पहला प्यार (भाग-3) Amit Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

पहला प्यार (भाग-3)



स्कूल से घर आने के बाद अनगिनत विचार मेरे मन में आने लगे। "शीतल से बिना पूछे ये तस्वीर उसके किताब से निकाल कर मैंने कुछ गलत तो नही कर दी???..  क्या वो इसे ढूंढ रही होगी??.. और ऐसे कई सवाल मुझे परेसान करने लगे थे।
बैचैनी बढ़ती जा रही थी। मैं छत्त पर गया और शीतल की बालकनी की तरफ देखने लगा। अक्सर वो इस समय  वहाँ किताब पढ़ती नजर आती थी। मगर आज मेरे घंटो इंतजार करने के बाद भी वो एक बार भी नजर नही आई। 
मुझसे अब रहा नही गया और मैं शीतल के घर चला गया।
उसके पिता अभी-अभी ऑफिस से आये थे। मैने उनसे शीतल के बारे में पूछा?
तो उन्होंने बताया कि शीतल के पास उसकी माँ की शिर्फ़ एक तस्वीर थी जिसे वो हमेशा अपने पास ही रखती थी मगर वो तस्वीर आज उसे मिल नही रही थी। और वो अपने कमरे में बैठी रो रही थी।" 
आज शीतल मेरी वजह से रो रही थी। पर मुझ में इतनी हिम्मत नही थी की मैं उसके सामने जा सकू।
फिर मैंने एक योजना बनायी। मैं एक लड़के को जनता था जो किसी की भी हूबहू उसकी तस्वीर बना देता था। मैंने शीतल की माँ की तस्वीर को बड़ा बनवाकर उसके जन्मदिन पर देने की सोचा और सुबह होते ही पहुच गया उस लड़के के पास और उसे वो तस्वीर देदी। उसने मुझे शाम को बुलाया। और बदले में मुझसे छः सौ रुपये मांगे। 
मैंने पैसो के बारे में बिलकुल नही सोचा और छः सौ रुपये देने को तैयार हो गया। पर सच कहूं तो मेरे पास एक भी रूपए नही थे और ना ही समय था। बस एक आखिरी उमीद 'मेरा गुल्लक' था। और मुझे पता था कि उसमें भी मुश्किल से दो-तीन सौ रूपए ही होंगे। पर जब मैंने उसे तोडा तो मुझे विस्वास नही हुआ। उसमे सौ-सौ के कई नोट थे।। मुझे अच्छी तरह याद है कि शिर्फ़ एक बार उसमे मैंने पचास का नोट डाला था। 
आज दिल में मम्मी-पापा के लिए प्यार इतना बढ़ गया कि ज़ी कर रहा था भगवान के साथ उनकी तस्वीर लगा दु और रोज पूजा करू।
शाम के समय.. बाजार में बहुत भीड़ था। अगले दिन रक्षाबंधन था। मिठाई का हो चाहे कपडे का हर दुकान राखी की लरीयों से सजा हुआ था। हर लड़की अपने भाई के लिए राखी खरीदने आई थी और हर भाई अपनी बहन के लिए तौफा। पर इन सब में सबसे अलग शायद मैं ही था जो आज वहां तौफा लेने आया तो था पर उसके लिये जो मैं नही जानता कि उससे मेरा क्या रिश्ता था पर वो मेरी बहन नही थी।
मैं उस लड़के के घर गया। उसने अपने कहे मुताबिक वो तस्वीर बना दी थी। मैंने जब उसे देखा तो मेरे लिए ये कहना मुश्किल हो गया कि उसमें ज्यादा खुबसूरत कौन है।
सच कहु तो अगर मै ऐसी तस्वीर बना सकता तो छह सौ रुपय में तो कभी नही बनाता। मैने उसको पैसे दे दिये।
घर आ कर मैंने वो तस्वीर छिपा कर रख दी।
अगली सुबह (रक्षाबंधन का दिन) मैं सो कर उठा और जल्दी से नहा कर तैयार हो गया। दरअशल आज मुझे पापा के साथ अपने बुआ के घर जाना था। रक्षाबंधन के दिन मेरे पापा हर साल मुझे उनके घर लेके जाते थे। जहाँ मैं और वो दोनो बुआ से राखी बंधवाते थे। बचपन में जब बुआ पाप को राखी बांधती तो जिद्द करके मैं भी राखी बंधवा लेता। और इस तरह अब भी मैं उन्ही से राखी बंधवाता हु।
