बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा
प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 6
शिखर ने आगे जो बताया उस हिसाब से ना तो उसकी पढ़ाई ऐसी थी कि उसे चपरासी से आगे कोई नौकरी मिल पाती ना ही कोई ऐसा काम जानता है कि उसके हिसाब से शहर में कुछ कर पाएगा। मुझे लगा कि यह बाप के बाद खेत, घर सब बेच-बाच कर चला जाएगा। शहर में कुछ कर पाएगा नहीं। और फिर एक दिन सड़क पर आ जाएगा।
यह सोचकर मैंने उसे समझाया कि ‘शहर में तुम्हारे लिए जितनी संभावनाएं हैं उससे कहीं बहुत ज़्यादा संभावनाएं यहीं भरी पड़ी हैं। जब बिल्लो यहां बंजर खेतों में गवारपाठा उगाकर ढेरों कमा सकती है तो तुम क्यों नहीं? फिर इस खेती में तो बाकी फसलों की खेती की तरह ना तो खेतों को बहुत तैयार करना पड़ता है। ना बार-बार सिंचाई का झंझट है। उपज पूरी की पूरी बिक जाने की गारंटी।’
इस पर शिखर खुलकर बोल पड़ा ‘भइया मैं भी शहर की चकाचौंध भरी लाइफ का मजा लेना चाहता हूं।’ मैंने समझाया कि ‘बिना पैसे के किसी भी लाइफ का मजा नहीं ले सकते। यहां तुम्हारे पास इतने साधन हैं कि आराम से बढ़िया कमाई कर सकते हो। फिर जब मन हो शहर जाओ। घूमो फिरो। शहर, देहात दोनों का मजा ले लो। शहर वाले दोनों का मजा नहीं ले पाते।’
शिखर ने फिर कहा कि ‘भइया परिवार का कोई एक सदस्य भी यहां रहता या बराबर आना-जाना बनाए रखता तब भी मैं हिम्मत करता। लेकिन आप सबके साथ-साथ घर के बाकी सब भी चले गए। आना-जाना छोड़िए, भइया लोग फ़ोन करना भी छोड़ दिए हैं। फ़ोन करने पर भी सीधे मुंह बात नहीं करते। बहनों का भी यही हाल है। ऐसे में अब मैं यहां बहुत अकेलापन महसूस करता हूं। मेरा जी घबराता है।
कैथान के जितने पट्टीदार अपने लोग थे उन घरों का भी यही हाल है। सब छोड़-छोड़ कर जा चुके हैं। वही लोग थोड़े बहुत बचे हैं जिनके पास वहां जाकर कुछ करने के लिए कोई साधन या फिर पढ़ाई-लिखाई भी नहीं है। दूसरे यहां इतनी गंदी राजनीति चल रही है, इतनी मार-काट है कि शांति से रहा ही नहीं जा सकता। आप एकदम अलग रहना चाहें तो भी संभव नहीं है। कोई ना कोई अपने गुट में अपने साथ करने के लिए इतना परेशान करेगा कि आपको एक में शामिल होना ही पड़ेगा। बवाल सिर पर मोल लेना ही होगा। या गांव को अलविदा कह कर कहीं और जाइए, नहीं तो हर तरफ से सब इतना नुकसान पहुंचाएंगे कि कहीं के नहीं रह जाएंगे।
बिल्लो बुआ भी इन्हीं सब से परेशान होकर राजनीति में कूद पड़ीं। मगर भइया सब तो बिल्लो बुआ नहीं हो सकते ना। फिर उनकी, भतीजे की जान को खतरा हमेशा बना ही रहता है। आपने देखा ही है कि दो चार बंदूकधारी उनको घेरे ही रहते हैं। सब उनको यहां का ऊमा भारती कहते हैं। उन्होंने जितना रिस्क लेकर मुज्जी मियां की प्रधानी की बरसों से चली आ रही दबंगई को हमेशा के लिए खत्म किया, उस बारे में कोई सोच भी नहीं पाता था, कि मुज्जी की दबंगई को कोई खत्म भी कर पाएगा।’ बिल्लो इतनी दबंग और इतना कुछ कर चुकी होगी, यह जानकर मैं हैरान रह गया।
कुछ देर मैं एकटक शिखर को देखता ही रह गया। मैं बिल्लो की और बातें जानने के लिए व्याकुल हो उठा। शिखर बताता जा रहा था। उसकी बात हैरान करती जा रही थीं। अब तक हमारा पानी खत्म हो चुका था। सूरज भी दूर क्षितिज में करीब-करीब ढल चुका था। क्षितिज पर एक जगह एक अर्ध चंद्राकार घेरे में केसरिया प्रकाश और गहरा हो गया था। पक्षी अपने-अपने घरौंदों की ओर चहचहाते हुए उड़ान भर रहे थे। हमारा गला सूख रहा था। हम बातें करते हुए उठे और गाड़ी की ओर चल दिए। गाड़ी तक पहुंचने में हमें आधा घंटा लगा। गाड़ी में से और पानी की बोतल निकालना चाहा तो एक ही मिली। जो बोतलें छोड़ कर गया था उसे ड्राइवर महोदय गटक गए थे। शिखर की बातों ने मुझे कई मुद्दों पर असमंजस में डाल दिया था।
मैं खेत में जाते वक्त जहां यह सोच रहा था कि आज जौनपुर लौट जाऊं रिश्तेदार के यहां जिससे वहां आराम से सो सकूं। वहां जेनरेटर वगैरह सब है। सोने के लिए आरामदायक अलग रूम है। मगर अब मन में आ रहा था कि रुक जाऊं। शिखर से रात भर और बातें करूं। असल में मैं खेतों की कीमत के साथ-साथ अब बिल्लो के बारे में और जानना चाह रहा था। जानना चाह रहा था उसके अब तक के असाधारण जीवन के बारे में।
साथ ही पता नहीं क्यों मेरे मन में शिखर को समझा-बुझा कर गांव में ही अपना भविष्य संवारने के लिए तैयार करने की तीव्र उत्कंठा पैदा हो गई थी। मुझे सिगरेट पीते कुछ देर चुप देखकर शिखर ने घर चलने को कहा, तभी मुझे बिल्लो से बात करने की बात याद आई कि उसने कहा था कि देख-दाख के बताना। यह याद आते ही मैंने शिखर से कहा ‘हां चलता हूं। बस दो मिनट।’ इसके बाद उससे थोड़ा अलग हटकर बिल्लो से बात की।
संक्षेप में उसे सारी बातें बताते हुए कहा ‘कुछ समझ में नहीं आ रहा है क्या करूं? वापस भी जाना है।’ तो वह बोली ‘ऐसा है तुम हमें थोड़ा टाइम दो, जैसा चाहोगे हम करा देंगे।’ शिखर से उसके बारे में तमाम बातें जानने के बाद मुझे बिल्लो की बात पर पूरा यकीन था, कि वास्तव में वही मेरा काम सही ढंग से कराएगी और कोई धोखाधड़ी नहीं करेगी। फिर बिल्लो ने मुझसे अपने यहां रुकने का आग्रह किया।
