दास्तान-ए-अश्क - 6 SABIRKHAN द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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दास्तान-ए-अश्क - 6

नरेन्दर ने हिम्मत झुटाकर उसका रास्ता रोका था!
वो पसीने से तर थी..!
दिल धाडधाड करके पसलीयां से टकरा रहा था!
नजरे झुकाकर वो तडप कर बोली थी!
"नरेन्दर इस तरहा तुम मेरे रास्ते मे क्यो आते हो..? "

नरेन्दर गहरी गहरी झील सी आंखो से उसको देखते हुये बोला !
"तुम मुझे बहोत अच्छी लगती हो और मै तुमसे शादी करना चाहता हुं..!
वो हिचकिचाती हुई कहने लगी.!
तुम जानते हो हम दोनो की बिरादरी अलग है! हमारे यहां शादीयां ऐसे नही होती.!
वो कसमसाकर रह गया. उसके मासूम चहेरे पर उदासी ने घेरा डाला.!
आर्जवित स्वरमे वह बोला!
मै जानता हुं की तुम हिन्दु हो और मै सिख.. मुझे तुमसे प्यार है और प्यार जातिबंधन नहि देखता..! मुझमे कोई कमी है तो बताओ..!
मेरे बारे मे आजतक कुछ गलत सुना हो तो बताओ..!
मेरे मनमे सिर्फ तुम हो !
और तुम मुझे बहोत अच्छी लगती हो!
तुम बस एक बार हा कह दो.. मै अपने मम्मी पापा को तुम्हारे घर भेजुंगा तुम्हारे मम्मी पापा से बात करने के लिये!
तुम्हारे दादाजी और मेरे दादा तो दोस्त भी रेह चुके है..! वो कभी मना नही करेंगे..!
नही नरेन्दर मै कोई भी ऐसा काम करना नहीं चाहती जिससे मेरे पापा जी को मुझ पर शर्म आए!
"क्या मैं तुम्हें अच्छा नहीं लगता !
उसके मन में जैसे खलबली मच गई थी!
मेरी आंखों में देख कर बताओ जिस दिन तुमको मैं नहीं मिलता उस दिन तुम्हारे चेहरे का रंग उड़ा हुआ क्यों होता है? तुम बार-बार कनखियां से देखती हो!"
सच बताना तुम्हें मेरी कसम...!
"नही ऐसा कुछ नहीं है नरेंदर ये तुम्हारे मन का भ्रम है!"
"भ्रम नहीं है यह तुम्हारा प्यार है जो तुम छुपा रही हो! प्यार करना कोई पाप नही है!"
वो धीरे से उसका हाथ पकड लेता है!
आज पहेली बार कीसी मर्द ने उसको छूआ..!
उसके सारे बदन मे जैसे सिरहन सी दौड जाती है..!
वो कांप उठती है !
धीरे से अपना हाथ छुडाकर कहती है !
"नही नरेन्दर मै तुमसे प्यार नही करती! बिलकुल नही करती..! उसकी आंखो में आंसू आजाते है!"
"अगर तुम मुजसे प्यार नही करती तो ईन आंखों मे अश्क क्यों है बोलो..?
मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ जानता हूं तुम जो छुप-छुप कर चिठ्ठिया लिखकर डाकखाने प्रीती के साथ भेजती थी!
वह चिट्टियां प्रीति नहीं डालती थी मैं डलवाताथा उससे..!
तुम्हारी एक एक बात मुझे पता है!
लेकिन तुमने कभी भी मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया
नरेंद्र के बात सुनकर वह डर जाती है! सहम जाती है!
वह उसके सामने हाथ जोड़ जोड़ कर कहती हैं प्लीज यह बात कभी किसी को मत बताना नरेन्दर वरना मै जीतेजी मर जाउंगी.!
अरे पागल.. ईसमे मरने वाली कौनसी बात है..? तुने कोई पाप नही किया तुने लिखा है बहोत अच्छा लिखती है तु..!

