन क्यों रहता है। एक दिन पहले तक ऐसा कुछ भी नहीं था। सब कुछ सामान्य चल रहा था। हमने पिछली रात को अच्छे मूड में गुड नाइट की थी और रोजाना की तरह बेशक रूटीन ही सही, बातें की थी। सुबह उसका फोन आया था तो सामान्य बातें ही होती रही थीं कि मुकुल चले गये क्या और बन्नी तो स्कूल गया होगा। मुझे नहीं पता था कि वह मेरे घर के दरवाजे पर ही खड़़ा मुझसे बात कर रहा है। अभी मुझे उससे बात किये दो मिनट भी नहीं हुए थे कि वह ड्रांइग रूम में मेरे सामने खड़ा था। उसकी कॉल पूरी हो जाने के बाद मैं मोबाइल की सफाई में बिजी हो गयी थी और काम वाली मेड वहीं पोंछा लगा रही थी। सुबह का यही वक्त होता है जब मैं मोबाइल में सफाई का काम कर पाती हूं। पचीसों की संख्या में आये गुड मार्निंग संदेश, फूल पत्तियां और चाय के प्याले स्क्रीन से हटाने के लिए समय मिल पाता है। नौकरानी अपनी सफाई करती रहती है और इतनी देर में मैं मोबाइल की सफाई कर लेती हूं।

    ऐसे कैसे हुआ कि मुझे गेट खुलने और बंद होने की आवाज ही नहीं आयी। मेरा सारा ध्यान मोबाइल पर था। तभी वह आया और आते ही सोफे पर मेरे एकदम नजदीक बैठ गया। वह हमेशा ऐसा ही करता रहा है कि पूरे कमरे को छोड़ कर मुझसे सट कर बैठेगा। लेकिन उस वक्त उसने ये भी नहीं सोचा कि काम वाली वहीं काम कर रही है और क्या सोचेगी। मैं उसके इस तरह से अचानक आ जाने से खुश ही हुई थी। वह छठे छमाहे इस तरह बिना बताए आता रहा है और हमने हमेशा बहुत ही अच्छा वक्त एक साथ गुजारा है। मैं विनय को देख कर मुस्कुरायी और उसके लिए जगह बनाने के लिए सरकी तो उसने मेरे हाथ से मोबाइल छीन लिया। स्क्रीन लॉक था। मैं हमेशा मोबाइल लॉक ही रखती हूं और वह भी इस बात को जानता है। उसने बड़ी उखड़ी हुई आवाज में मुझसे मोबाइल का पासवर्ड मांगा। मैंने पासवर्ड बताने के बजाये उसके हाथ से मोबाइल ले कर अनलॉक कर दिया।

    वह पहले भी कई बार मेरा मोबाइल चैक करता रहा है और हर बार मोबाइल चेक करने के बाद रख देता और नाराजगी जतलाते हुए कहता कि कितनी बार कहा है कि फेसबुक के इन लौंडे लपाडों से अपने आपको दूर रखा करो लेकिन मेरी मानती कहां हो। हर बार मेरे पास इस बात का कोई जवाब नहीं होता था। मेरी फ्रेंड लिस्ट को वह लौंडे लपाड़ों की बिरादरी कहता था। मैं कभी भी उसके इस कमेंट का जवाब नहीं देती थी और बात वहीं पर खत्म हो जाया करती थी। ये बात भी थी कि मैंने कभी उसका मोबाइल उठाया तक नहीं थी।

    इतने में नौकरानी विनय के लिए ट्रे में पानी ले आयी। विनय ने मोबाइल से नजरें हटाए बिना गिलास ले कर मेज पर रख दिया। अचानक उसके चेहरे की रंगत बदली। मैं हैरानी से देखती रह गयी कि उसके चेहरे की रंगत बदलती चली जा रही थी। तीन चार मिनट के भीतर ही उसका चेहरा काला पड़ चुका था। ये मैं पहली बार देख रही थी। तभी रूखी आवाज में पूछा था उसने – कौन है ये।

    मैंने खुद को संयत बनाते हुए मोबाइल में देखने की कोशिश की कि किस ऐप पर किसके बारे में पूछ रहा है। मैसेंजर का चैट बॉक्स खुला हुआ था और सामने रवि दत्त की चैट थी। बेशक मेरा एक भी जवाब नहीं था। सब पुराने संदेश थे और विनय जिस संदेश को पढ़ कर मुझसे पूछ रहा था वह भी तीन चार दिन पुराना था। पता नहीं डिलिट होने से कैसे रह गया। रवि दत्त पुराना मित्र था और कई बरसों से मेरे परिचय में था। मेरे मना करने या जवाब न देने के बावजूद कई बार डीयर और आइ लव यू वगैरह लिख दिया करता था। मैंने उसे कभी ब्लॉक या अनफ्रेंड नहीं किया था क्योंकि वह एकदम अजनबी नहीं था और कभी भी डीयर या आइ लव यू से आगे नहीं बढ़ा था। कई बार अच्छी शायरी शेयर कर दिया करता था।

    वैसे देखा जाये तो आइ लव यू शब्द बेशक फेसबुक पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल किये जाने वाले शब्द थे लेकिन वे अपना अर्थ पूरी तरह से खो चुके थे। इन शब्दों का कोई अर्थ नहीं था। न कहने वाले के लिए और न ही सुनने वाले के लिए।

    और सच तो ये भी था कि मैं कभी भी न तो उसके मैसेज पढती थी और न ही जवाब ही देती थी। ऐसे कई लोग थे मेरी फ्रेंड लिस्ट में जिनके मैसेज मैं नहीं पढ़ती थी। मेरी किस्मत खराब थी कि विनय ने वही मैसेज खोल कर पढ़ लिया था। इससे पहले कि मैं कुछ सफाई दे पाती, हालांकि उसकी कोई जरूरत नहीं थी, विनय ने अगला फरमान जारी कर दिया कि इसका फोन नंबर दो। मैं बात करूंगा। इसकी हिम्मत कैसे हुई तुम्हें आइ लव यू लिखने की।

    अब मैं भी विनय के इस व्यवहार को ले कर परेशान होने लगी थी कि वह कर क्या रहा है। ठीक है, मैं शादी से पहले से ही उसकी प्रेमिका हूं और वह मेरे सारे सच झूठ मुकुल से ज्यादा जानता है लेकिन अचानक इस तरह से आना और मोबाइल मांग कर मेरे सारे एकाउंट चैक करना मैं समझ नहीं पा रही थी। वह अभी भी रवि दत्त का मोबाइल नंबर मांगने की रट लगाये बैठा था।

    मैं तब तक उसके पास से उठ कर सामने वाले सोफे पर बैठ गयी थी। काम वाली अभी भी ड्रांइग रूम की सफाई कर रही थी। वह कई बरसों से मेरे घर पर काम कर रही थी और विनय को उसने पहली बार देखा था। बार बार रवि दत्त का नंबर मांगने और मेरे मना करने पर वह अचानक उठा था और पलक झपकते ही मेरे गाल पर एक के बाद एक, दो थप्पड़ जड़़ दिये थे। मैं अवाक रह गयी थी।

    ये क्या कर डाला विनय तुमने। एक बार तो सोचा होता कि तुम क्या कर रहे हो। तभी विनय ने मोबाइल जोर से दीवार पर दे मारा था और कमरे से बाहर हो गया था। मेरी रुलाई छूट गयी थी। दोनों हाथों से चेहरा दबाये भाग कर बेडरूम में चली गयी थी। देर तक रोती रही थी। इतना अपमान। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि विनय इस जरा सी बात पर मेरे साथ ऐसा भी कर सकता है।

    ये हमारी आखिरी मुलाकात थी। और आखिरी संवाद।

    ***