साथ ही यह उलाहना भी दिया कि ‘हम तो कल से इंतजार कर रहे हैं कि इतने साल बाद आए हो। अरे छोटे थे तब तो कुछ न कुछ लाना भूलते ही नहीं थे। और अब जब कमाए लगे हो। बड़का बिजनेसमैन बन गए हो तो पूछ तक नहीं रहे हो कि बिल्लो कैसी हो? तुम पर का-का बीती अब तक?’ बिल्लो आखिरी सेंटेंस तक पहुंचते-पहुंचते भावुक हो गई। उसकी आवाज़ भर्रायी सी लगी।
मैं बड़े अचरज में पड़ गया कि यह मुझ पर अब भी इतना अधिकार समझती है। मुझे लगा कि उसकी बातों ने मुझे एकदम पानी-पानी कर दिया है। कुछ देर मुझे कोई जवाब ना सूझा। मैं चुप रहा तो बिल्लो फिर बोली ‘कुछ गलत बोल दिए होई तो माफ करना।’ यह कह कर उसने मुझे और भिगो दिया। मैं लज्जित हुआ सा बोला। ‘नहीं-नहीं प्लीज-प्लीज कृपया ऐसा मत कहिए। मैं संकोच में था। और मैंने यही समझा था कि आप सब भूल चुकी होंगी।’
इस पर वह बोली ‘अरे कइसन बात करत हौ। ई सब कहूं भूलत है। अरे हमरे कलेजे में सब वैसे ही, आज भी बसा है जैसे तब था। एकदम ताजा है अबहिनों सारी बात। अच्छा पहिले ई बताओ, ई दुश्मनन के नाहीं आप-आप काहे किए जा रहे हो। हम अबहिंनो तोहार ऊहै बिल्लो हई। अऊर हमेशा रहब। जेकरे साथे तू लड़कपन में छिप के खलिहाने में, तो कहीं भीठा के किनारे इमली, गट्ठा (शक्कर से बनी गंवई मिठाई) कंपट,टाफी खाया करते थे। तू शहर के मनई सब भुलाए दिए लेकिन हमें नाय भूलान बा। हम तो तोहे कल जब से देखे हई, तब से इंतजार करत हई कि हमरे लिए जो लाए होगे अब दोगे, अब दोगे।
बचपन की तरह लोगों से नजर बचा कर चुपके से मेरे हाथों में थमाओगे। कहोगे ‘‘लो बिल्लो यह तुम्हारे लिए लाया हूं।’’ मगर बिल्लो की ऐसी किस्मत कहां? भूल गए सब यहां से निकलते ही।’ बिल्लो की आवाज़ फिर भारी होने लगी। मेरी मनः स्थिति ऐसी हो रही थी कि ऐसा क्या कर डालूं कि बिल्लो का दर्द पी जाऊं। उसकी शिकायत नहीं उलाहनों को फूल बना सब उस पर बरसा दूं। उसे इतनी खुशी दूं कि वह पिछले सारे दर्द भूल जाए। मैंने बिल्लो से कहा ‘मुझे अब और शर्मिंदा ना करो। मैं आज तुम्हारे यहां ही रुकूंगा। बस घंटे भर बाद आता हूं।’ यह कह कर मैंने फ़ोन काट दिया।
मुझे क्या करना है यह मैं बात करते-करते ही तय कर चुका था। शिखर यह सुनकर चौंक गया कि मैं आज बिल्लो के यहां रूकुंगा। वह यह कतई नहीं चाहता था। उसने गांवों में छल क्षद्म से बदला लेने, मारने, पट्टीदारी आदि के भय क्षण भर में दिखा दिए। मगर बिल्लो की भावनाओं के आगे मुझे यह सब बकवास के सिवा और कुछ ना लगे। मैंने उससे दो टूक कहा ‘चलो तुम्हें घर छोड़ देता हूं। कल तुमसे फिर मिलूंगा। अभी तुमसे बहुत बातें करनी हैं। बहुत ही इंपॉर्टेंट डिसीजन लेना है।’
