ठग लाइफ - 8 Pritpal Kaur द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

ठग लाइफ - 8

ठग लाइफ

प्रितपाल कौर

झटका आठ

सविता ने वो रात तो अकेले काट ली थी लेकिन अगली ही सुबह अपने उस फ्लैट में जब उसे अकेलापन काटने लगा तो अपने फ़ोन की एड्रेस बुक की पड़ताल शुरू कर दी थी. वह अभी नाम पढ़ रहा थी और सोच रही थी कि किस को फ़ोन किया जाये शाम बिताने के लिए कि एक काल आयी. किसी प्राइवेट नंबर से.

सविता सोच भी नहीं सकती थी कि जब किस्मत की इनायत भरी नजर पड़ने लगे तो पंछी तो क्या इंसान के नसीब भी आसमान की ऊँचाइयों को छूने लगते हैं. ये कॉल उसके हाई स्कूल के सीनियर रमणीक सिंह का था. रमणीक सिंह मध्य प्रदेश कैडर का आई.ए. एस. अफसर था. उससे स्कूल में दो साल सीनियर था. दोनों के पिता एक ही कॉलेज में अलग अलग विभागों में प्रोफेसर थे और अच्छे दोस्त भी थे. एक दुसरे के घर आना जाना था.

उन दिनों जब कभी सविता हॉस्टल से या रिश्तेदारों के घर से अपने माता-पिता के घर जाती थी तो रमणीक से मुलाकात हो जाती थी. उसे रमणीक बेहद साधारण सा बोरिंग सा लड़का लगता था. और उसने कभी उसे हाय हेल्लो से ज्यादा अहमियत नहीं दी थी. इसके अलावा वह वहां रहती भी बहुत कम थी. सो दोनों में दोस्ती कभी पनप नहीं पायी.

आज जब रमणीक ने अपना परिचय दिया तो सविता खुशी के मारे चहक उठी. इस बीच उसे पता लगा था कि रमणीक अब विदेश मंत्रालय में सहायक सचिव हो गया है और दिल्ली में ही पंडारा रोड पर रहता है. सविता की नज़रों में ये दोनों बड़ी खूबियाँ थीं जो रमणीक के लिए उसका दोस्त होने की सूरत में फायदे की संभवना बहुत अधिक बढ़ा देती थीं.

चहक कर उसने कहा था, "ऑफ़ कोर्स आय डू रिमेम्बर यू. हाउ आर यू एंड योर फॅमिली? अंकल? सब लोग कैसे हो?"

रमणीक ने एक एक कर उसके सभी सवालों के जवाब दिए थे. "

"मैं ठीक हूँ. रेखा और बच्चे भी अच्छे हैं. पापा ठीक हैं माँ पांच साल पहले चली गयीं. कैंसर से. " उसके स्वर में उदासी थी.

"ओह आय एम सो सॉरी. रमणीक."

"वेल. दट्स ओके. थैंक यू सविता. "

कुछ देर दोनों तरफ चुप्पी छाई रही. फिर रमणीक ने ही उसे तोडा था," सविता मैंने इस लिए कॉल किया कि मेरे बेटे आशीष की शादी है अगले हफ्ते. यू हैव टू कम. मैं डिटेल्स भेज देता हूँ. मुझे अपने ईमेल और एड्रेस भेजो. "

शादी धूम-धाम से हुयी थी. सेंट्रल दिल्ली के मोती लाल नेहरु रोड पर बने एक आलीशान सरकारी बंगले में. सविता समझ गयी थी रमणीक बड़ी हैसियत का आदमी बन चुका था. और इसका श्रेय उसकी पत्नी रेखा के परिवार को जाता था.

रेखा के पिता मध्य प्रदेश के गुना से सांसद थे. और लगातार पांच बार से अपनी सीट बनाये हुए थे. ज़ाहिर है उनका पार्टी में और संसद में भी खासा दबदबा था. मध्य प्रदेश में तो वे किंग मकर थे ही. दामाद को तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ाने में उनका रसूख काफी काम आया था और आता रहता था.

सविता के मन से नौकरी जाने और घर से एक बार फिर इस तरफ बेदखल किये जाने का मलाल हल्का पड़ गया. वह शादी में व्यस्त हो गयी. अगले दिन सुबह फ़ोन पर हुयी बातचीत के बाद रमणीक ने उसके पास एक गाडी भेज दी जो अगले पांच दिनों तक सविता की हाजिरी में रही और सविता रमणीक और उसके परिवार की हाज़िरी में. अचानक ऐसा लग रहा था कि घर का ही कोई सदस्य काफी साल के बाद घर लौट कर आया है. पूरे परिवार के साथ सविता की आत्मीयता हो गयी. रेखा के हर काम में वह आगे बढ़-चढ़ कर हिसा ले रही थी. रमणीक ये सब देख कर खुश था.

