वीकेंड चिट्ठियाँ - 8 Divya Prakash Dubey द्वारा पत्र में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

वीकेंड चिट्ठियाँ - 8

वीकेंड चिट्ठियाँ

दिव्य प्रकाश दुबे

(8)

कोटा में IIT की तैयारी कर रहे सैकड़ों लड़के लड़कियों के नाम,

यार सुनो,

माना तुम लोग अपने माँ बाप की नज़र में दुनिया का सबसे बड़ा काम कर रहे हो। माना तुम लोग जब रोज़ कोचिंग के लिए जाते हो तो दूर बैठे तुम्हारे माँ बाप को लगता है जंग पे जा रहे हो। माना IIT से पास होने के बाद जिन्दगियाँ बदल जाती है। माना कि ये इम्तिहान पास करने लायक है।

तुम्हारे कुछ दोस्तों ने पिछले कुछ सालों में जिन्दगी से ऊपर फाँसी को चुना मैं उनको ये तो नहीं कहूँगा कि वो बेवकूफ थे। असल में जब कोई आस पास वाला दोस्त फाँसी लगा लेता हैं तो तुम अपने आप को मन ही मन समझा लेते हो कि बेवकूफ था साला, struggle नहीं झेल पाया। हम बड़े तीस मार खाँ है जिन्दगी को झेल जा रहे हैं। तुम्हारे पैरेंट्स, टीचर वो भी तुम्हें यही समझते होंगे शायद कि जो मर गए वो इसी लायक थे।

मुझे ये लगता है कि जो फाँसी लगा लेते हैं वो लोग बड़े हिम्मती होते हैं। वो सब कुछ बर्दाश्त कर लेते हैं लेकिन आलस में करना नहीं चाहते। वो बर्दाश्त कर लेते हैं कि मरने के बाद उनकी माँ उसी दिन रोकर मर जाएगी, उनके मरने से ‘घर’ जो कि IIT के इम्तिहान के रिज़ल्ट पर टिका था वो घर टूट जाएगा। मुहल्ले की एक लड़की उन्हे तब तक ढूंढेगी जब तक ढूंढते ढूंढते वो एक दिन नाम भूल जाएगी। फाँसी लगाने वाले ये सब कुछ अपने दिमाग में बर्दाश्त कर चुके होते हैं तब फाँसी का फंदा पंखें में लपेटते हैं।

असल में हिंदुस्तान में हम शुरू से ही फाँसी लगा लेने वालों की बड़ी इज्ज़त करते हैं। कभी कभी मैं सोचता हूँ कि भगत सिंह को अगर फाँसी न हुई होती तो भी क्या हम उनकी उतनी ही इज्ज़त करते, इस बात का जवाब सोचकर डर लगता है।

मेरी एक बात मानोगे, अगर तुम्हें फाँसी लगानी हो न तो इम्तिहान देने से पहले फाँसी लगा लेना यार। लिख देना एक सेंटी सी चिट्ठी जिसको पढ़कर तुम्हारे माँ बाप चलती फिरती लाश हो जाएँ। जब अपनी आखिरी चिट्ठी लिखना तो दुनिया की थोड़ी बुराई कर देना कि दुनिया थी नहीं इस लायक। जब मर जाओगे तो अगले दिन अखबार में तुम्हारा रोल नंबर नहीं नाम भी आएगा। एक दो दिन हम लोग कोसेंगे तुम्हारे घर वालों को फिर एक दिन तुम्हारा नाम भूल जाएंगे। तुम्हारा पड़ोसी जो एक दो दिन सो नहीं पाएगा तुम्हारे मरने के बाद, वो तुम्हें सबसे पहले भुला देगा। जिस टपरी पे तुम चाय पीते होगे, वो टपरी वाला भी एक दो दिन तुम्हारी बड़ी तारीफ करेगा कि ‘बड़ा हँसमुख लड़का था’।

तुम्हें पता है न तुम इस दुनिया के लिए इंपोर्टेंट नहीं हो, तुम क्या कोई भी इतना इंपोर्टेंट नहीं है कि किसी के लिए दुनिया रुक जाए। और यही इकलौती वजह है जिसकी वजह से तुम्हें दुनिया झेलनी चाहिए। यही वो वजह है कि तुम्हें ज़िन्दा रहकर इस बात को गलत साबित करने कि कोशिश करनी चाहिए।

जब हमें पहले से ही पता है कि ज़िन्दगी नाम के खेल से कोई ज़िन्दा बचकर नहीं निकलेगा तो खेल का मज़ा लेकर जाओ न, ऐसी भी क्या जल्दी है यार। एक बात याद रखना लाइफ के किसी भी इम्तिहान की ‘औकात’ लाइफ से ज़्यादा थोड़े होती है। जब साला यहाँ पे कोई नहीं बचेगा तो लाइफ को ही सीरियसली क्यूँ लेना IIT तो फिर भी केवल एक इम्तिहान है।

बाकी जो मन में आए वो करना, मौज से रहना। तुम्हारे हर एक दोस्त जिसने फाँसी लगा ली थी उसके हिस्से की जिन्दगी जीना भी तुम्हारी ज़िम्मेदारी है। क्या पता मरने के बाद भी कोई दुनिया होती हो और वहाँ कभी वो दोस्त मिले तो उसको बताना कि ‘यार, ये दुनिया इतनी भी बुरी नहीं थी कि उसको फाँसी लगाकर महसूस किया जाए’|

उधर से अपना हाल चाल भेजना और बताओ तैयारी कैसी चल रही है?

दिव्य प्रकाश दुबे

Contest

Answer this question on info@matrubharti.com and get a chance to win "October Junction by Divya Prakash Dubey"

अक्टूबर जंक्शन की कहानी किस शहर से शुरू होती है?