वह कुछ बोलना चाह रहा था लेकिन मैंने उसे बोलने नहीं दिया। उसे घर पर छोड़ा और ड्राइवर को भी उसी के हवाले कर कहा ये भी तुम्हारे पास रुकेंगे। शिखर बड़े बेमन से माना। खेत से घर तक मैंने गाड़ी खुद ड्राइव की। ड्राइविंग की अपनी पूरी कुशलता दिखाकर मैंने ड्राइवर को सैटिसफाइड कर दिया कि गाड़ी मैं अकेले ही ले जाऊंगा। वह मेरी फास्ट, शार्प ड्राइविंग देखकर जब उतरा तो यह बोला भी ‘भइया जी आप तो बहुत बढ़ियां गाड़ी चलाते हैं।’ फिर मैंने उसी के सामने रिश्तेदार को फ़ोन कर बताया कि आज मैं कहां रुकुंगा। और ड्राइवर कहां? साथ ही कि गाड़ी मैं ले जा रहा हूं। रिश्तेदार खुशी-खुशी बोले ठीक है।
गाड़ी को लेकर ड्राइवर किसी असमंजस में ना रहे इसीलिए मैंने यह किया। उनको वहां छोड़ कर मैं वहां से सीधे जौनपुर सिटी गया। रास्ता ना भूलूं इसी लिए मोबाइल में जीपीएस ऑन कर दिया। सात बजने वाले थे। मैंने पूरी रफ्तार में गाड़ी भगाई कि कहीं मार्केट बंद ना हो जाए। सबसे पहले एटीएम से जरूरत भर का पैसा निकाला फिर बिल्लो के लिए एक महंगी खूबसूरत सी साड़ी खरीदी। उसे खूबसूरती से पैक कराया।
परिवार के बाकी लोगों के लिए भी गिफ्ट लिए। भतीजे उसकी पत्नी, उसके बच्चों के लिए भी कपड़े लिए। जिससे वहां किसी तरह से ऑड ना लगे। फिर एक और चीज लेकर जेब में रख ली। कि उसे बिल्लो को एकदम अलग करके दूंगा। चुपके से। जैसे बचपन में देता था। उसकी हथेलियों को अपने हाथों में लेकर। मैं इतनी जल्दी, हड़बड़ाहट में था कि सिगरेट और वहीं रेलवे स्टेशन के पास मिनरल वॉटर की दस-बारह बोतलें लेकर डिक्की में डाल लीं। लेकिन घर बीवी-बच्चों से बात करना भूल गया। मैं बिल्लो के पास पहुंचने की जल्दी में था।
वापसी में रास्ते में था तभी बिल्लो का दो बार फोन आ चुका था। वह समझ रही थी कि मैं चाचा के यहां हूं। मैं उसे कुछ बता नहीं रहा था। बस जल्दी पहुंचने की कोशिश कर रहा था। वापसी में तमाम जल्दबाजी के बावजूद गांव के रास्ते में बड़े बदलाव देखता चल रहा था। लाइट का टोटा था लेकिन फिर भी मकानों की संख्या बहुत बढ़ गई थी। मुख्य सड़क और अंदर गांव में बनीं आर. सी. सी. सड़कों पर लोगों का आना-जाना अब भी था। बाज़ार करीब-करीब बंद हो रही थी।
बिल्लो के घर के सामने गाड़ी रोकी तो साढ़े नौ बज गए थे। उसकी भी दुकान बंद हो चुकी थी। पांच सीढ़ियां चढ़ कर बिल्लो के घर के अंदर पहुंचना होता है। मेन बैठक का दरवाजा तो खुला था। लेकिन चैनल पूरा बंद था। लाइट बाहर भी जल रही थी। और अंदर बैठक में भी। एलईडी बल्ब यहां भी रोशन थे। मोदी का इफेक्ट साफ दिख रहा था। मेरी गाड़ी रुकते ही बिल्लो चैनल के पास आई। उसका एक हिस्सा किनारे खिसका कर खोलती हुई अपनी बुलंद आवाज़ में बोली ‘आवा बड़ा देर कई दिहे। चच्चा जादा पियार देखावे लगा रहेन का?’
