बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा - 8 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा - 8

बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 8

मैंने किसी को ना बताने का वादा करते हुए कहा ‘मगर बिल्लो एम. पी. का चुनाव आसान नहीं है। किसी बड़ी पार्टी से टिकट मिलने पर भी जीतना आसान नहीं होता। टिकट मिलना ही अपने-आप में बड़ी टेढ़ी खीर है। महिलाओं के लिए तो यह खीर कई गुना ज़्यादा टेढ़ी होती है। बड़े नेताओं द्वारा टिकट देने के नाम पर महिला नेताओं के यौन शोषण की ना जाने कितनी घटनाएं सामने आती रहती हैं।’ बिल्लो के चेहरे पर मेरी इस बात के साथ ही कठोरता भी आ गई। कुछ देर चुप रहने के बाद बोली। ‘जानती हूं। बहुत अच्छी तरह जानती हूं। टिकट देने के लिए नेता औरत का शरीर ही नहीं नोचते अगर सिर्फ़ ऐसा होता तो आधी टिकटें औरतों के पास हों। क्योंकि तमाम तो इसके लिए खुद ही बिछ जाती हैं। लेकिन नेता शरीर के साथ-साथ नोटों की गड्डियां भी बक्सा भर मांगते हैं। औऊर हम दोनों के लिए तैयार हैं’ बिल्लो की इस बात ने मुझे जबरदस्त शॉक दिया।

मैंने चौंकते हुए कहा ‘क्या! बिल्लो टिकट के लिए पैसा तक तो समझ में आता है। लेकिन इसके लिए तुम उन कमीने नेताओं के सामने अपने तन को भी डाल दो यह...।’ बिल्लो बीच में ही हंस पड़ी। बोली ‘बहुत अनाड़ी हो। बिल्लो को घंटा दो घंटा में ही समझ लोगो। अरे बिल्लो जब जवानी में तन की आग को थामें रही। उसे कभी भभकने नहीं दिया। किसी की छाया नहीं पड़ने दी तो अब ई चौवालीस-पैंतालीस की उमर में कहा भभकने दूंगी। कहां किसी को छूने दूंगी।’

मैंने कहा ‘मैं तन की आग-वाग की बात नहीं कर रहा। टिकट के लिए नेताओं के सामने...। ‘सुनो..सुनो तुम गलत समझ रहे हो। हमारी बात तो पूरी सुनो।’ मैंने कहा ‘ठीक है बताओ।’ वह बोली ‘देखो मैं अपने को उनकेा सौंपने नहीं जा रही। पैसा तो देना है। वह तो दूंगी। इसके साथ ही उनको औरत भी चाहिए तो वह भी दूंगी। मगर खुद को नहीं। उनको औरत चाहिए, मिलेगी। मगर कोई और होगी। जब बोरों में नोट दूंगी। तो उसी तरह थोड़े नोट और ढीले करूंगी। तो जितनी कहेंगे उतनी औरतें उनके सामने डाल दूंगी।’

बिल्लो की बात सुनकर मैं उसे आंखें फाड़ कर देखता रहा तो वह बोली ‘ऐइसे का देख रहे हो। अब तक ऐइसे-ऐइसे रास्तों से गुजरी हूं कि अब बिना धोखा खाए किसी भी रास्ते से कैसे निकला जाए यह सब आ गया है।’ मैंने कहा ‘वो सब तो ठीक है, लेकिन कई बार तो यह भी होता है कि यह सब करने के बाद भी टिकट ही नहीं मिलता। तब आदमी खास कर औरत कह भी नहीं पाती कि उसने कितना दिया, क्या-क्या किया? बिल्लो ने कहा ‘हां इस बात का भी पता है।’ ‘तो इस समस्या का क्या हल निकालोगी? किसी पार्टी से कोई संपर्क हुआ क्या?’

‘जब बनने की सोची तो समस्या का समाधान भी निकाला, और सबसे मज़बूत पार्टी को भी साध रखा है।’ बिल्लो की बातें जैसे-जैसे आगे बढ़ रहीं थीं वैसे-वैसे उसका सख्त रूप भी सामने आ रहा था। मुझे लगा कि मैं जितना इसके बारे में समझता हूं। जितना अनुमान लगाता हूं यह उससे हर बार चार क़दम आगे ही निकलती है। मैंने आखिर पूछ ही लिया समाधान, और पार्टी के बारे में तो उसने सबसे मजबूत पार्टी का नाम लेते हुए कहा ‘जब शामिल हुई इस पार्टी में अपनी ताकत का अहसास कराती हुई कि कितने लोग हैं हमारे साथ, तभी यह भी गारंटी ली कि मुझे टिकट चाहिए ही चाहिए। फिर उस कर्ताधर्ता को टटोला जिसकी सबसे अहम भूमिका होगी टिकट वितरण में। ऊपर से बड़ा साफ-सुथरा, बडा़ सख्त दिखने वाले इस नेता को जब और ज़्यादा करीब से जानने के लिए कि टिकट के मामले में क्या-क्या गुल खिलाएगा। किस-किस हद तक जाएगा तो उसकी स्वच्छ छवि, सफेद कपड़ों के पीछे उसकी गंधाती, बजबजाती काली छवि नजर आई।

