Weekend Chiththiya - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

वीकेंड चिट्ठियाँ - 2

वीकेंड चिट्ठियाँ

दिव्य प्रकाश दुबे

(2)

संडे वाली चिट्ठी‬

------------------

Dear Sir/Mam,

Subject: Job application from an engineer from private college

सविनय निवेदन है कि मैं आपके यहाँ नौकरी के आवेदन हेतु सम्पर्क करना चाहता हूँ। मैं पहले ही बता दूँ कि मैं वो हूँ जो एक प्राइवेट इंजीन्यरिंग कॉलेज से इंजीन्यरिंग कर चुका हूँ । नहीं ऐसा नहीं है कि मेरे कॉलेज में कंपनी प्लेसमेंट के लिए नहीं आयी थी। कंपनी का कट ऑफ मार्क्स 75% के ऊपर था और आपको तो पता ही है प्राइवेट कॉलेज से इंजीन्यरिंग करके अगर कोई 75% के ऊपर नंबर ल पा रहा है तो ये कहीं न कहीं लड़के का नहीं सिस्टम का दोष है। ऐसे लोगों को डिग्री मिलनी ही नहीं चाहिए। । मैं वो हूँ जो छोटी से छोटी नौकरी मई- जून के महीने की सड़ती गर्मी में, हजारों लोगों की भीड़ के साथ वॉक इन देने के लिए लाइन में घंटो खड़ा रह सकता हूँ। वहाँ एक बार शॉर्टलिस्ट होने के बाद ग्रुप डिस्कशन वाले राउंड को रोडीज़ का औडिशन समझकर चिल्ला सकता हूँ। ग्रुप डिस्कशन क्लियर होने के बाद इंटरव्यू में अपने ‘5 years down the line’ के रटे रटाये जवाब दे सकता हूँ।

नहीं आप ये मत समझिएगा कि मुझे कोई सॉफ्टवेर इंजीनियर वाली नौकरी बड़ी पसंद है। असल में एक बार नौकरी लग जाती तो मैं हर संडे MBA की तैयारी करते हुए चैन से डिसाइड कर पाता कि आखिर मुझे जिन्दगी में करना क्या है। इंजीन्यरिंग के चार सालों में 500-600 GB फिल्में और टीवी सीरीज़ देखने के चक्कर में इतना टाइम मिल नहीं पाया कि सोच पाऊँ कि आखिर मैं करना क्या चाहता हूँ।

देखिये काम की आप चिंता मत करिएगा वो तो हो ही जाएगा, हर कम्पनी में कुछ लड़के लड़कियां तो ऐसे होते ही हैं जो कॉलेज में पहली सीट पर बैठते थे। वो सब संभाल लेंगे, उनको अगर काम न मिले तो नींद नहीं आती, डर सताने लगता है कि कम्पनी उन्हे कहीं निकालने तो नहीं वाली है।

ऐसा नहीं है कि मुझे डर नहीं लगता, लगता है लेकिन ये डर नहीं लगता कि कम्पनी निकाल देगी। कम्पनी तो किसी कि सगी नहीं होती न आपकी भी नहीं है। असल में मुझे डर ये लगता है कि कहीं मुझे अपनी ज़िन्दगी में पता ही नहीं चल पाया कि मैं असल में करना क्या चाहता था तो क्या होगा। क्या मैं केवल एक ऐसी जिन्दगी जी पाऊँगा मैं केवल और केवल वीकेंड और छुट्टियों का इंतज़ार होगा। बस साल भर मैं एक दस दिन की छुट्टी के लिए अपने आप को घिसता और घसीटता रहूँगा।

मैं झूठ नहीं बोलना चाहता लेकिन अगर एडुकेशन लोन नहीं होता न तो मैं आपको ये चिट्ठी शायद लिखता ही नहीं। उम्मीद है आप भी इन सब सवालों से गुजरे होंगे। असल में ज़िन्दगी अपने आप में इतना उलझा लेती है कि एक दिन हम सवाल भूल जाते हैं और बिना सवाल का इन्सान, इन्सान थोड़े बचता है।

मुझे अपने सवाल बहुत प्यारे हैं। क्या आप मुझे मेरे नकली रेडीमेड जवाबों के लिए नहीं बल्कि मेरे सवालों के लिए अपनी कम्पनी में इंटरव्यू देने का एक मौका देंगे।

Thanks & Regards,

दिव्य प्रकाश दुबे,

Contest

Answer this question on info@matrubharti.com and get a chance to win "October Junction by Divya Prakash Dubey"

मुसाफ़िर कैफ़े किस शहर में है ?

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED