दास्तान-ए-अश्क - 14 SABIRKHAN द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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दास्तान-ए-अश्क - 14








आंखों मे कुछ तेरे अरमान छोड जायेंगे..
जिंदगी मे तेરે  कुछ निशान छोड जायेंगे
ले जायेंगे सिर्फ एक कफन अपने
लिये
तेरे लिये सारा जहान छोड जायेंगे..

---------    ------
      
           कहते हैं जिंदगी में अगर मन चाहा मिल जाए तो जिंदगी स्वर्ग बन जाती है..!
लेकिन अनसुलझी जिंदगी जीना इतना आसान नहीं होता..!
बहुत कठिन है जिंदगी की डगर.. जहां सिर्फ धुंध ही धुंध नजर आ रही हो..!
वह इतनी निर्मोही है कि किसी को सुख झोली भर भर के देती है तो.. कोई अपने लिये मूठ्ठी आसमा को भी तरस जाता है..!
प्रिय रीडर अापने अपने बेश किमती सुझाव दिए ईस कहानी की नाईका के लिए..!
होना भी वही चाहिए था जो आप लोगों ने कहा है.! पर ऐसा हो जाता तो दास्तान-ए-अश्क कैसे बनती..?
जिंदगी में सबकुछ मन चाहा मिल जाता तो आंखों में अश्कों को जगह ही नहीं मिलती..!
इन्हें भी तो रहने के लिए दो जोडी आंखें चाहिए.. और जिंदगी में जब तक हर कदम ज़ख्मो का सिलसिला हो अश्कों का सैलाब आंखों की पहचान बन जाता है..  अपनी कहानी की नायिका के साथ भी ऐसा ही हुआ था..
*****

