मछली और किनारा Manjeet Singh Gauhar द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

मछली और किनारा

एक बार एक मछुआरा मछलियों को पकड़ने  नदी के किनारे बहुत समय से बैठा हुआ था, लेकिन उसके हाथ एक भी मछली नही आई। और वो निराश होकर वहाँ से चला गया।

अब ये सब देखने के बाद किनारे ने मछली से कहा कि देखा कैसे वो तुम्हें पकडने में नाकामयाब रहा। और इसका कारण ये कि मैने उस मछुआरे को अपनी तेज़ लहरों से डरा दिया, जिससे कि वो पानी के अन्दर नही आया और इस तरह मेरी वजह से तुम्हारी जान बच गयी।

मछली बोली-  ये सब तो तुम्हें करना ही था, क्योंकि  हमारी वजह से तुम्हारा वज़ूद है।

ये बात किनारे को थोडी अजीब लगी। और उसने मछली से पूछा कि ' ऐसा क्यों '?

मछली ने कहा ' कि पानी हमारा अच्छा दोस्त है। और पानी से ही ये नदी, तालाब, व समुंद्र हैं जिसके तुम एक बहुत ही छोटे और मामूली से हिस्से होते हो। तुम्हारी क्या औक़ात है कि तुम मछली जाति की जान बचा सको।

किनारे को मछली कि ये बात बहुत बुरी लगी। उसने मन ही मन में दृंड़ निश्चय किया कि कुछ भी करके इस मछली का घमंड तोडना है।

समय अपनी रफ़तार से चल रहा था।  कुछ ही दिनों बाद इत्तफ़ाक से वही मछुआरा फिर उसी नदी में मछली पकडने के लिए किनारे पर आ खडा हुआ। लेकिन इस बार भी लहरें बहुत बडी और तेज़ी से आ रही थीं।
अब किनारे को अपनी बेज़्जती याद आ गयी, जो मछली ने कुछ ही दिन पहले की थी। और उसने सोचा कि क्यों ना लहरों को थोडी देर तक शान्त कर दूँ तो ये मछुआरा पानी में जाकर इन मछलियों बडी ही अासानी से पकड़ सकेगा। इस तरह नदी साफ़ भी हो जाएगी और मेरा बदला भी पूरा हो जायेगा।..... किनारे ने ठीक वैसा ही क्या जैसा वो सोच रहा था।
अब वो मछुआरा नदी में उतरकर सभी मछलियों को पकड़कर ले गया। बस एक वही मछली उस नदी में बची जिसने किनारे को बेज़्जत किया था।

अब वो मछली किनारे के पास आयी और किनारे से पूछा ' कि तुम्हारे होते हुए तालाब की सारी मछलियों को कोई कैसे ले गया '।

किनारे ने कहा कि ' कोई ! कोई नही, वही इन्सान ले गया है जो पहले भी एक बार आ चुका हूँ यहाँ। और जो पहले तुम्हें पकड़ नही सका, क्योंकि मैने नही उसे ऐसा करने दिया।

अब मछली को अपने आप बहुत पश्चाताप हुआ कि उस दिन मुझे ये सब नही कहना चाहिए था।... मछली अब किनारे से क्षमा-यातना की।

तब किनारे ने कहा कि ' तुमने कहा था ना कि हम किनारों का कोई वज़ूद नही होता। मैं तुम्हें बताता हूँ कि मेरा वज़ूद क्या है " बग़ैर मुझसे मिले कोई भी तुम तक नही पहुँच सकता।" क्योंकि बिना बाप की इज़ाजत के कोई उसके बच्चों को हाथ नही लगा सकता।'
        
                               शिक्षा
प्रत्येक व्यक्ति का अपना हुनर होता है, अपना महत्व होता है।।

                      मंजीत सिहं गौहर