दो चार मुलाकात ही हुई थी, कि असली चेहरा दिखाई दिया। लार टपकाते हुआ जब मिमियाया, टिकट की दुहाई दी तो मैंने कहा ‘आपको मैं गड्डियों के भोग के साथ-साथ खूबसूरत जवान औरतों का भी भोग लगवाऊंगी। मुझ बुढ़िया में क्या रखा है? दबाव उसने बहुत बनाया लेकिन हमने किया वही जो तय किया था। कुछ ही दिन बाद वह प्रदेश प्रभारी के नाते बनारस पहुंचा। मैं वहीं जाकर फिर मिली। वह मिलते ही भुनभुनाया ‘‘तुमने धोखा दिया। भूल जाओ टिकट-विकट।’’ मैंने उसे मन ही मन गाली दी कि अरे नसपिटऊ, दहिजरऊ एतना खर्च करे के बाद कैइसे भूल जाई, कैसे छोड़ि देई तोंहैं। मैंनेे तुरंत कहा ‘नहीं, ऐसा नहीं है। मैं जौनपुर से यहां आपके लिए सारी व्यवस्था कर के ही आई हूं।’ इतना कहना था कि उसकी बांछें खिल गईं।

मगर था वह बहुत शातिर। जिस होटल में था वहां तैयार नहीं हुआ। फिर एक दूसरी जगह व्यवस्था की। वहीं जब शरऊ दारू और लौंडिया के नशा में पगलाए हुए थे तो उसकी पिक्चर भी बनवा लिए। जब वो मुझसे ये सब बतिया रहा था तो मोबाइल की रिंकॉर्डिंग ऑन करके अपने ब्लाउज में छिपाए रहै। बड़ा मुंह डाल कर बात कर रहा था। हमने कहा डाल जितना मुंह डालेगा उतना अच्छा रिकॉर्ड होगा।

ऐसे ही सात-आठ बार की उसकी कुंडली बनाए के रखे हई। टिकट देते समय ऊ तनको एहर-ओहर हिलेन तो हम उन्हीं के नहीं ई प्रदेश में उनकी पार्टियो की भी जिंदगी बरबाद कर देंगे। सारा खेल बिगाड़ के रख देब। बस ई टीवी चैनल वालन को एक-एक ठो डी.वी.डी. भेजना भर रहेगा। बाकी काम तो ई चैनल वाले हफ्तों चीख-चीख के खुदै इनकी दोगली सफेदी उतार देंगे।

रहा हमारा टिकट तो उस समय हमें उसकी जरूरत ही नहीं रहेगी। निर्दलीय लड़ेंगे। मुद्दे को भुनाएंगे कि ई सब महिलाओं के शोषक हैं। एक बेसहारा औरत का शोषण करने की कोशिश की। औरतों को अपने स्वाभिमान, इज्जत, अपने अधिकारों के लिए खुद ही लड़ना होगा। सारे मर्द एक से हैं। सारी पार्टियां एक सी हैं। ऐसे ना पूरा सही अगर महिलाओं का आधा वोट भी खींच लाए तो हमारी जीत पक्की है। पूरे क्षेत्र की वोटर लिस्ट हम खंगाल चुके हैं। हमें अपनी गणित पर पक्का भरोसा है। जीतेंगे जरूर।’

इतना कह कर बिल्लो ने लंबा कश लेकर बहुत सा धुंआ उगल दिया और काफी कुछ को अंदर ही जज्ब कर लिया। इसके उलट वो बातें एक भी जज्ब नहीं कर रही थी। उसके इस रहस्योद्घाटन ने मुझे फिर अचंभित किया। कि आखिर ये औरत है क्या? ये कहां से कहां पहुंच गई है? क्या-क्या कर चुकी है? मैं बड़े आश्चर्य से उसे देख रहा था। मुझे इस बात का सबसे ज़्यादा आश्चर्य था कि महिला के नाते इसने इतनी परेशानियों का सामना किया है लेकिन फिर भी एक महिला होकर अपने टारगेट को पाने के लिए महिला ही को साधन बना रही है। उसी का सेक्सुअल हैरेसमेंट करवा रही है।

मेरा मुंह आधा खुला हुआ था। मुझे इस तरह देख कर वह खिलखिलाई ‘का हो ऐइसे का देख रहे हो?’ मैं आश्चर्य भाव से वापस लौटा। पूछा ‘बिल्लो वाकई दुनिया ही नहीं, तुम भी, हम भी, सब कहां से कहां पहुंच गए हैं। ये नेता, होटल, औरतों का इंतजाम, रिकॉर्डिंंग वह भी वाराणसी में। यह सब तुमने कहां से सीखा? कैसे कर ले रही हो यह सब?’ ‘तुमहूं का बात करत हो। ई सब आज कल कऊन बड़ा काम है।’ फिर बिल्लो ने भतीजे के योगदान का जिक्र किया।

कहा ‘औरत-फौरत का इंतजाम वही के सहारे है। मैं बताती रहती हूं, वह वैसा ही करता रहता है। उसे मैं अपने अनुभवों से इतना तैयार कर देना चाहती हूं कि वो भी एक दिन सांसद का चुनाव लड़ने लायक हो सके। पहले उसको विधायक बनाऊंगी। काहे से हमने देखा कि ई पढ़ने-लिखने में कुछ खास है नहीं। बी.ए., एम. ए. करने इंजीनियरिंग, डॉक्टरी का कोई फायदा नहीं। बेरोजगारी के इस युग में नौकरी कहीं है ही नहीं। नौकरी वही पा पा रहे हैं जो पढ़े लिखे मां विरले हैं। बाकी तुम देख ही रहे हो कि पी. एच. डी. किए लोग सफाई कर्मी के लिए परीक्षा दे रहे हैं।

महाराष्ट्र में एक पी. एच. डी. किए सफाई कर्मी को ट्रांसफर के मुद्दे पर बर्खास्त कर दिया। अखबार में फोटो सहित पढ़ा था। तो हमने कहा काम धंधा करो, चुनाव लड़ो अब यही बचा है। मैं जहां सांसदी का अगला चुनाव लड़ूंगी वहीं भतीजा विधायकी का चुनाव लड़ेगा। मगर ई जो एक साल बाद होए वाला है इसको छोड़ कर। इसके बाद वाला यानी छः साल बाद। हम साफ कह दिए हैं तब तक जै लड़का-बच्चा पैदा करे का हो कर लो। राजनीति में आए के बाद लड़का-बच्चा के चक्कर में कमजोर ना पड़ जाओ।’

मैंने कहा ‘वाह बिल्लो, बड़ा लंबा, दूरगामी प्रोग्राम बनाया है। मगर इस रास्ते पर आज कल तो बड़े खतरे हैं। कैसे निपटोगी?’ ‘जैसे बाकी चीजों से निपटती आ रही हूं, वैसे ही यहू से निपट लेब। मैं हर तरह से तैयारी कर रही हूं। और करवा भी रही हूं।’ टारगेट को लेकर औरतों को यूज करने, भतीजे से सारा इंतजाम कराने की बात मुझे बहुत पिंच कर रही थी कि यह गंवई दुनिया की होकर भतीजे से इस बारे में कैसे बात करती है।

उसकी बीवी एतराज नहीं करती क्या ? मैंने पूछा तो हंस कर बोली ‘शहर के होके तुम भी कैसी बात कर रहे हो? रिश्तों का चाबुक हमने बहुत सहा है। भतीजा उसकी बीवी और हम एक दोस्त की तरह बतियातें हैं। सब मिलके तय करते हैं। सब खुल कर बतियातें हैं तो कोई बात छिपाते-लुकाते नहीं। वो तुम लोग का कहते हो कि पूरी पारदर्शिता बनाए रखते हैं।’ कह कर हंस दी। मैं भी हंसता हुआ उसे देखता रहा।