शादी वाले दिन सुनहरा लहगा, गुलाबी चोली और गुलाबी चुनरी के साथ पहने लकदक गहनों से लदी सविता को देख कर पूरा सिंह परिवार गदगद था. और सविता तो मानो सातवें आसमान पर थी.

इस बीच उसने अपने चैनल से जुडी दास्ताँ रमणीक को संक्षेप में सुना दी थी. रमणीक ने उसे भरोसा दिलाया था कि उसे कोई परेशान नहीं करेगा. चैनल मालिक विशम्भर मित्तल शादी में शरीक हुए थे वधु पक्ष की तरफ से. वे दूर के रिश्ते में वधु के ताया लगते थे. उन तक सविता को अभयदान देने की बात पहुंचा दी गयी थी.

इस ओर से निश्चिन्त हुयी सविता रमणीक के प्रति बहुत आभार से भर गयी थी. उसे लग रहा था जैसे रमणीक उसे आने वाली मुसीबतों से बचाने के लिए ही फिर से लौट कर उसकी ज़िन्दगी में आया था. सविता को अंदेशा था कि उसके खिलाफ कार्यवाई की जायेगी. लेकिन अब सारे हालात बादल गए थे.

शादी निपट गयी थी और शादी के बाद थकान उतारने के लिए पूरा परिवार अपने शिमला स्थित कॉटेज पर था. सविता को भी न्यौता मिला था जो उसने खुशी खुशी स्वीकार कर लिया था.

तीन दिन मौज मस्ती में गुज़र गए थे. इस दौरान सविता ने महसूस किया था रमणीक उसमें कुछ ज्यादा दिलचस्पी ले रहा था. सविता ने कॉटेज में इस्तेमाल हो रही क्राकरी की तारीफ की तो रमणीक ने ठीक वैसा ही डिनर सेट सविता के लिए मंगवा दिया और उसके सूटकेस में जिद करके रखवा दिया. सविता ने खाने में गोभी की तारीफ की तो अगले दो दिन तक गोभी ही बनी. गोभी के परांठे, गोभी की भजिया, गोभी के कोफ्ते, गोभी बेक्ड. यहाँ तक कि रेखा को ये सब नागवार लगने लगा.

लेकिन बात कुछ और बढ़ती और रेखा अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करती, उससे पहले ही वापिस आने का वक़्त आ गया. वापसी में रेखा ने कुछ ऐसा इंतजाम किया कि सविता को उस गाडी में बिठा दिया गया जो स्टाफ को ले कर आ रही थी.

रमणीक, रेखा, उनकी बेटी निशा और उनके दोनों कुत्ते अलग गाडी में दिल्ली आये. रमणीक और रेखा ने शिमला में ही सविता से विदा ली. इस बार सविता को रेखा को गले लगाते वक़्त उसके आलिंगन में कुछ ठंडक महसूस हुयी लेकिन रमणीक के आलिंगन में वही गर्माहट और अपना पन था जो सालों बाद मिलने पर उसने महसूस किया था.

वापिस आ कर सविता के पास कुछ काम तो था नहीं, उसके दिन मौज मस्ती और घूमने फिरने में बीतने लगे. कुछ पुराने दोस्त उससे चैनल से निकाले जाने के बाद कट गए थे लेकिन सविता को इसका कुछ अफ़सोस नहीं हुआ क्यूँ कि यहाँ रमणीक की घर की शादी में उसके कई नए संपर्क बन गए थे.

चैनल से नौकरी छोड़ने की वजह उसने यही बतायी थी कि वह कुछ वक़्त आराम करना चाहती थी. ताकि नौकरी खुद छोड़ने की वजह से उसकी धाक अच्छी जम जाए. इसके अलावा शादी में उसने जानबूझ कर बहुत से लोगों के सामने लम्बी औपचारिक बातचीत विशम्भर मित्तल से की थी. जो शिष्टता वश वे करते रहे थे. और उसी के बल पर सविता का ये दावा भी सब को सच लगा था कि वह जब चाहे वहां वापिस जा सकती है. सिफ एक लम्बी छुट्टी पर है.

यानी हालात और दिन बिलकुल सविता के अनुरूप ही थे. ऐसे ही एक दिन सविता सुबह उठी ही थी कि रमणीक का फ़ोन आ गया था. वह काफी परेशान लग रहा था. उसने सविता को एक रेस्तरां में लंच पर मिलने की बात की तो सविता ने फ़ौरन हामी भर दी.

लंच के दौरान रमणीक ने खुल कर अपनी निजी ज़िंदगी के बारे में बातें की. उसका कहना था कि रेखा चूँकि पड़े बाप की बेटी है इसलिए वह उसे बहुत दबाती है. अक्सर बाहर वालों और अपने रिश्तेदारों के सामने भी उसका अपमान कर देती है. वह चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाता.

उसके पिता की वह इकलौती बेटी है और वे उसे बहुत मानते हैं. कई बार वे साफ़ तौर पर रमणीक को चुके हैं कि उनकी बेटी का ख्याल रखना रमणीक का काम है और रमणीक का वे खयाल हर तरह से रखेंगे ये उनका वादा है.

सविता ने धर्य से सारी बातें सूनी थीं. और सलाह देने लगी थी कि रेखा का ख्याल तो रखना ही चाहिए. रेखा उसके बच्चों की माँ है, वगैरह वगैरह. लेकिन मन ही मन सविता को थोड़ी तसल्ली हुयी थी. सविता के मन में रेखा के प्रति भी ईर्ष्या की भावना जागने लगी थी.

उस दिन वे तीन घंटे बैठे रहे थे. बातें करते रहे, खाना खाते, कॉफ़ी पीते. आखिर कार जब रमणीक के ऑफिस से लगातार कई कॉल आ गए तो सविता ने उससे विदा ली.

सविता आजकल अपनी पुरानी मारुती जेन ही चला रही थी. नयी कार खरीदना उसे विलासिता लगती थी. इस कार से उसका काम बखूबी चल जाता था. ज्यादातर उसके दोस्त ही उसे घर से पिक करते और ड्राप कर जाते. ज़िंदगी में मज़े तो थी लेकिन अकेलापन सविता को अखर रहा था. ख़ास तौर पर देह का अकेलापन.

अमित ने फिर कभी पलट कर उसकी खबर नहीं ली थी. सविता ने एक बार उसको फ़ोन किया था उसके धोखे पर गालियाँ देने के लिए लेकिन उसने फ़ोन काट दिया. उसके बाद से उसका फ़ोन लगना बंद हो गया था. सविता ने नया सिम लेकर फ़ोन किया तो पता लगा वो नंबर स्थाई तौर पर बंद हो गया था. हार कर सविता शांत हो कर बैठ गयी थी. लेकिन उसके दिल में एक ख्वाहिश जोर मारती रहती थी कि अगर कहीं अमित मिल जाए तो उससे सवाल तो करे कि क्यूँ उसने उसे इतना बड़ा धोखा दिया?

और ये मौका एक दिन सविता को मिल ही गया. वह रमणीक और उसके कुछ दोस्तों के साथ सेंट्रल दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में थी. वे लोग डिनर कर के बाहर निकल रहे थे कि सामने से अमित आता नजर आया, उसके साथ चैनल में ही रिपोर्टर रंजीता थी. दोनों किसी बात पर खिलखिला रहे थे.

सविता को देखते ही अमित सकपका गया और रंजीता सहम गयी.

सविता ने रमणीक से कहा कि वे लोग जाएँ और गाडी में उसका वेट करें और अमित के ठीक सामने खडी हो गयी. अमित और रंजीता दोनों दम साधे उसे देख रहे थे. सविता ने एक उडती सी नजर रंजीता पर डाली और अमित को भरपूर नज़र से देखा. अमित लडखडा गया.

"मैं तुमसे बात करना ही चाहता था. तुम्हारा फ़ोन नहीं लग रहा." उसकी डूबती सी आवाज़ कानों में पडी.

"अच्छा? क्या कहना चाहते थे तुम?" सविता की कडक आवाज़ दूर तक गूँज गयी थी. वे लोग होटल के फ़ोयर में खड़े थे. आते जाते लोग एक बारगी चौंक गए थे लेकिन अगले ही पल सब अपने काम में लग गए. बाहर जाता हुआ रमणीक भी गेट के पास ही रुक गया. उसने दोस्तों को जाने का इशारा कर दिया. वे चले गए. रमणीक समझ गया कि कुछ होने वाला है.

