तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 16 Sapna Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 16

तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा

सपना सिंह

(16)

अप्पी ने फोन पर ही सुविज्ञ को अपने विवाह की खबर दे दी थी ..... सुनकर कई देर सुविज्ञ खामोश रह गये थे ...... फिर बोले थे - ‘‘ काॅग्रेच्युलेशन ’’ अप्पी को उनकी आवाज़ से कुछ पता नहीं चला ......

अप्पी ने शादी का फैसला जल्दबाजी में नहीं किया था ..... शादी तो उसे करनी ही थी। पापा कब से लड़के देख रहे हैं ..... अप्पी ने कभी उन्हें मना नहीं किया ! अपनी एक सेटल लाइफ उसे भी चाहिए ..... शादी न करने की उसके पास कोई स्पष्ट वजह भी तो नहीं......

उन दिनों वह मम्मी पापा के पास ही थी जब अभिनव आया था उससे मिलने ! उसने राज्य सेवा की परीक्षा पास कर ली थी ...... बड़ी उपलब्धि थी ! डाॅक्टर, इंजिनियर, आई.ए.एस., पी.सी.एस. होना लड़कों के लिए बड़ा मायने रखता था ! इधर - उधर की बातों के बाद उसने सीधे उसे प्रपोच कर दिया था ! अप्पी को अपने प्रति अभिनव के झुकाव का पता तो था .....पर, उसे तब यही लगा था ..... कि वह उसे एक दोस्त ही मानता है ...... क्योंकि, अप्पी का तेज स्वभाव, नाक पे मक्खी न बैठने देने वाला उसका एटीट्यूड ..... हर उस काम में लद्धड़ जो काबिल बहू होने के लिए जरुरी अर्हता मानी जाती थी ! अभिनव सब तो जानता था उसके बारे में ! और सबसे बड़ी बात अब वह जिस पोस्ट पर था ...... लड़कियों के पिताओं की तो लाइन लगी होगी उसके दरवाजे पर नोटों की थैलियाँ भर - भर के ! पैसा मैटर करता है भारतीय विवाहों में ! कभी - कभी अप्पी ने न चाहते हुए भी ये सोचा है कि अगर उसके पापा का फायनेंशियल स्टेटस सुविज्ञ के परिवार जितना होता ..... अगर वो भी हर रस्म पर सुविज्ञ को एक लाख देने की हैसियत में होते ..... तो क्या अप्पी अपना प्यार यांे किसी और के हाथों खोती ? सुरेखा का क्या ......? उसके पिता उसके लिए सुविज्ञ जैसा कोई और लड़का ले आते ...... वह उस आदमी की बीवी बन जातीं ...... उतने ही लगन और काबिलियत से उस आदमी का घर संवारतीं ..... उसके बच्चों की माँ बनती ..... उनकी परवरिश करतीं ......! पर, अप्पी तो पूरी उजड़ गई न ..... उसने तो सुविज्ञ के अलावा कभी किसी के बारे में नहीं सोचा ..... अपनी आँखों से बड़ा ख्वाब देखने की हिमाकत का नतीजा उम्र भर की टीस ! बताओ तो भला ...... दहेज के रूपयों का सुविज्ञ ने क्या किया होगा ...... उससे क्या बढ़ गया होगा उनके घर में ! वाह रे अप्पी ..... तुमने तो रूपयों को ठिकरा मोल न समझा और तुम्हारी किस्मत का फैसला कुछ लाख रूपयों ने कर दिया .....! अब ये अभिनव ! ‘‘ मुझसे क्यों चाहते हो शादी करना ...... जानते हो न मैं मैरिज - मटीरियल नहीं ...... हमारी पटेगी नहीं ......’’

‘‘ मैं पटा लंूगा ......!’’ अभिनव ने कहा था, अभिनव का प्रपोजल मना करना बेवकूफी होती ...... अप्पी बेवकूफ तो नहीं ही थी ..... हाँ दिमाग की जगह दिल की ही मानती आई थी अबतक ..... शायद पहली बार कोई निर्णय लेते समय दिमाग को ऊपर रखा था उसने ! और दिल के चलाये चलने वाले जब दिमाग से कोई फैसला लेते हैं तो फैसला अक्सर गड़बड़ा जाता है ..... बेचारों को दिमाग के इस्तेमाल की आदत जो नहीे होती .....