हर साल पापा मुझसे पहले तैयार हो जाते थे। मगर आज वो सुबह से नही दिखे। मैं मम्मी से पूछने जा ही रहा था की वो अंदर दाखिल हुए। आज वो बड़े उत्सुक लग रहे थे। 
"पापा.. बुआ के घर नही चलना क्या, अभी तक आप तैयार  नही हुए" मैंने पूछा?
"चलना है बेटा, और तैयार भी हो जाऊंगा। मगर उससे पहले तेरे लिये एक खुसखबरी है। आ मेरे साथ" वो मेरा हाथ पकड़ बाहर ले जाते हुए बोले। 
और सीधा शीतल के घर जाके रुके। मुझे कुछ समझ नही आ रहा था की आखिर पापा को हो क्या गया है। 
वहाँ शीतल के पिता ने हमे बिठाया। जिसके बाद पापा  ने मुझसे कहा "रोहन.. आज के बाद तुझे रक्षाबंधन को बुआ के घर जाने की जरूरत नही। अब हमेशा तुझे शीतल ही राखी बांधेगी।" 
मेरे पापा के इस सस्पेंस ने तो मुझे इतना बड़ा झटका दिया की जैसे मानो एक पल के लिए पर्यावरण की सारी गतिविधियां रुक सी गई हो। 
अभी इसके बारे में मैं कुछ कहु की शीतल हाथ में एक थाली लिये जिसमे राखी, कुमकुम और मिठाई थे... बाहर आई। पर.... ये सरप्राइज जितना शॉकिंग मेरे लिए था उतना ही शीतल के लिए भी था। मुझे देख कर उसके कदम भी जहाँ थे वही रुक गये। उसे भी इस बारे में कोई जानकारी नही थी।
उसके पिता ने आगे बढ़ने को कह उसे मेरे सामने खड़ा कर दिया। और मुझे राखी बांधने को बोले।
शीतल पहले तो एक क्षण शांत खड़ी रही। और फिर अपने पापा और मेरे पापा के फैसलेको नकारते हुए बोली... "नही पापा मैं रोहन को राखी नही बाँधूँगी। ये सच है कि मैं बचपन से एक भाई के लिये तरसती रही पर आज रोहन की मन की बात जाने बिना मैं राखी नही बांध सकती।"
और उसने मुझसे पूछा "रोहन क्या तुम मुझे अपनी बहन बनाओगे?
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि मैं क्या करूँ। मैने मन ही मन उससे वादा किया था कि उसकी हर ख्वाहिश मैं पूरी करूँगा। और आज जब उसकी सबसे बड़ी ख्वाहिश पूरी हो रही थी वो भी मेरी वजह से तो भला मैं कैसे मना कर सकता था। मैंने हा कर दी।।।
मेरे हा करते ही उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसने मुझे राखी बांधी। जिसके बाद मैंने उसकी माँ की तस्वीर जो उसके जन्म दिन पर देने के लिए बनवाई थी। वो उसे ला कर दिया।
जिसे देख कर वो ऐसे रो पड़ी जैसे वर्षो बिछड़ने के बाद अपनी मां से मिल रही हो।
अब मैं उसका भाई था और मेरा हक़ बनता था कि इतना रुलाने के बाद उसे चुप कराउ तो उसे चुप कराया और तस्वीर चुराने के लिये माफी भी मांगी।।

मैं जानता हूं कि कुछ लोग सोच रहे होंगे कि बहन बन गई  इसलिए ऐसी बात कर रहा हु। तो मैं उन लोगो से पूछना चाहूंगा कि जब एक पंद्रह साल का लड़का किसी को सचे मन से प्यार करता है तो उसकी क्या एक्सेप्टेसन होती है जो उसको उसके प्रेमिका के प्यार में मिल सकती है और बहन के प्यार में नही मिल सकती।
मैं तो उसके साथ बस अधिक से अधिक समय बिताना चाहता था। अपने दिल की हर बात उसके साथ साझा करना चाहता था। और इस फैसले से मुझे भी वो सारी खुशियां मिली जिससे मैं अब तक अनजान था।
और वैसे भी प्यार तो बस प्यार होता है, इसमें type कब से होने लगे।