तुने जो जो लिखा है वो मैने सब पढा है..!
और जो आर्टिकल को तूने प्रीति को पढ़ने के लिए दिए थे वह उसने फाड़े नहीं बल्कि मुझे दे दिए थे !
वह मैंने संभाल के रखे हैं!
" लेकिन प्रीति ने तुम्हें वह सब क्यों दिया..?"
प्रीति की मां हमारे घर में भी काम करती है तुम्हारी और बेटी की दोस्ती के बारे में मुझे सब पता है पहले मुझे लगा था कि तुम यह चिट्ठियां किसी लड़के को लिखते हो प्रीति उसे लेकर आती है यह सोच कर एक दिन मैंने प्रीति को पकड़ लिया उन चिठ्ठियाँ के साथ..!
तुम्हारे लिए मन मे प्रेम तो था ही
मगर ये सब देखने के बाद तुम मेरे और करीब आ गई.. मुजे तुम पर गर्व होने लगा..!
लिखने के लिए मैं तुम्हें कभी नहीं रोकूंगा हमेशा प्रोत्साहित करूंगा बस एक बार तुम मेरी बन जाओ..!
नही नरेन्दर मै अपने सपनो के खातिर अपनो का दिल नही तोडना चाहती..!

मै कुछ भी एसा नही करना चाहती जिससे मेरे घर वालो को मेरे जन्म देने के लिए पछताना हो..!
तो ठीक है मै अपनी तरफ से रिश्ता भेजता हु तुम्हारे घर..!
"नही नरेन्दर मेरे दादाजी ने मेरे लिए लडका देख लिया है..! मम्मी पापा आज वहां शगुन लेकर जा रहे हैं!"
"क्या पागल हो चुके हो तुम बिना देखे ही शादी के लिए हां कर दी..?"
मुझे उस बात से कोई मतलब नहीं कि वह कौन है ? कैसा है ? मैं बस इतना जानती हूं मां-बाप जो अपने लिए करते हैं वह सब अच्छा ही करते हैं!
मेरा तो एक ही अरमान है मेरा पति पढा लिखा और मुजे समजने वाला हो..!
नरेंद्र की आंखों में आंसू भर आते हैं
वह चुपचाप पीछे मुड़ के चला जाता है
लेकिन उसको अच्छा नहीं लगता लगता है जैसे किसी का दिल दुखा कर उसने आज फिर कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो!
लेकिन उसमें उसकी क्या गलती थी जब नरेंद्र में अपने प्यार का इजहार उससे किया तब तक बहोत देर हो चुकी थी!

लेकिन अगर वह पहले भी बोल देता तो कौन सा तुझे हौसला आ जाना था वह अपने मन को ही कहती है!
वह पहले बोलता तो शायद कुछ हो जाता अपनी जिंदगी के बारे में कुछ मैं सोचती मगर अब वह हालात ही नहीं रहे!
लेकिन सबसे पहले उस प्रीति को जाकर पूछूंगी कि तूने ऐसा क्यों किया..?
मेरे लिखे हुए सब आर्टिकल सारी रचनाएं क्यों उसको दिखाई..?
क्या पता वह घर में किसी को बताना दे ! एक तरफ तो उसके मन में दुख था!
दूसरी तरफ से डर रही थी!
लेकिन अब क्या हो सकता है!
एक तरफ नरेंदर को लेकर उसका मन तडप उठा था!
दुसरी और दादाजी और पापा उसके लिए उसकी जिदंगी का फैसला करके आने वाले थे..! वो आने वाले भविष्य के बारे मे सोच भी नही सकती थी..! डरने लगी थी अपने हमसफर के बारे मै जैसा हम सफर चाहा वैसा बिना देखे उसे किस्मत दे पायेगी...?
हाय.. ये.. भविष्य की कुछ बातो का अंदेशा हमे जरा भी आ जाता..!
काश उस घिनोनी लाईफ के बारे मै पहेले से मालुम होता तो मै खुद मर जाना पसंद करती जीना नही..!! "

क्या हुवा था उसके सपनो के साथ..? कैसे टूटे उसके अरमान ..?
कुछ पुरुषो ने स्त्री के चरित्र के लिए घटिया सोच दिमाग मे पाल रखी है.. और ये सोच ही कैसे उसकी जिंदगी को तार तार कर देती है पढते रहे.. "दास्तान-ए-अश्क "