फिर, तो सबकुछ बहुत जल्दी में हुआ ..... सबको अप्पी की किस्मत पर रश्क होता ......बैठे बिठाए इतना अच्छा रिश्ता मिलना रश्क करने की बात ही थी ! रस्मी तौर पे अप्पी के पापा गये थे अभिनव के यहाँ ! अभिनव ने घर में पहले ही सब तय कर रखा था ! लिहाजा जो बात निकल कर आई वो ये रही कि अप्पी लव मैरिज कर रही है जिसे अरेंज किया गया है ! अप्पी को मजा आ रहा था ऐसी बातें सुनकर ..... अप्पी की क्लासमेट्स भी एक्साइटेड थीं ..... आपस में बातें करतीं - कितना बनती थी ये अपराजिता .....छुपे रूस्तम निकले दोनों ..... हमें तभी पता था दोनों में कुछ चल रहा है ...... चलो भाई ठीक है, युनिवर्सिटी में यँू तो कितने जोड़े बनते हैं ..... पर बाहर निकलते निकलते कोई जारी नहीं रह पाता ......!

सुविज्ञ नहीं आये थे ..... एक कार्ड भेजा था उन्होंने ..... बेस्ट विशेज का ...... उनके नाम के साथ सुरेखा का नाम नत्थी था ! अप्पी जानती थी, ये उसकी पागल ख्वाहिश है कि, उसके नये जीवन में प्रवेश करने के जश्न में सुविज्ञ मौजूद हों ...... उसे आर्शीवाद दें ...... ‘‘ अप्पी .....!’’ रीमा ने अप्पी का माथा चूम लिया था,‘‘ नजर न लगे ..... बहुत सुन्दर लग रही हो ..... !

अप्पी मुस्कुरा दी थी ......

‘‘ अप्पी ...... तुम अपने आस - पास में सबसे अलग हो ...... तुममें प्यार देने की अद्दभुत शक्ति है ...... उम्मीद है अभिनव तुम्हारी कद्र करे .....!’’

‘‘ हाँ ...... आशा करती हँू ...... मेरी आगे की जिंदगी अभिनव के साथ ठीक ठाक बीत जायेगी .....’’

..... रीमा ने आश्चर्य से अप्पी को देखा.... कैसी निश्छलता पाई हे इसने... वह किसी को अपने पूरेपन से प्यार करती है..... इस सत्य को बिना अपने से अलग किये वह एक दूसरे सत्य का सामना करने अपने पूरेपन के साथ खड़ी है! उसे विश्वास है दोनों सत्यों में टकराव की कोई वजह नही है... उसे प्यार करना उसके लिए सांस लेने जैसा हैं... उसकी जीजीविषा उसके होने की वजह....एक के प्रति प्यार महसूस तो लगा सब उसमें समा जायेंगे.... सारे रिश्तों के कुछ ज्यादा अर्थ खुलने लगे.... अब इन सबमें एक अभिनव भी है! इस संबध का एक नाम है जैसे मम्मी पापा भाई- बहनों के साथ उसका अत्मिक रिश्ता है..... अब उन सबमंे अभिनव भी शामिल हो गया है! सुविज्ञ के साथ उसके सबंध का कोई नाम नही.... इसलिए वो अप्पी में जज्ब हो उसकी आत्मा में उतर गये.... अभिनव के साथ उसके सबंध का एक नाम भी है... और ऐसे सबंध आत्मा में नहीं उतरते! ये जमीनी सबंध अपनी सीमायेः अपनी अपेक्षायें और शर्ते साथ लेेकर आते हैं! रिश्तें नातें के ढाॅँचे में गुथें ये सबंध,निःसंदेह इनमें आत्मीयता होती है,अपील होती है.... पर व्यक्ति ....इससे परे किसी सबंध की खोज में रहता है... शायद ऐसी किसी जरूरत ने विवाह जैसी संस्था को जन्म दिया होगा पर, एक नाम के साॅँचे में फिट होने के कारण.... अन्य संबंधों की तरह वह अपनी मौलिकता खो बैठा ! अपनी बेचैनियांें से छुटकारा पाने का सबसे उत्तम उपाय है, आत्मोसर्ग किसी पर आपने आपको न्यौछावर कर देना ! विवाहित व्यक्ति भी आपने आप को एक दूसरे पर उत्सर्ग करते हैं... किन्तु ये करना मजबूरी होती है.... विवाह आपसे ऐसा ही करनेे की अपेक्षा करता है! विवाह का मुख्य आर्कषण है..... एक ऐसा व्यक्ति जिसपर आपके अधिकार की सामाजिक स्वीकिृति मिली हो..... अधिकार भाव भी एक सुख की अवस्था है..... विवाह हमें ऐसा ही सुख देता है ! परन्तु समय गुजरने के साथ ही ये अधिकार भावना एक मजबूरी जान पड़ती है..... और जल्द ही सब कुछ मात्र बीतना भर रह जाता है! ऐसे में मन फड़फड़ाने लगता है, किसी ऐसे सम्बन्ध को पाने के लिए जिसमें वह अपने आपको पूरा उड़ेल दे.... एक नामहीन संबध.... जो उससे स्पष्टीकरण न मांगे, उसे मजबूरी न लगे, जहाँ वह अपने आप को अपने पूरेपन के साथ पा सके.... ऐसे में लोगों को आपनी किशोरावस्था के बेफिक्र दिन बड़ी शीघ्रता से ..... से याद आतें हैं, कोई चेहरा..... किसी की झिलमिलाती दाॅँतों की पंक्तियाॅँ, सबकुछ याद आता है..... और जिसके पास, ऐसे अनुभव नही होते.....तो उकताहट से पलायन कर ऐसे संबधोें को ढूंढने लग पड़ता है.... कही मन के स्तर पर जुड़ता हैं..... कही तन के स्तर पर.... जिसे लोग विवाहेत्तर सबंध कहते है...... नैतिकता के मापदण्ड पर एक घृणित शब्द!