मैंने सोचा यह जितना बता रही है। जितना मैं देख रहा हूं, उस हिसाब से इस एरिया में गिने-चुने ही इसके सामने टिक पाते हैं। खेत बेचने की ज़िम्मेदारी रिश्तेदार के बजाय इसी को दे दूं। मैंने बात बढ़ाई। उसके ऐलोवेरा की खेती का भी प्रसंग उठाया तो वह कुछ देर बाद बोली ‘देखो मैं तो यही कहूंगी कि खेत बेचो ही नहीं। इससे जन्मभूमि से रिश्ता बना रहेगा। आते-जाते रहोगे। अरे घूमने-फिरने जाते ही रहते हो। परिवार को लेकर एक बार यहां भी आ जाया करो। रही बात पैसों की तो यही कहूंगी कि बेच कर एक बार पैसा पाओगे खत्म कर दोगे। ऐसे हर साल बढ़िया पैसा मिलेगा। खेत की कीमत दिन पर दिन बढ़ेगी ही। दोहरा फायदा है। हां अगर बेचना तय कर लिया है तो ठीक है मैं करा दूंगी।’

बिल्लो की बात में मुझे दम नजर आया। दूसरी बात कि बिल्लो मुझे बराबर इतना मोहे जा रही थी कि मेरे मन के किसी कोने में यह बात उठ रही थी कि अगर कोई जरिया यहां आने का बन जाए तो अच्छा ही है। शिखर भी कह रहा था कि यहां से चला जाएगा। फिर तो कोई बहाना ही नहीं बचेगा। अगर मैं खेत ना बेचूं, ऐलोवेरा ही को ट्राई करूं। शिखर को भी तैयार करूं। पैसे मिलने लगेंगे तो वह भी रुकेगा जरूर। उसके रुकने से आसानी रहेगी। वह कह ही रहा था कि घर का कोई आता-जाता रहता तो भी वह यहीं रहने की सोचता।

इन दो बातों को सोच कर मैंने निर्णय लेने में देरी नहीं की। तुरंत कहा ‘बिल्लो। तुम्हारे, प्यार, व्यवहार, तुम्हारे काम को जानने के बाद मेरे मन में तुम्हारी जो खास तसवीर बनी है, वह मुझे रोक रही है। मोह रही है। मेरा मन भी कह रहा है कि अब कुछ ऐसी व्यवस्था करूं कि यहां से रिश्ते का जो पेड़ सूख गया है उसे फिर हरा-भरा करूं। और यह तभी होगा जब मैं तुम्हारी यह सलाह मान लूं कि खेत ना बेचूं, खेती करवाऊं, आता-जाता रहूं। इस लिए अब यह तय है कि खेत नहीं बेचूंगा। ऐलोवेरा में जैसा पैसा बता रही हो मैं चाहूंगा कि वही करवाऊं। उसमें ज्यादा झंझट नहीं है। माल के कंपनी तक जाने पेमेंट वगैरह की व्यवस्था तुम देख लोगी तो मुझे आसानी रहेगी, नहीं किसी और फसल के बारे में सोचना पड़ेगा।’

पहली बार बिल्लो मेरी बातों से कुछ हैरानी सी दिखाती हुई बोली ‘तुम तो हमार करेजवा ही निकाल लिए हो। इससे बढ़ियां और क्या होगा? कम से कम एक जने तो यहां से संबंध बनाए रहोगे। तुम ऐसा करोगे तो शिखर भी यहां से छोड़कर जाएगा नहीं। नहीं तो पूरा कैथान ऐसे भी खाली हो चुका है। मगर एक बात कहूं कि जिम्मेदारी शिखर को ही दो। गांव का मामला है। बात फैल जाएगी कि हमने तुम्हें भड़का कर परिवार से अलग कर दिया। सारी प्रॉपर्टी पर कब्जा कर लिया। इसलिए ज़िम्मेदारी उसी को दो। बाकी मैं पूरी निगाह रखूंगी। कहीं गड़बड़ की तो तुरंत ठीक कर दूंगी।

वैसे उसकी हिम्मत ही नहीं। फिर उसे भी तो इस काम के लिए मुझ पर ही निर्भर रहना है। समझे। मगर सच-सच बताओ तो एक बात पूछूं।’ मैंने कहा ‘कैसी बात करती हो बिल्लो। तुमसे झूठ क्यों बोलूंगा? पूछो जो पूछना है।’ ‘तो बताओ कि ई जो निर्णय लिए हो इसमें मेरे प्यार, व्यवहार और मेरे मोहने का कितना हाथ है। और कितना हाथ खेतों का है। उसमें खेती कराने का है।’ कह कर बिल्लो हंसी फिर बोली ‘देखो सच-सच बताना। एकदम उहै तरह जैइसे बचपन में सारी बातें बताते थे।’

