वीकेंड चिट्ठियाँ - 11 Divya Prakash Dubey द्वारा पत्र में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अपराध ही अपराध - भाग 24

    अध्याय 24   धना के ‘अपार्टमेंट’ के अंदर ड्र...

  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

श्रेणी
शेयर करे

वीकेंड चिट्ठियाँ - 11

वीकेंड चिट्ठियाँ

दिव्य प्रकाश दुबे

(11)

डीयर ए जी,

आपको अभी चिट्ठी से पहले कभी ए.जी. नहीं बोले लेकिन मम्मी पापा को जब ए.जी. बोलती थीं तो बड़ा ही क्यूट लगता था। आपने कभी सोचा है हम लोग प्यार करने में बोलने में अपने मम्मी पापा की नकल करना चाहते हैं। जैसे मम्मी पापा से जिद्द करती थीं वैसे ही हम आपसे जिद्द करना चाहते हैं। जैसे मम्मी गुस्सा होने का नाटक करती थी पापा के साथ वैसे ही हम भी नाटक करना चाहते हैं।

अखबार में पढ़ते हैं तो लगता है टाइम बदल गया। प्यार करने के जताने के तरीके बदल गए हैं। लड़कियाँ बदल गईं, लड़के भी बदल गए हैं। लोगों के सवाल बदल गए हैं। हाँ इतना तो बदल गया है कि दुनिया की सबसे अच्छी परवल की सब्जी जो आपकी नानी बना लेती। जो आपकी मम्मी बना लेतीं थीं वो अब केवल मुझे ही बनानी नहीं आती आपको भी आती है।

आपकी तारीफ करेंगे तो आप सर पे चढ़ने लगेंगे लेकिन हम आपको बता दें सुबह जो पहली चाय आप बना देते हैं वो हमें बड़ा ही अच्छा लगता है। मम्मी के यहाँ से भी हमारी आदत थी बिना चाय पिये आँख नहीं खुलती थी। कभी-कभी शाम को जब आप ऑफिस से हमसे पहले आ जाते हैं तब जब आप मैगी बना देते हैं तब लगता दिन भर की थकावट मिट जाती है।

देखिये जब हम शादी के लिए हाँ बोले थे तब हमें आपसे बहुत उम्मीद नहीं थी। ये बात हम लोगों को ज़िन्दगी में में जल्द ही समझ लेनी चाहिए कि पर्फेक्ट जैसा होता ही नहीं। सही बता रहे हैं ये जो लड़कियाँ सपनों का राजकुमार ढूंढती है तो बड़ी दया आती है। ये जो पिक्चर पर्फेक्ट है न ये कुछ होता ही नहीं। हमें लगता है जिसके साथ भी हम इतमिनान से बोर हो सकते हैं उसके साथ ही बुड्ढा होने का सोचना चाहिए और आप हमें बड़ा अच्छा बोर करते हैं।

हमें नहीं मालूम हम टाइम के साथ एडवांस हो रहे हैं या नहीं, हमें शायद फ़र्क भी नहीं पड़ता। शादी कोई शकुन्तला देवी की पज़ल की किताब थोड़े है। जहां सब कुछ हाई-फंडू हो। मालूम हाई दिक्कत क्या हाई जब तक लोग शादी में न्यूज़आवर की डिबेट ढूँढते रहेंगे परेशान रहेंगे। हम लोगों की बातें सुने तो हँसेगा, आधे टाइम तो हम लोग घर में क्या क्या नहीं हाई उसकी ही लिस्ट बनाते रहते हैं। ऐसे ही रोज़ अधूरी लिस्ट पूरी करते करते हमारी ज़िन्दगी बीत जाएगी। अगले जन्म को तो मानते नहीं अगर होता भी होगा तो कहीं और शादी किया जाएगा, चेंज होते रहना चाहिए नहीं तो पता कैसे चलेगा हम लोग एक दूसरे में कितना घुले हुए हैं।

अच्छा अब मज़े से चिट्ठी पढ़ना बन्द करिए। ए.जी. उठिये चलिये चाय बनाइये, हमारा चाय पीने का मन हो रहा है।

दिव्य प्रकाश

Contest

Answer this question on info@matrubharti.com and get a chance to win "October Junction by Divya Prakash Dubey"

दिव्य प्रकाश दुबे की तीसरी किताब का नाम क्या है ?