अप्पी अपने आपको पूरा खो चुकी है.... और ये खोना उसे नैतिक ऊँॅचाईया दे गया हैं.... सही गलत का उसने अपना दृष्टिकोण पाया है! उसके भीतर दिप-दिप कोई रोशनी जलती हो! जैसे..... उसे जो जानता है वह यह भी जानता है कि अभिनव एक खुशनसीब व्यक्ति है.... उसे अपराजिता मिली हैं....

अप्पी बाहर से जितनी शान्त संयत दिख रही थी..... भीतर ही भीतर उस पर एक घबराहट तारी थी.... घबराहट इस बात की कि, उसकी आगे की जिन्दगी कैसे कटेगी.... वह कैसे रहेगी..... वह कैसी पत्नी बनेगी.... वह घर कैसे संभालेगी और सबसे बड़ी बात एक आदमी का दिन रात का साथ....उफ कैसे जीयेगी वो अपने किताबों.... अपने .... रंगो, अपने पौधों के बिना ! भगवान का शुक्र है वो अभिनव को जानती है.... दोनो दोस्त हैं..... अब पति पत्नी बन गये है... अभिनव उसे समझता है.... फिर भी वह फिक्रमंद तो है.... और यँूॅ भी उसे पहले तो ससुराल ही जाना है.... वहाँॅ पता नही सब कैसे होंगे.....?

अप्पी को लेकर अभिनव की उत्सुकता, उसकी लालसाये ं उसके प्यार का प्रवाह इतना तीव्र और हठात था कि अप्पी उसके साथ ही बह जाती ! शायद हर विवाह के आरंभ में शारीकता की प्रधानता होती ही है ! भारतीय समाज में शादियों का जो ढर्रा चला आ रहा है, उससे ये शादी भी किसी तरह अलग नही थी ! यहाँ थोडा़ सा बेहतर था ये कि, अप्पी अभिनव को जानती थी वह उसका क्लासमेट रह चुका था !

कुछ समीकरण आरम्भ से ही गड़बडा़ने लगे थे.... कुछ खटकने वाली बातें..... शादी के एक हप्ते बाद ही अभिनव अपनी पोस्टिंग पर अकेले ही गया..... अप्पी से इस सबंध मे न राय ली न पूछा.....! अप्पी ध्यान भी नही देती.... पर जिठानियों ने खूब हाय हाय किया...... कैसे हैं..... अरे कही बाहर घुमाने नही ले गये पोस्टिंग पर ही ले जाते..... तुमनें जिद नही की..... साथ जाने की.....