मुझे भी हंसी आ गई। मैंने कहा ‘बिल्लो तुम वाकई हर बात में इतनी मैच्योर इतनी समझदार हो गई हो इसके लिए मैं तुम्हारी जितनी तारीफ करूं उतना कम है। तुम्हारे इस रूप की मैंने कल्पना भी नहीं की थी। और जिस तरह तुमने पूछा है। जितना प्यार स्नेह दे रही हो उसके बाद तो मैं चाह कर भी कुछ छिपा नहीं सकता। झूठ बोलने की तो बात ही नहीं। मेरा जवाब इतना ही है कि मेरे निर्णय में सबसे अहम रोल, पहला रोल, तुम्हारे प्यार स्नेह का ही है। बल्कि इसी ने मुझे यह निर्णय लेने के बारे में सोचने की तरफ मोड़ा। दूसरा खेत या खेती कराने, या फायदे नुकसान की बात है तो उसका रोल तुम इतना ही मानो जितना की दाल में नमक।

मैं यही कहूंगा कि तुम्हारे प्यार ने मुझे अपनी जड़ से अपनी जमीन से सारे रिश्ते तोड़ने से रोक दिया। मुझे लगता है मेरे रुकने से शिखर भी रुकेगा। तुमने वाकई बहुत बड़ा काम किया है। मगर यह जरूर कहूंगा कि तुमने बचपन के इस रिश्ते को जो एक नई ऊर्जा, नई ताकत, नया रंग, नया रूप, नई उमंग दी है इसे और आगे बढ़ाते रहना। ठहरने रुकने मत देना।’ ‘यही सब तो तुमको भी करना है। तुम भी पीछे मत हटना। ‘‘सूरत’’ घर लौटते ही भूल मत जाना। मुझे डर यही कि जाते ही बिजनेस, बीवी, बच्चों में ये सारी बातें भूल ना जाओ। मेरी बातों का यह मतलब कतई ना निकालना कि बीवी, बच्चों, बिजनेस को भूल जाओ। यहां-वहां सब को याद रखो। सब को गले लगाए रहो।’

‘बिल्लो यह भी कहने की बात है क्या? जिस बात की कल्पना भी नहीं की थी। वह डिसीजन मैंने लिया है तो मैं कैसे खुद पीछे हट सकता हूं। मुझे तो अब दोहरी खुशी मिली है। और हर कोशिश यही करूंगा कि मिलती ही रहे।’

‘भगवान चाहेगा तो यही होगा। और तुम्हें अभी से बता दे रही हूं कि अपनी बिल्लो, अपने भतीजे के चुनाव में तुम्हें अब आना जरूर है। सिर्फ़ आना ही नहीं है। अपनी पूरी ताकत भी लगानी है। मैं तुम्हारे पूरे परिवार का नाम यहां की वोटर लिस्ट में डलवाऊंगी। सब का राशन कार्ड वगैरह सब बनवाऊंगी। तुम्हारे हिस्से का जो मकान यहां पड़ा है उसे भी ठीक करवा दूंगी। तुम पैसा आगे पीछे देते रहना। उसके लिए तुम्हें क्षण भर को भी अलग से समय निकालने की जरूरत नहीं।’

‘तुम जो कहोगी वो करूंगा बिल्लो।’ ‘अच्छा।’ बिल्लो ने बड़े भेद भरे अंदाज में कहा। ‘हां इसमें तुम्हें शक नहीं करना चाहिए।’ ‘सोच लो’ ‘अरे इसमें सोचने वाली क्या बात है?’ ‘हूं... तो बचपन में जैइसे हमरे पास बैइठते थे, वैसे ही मेरे पास यहां इधर आकर बैठो।’ बिल्लो ने ठीक अपनी बगल में हथेली रखते हुए कहा।

बिल्लो की यह बात मेरे लिए अप्रत्याशित थी। मैं एकदम सकपका गया। चुपचाप एकटक उसे देखता रहा। उसके चेहरे पर अपनी बात कहते-कहते गहन गंभीरता छा गई थी। मैं करीब सात फिट की दूरी पर बैठा था। लेकिन वहां से भी देख रहा था कि बिल्लो की आंखें भरी हुई थीं। मैं उसके चेहरे को बिल्कुल समझ नहीं पा रहा था कि आखिर बिल्लो के मन में चल क्या रहा है? यह क्या चाहती है? मुझे चुप देख बिल्लो बोली।