  
घर लौटते वक्त उसके कदम लड़खड़ाए थे! अपने मन को काफी मजबूत करना पड़ा था! जिंदगी मैं आए तूफान से वो पापा जी को अवगत कराना चाहती थी! 
पापा जी सोए हुए थे इतनी जल्दी वो सो गए! सारा दिन काम से थक जाते हैं अभी तो शादी का भुगतान भी बाकी है
शायद लेनदेन वाले काम में ज्यादा थकावट हो जाती है! अपने कमरे में आकर वो भी सो जाती है!  पापा जी से बात करने का मौका ही नहीं मिल रहा था!
अपनी घुटन भरी जिंदगी से वह जल्द ही छुटकारा पाना चाहती...
एक बात भी उसके दिमाग में आई थी की फिलहाल वो नरेंद्र के बारे में पापा जी को कुछ भी नहीं बताएगी!
क्योंकि हो सकता है पापा जी ये समझे की वह नरेंद्र के कारण ही अपने पति को छोड़ना चाहती है!
        सुबह एक नया आगाज लेकर आई ! काफी धुंध चारों ओर छाई थी! जमीन भीगी होने के कारण मिट्टी की सदाबहार खुशबू महक रही थी !  ताड़ जैसे पेड़ों के बीच टहलने निकली धुंध अब धीमे-धीमे ऊपर उठ रही थी!
बड़ा अद्भुत ही नजारा था !
उसकी आंखो मे बेबसी छा गई !
काश इस तरह मेरी जिंदगी में छाई धुंध भी धीरे धीरे ऊपर उठ जाती?
उसके जेहन में एक ही बात थी अब टाइम वेस्ट नहीं करना है!
वह फ्रेश होकर दबे पांव पापा जी के कमरे में आती है!
पापा जी को वहां बैठे देखकर उसके मन को राहत होती है ! वह पापाजी के पास बैठकर उनके कंधे पर सर रखती है! तब आंखें जैसे इसी पल का इंतजार कर के बैठी थी!  वो झार झार बरसती है!
अरे अरे..!  मेरी लाडली बेटी को क्या हुवा? तुजे मैं दो दीन से देख रहा हुं ! तु जबसे आई है ,
काफी उदास है!
दो-तीन दिन से मैं भी काम में बहुत उलझ गया था ! तुझसे बात करने का मुझे वक्त ही नहीं मिला!
"तू खुश तो है ना बेटी..? और अपनों  से बिछड़ने का इतना गम नहीं मनाते!
वह भी घर तो तेरा अपना ही है ना..?
रोते नहीं मेरी बच्ची चुप हो जा..!
रोते-रोते उसकी हिचकी बंध गई..! 
उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी बात कहां से शुरू करें!
लेकिन बात तो करनी ही थी वह धीमे से अलग होकर अपनी आंखें पोछती है!
फिर बोलती हैं!
" पापा जी मैं अब उस घर में नहीं जाना चाहती..! कभी नहीं जाना चाहती ..! मैं आपकी बेटी नहीं बेटा बन कर रहूंगी..! मेरी तरफ से आपको किसी भी तरह शिकायत का मौका नहीं दूंगी!
कोई भी कलंक अपने दामन पर नहीं लगाऊंगी ! पर मुझे उस घर में नहीं जाना पापाजी !  प्लीज पापा जी मैं आपके पांव पकड़ती हूं..! मुझे घर में रहने दो..! वहां मत भेजो..!
पापाजी उसकी बातो से काफी परेशान हो जाते है!  कहते है!
यह क्या बोल रही है तू..? आखिर ऐसी क्या बात हो गई है ? देख मेरी बच्ची ससुराल तो लड़की का अपना घर होता है! तु कौन सी नई और पहली लड़की है जो ससुराल गई है? बेटा ऐसा नहीं करते ! अब तु एक नहीं दो घरों की इज्जत है! ऐसा सोचते भी नहीं है क्योंकि अपने पति का घर ही औरत के लिए उसका अपना घर होता है!
इतनी बात समझले ! मायके का मोह छोड़ ,और अपने घर जाने की तैयारी कर ले !
वह लोग एक-दो दिन में तुझे लेने आएंगे!
पापा का सख्त बर्ताव देखकर वो सहम कर  दीवार से लिपट जाती हैं!
नहीं पापा जी मुझे उस घर में नहीं जाना है वो अच्छे लोग नहीं है..! जिसे आप मेरा पति समझ रहे हैं वो एक हैवान है, दरिंदा है!
भी मनोरमा जी कमरे में आ जाती है वह पीछे खड़ी उनकी सारी बातें सुन रही थी
आते ही झन्नाक से थप्पड़ उसके गालों पर रसीद कर देती हैं ! थप्पड़ इतना भारी था की उसकी आंखों में तारे नजर आये!
"तेरे पापा के लाड प्यार ने तुझे सर पर चढ़ा रखा है!   क्या बकवास कर रही है ?  शादी के एक दिन भीतर कोई अपने पति के बारे में ऐसा बोलता है.?
तु कोई अनोखी आई है इस दुनिया में? अरे राजा रानी तक अपनी बेटियों को घर में नहीं रख पाए! फिर तु क्या चीज है जाना तो तुझे पड़ेगा ही वहां! फिर चाहे तु हंस के जा या रोकर जा !
ऐसी बात सोचते वक्त तुझे मां-बाप की इज्जत का जरा भी ख्याल नहीं आया?"
"नहीं मम्मी मेरे साथ ऐसा मत करो! मुझे वहां नहीं जाना है आप जैसा कहोगे वैसा ही मैं करूंगी  मुझे जैसे रखोगे मैं वैसे ही रहूंगी मैं आपके हाथ जोड़ती हूं मुझे उस घर में वापस मत भेजो..!
उसके पापा धीरे से उसके करीब आते हैं दोनों कंधों से उसे पकड़ कर कहते हैं
तू ऐसा क्यों बोल रही है मेरी बच्ची ?तेरी मां बिल्कुल सच कह रही है! बेटियां कभी मां-बाप की इज्जत नहीं उछालती..!   तेरा उठाया हुआ एक गलत कदम एक नहीं दो घरों को बर्बाद कर देगा!
"पापा जी मगर मेरी जिंदगी बर्बाद हुई उसका क्या ?" उसकी आवाज में तड़प थी!