"नहीं. मैं क्या कहूँ? यार मुझे फसाया गया था." उसकी घिघियाती सी आवाज़ निकली.

"अच्छा तुम्हें किसने फसाया था? मैं भी सुनु. मुझे तो पता है मुझे किसने फसाया था." सविता की आवाज़ में पटाखे फूट रहे थे.

रमणीक घबरा गया. वह सविता की तरफ लपका. सविता समझ गयी रमणीक के सामने कोई सीन नहीं किया जा सकता. ऐसा करने से रमणीक जैसे सीनियर ऑफिसर की इज्ज़त को नुक्सान होगा और यह वह हरगिज़ नहीं चाहती थी. रमणीक बहुत काम का था उसके लिए.

लेकिन गुस्सा तो निकालना ही था. उसने आगे बढ़ कर एक करारा चांटा अमित को मारा और बिना ये देखे कि उस चांटे से अमित बुरी तरह हिल गया था और रंजीता ने किसी तरह उसे गिरने से बचाया था, आगे बढ़ गयी.

रमणीक तब तक उसके पास पहुँच चूका था. उसने सविता के कंधे पर अपनी बाजु से घेरा बनाया और दोनों बाहर आ गए जहाँ पोर्च में ड्राईवर गाडी लगा कर इंतजार कर रहा था. उनके बाकी दोस्त जा चुके थे.

गाडी में बैठ कर रमणीक ने उसके दोनों हाथों को अपने हाथ में ले कर सहलाते हुए पूछा था, "आर यू ओके?

सविता की रुलाई छूटी पड़ रही थी. वह रोती रही बेलाग. रमणीक उसे अपने आगोश में समेटे सहलाता रहा. उस रात दोनों ही अपने-अपने घर नहीं गए थे. गुडगाँव के एक होटल में रुके थे. ड्राईवर को भेज दिया गया था घर पर. रेखा उन दिनों अमरीका गयी हुयी थी अपने कजिन की वेडिंग एनिवेर्सरी की पार्टी में शामिल होने.

इसके बाद रमणीक और सविता का मिलने का सिलसिला चल निकला था. सविता का मन पूरी तरह इस एक ही पुरुष से लग गया था. रमणीक बहुत दर्दमंद और भावुक प्रेमी था. उसके अब तक के मर्द दोस्तों से बहुत अलग. सविता की हर बात रमणीक के लिए पत्थर की लकीर होती.

लेकिन एक बात और सविता ने नोटिस की थी कि रमणीक के लिए रेखा की बात भी उतनी ही ज़रूरी होती. जब रेखा का फ़ोन आता या रेखा का काम या ख्याल आता तो रमणीक का चेहरा बेहद मुलायम हो जाता और वह सविता के पास बैठा हुआ भी कोसों दूर चला जाता.

सविता समझ गयी थी कि रेखा और रमणीक एक दूसरे के पूरक थे. लेकिन सविता ने रमणीक की ज़िन्दगी में कुछ ही महीनों में जो जगह बना ली थी वह उसका महत्व भी जानती थी.

सविता रमणीक का शॉक अब्सोर्बेर थी. जब भी रमणीक काम से या रेखा की किसी बात से आहत होता तो पहला खयाल उसे सविता का ही आता और वह भाग कर सविता के पास पहुँच जाता या उसे बुला लेता. रमणीक की निजी गाडी ड्राईवर सहित लगभग सविता के पास ही रहने लगी. वह अपनी सरकारी गाडी खुद ड्राइव करता.

ये वही दिन थे जब सविता रमणीक के दोस्तों के साथ घुँघरू डिस्को में गयी थी, मिनी स्कर्ट पहन कर और उसके बाद की रात रमणीक के साथ गेस्ट हाउस में रुकी थी. जो किसी कंपनी का था. रमणीक के रुतबे की वजह से उसे उपलब्ध था. लेकिन रमणीक भूल गया था कि गेस्ट हाउस जिस कंपनी का था रेखा का एक कजिन उस कंपनी का सी. इ. ओ. था. शक होने पर रेखा ने उसी के ज़रिये गेस्ट हाउस की वो फुटेज हासिल की थी जिसमें रमणीक और सविता एक कमरे में जाते और बाहर आते देखे गए थे. यहीं से सिरा पकड़ कर रेखा ने शिमला के कॉटेज में पूछताछ की थी और फिर ड्राईवर को घेरा गया था. डरा कर और लालच दे कर. अब सब रमणीक के खिलाफ लामबंद हो गए थे.

***