‘क्यों, डर गए। हमरे पास बैइठने में डर लग रहा है। बचपन से ही तुम डरपोक थे। तब भी जब बैठते थे मेरे पास तो चौंक-चौंक कर देखते रहते थे हर तरफ कि कोई देख तो नहीं रहा। एक तरफ चौंकते रहते थे दूसरी तरफ ज़्यादा से ज़्यादा सटने की कोशिश भी करते थे। तुम्हारी इस हरकत पर मैं मन ही मन हंसती थी। मगर इस समय तो हिंआ देखे वाला केओ नाहीं बा। फिर काहे एतना डरात हैअ। कुछ बोलअ। बचपन वाला गिफ़्ट मुझे उसी समय को जीते हुए उसी समय की तरह से हाथों में थमाया था। कितना निश्छल था तुम्हारा वह गिफ़्ट, तुम्हारा तरीका। का वैइसे ही बचपन की ही तरह बैइठ नाहीं सकते। कुछ वैसी ही बातें नाहीं कर सकते जो तब किया करते थे।’

बिल्लो अब भी मुझे एकटक देखे जा रही थी। उसकी चमकदार आंखों में आंसू और भी ज़्यादा तेज़ चमक रहे थे। मेरे दिमाग में अब भी एक शब्द नहीं सूझ रहा था कि मैं उससे क्या कहूं ? उसके पास जाऊं कि नहीं। यह उचित होगा कि नहीं। मेरी चुप्पी को वह ज़्यादा देर नहीं सह पाई और बोल ही दिया। मगर खड़ी बोली में कहा ‘कोई बात नहीं। हमीं सब गड़बड़ कर बैठे। पहले ही की तरह कुछ बौरा गई तुम्हें देख के। हमें सोचना चाहिए कि अब बचपन बीत गया है। परिस्थितियां बदल गईं हैं। तुम शादी-शुदा हो। मैं भी। कहने को ही सही।

दुनिया यह कहां जानती है कि उस निठल्ले ने चुड़िहारिन और कई और आवारा बदमाश औरतों, शराब के सामने मुझे छुआ ही नहीं। आया ही नहीं मेरे पास। पहली रात भी उसी चुड़िहारिन के पास पड़ा रहा। हां तुम बीवी-बच्चे वाले हो। बचपन के साथ बचपन का रिश्ता भी खत्म हो गया। और हम बुढ़ौती में बचपन का रिश्ता निभाहनें चले हैं। लगता है बेवजह तुम्हें परेशान किया। चलो अच्छा बताओ, चुनाव में भाषण देना बहुत बड़ा काम है। और हमें ठीक से आता नहीं। तुम हमें भाषण देना कैसे सिखाओगे?’

इतना कहने के साथ ही बिल्लो ने साड़ी के आंचल से दोनों आंखें पोंछ लीं। फिर अपनी स्थिति को एकदम बदलने की कोशिश में बनावटी हंसी हंसते हुई बोली ‘हां भाषण देना सिखा पाओगे कि नहीं?’ बड़ी हिम्मत कर अब की मैं बोला-‘जो आदमी एक छोटी सी बात का जवाब ना दे पा रहा हो वह भाषण देना क्या सिखाएगा बिल्लो।’ इतना कहकर मैं उठा और उसके पास जाकर वैसे ही बैठ गया जैसे बचपन में बैठा करता था।

उसकी आंखों को मैंने देखा, वह फिर भरी थीं। मैंने उन्हें पोंछा। कहा ‘बिल्लो मेरी नजर में तुम आयरन लेडी हो। और आयरन लेडी की आंखों में आंसू कभी नहीं आते।’ फिर हम बड़ी देर तक बातें करते रहे। उस दौरान मैंने साफ-साफ देखा कि उस आयरन लेडी की भावनाएं उसका ह्रदय बाकी महिलाओं ही की तरह कोमल, निर्मल, फूल सा नाजुक है। मगर उसने जितनी बातें कीं वह किसी विकट संघर्षशील, जुनूनी, निडर, जीवट वाले मर्द के लिए भी एक चुनौती है। इतने दिनों में उसने खाद, बीज, मिट्टी के तेल, सरकारी राशन, किराना, कपड़े की दुकान के साथ-साथ साइकिल, टायर ट्यूब की दूकान चलवा रखी है। कपड़े की सबसे बड़ी दुकान उसी की है।

अच्छे खासे कस्बे का रूप ले चुके उस एरिया में उसने व्यवसाय की जो दुनिया बनाई थी उसके सामने वहां कोई दूसरा नहीं था। उसकी लठैतों की पूरी फौज थी। और दिन भर वह उनके साथ व्यवसाय की दुनिया संभालती थी। उसकी क्षमता उसका जुनून साफ कह रहे थे कि धर्म-जाति की राजनीति का वह शिकार नहीं हुई तो जल्दी ही सांसद भी होगी। उसका कड़कपन और करुणामय ह्रदय देखकर मेरे मन में आया कि तैंतीस नहीं आधे विधायक, सांसद, महिलाएं होनी चाहिए। इस से ताकत, सत्ता के मद में अत्याचारी बन गई नेता नगरी की छवि सुधरेगी। क्योंकि जब सत्ता की ताकत के साथ मद नहीं करुणा भी होगी तब ये तथा-कथित जनसेवक वाकई जनसेवक बन सकेंगे। इनको तैंतीस प्रतिशत आरक्षण वास्तव में इनके और जनता वास्तव में दोनों के साथ धोखा है।