बिल्लो ठेठ गंवई स्टाइल में आ गई थी। मैं जब से गांव में आया था तब से एक चीज़ देख रहा था कि लोग यह जानकर कि मैं शहर से आया हूं ज़्यादा से ज़्यादा कोशिश खड़ी बोली में बात करने की कर रहे थे। वह यह भी नहीं समझ रहे थे कि मैं सूरत,गुजरात में खड़ी बोली से ज्यादा गुजराती बोलने का अभ्यस्त हूं। यह मुझे बड़ा अटपटा लग रहा था। नकलीपन से मैं बड़ी जल्दी ऊबने लगता हूँ । मुझे बड़ा अच्छा लगता जब मुझसे लोग अपनी स्थानीय बोली में बात करते।
बिल्लो भी यही घालमेल बार-बार कर रही थी। मगर मैं चाह कर भी टोक नहीं पा रहा था। इस समय जब वह अपने मौलिक अंदाज में बोली तो मुझे अच्छा लगा। मैं उसकी बातों पर मैं मुस्कुरा भर रहा था। जब मैं गिफ्ट के सारे पैकेट निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा तो वह बोली ‘अरे ई सब का लिए हो?’ मैं मुस्कुराता रहा और उसके सामने पहुंचा तो वह अंदर पड़े तखत की तरफ इशारा कर के बोली ‘आवा बैइठा।’ फिर चैनल बंद किया। आकर बैठ गई,मुझसे थोड़ी सी दूरी बनाकर तखत पर ही। और बोली ‘बड़ा देर कई दिहे। कहां चला गए रहा?’ बिल्लो सामान देखकर समझ गई थी कि मैं चाचा के यहां नहीं था। कहीं और गया था।
मैंने उसकी उत्सुकता शांत करते हुए कहा। अपनी गलती सुधारने गया था। खेतों के चक्कर में यही भूल गया था कि जीवन में रिश्तों की बहुत बड़ी अहमियत होती है। उनकी मर्यादा और उनके प्रति अपने कर्त्तव्यों को निभाना भी जरूरी है। साड़ी का डिब्बा उसकी तरफ बढ़ाता हुआ बोला ‘यह तुम्हारे लिए है।’ बिल्लो ने चौंकते हुए कहा ‘अरे ई सब का?’ वह कुछ बोले उसके पहले ही मैंने कहा ‘मना मत करना। ये कोई सामान, गिफ्ट नहीं है। ये मेरी भावनाएं हैं तुम्हारे लिए। जो तमाम परिस्थितियों के चलते दिलो-दिमाग में कहीं गहरे दब गई थीं। जो तुम्हें देखने के बाद कुछ कुलबुलाई थीं। और शाम को तुम्हारी बातों ने दबी भावनाओं को एकदम सामने कर दिया।’
बिल्लो फिर कुछ नहीं बोली। डिब्बा हाथों में लेकर मुझे देखने लगी तो मैंने कहा ‘खोल कर नहीं देखोगी।’ बिल्लो ने डिब्बा खोलकर जब साड़ी देखी तो कुछ क्षण खुशी से देखती रही फिर बोली ‘एतनी महंगी साड़ी। एतनी महंगी साड़ी तो हम कब्बो पहरिबे नाहीं किए।’ मैंने फिर कहा ‘ये सिर्फ़ मेरी भावनाएं हैं। जिनका मुल्य तय करना संभव नहीं।’ बिल्लो ने साड़ी दोनों हाथों में लेकर चूम ली। बोली ‘तू सही कहत हअ। महंगी या कुछ भी कहना तोहरे भावना के ठेस पहुंचाना होगा। हमरे बदे ई का बा हम कुछ कहि नाहीं सकित। हमरे बाते के एतना ध्यान देबा। दिल से लगाए लेबा ई हम सोच नाहीं पाए रहे।’
तभी मैंने भतीजे और उसके परिवार के गिफ्ट सामने करते हुए कहा ‘कहां हैं सब लोग?’ तो बिल्लो बोली ‘यहीं मड़ियाहूं में बहुरिया के मामा की बिटिया बियाही बा। वही के बेटवा भा बा। आज ओकर छट्टी बा। हुंअईं सब गा हैंएन।’ मैंने पूछा ‘तुम नहीं गई।’ तो बिल्लो ने कहा ‘नाहीं। हम ई सब जगह नहीं जाईत। हींआ हालत एइसन बा, जले वाला, दुश्मन एतना हैएन कि घरे में ताला नाहीं लगाए सकित।
समनवो वाले मकान में, दुकान में काम करै वाले औउर दुई-तीन आदमी औउर बाकी सब हिंअइ रहत हैंएन। वहां भी देखे रहते हैं। यहां भी। ई रतिया में हम हिंआ सब देखित है। ई सब कैथाने में जऊन नवा घर बना बा हुंवां जात हैं। खाना-पीना सब यहीं होता है।’