क्या हुआ है तेरी जिंदगी को?
माँ ने जैसे उसकी बातों को सुनी ही नहीं थी उसके दर्द को नजरअंदाज कर दिया था!
इतना अच्छा भला घर..! इतना देखा समझा सुलझा हुआ लड़का..! और क्या चाहिए तुझे बोल..! अब तेरे लिए कोई राजकुमार आने से रहा! इस बात को मन में गांठ बांधने और चुपचाप जाने की तैयारी कर..!"
मां के सूखे बर्ताव पर उसे बहुत गुस्सा आता है! कैसी मां थी जिसे अपनी बच्ची का दर्द तक महसूस नहीं हो रहा था!
नहीं पापा जी !
वह अपने पिता जी के पांव में गिर जाती है गिडगिडाती है मुझे उस घर में नहीं जाना है मुझ पर ऐसा जुल्म मत करो!"
मनोरमा देवी भागकर अपने ससुरजी को बुला कर लाती है!
"बाऊजी.. देखो ये  पागल लड़की क्या कह रही है?  इसको समझाओ अपने घर की इज्जत को नीलाम करने पर तुली है ! कहती है 'मैं उस घर में नहीं जाऊंगी!' बहुत अनाफशनाफ बक रही है!
लाला करोड़ीमल सोच में पड़ जाते हैं ! उसका हाथ पकड़ कर अपने पास बिठाते हैं!
"बेटा सुन, मैं तुझे एक आखरी बात बताता हूं! जब तक तु कुंवारी थी हमारी बेटी थी! लेकिन अब बात और है ! तू हमारे घर की बेटी तो है ही साथ साथ उस घर की बहू भी है!  हम लोग अपनी जबान के दम पर जीते हैं! एक बार जबान दे दी सो दे दी !
अपनी बिरादरी के उसूल है ! शादी जिंदगी में एक ही बार होती है !और रिश्ता जैसा भी हो उसे ताउम्र निभाना है! बिरादरी में अपने घर की बहुत इज्जत है!  हम शरीफ लोग हैं थूंक कर दुबारा चाटा नही करते!  इतनी बात को अच्छी तरह समझ ले और चुपचाप अपने घर जाने की तैयारी मैं लग जा!
वो फिर से अपने पापा के गले लगकर सिसकने लगती है!
"प्लीज पापा जी मुझे वहां मत भेजो! मैं मर जाऊंगी..!
अचानक पापा जी की हार्टबीट बढ़ जाती है! उन्हें घबराहट होने लगती है माथे पर पसीना आ जाता है  सीने में मानो धौकनी चल रही है!
लड़खड़ा कर वो  गिरने लगते हैं!  वो पापा को पकड़ लेती है!  समझ नहीं पा रही थी पापा को अचानक क्या हुवा?
मनोरमा देवी और लाला जी वेद प्रकाश जी को संभालने में लग जाते हैं!
उसकी जान भी गले में अटक जाती है पापा को देखने आगे बढ़ती है तो मनोरमा देवी उसको धक्का देती है!
तू दफा हो जा यहां से वो  ऐसे चिखती है कि उसकी रूह तक कांप उठती है!
तू अपने पापा को मार कर ही मानेगी दूर हो जा मेरी नजरों से!
और सून कल के कल वो तुजे ले जाने आ रहे है! मै तेरी माँसी को फोन करके बोल दूंगी!
नही माँ ऐसा मत करो..! 
वो रोती है तो उसकी माँ आँखोमे  खुन्नस भर के उसका कंधा पकड़ कर गुर्राती है अब क्या तू मुझे भी विधवा करेगी है?  अपने बाप को भी जिंदा देखना नहीं चाहती ? तु क्यों मेरे सुहाग के पीछे हाथ धोकर पड़ी है?
नहीं मैं ऐसा मत बोलो !
वो रोती बिलखती है!
अब नखरे छोड़ चुपचाप अपने कमरे में जा और जैसा मैं कहती हूं वैसा कर!
और सून कल तक तू अपने पापा के कमरे में झांकेगी नहीं!  अगर ऐसा किया तो मेरा भी मरा मुंह देखेगी!
और ठीठक जाती है! इमोशनल अत्याचार हो रहा था ! उसकी भावनाओं को चूर चूर कर दिया गया था!  कोई उसे समझने को तैयार ही नहीं था! अपने मां की कड़वी बातें सुनकर अपने आपको वह काफी बेबस महसूस करती है !  मां-बाप होने के बावजूद वो आज खुद को अनाथ महसूस कर रही थी! जैसे दुनिया में उसका कोई नहीं था! आज मुश्किल की घड़ी में कोई उसके साथ नहीं था!
वह भाग कर अपने कमरे में आकर बिस्तर में मुंह छुपा कर रोतीे हैं!
उसकी आंखों से अश्क लगातार बहते हैं जैसे कोई बादल फट गया था वह खुद को संभाल नहीं पाती उसे अपनी जिंदगी में सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था ?
      समज मे नही आता मेरी जिंदगी पर मेरा हक क्यो नही था..?
क्यो मैं  अपनी जिंदगी अपने तरीके से नही जी सकती..? क्यों मेरे मां बाप अपनी इज्जत की खातिर अपने ही बच्चे की जिंदगी नर्क बना रहे हैं!
  कई सवाल थे जो उसके बालिश मनको झकझोर रहे थे.. !
            (क्रमशः)
  मेरे प्रिय रीडर्स क्या माँ बाप की अपनी कहानी की नायिका पर ऐसी सख्ती सही थी..?  मां बाप को सिर्फ अपनी इज्जत के बारे में सोचना चाहिए? बच्चों की खुशी उनके लिए कुछ मायने नहीं रखती? अपनी राय से जरूर अवगत कराएं  ! दास्तान ए अश्क कैसी लगी अपनी बेबाक राय जरूर दें!
मातृभारती पर मेरी कहानी "वो कौन थी" सन्डे को अगले पार्ट के साथ आज  आएगी! आप पढ़ना ना भूले ! हॉरर और रहस्य की उलझनों से भरी उस कहानी पर भी आपकी नजरों की कृपा बनी रहे ऐसा चाहता हूं ! शुक्रिया..!

(क्रमशः)