वीकेंड चिट्ठियाँ - 9 Divya Prakash Dubey द्वारा पत्र में हिंदी पीडीएफ

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वीकेंड चिट्ठियाँ - 9

वीकेंड चिट्ठियाँ

दिव्य प्रकाश दुबे

(9)

दुनिया के नाम एक चिट्ठी,

जब ये चिट्ठी तुम्हें मिलेगी तब तक शायद मैं न रहूँ। कम से कम मैं वैसा तो नहीं रहूँगा जैसा अभी इस वक़्त हूँ।

बहुत दिनों से मैं कोई बड़ी उदास चिट्ठी लिखना चाहता था। ऐसी चिट्ठी जिसको लिखने के बाद मुझे सूइसाइड नोट की खुशबू आए। ऐसी चिट्ठी जिसमें कोई उम्मीद न हो, कोई ऐसा भरोसा न हो कि कोई बात नहीं एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा। मुझे मालूम है एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन जिस दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा। उस दिन मैं नहीं रहूँगा। आदमी की ‘बिसात’ ही कुछ ऐसी है कि वो उम्मीद नहीं छोड़ता, उम्मीद न होती तो लोग सूइसाइड लेटर लिखकर नहीं जाते, धीरे से चुपचाप मर जाते। गुमनाम मर जाना हमारे समय की सबसे बड़ी luxury है।

मैं नहीं चाहता मरने के बाद ट्वीट्टर पर ट्रेंड करना। मैं नहीं चाहता तुम्हारे दो कौड़ी के RIP वाले संदेश। जब तक मैं था तब तक तुम लोग केवल काम से तो मिले। कब तुमने मुझे फोन करके बोला कि नहीं बस ऐसे ही हाल चाल लेने के लिए फोन किया था। मालूम है हाल चाल लेने भर से हाल चाल बदल नहीं जाते लेकिन फ़िर भी।

प्लीज मेरे मरने के बाद ट्वीट्टर/ फेसबुक मत रोना यार ! कसम से बड़ा चीप लगता है। अगर मरने के बाद कन्धा देने आने से पहले सोचना पड़े तो मत आना। उससे ज्यादा आसान है मेरी तस्वीर लगाकर कोई किस्सा सुना देना।

हम ‘दिखाने’ के लिए जीने को मजबूर है, दिखावा में चाहे हो कोई कविता हो या कोई तस्वीर। याद करो कोई ऐसी जगह जहाँ तुम गए हो और तुम्हारे पास वहाँ की एक भी तस्वीर न हो। एक मिनट के लिए याद करो बिना तस्वीर वाली यादें। जब तुम आज़ादी की बातें करते हो तो मुझे हँसी आती है। तुम ये मान क्यूँ नहीं लेते कि तुम कैद हो अपने शरीर में, अपने सरनेम में, अपनी देशभक्ति में, अपनी इबादत में, अपने प्यार में, इस धरती पर, इस आसमान में। तुम्हें चिड़ियाँ आज़ाद लगती हैं न यार ! ध्यान से देखो वो आसमान से बंधी हुई हैं। वो अपनी मर्ज़ी से आसमान छोड़ नहीं सकती।

मुझे मालूम नहीं कि ये चिट्ठी मैं खुद के लिए लिख रहा हूँ या तुम्हारे लिए, ज़िंदगी का भी तो ऐसा ही है समझने में टाइम ही लग गया कि मैं अपने लिए जिया या दूसरों के लिए। अपने लिए जीना सुनने में इतना सेलफिश लगता है कि लोग दूसरों के लिए ही जिये जा रहे हैं।

कभी कभी उदासी से बढ़िया नशा कुछ हो ही सकता। तुम मांगते रहो यार दुनिया भर की चीज़ों से आज़ादी, अगर कभी दिला पाना तो मुझे अपनी मर्ज़ी से उदास होने आज़ादी दिला देना।

दुनिया की सारी सांत्वना तुम अपनी ज़ेब में रखो, ‘दिखाने’ के काम आएगी। मैं चला।

दिव्य प्रकाश दुबे

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