यह सब सुन कर मैं बड़े पसोपेस में पड़ गया। यह घर में अकेली है। गांव का मामला है, मुझे यहां रुकना क्या इस समय यहां आना भी नहीं चाहिए था। मेरे मनोभाव पता नहीं बिल्लो समझ पा रही थी कि नहीं लेकिन मैं ..मैं परेशान हो रहा था। मैंने जल्दी ही पूछ लिया ‘भतीजा कब लौटेगा?’ तो बिल्लो बोली ‘नाहीं, आज सब वहीं रुकेंगे। कल आएंगे।’ उसकी इस बात ने मुझे और झटका दिया। क्या करूं, क्या कहूं कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
बिल्लो मेरी मनोदशा जान समझ कर नाराज ना हो इस लिए मैं खुद को संभालने की कोशिश में लगा था। तभी बिल्लो उठी अंदर जाते हुए बोली ‘तुम हाथ-मुंह धो लो तब तक हम खाना निकालति हई।’ मैं कुछ समझ ही नहीं पा रहा था। तो मैं यंत्रवत सा बोला ‘ठीक है।’ बिल्लो ने तखत के सामने एक सेंटर टेबल रखी। उसी पर कई अच्छे-अच्छे हॉट-पॉट लाकर रखे। प्लेट-कटलरी गिलास और ठंडे पानी की कई बोतलें भीं। बर्तनों की चमक, स्थिति बता रहे थे कि ये कभी-कभी खास मेहमानों के आने पर ही यूज किए जाते हैं। मैं हाथ धोकर आया तो बिल्लो ने पोंछने के लिए मुझे इसी बीच तौलिया भी पकड़ा दी।
वह काम करते समय भी बोलती जा रही थी। उसे अकेले काम करते देख कर मैंने पूछा ‘सब अकेले कर रही हो नौकरानी कहां चली गई?’ तो उसने कहा ‘वो भी भतीजे के साथ गई है। काम-काज था तो हमने कहा लिए जाओ। काम-धाम में हाथ बटाएगी।’ मुझे तखत पर बैठने को कह कर उसने एक प्लास्टिक का टेबल कवर मेरे सामने बिछा कर बर्तन रखे।
बिल्लो को एक ही प्लेट में खाना निकालते देखकर मैंने पूछा ‘तुमने खा लिया?’ तो वह बोली ‘नाहीं हम तो इंतजार कर रहे थे कि आओ तुम्हें खिला दें तब खाएं। मेहमान का खिलाए बिना कैसे खा लेते?’ उसके तंज पर मैंने कहा ‘तो मैं तुम्हारे लिए मेहमान हूं।’ अब बिल्लो हंसती हुई बोली ‘नाहीं ,मेहमान नाहीं हम तो ऐसे ही।’ ‘अच्छा तो क्या हूं?’ ‘अरे घरै के हो,आपन हो। हम तो हंसी में बोल दिए थे।’ कहकर वह हंस पड़ी। मैंने कहा ताज्जुब, तुमने अभी तक खाया नहीं तो अपना भी निकालो, साथ खाएंगे।’
बिल्लो के संकोच पर मेरी जिद भारी पड़ी। उसने भी अपना खाना निकाला। साथ ही खाया। लेकिन शुरू में संकोच साफ दिखा था। खाते हुए भी हमारी बातें चलती रहीं। उसने बताया ‘सारा खाना सूरज की बीवी ने बनाया है। मैंने बस यही कहा कि तुम बहुत साल बाद आए हो। शहर में बहुत बड़ा काम-धंधा फैलाए हो। बड़े-बड़े होटल में खाए-पिए वाला हो तो उहे तरह बनाओ।’ खाना वाकई बहुत बढ़िया बना था। खीर तो इतनी बढ़िया थी कि मुझे बोलना पड़ा कि ‘इतनी बढ़िया खीर बहुत दिनों बाद खा रहा हूं।’ दो तरह की कचौड़ी, पूड़ी, दही बड़ा, कटहल का कोफ़्ता, पुलाव और सलाद सब जिस तरह काट कर बनाए गए थे वह तारीफ के काबिल थे।
आखिर मैंने पूछ लिया ‘सूरज की बीवी कितना पढ़ी लिखी है। कहां की है?’ तो बिल्लो ने बताया कि ‘है तो यहीं जंघई की। दोनों का कई साल पहले पता नहीं कहां कैसे मिलना-जुलना हुआ। जब पता चला तो दोनों ऐसा कर चुके थे कि आफ़त खड़ी हो गई। आनन-फानन में शादी का ड्रामा पूरा करना पड़ा। इसके मां-बाप ऐसा परेशान थे कि पूछो मत। महतारी मार अंड-बंड बोले जाए। कहे तुम्हारे ‘‘भतीजे ने मेरी लड़की फंसा ली। मोढ़ लिया,लूट लिया उसको। कहीं का नहीं छोड़ा। अब बताओ कहां ले जाएं उसको?’’