जब ये आधी दुनिया हैं तो इनके लिए प्रधानी से लेकर सांसदी तक में आधा यानी पचास प्रतिशत आरक्षण ही न्याययोचित है। बाकी सब धोखा या अन्याय है। इस बात के साथ ही मेरे मन में आया कि बिल्लो इसी को मुख्य मुद्दा बना ले तो बड़े फायदे में रहेगी। जब उससे कहा तो उसने बात को हाथों-हाथ लिया। कहा ‘ये बचपन का साथ कुछ बड़ा कारनामा जरूर करेगा। इस बात से तो हम निश्चिंत हो सकते हैं।’

रात का पहला पहर जहां मेरे लिए तनावपूर्ण था कि बिल्लो अकेली है वहीं दूसरा पहर आश्चर्यजनक रूप से अद्भुत अकल्पनीय था। हालांकि इस पहर में भी हम और बिल्लो ही थे। मेरी अच्छी रात के गर्भ से मेरी सुबह भी बड़ी-प्यारी, बड़ी खूबसूरत पैदा हुई थी। मैं जब सुबह बिल्लो के प्यार स्नेह से भरी आवभगत से निकल कर शिखर के पास जा रहा था, तभी बिल्लो के भतीजे को सपरिवार वापस आते देखा। जीप में परिवार के साथ-साथ बिदाई में मिला अच्छा-खासा सामान भी दिख रहा था।

शिखर और चाचा मुझे मेरा इंतजार करते मिले। मैंने चाचा, शिखर के सामने ऐलोवेरा की खेती सहित अपना प्लान रखा तो चाचा तो खुशी-खुशी तैयार हो गए। खुशी इतनी कि जैसे उन्होंने जिस चीज की उम्मीद ही ना की हो वह ना सिर्फ़ मिल गई बल्कि बेइंतहा मिल गई हो। मगर शिखर इस शर्त के साथ तैयार हुआ कि जब तक यह सब मैं करूंगा तभी तक वह करेगा। और कम से कम चौथे महीने मैं अवश्य आऊंगा।

मैंने आंख मूंद कर उसकी शर्त मान ली। सोचा कि जब नकदी हथेली गर्म करने लगेगी तो यह शर्त अपने आप भूल जाएगा। बीच में एकाध बार इसको सूरत बुला कर शहरों में इनके जैसे पढ़े-लिखों की नौकरी, बिजनेस में क्या हालत है, ये खुद कहां ठहर पाएंगे इसका अहसास करा दूंगा। तब यह शहर के नाम से भागेगा। इसके बाद मैं पूरा दो दिन गांव में रुका। इसमें पूरा एक दिन बिल्लो के साथ अपने गांव के साथ-साथ कई और गांव घूमा। ये सारे गांव उसी संसदीय क्षेत्र में आते हैं जहां से बिल्लो ने चुनाव लड़ना तय किया था। इन गांवों में भी मैंने बिल्लो की अच्छी पकड़ देखी। वह सबकी प्यारी बिल्लो बुआ हैं। बच्चों, बड़ों, बूढ़ों, महिलाओं सबकी।

वह सबसे ऐसे मिलती मानों सब उसके ही परिवार के सदस्य हों। सब लगे हाथ अपने काम-धाम के बारे में भी उससे बातें कर रहे थे। मैंने उससे रास्ते में कहा भी ‘बिल्लो तुम तो लड़ने से पहले ही सांसद बन गई हो।’ वह हंस कर रह गई। बिल्लो तमाम जगह मेरा परिचय भी कराती रही। बाबा का नाम लेकर कि यह उनके पोता हैं। अगला पूरा दिन मैं शिखर के साथ घूमा। जितना समय मैं सारे गांव घूमा-फिरा उस दौरान मैं उन बहुत सी चीजों को नहीं देख पाया, जिन्हें मैं देखना चाहता था।

कोई बुजुर्ग मुझे खरहरा(अरहर की दाल के सूखे पेड़ों से बनी बड़ी झाड़ू) लेकर अपना दुआर बुहारता नहीं दिखा। ना ही दौरी, (बांस की पतली खपच्चियों से बनी बड़ी गहरी डलिया) झऊआ, मौनी, कठौती, कठौता, या कुश लेकर डलिया बनाती कोई महिला। ना ही शाम को बाहर खटिया पर बैठे, बतियाते लोग, बुजुर्ग। ना ही शाम को घरों के बाहर नादों में चारा खाते गाय, बैल या शाम होते ही गांव के बाहर से गांव में अपने खुरों से धूर (धूल) उड़ाता गाय गोरुओं का झुंड। गांवों में इनके खुरों से उड़ती धूल ही के कारण तो इस बेला को गोधुलि बेला भी कहा गया है। यह गाय गोरू सीधे अपने उन घरों के सामने नादों पर जाकर रुकते थे, जिन घरों के मालिक उन्हें बांधते थे।

इन बेजुबनों को रास्ता बताने की जरूरत नहीं पड़ती थी। यह अपने ठिकाने पर अपने आप पहुंचते थे। बचपन का जो कुछ भी मैं ढूंढ़ रहा था वह कुछ नहीं मिला। तिनकझांए भी नहीं मिला। बिल्लो के बाद उसी से मेरी ज़्यादा पटती थी। उसका तिनकझांय नाम उसके अतिशय तुनकमिजाजी स्वभाव के कारण पड़ा था। वह शराब और गांव की राजनीति का शिकार हो कई साल पहले ही अपनी जान गंवा बैठा था।

शिखर ने उसके बारे में और कुछ भी बताया जो अच्छा नहीं था।

बिल्लो मिली मगर उसमें भी बचपन की मासूमियत, अल्हड़ता ना मिली। दूसरे दिन वहां से चलते समय उससे फिर मिला था। उसने बड़े अपनत्व प्यार के साथ बिदा किया। शिखर मेन रोड तक छोड़ने आया था। उससे बिदा लेते वक्त मैंने बड़ा होने के अधिकार के साथ उसको काफी पैसे दिए कि ‘भाई मेरी तरफ से यह तुम सब के लिए है। आते वक्त मैं तुम सबके लिए कुछ लेकर नहीं आ पाया था।’ मन में यह बात जरूर आई थी, कि भाई तब हमारे-तुम्हारे बीच रिश्ते में इतनी मिठास इतनी मधुरता रह भी कहां गई थी?

मैंने जौनपुर रिश्तेदार के यहां पहुंचने से पहले उन सबके लिए बहुत सा गिफ्ट लिया था, कि जितना इन्होंने मुझ पर खर्च किया। उसका हिसाब बराबर कर दूं। कोई अहसान मुझ पर ना रहे। आखिर खेत बेचने से मना करने पर उनका कमीशन मर रहा था। मैं नहीं चाहता था कि उन्हें कोई नुकसान हो। मगर पूरे परिवार ने अपने व्यवहार से मुझे पानी-पानी कर दिया। गिफ़्ट के लिए साफ कहा कि ‘बहुत पैसा खर्च कर दिया। हमें बड़ा कष्ट हो रहा है।’ उनके आत्मीय व्यवहार से मैं भीतर-भीतर आत्मग्लानि महसूस करने लगा। बार-बार यह बात मन में उठने लगी कि सब एक से नहीं होते। आत्मीय रिश्तों का कोई मोल नहीं होता। उसे पैसों से नहीं तौला जा सकता।

रात को भी रिश्तेदार स्टेशन से तभी गए जब टेªन चल दी। उसी समय पत्नी का फ़ोन आ गया। बात कर के जब डिस्कनेक्ट किया तो मन में इस बात के आते ही मैंने पसीना सा महसूस किया उस एसी बोगी में भी कि बिल्लो के साथ पूरी रात बचपन के साथ और जो कुछ जिया उसे क्या नाम दूं? उसे सही कहूं कि गलत? या कि उस रिश्ते के बारे में ऐसा सोचना भी गलत है। और जब-जब पत्नी के सामने होऊंगा तब-तब खुद पर कितने घड़ों पानी को पड़ता महसूस करूंगा। तब मैं आत्मग्लानि को किस हद तक सह पाऊंगा ? यह रिश्ता मुझ पर क्या प्रभाव डालेगा? इसे अपनी एक आदर्श पत्नी के साथ धोखा कहूं या.... और अब तो बार-बार गांव आाना-जाना रहेगा। बिल्लो के गांव। भीष्म प्रतिज्ञा वाली बिल्लो के पास।

समाप्त