...... अप्पी को अगले ही हप्ते भाई लिवाने आने वाला था.... वह वापस अपनी दुनियाॅँ में जाने को बेताब थी ! एक हप्ते की शादीशुदा जिन्दंगी में अभिनव के अलावा और किसी से कोई जुडा़व उसे महसूस नही हुआ.....यूँ सभी कुछ खीचें खीचें थे उससे.... शायद अभिनव ने अपने मन की शादी करी थी.... ये वजह रही हो ! सास ससुर वैसे ही थे.... जैसे होते हैं.. जेठ जेठानी भी जेठ जेठानी ही थे। और ये तय था कि जीवन अगर ससुरालियों के साथ काटना पडा़ तो खासी मुश्किल होने वाली थी....।

अपराजिता और लड़कियों जैसी थी नही ! उसकी बनावट में जो मटीरियल इस्तेमाल हुआ था, वह थोडा़ अलग किस्म का था, मान्यताओं धारणाओं और परम्पराओं की बंधी-बधाई लीक पर चलना उससे कभी नहीं हो पाता था..... कसमसाहट होती थी। अप्पी को अब अक्सर गीता भाभी याद आने लगी थी.... अपने बडे़ पापा की बहू। अप्पी से उनकी बहुत पटती थी। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली गीता भाभी का पूरा परिवार मुरीद था..... पर बड़ी माँॅ को उनसे शिकायतें रहतीं ! इतनी इंटलैक्चुअल गीता भाभी बडी़ अम्मा के सामने हमेशा अकबकाई सी रहतीं ! अप्पी कभी कभी चिढ़कर कहती भी.... ‘‘आप क्यों बरदाश्त..... करती हैं..... इतना ?.... अम्मां ने गलत कहा..... आपने जबाव क्यांे नहीं दिया......?’’ भाभी मुस्कुरा देतीं, ‘‘अप्पी जी जब आपकी शादी होगी न तब आप समझेगी.....।‘‘

क्या समझेगी अप्पी.... क्यों बदलना चाहिए उसे... ? वह वैसी ही मस्त बेपरवाह क्यों न रही आये.... शादी शुदा हाने का मतलब क्या जीना छोड़ देना होता है ! उसे हमेशा उन लड़कियों पर आश्चर्य होता रहा है जो शादी होते ही फट से दूसरे ही साॅँचे में ढल जाती हैं ! यूॅँ लगता है शादी उनकी एक मात्र मंजिल होती हैं... सारी तैयारी इस एक मंजिल को फतह करने के लिए..... टाॅपर लड़कियाॅँ, जिन्हें किताबों से मुंह उठाकर दुनियां का और कुछ देखने सुनने से कोई मतलब नही होता.... एकायक किताबों से मुंह मोड़ लेती हैं..... और ताजिंदगी किताबों का रूख नही करती ! नारी मुक्ति की बातें करने वाली लड़कियाॅँ पति की परछाईं बन जाती हैं.... हमेंशा यस बाॅस, की मुदा में गर्दन झुकाये ताबेदारी को तैयार ! जो कभी रसोईघर में पैर भी नही रखती होगीं वो कुकिंग कोर्स सीखने में समय जाया करना जीवन का सबसे बडा़ लक्ष्य मान बैठती हैं ! अप्पी ने अपनी बहुत सी सहेलियों का काया परिवर्तन होते देखा था....।

अपनी सहेली अमिता उसे याद है ! प्यारी सी आॅँखों वाली मुहंफट अमिता ! राह चलते सबसे भिड़ने वाली दंबगई थी उसमें..... बेचारी की शादी संयुक्त परिवार में सबसे छोटे लड़के से हुई ! पति महाशय दंबगई में गवार पने की हद तक उतर जाने वाले! ससुराल का माहौल सोलहवी सदी का...... बेचारी मायके आती तो सबसे पहले साड़ी उतार सलवार कुर्ते में दो चोटी झुलाये अपने पुराने हुलिए को धारण करती करती ! अप्पी कहती भी..... यार मैं तुम्हें सिर पर पल्लू, पायल झनकाती बहू के रूप में इमेजिन करती हूँ तो हंसी छूट जाती है.....। वह भी

यही बात कहती, देखेंगे बच्चू तुम्हंे भी.... जरा शादी हो जाने दो.... साला शादी न हो गयी मुसीबत हो गयी ! ‘‘ पर अप्पी को शादी का समाजशास्त्र समझ में आने लगा था.... अभिनव ने अपनी पसंद की शादी की थी और वह नही चाहता था कि अप्पी की किसी भी बात पर माँ को अफसोस हो कि काश वह अपने मन की बहू लाती।

***