मैंने कहा ‘आज-कल तो लड़के-लड़कियों का मिलना-जुलना तो मामूली क्या कोई बात ही नहीं है। फिर इतनी आफ़त वाली बात कहां थी?’ तो बिल्लो ने कहा ‘नहीं भइया ई दोनों तो आफ़त वाला ही काम किए थे। शादी के बाद सतवें महीना में तो महतारी-बाप बन गए। कोउनो तरह लडका होए के पहले एक रिश्तेदार के यहां रखके मामला संभाले की कोशिश की गई। मगर ई दुनिया इस तरह की बातें हज़ार तहों में छिपी हो तब भी सूंघ ही लेती है। तो यही हाल यहां भी हुआ।
कोई मजाक में तो कोई किसी तरह कोंचने, ताना मारने से बाज ना जाता। तुम जनतै हो कि हम ई तरह की नौटंकी जादा बरदाश्त नहीं कर पाइत। एइसे एक दिन यहीं की पट्टीदारी में कुछ काम-धाम रहा। वहीं कई जने मिल के मजाक-मजाक में हमें उधेड़े शुरू किहिन तो हमहूं सोचेन बहुत हुआ तमाशा। रोज-रोज की नौटंकी आज खत्म। फिर चिल्ला कर कहा। सुना हो पंचयती लोगन, भतीजा हमार कुछ भी गलत नहीं किए है। ना ऊ लड़की। जब दोनों एक दूसरे का चाहत रहेन तो प्यार करिहैं, मिलिहें कि एक दूसरे की आरती उतरिहें। जो किए अच्छा किए। बच्चा आई गा पेट में तब्बो दोनों चोरन, छिनारन के तरह छोड़ के भागे नहीं। छाती ठोंक के कहा बच्चा भी पैदा करेंगे, शादी भी करेंगे । दोनों के घरौ वाला चोरन की नाई मुंह नहीं छिपाएन।
अपने बच्चन का भविष्य गंवारन, जाहिलन की तरह बर्बाद नहीं किया। उन्हें खुशी दी। उन्हें खोखली नाक के चक्कर में मार-काट के कुंआ में नाहीं फेंका। अरे हम खुश हैं तो दुनिया की छाती पर काहे सांप लोट रहा है। अरे आपन-आपन देखो सब जने। मुंह छिपा-छिपा के कऊन-कऊन छिनारपन कई रहा है। कहां-कहां गोपलउअल (अवैध संबंध जीना) कई रहा है, सब मालूम बा। और कान खोल के सुनले दुनिया कि कोउनो दहिजार (दाढ़ीजार) हमरे परिवार की तरफ करिया आंखी (बुरी नजर) से देखिस तो जान ले। भतीजा तो बाद में आई पहिले हमहि इहे हाथन से बोटी-बोटी बाल नाउब (टुकड़े कर देना)।’ बिल्लो पूरे ताव में बोले जा रही थी। और मैं उसे एकटक देख रहा था। मुझे ऐसे देखते पाकर वह संभली। बोली। ‘तुमहू सोचत होइहो कि ई बिल्लोइया कईसे फटाफट गाली बके जात बा।’
***