तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 6 Sapna Singh द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 6

तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा

सपना सिंह

(6)

कदमों की आहट सुनकर......सुविज्ञ ने हड़बड़ा कर डायरी मेज पे रख दी भीतर एक गिल्टी सी महसूस हुई...... बाहर से नीरू की चिढ़ी हुई आवाज़ आ रही थी।

‘‘हद है अप्पी..... कितनी देर लगा दी.....’’

‘’पता है कौन आया है......‘’?

..........

‘’सुविज्ञ भैया आये है.....’’

‘’नीरू दी मै अभी मजाक के मूड में बिल्कुल नहीं हूॅँ..... बहुत थक गई हूॅँ..... ‘मजाक नहीं...... सच......’ कहती हुई नीरू अप्पी का हाथ ख्ंिाचते हुए कमरे में ले आयी। अप्पी के पूरे शरीर में बिजली सी कौंध गयी...... सर्दी में पसीना छूटना किसे कहते हैं।.....समझ आ गया...... क्षण भर में लगा वह अस्तित्वहीन हो गयी है....

सामने अवाक सुविज्ञ खडा था, खुशी की अधिकता किसी चेहरे को किस तरह भावनाओं का स्क्रीन बना देती है..... यह सुविज्ञ उस चेहरे पर देख रहा था...... पल पल बदलता चेहरा..... उसके कंपकपाते होठो पर मासूम सी मुस्कुराहट...... अप्पी को लग रहा था वह रो पडे़गी या अपने आप पर अपना वश खो कर सुविज्ञ से लिपट जायेगी...... सुविज्ञ हैरान परेशान..... एकबारगी उसे लगा वो अन्तध्र्यान हो जाये...... ऐसी विकट परिस्थितियांें की तो उसने कल्पना भी नहीं की थी...... कहाँॅ फंस गया वह? अपने को लताड़ने लगा। क्या जरूरत थी यहाँॅ आने की..... पर उसे क्या पता था कि यहाँॅ किसी बम्बईया फिल्म के भावुक सीन का हिस्सा बनना पड़ेगा

‘‘ भईया ये अप्पी है ‘‘नीरू ने परिचय कराना चाहा ‘‘ और अप्पी को ये सुविज्ञ भैया है...... फोटो देखी है न तुमने.....‘‘

अप्पी क्या कहे....कैसे कहे इस आदमी को तो वह जन्म जन्मान्तर से पहचानती है...... अपनी ही आत्मा का छूटा हुआ अंश सा ..... हो ज्यूँ। इससे कैसा परिचय कराना...... वह अभिभूत है..... स्पीचलेस।

और सुविज्ञ... एक अटपटेपन के वावजूद उसे ऐसा एहसास नहीं है..... मानो वह पहली बार मिल रहा हो इस लड़की से...... वह जानता है इसे...... थोड़ा थोड़ा जानने लगा है.....

अप्पी का मन हो रहा था... सुविज्ञ को छू के देखे...... सच है या सपना...... उसकी आखें अब ज्यादा देर संयम नहीं रख पायेंगी..... कहीं वह भरभराकर रो न पड़े.....।

आती हूँ..... कहकर वह कमरे से बाहर जाने लगी.....

’’अब कहाँ जा रहे हो..... बाजार चलना है.....।’’

’’मै थक गइ हूँ......।’’

अब बहाने मत बनाओ..... मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी.....’’ नीरु को गुस्सा आने लगा था।’’

’’अरे हमे फ्रेश तो हो लेने दीजिए..... सुबह से ऐसे ही हूँ...... बड़ी जोर की शू...शू.... आई है.....।’’ अप्पी ने फुसफुसाकर कहा और नीरु की बेसाख्ता हंसी छूट गई दस मिनट में वह मुह पोंछती हुई कमरे में दाखिल हुई..... सुविज्ञ नीरु अम्मा, बाबूजी बैठे चाय पी रहे थे..... अप्पी का कप भी रक्खा था। अप्पी शीशे के सामने खडी हो मुंह पोंछ रही.....

’’ए अप्पी..... अब चोटी मत खोलना...... वरना एक घण्टे लगाओगी चोटी करने में..... सुविज्ञ का ध्यान अप्पी की बालों पर गया वाकई बहुत बडे़ और मोटे बाल थे..... बाप रे, इत्ता जरा सा सिर और इतने बाल, कैसे संभालती होगी! अप्पी ने हांथो से ही बालों को ठीक किया और शाॅल लपेटकर बैठ गयी चाय पीने।......अप्पी अब सहज हो गई थी, उसके उसके चेहरे की रंगत लौट रही थी! गोलघर में सुविज्ञ ने एक जगह कार पार्क कर दी..... अप्पी और नीरु समान लेते...... दुकानदार से बहस करते..... इस बीच सुविज्ञ अप्पी को देखता..... कैसा बच्चों जैसा चेहरा..... थका कुम्हलाया...... पूरे चेहरे पर बड़ी-बड़ी आँखे खूब लम्बी चोंटी जो बाँधी तो कस कर गई होगी..... पर इस समय लुंज-पुंज हो गई थी..... शाॅल को मफलर जैसे गले में लपेट रक्खा था..... रह-रह कर चमकती नाक की लौंग..... कान में छोटी-छोटी बालियाँ दायें हाथ की अनामिका में शायद मूंगे की अंगूठी। पहली बार में इतनी साधारण। ऐसी की आदमी एक बार उचटती नजर डाल कर गुजर जाये..... पर, अगर नजर जरा भी ठहरी तो उसी क्षण वह साधारण लड़की असाधारण लगने लगी। चेहरे का तेवर, चाल की अकड़ सबकुछ मिलकर ऐसा बन जाता जिसे नजर अंदाज करना मुश्किल होता.....।

सुविज्ञ ने सुरेखा के बारे में सोचा..... चंद दिनो बाद जिसके साथ उसका विवाह होना था.....! सुरेखा हर तरह से उसके योग्य थी! अपनी होने वाली पत्नी में जो अर्हताएँ वह चाहता था.....उस पर एकदम खरी! काॅन्वेंट शिक्षित विश्वविद्यालय की ऊँची डिग्री..... संभ्रात परिवार खूबसूरत! कहाँ सुरेखा की चकाचैंध खूबसूरती और कहाँ ये साॅवली सी दुबली पतली लड़की.....! उसने सिर झटक कर इस फिजूल तुलना से अपने आपको आजाद किया! अहमकाना सोच है.....!

अप्पी हैरान होकर सुविज्ञ को देखती...... चैंक उठती...... उसे रोमांच हो आता..... आंसू उमड़ आते..... सुविज्ञ की नजरें अप्पी की नजरों से उलझ जाती उस चेहरे पर तो कितना कुछ लिखा था साफ..... स्पष्ट..... जिसे वह पढ़ भी सकता था..... पर वह ऐसा करने से बच रहा था उन पनीली आंखों मंे उसे भंवर दिखाई पड़ रहे थे..... उनसे बचने को नहीं उनमें डूबने को जी चाहता है..... अपना आपा कमजोर होता देख उसने अपनी नजरें हटा ली थी!

मंदिर में दर्शन करने के बाद अप्पी बाहर पेंड़ के नीचे बैठ गई थी...... नीरु मुख्य मंदिर में दर्शन करने के बाद..... बगल में अन्य देवी देवताओं के दर्शन करने के लिये चली गई थी! अप्पी जानती थी..... वो एक-एक मंदिर में जायेगी...... सारे पेड़ों के फेरे लगायेगी... अप्पी थकी हुई थी..... दूसरे उसे यह बड़ा गैर जरुरी लगता था...... अब गोरखनाथ दर्शन को आयें हैं तो..... मुख्य मंदिर में हो गया दर्शन! मुख्य मंदिर के दायीं ओर छोटे-छोटे बीसीओं मंदिर हैं अलग-अलग देवी देवताओं के..... अप्पी एकाद्य बार घूम आई है उधर..... पर हर बार नहीं होता..... ये हर मंदिर में माथा टेकना.....! यूं भी आज कल सभी मंदिरों.. पूजास्थलों पर कई नये मंदिर बनते जा रहे है! आप हनुमान जी के दर्शन करने जायें लगे हांथ अन्य देवी देवताओं के दर्शन भी हो जायेंगे..... शिव मंदिर जायें वहाँ राम-सीता, राधा-कृष्ण, हनुमान और दुर्गाजी भी अपनी अलग-अलग कोठरियों में मौजूद होंगे! आस्था भी छुतहे रोग की तरह फैलती जा रही है! अप्पी की मम्मी भी घण्टा भर लगाती थीं...... घूम-घूम कर सारे मंदिरों के दर्शन करने में..... अप्पी पापा के साथ बैठी होती..... उसे डाँट भी पड़ जाती..... इतनी दूर बैठने के लिये आई हो..... जाओ..... उधर भी मंदिर है....दर्शन कर आओ..... पर अप्पी टस से मस नहीं.....

अप्पी को मौसा जी और मौसी की पूजा अनोखी लगती! दोनो सुबह चार बजे उठ जाते। नहाकर आसन विछाकर बैठते..... पर पूजा धर में नहीं...... बरामदे मेें...... एक-एक खम्भे के सहारे! आंखे बन्द कर एक घण्टे तक बैठे रहते! अप्पी ने बहुत छोटे में भी जब ये लोग गाँव में रहते थे तब भी ये देखा था...... और अब भी उन लोगों का यही रुटीन है! पूजा का ये तरीका अप्पी को अट्रैक्ट करता था..... चुपचाप आँखे मूँदकर खुद के भीतर उतरना!

’’अप्पी .....’’ सुविज्ञ ने उसे पुकारा था..... अपना नाम सुविज्ञ के मुँह से सुनकर उसे रोमांच हो आया।

’’कुछ..... कहना था तुमसे.... पर.....’’ उलझ कर वह चुप हो गया..... क्या कहना था... अप्पी का दिल धड़कने लगा था! सुविज्ञ चुप बना रहा थोड़ी देर...... शायद कहने के लिये शब्द ढूंढ रहा था। एकाएक उसने सिर उठाया और गंभ्भीर स्वर में बोला...... बहुत प्यार करती हो मुझसे.....?’’ एक सनसनाहट सी फैली अप्पी के भीतर..... उसने एक तीखी नजर डाली सुविज्ञ पर..... गले में कुछ अटक सा रहा था...... फिर भी जबाब देगी वो..... ये सवाल.....जब भी किया जायेगा अनन्त काल तक उसके पास इसका एक ही जबाब है..... ’पता नहीं......’ उसने गहरी सांस ली थी! ’’पर इतना पता है..... ये मेरी हद है....।’’ उसका गला रुंध आया था...... पर वह तुरंत ही संयत हो गई.....।

’’अगर मैं कहूँ...... ये पागलपन छोड़ दो तो.....’’

अप्पी अपनी क्षणिक दयनीयता से उबर चुकी थी..... ’’बेशक आपको यही कहना चाहिए..... जेन्टलमैन की यह सहज प्रतिक्रिया है.....।’’अप्पी की आवाज में मस्ती का पुट था। ’’आखिर खुद को तकलीफ देने में कहाँ की अक्लमंदी है.....?’’ सुविज्ञ का लहजा खीजा हुआ था।

’’सचमुच..... अक्लमंदी तो कुछ भी नहीं है..... पर मेरी गणित..... कुछ ज्यादा ही कमजोर है...... इसलिये..... प्राॅफिट लाॅस..... मेरी समझ में ज्यादा आता नहीं.....।’’

’’व्हाट...... नाॅनसेंस.....’’ सुविज्ञ झल्ला पड़ा और फिर ठण्डा भी पड़ गया!

’’ओह अप्पी..... दिस इज कम्पलीट मैडनेस...... आखिर क्या दिया है मैंने तुम्हें..... आज पहली बार तुमसे मिल रहा हूँ..... तुम्हारे पत्र मिले थे..... सच कहूँ तो उनकी मेरे लिए जरा भी अहमियत नहीं थी..... आखिर क्या है मुझमें......?’’ सुविज्ञ को समझ नहीं आ रहा था...... क्या कहें कैसे समझायें..... ये प्रेम प्यार..... उसे समझ नहीं आता..... ये सब...... और जो थोड़ा बहुत उसकी समझ में आता भी है तो इतना ही कि..... यदि स्त्री-पुरुष के बीच में ऐसी कोई चीज है भी तो उसकी एक मात्र परीणिती विवाह ही है..... किसी कारण से अगर विवाह नहीं हुआ..... तो सब खत्म.....।

’’आप क्यों परेशान हो रहे है.....’’

’’लेकिन जो चीज तुम्हे कुछ दे नहीं रही..... उससे चिपके रहने की क्या तुक है....?’’

’’ तुक की बात हमें नहीं पता.....।’’ अप्पी के चेहरे, आँखों, माथे पर जाने कैसा खिंचाव उभर आया, ’’मुझे जो पता है उसमें तर्क की गुंजाईश नहीं है..... मैं आपको प्यार करती हूँ.... इस बात से बचने, इसे झुठलाने की मैने खूब सारी कोशिश की है...... कोई फायदा नहीं हुआ...... हारकर स्वीकार कर लिया...... अब क्या करुँ मेरे पास कोई वजह भी नहीं की आपसे प्यार करना बंद कर दूँ..... आप कह रहे है इसलिये बंद कर दूँ..... भाई मैने आपसे पूछकर तो आपसे प्यार करना शुरु नहीं किया था..... न!’’

आदमी किस तरह परिस्थितियों के आगे बेबस हो जाता है। इसका जीता जागता उदाहरण आज सुविज्ञ बन बैठा था।

’’अप्पी क्या तुमने सचमुच मुझसे कुछ नहीं चाहा...... सभी प्यार करते हंै, उससे शादी करना चाहते है.....’’ लगा उसकी बात अप्पी की किसी दुखती रग को छूते हुए गुजर गई है...... वह बिलबिला उठी है..... लगा कोई बाँध सा टूटा हो.....।

’’मै किसी और मिट्टी की बनी नहीं..... मै भी आपके साथ होना चाहती थी...... चाहती हूँ...... सोचने को तो ये भी सोचती थी की मेरे प्यार में ताकत होगी तो जरुर मैं आपको पाऊँगी...... हर मंदिर..... हर मस्जिद हर देव स्थानों पर सिर झुकता तो सिर्फ एक ही दुआ के लिये..... कि आपका साथ मिल जाये...... पर, अब अपनी इस इम्मेच्योरिटी पर हंसी आती...... असल बात तो है प्यार में होना...... सबसे बड़ी दुआ तो यही है.....’’।

सुविज्ञ आश्चर्य से उसे देख रहा था..... सुन्दरता की परिभाषा क्या होती है..... सुरेखा से कई बार मिल चुका था वह..... सहज मित्रवत मुलाकात। स्वाभाविक सा सबकुछ.....! एक ये है.... काले शाॅल में लिपटी..... बार-बार दायें हाँथ की तर्जनी अकारण ही नाक तक लेजाकर नाक मसलती हुई...... छोटा सा सीधा-सीधा चेहरा...... बेहद सरल..... पर सपाट नहीं...... साफ-सुथरी बड़ी-बड़ी दो आँखें...... जो दिल का हाल बड़ी इमानदारी से सबको बता देती थी..... ठुड्डी का गड्ढा . नाक की लौंग..... कान की बाली..... सब कुछ जैसे.... कैसे घुल मिल गये हैं इसकी शख्सियत से...... मानो कुछ भी हटाया तो पूरी तस्वीर ही बिगड़ जायेगी...... इस चेहरे को एक बार देखो दो बार देखो...... बार-बार देखो फिर भी नजर हटती नहीं...... हर बार कुछ नया ही दिख जाता है..... सोचते-सोचते उसके भीतर जाने कैसा तूफान सा उठा...... लगा जाने कब से जानता है इस लड़की को...... कितना अनजाना..... कितना मीठा ख्याल है ये कि वह किसी के लिये कितना महत्वपूर्ण है। एक दर्द सा उतर पड़ा उसकी रग-रग में उसे लगा बस, यही एक पल...... सब कुछ यही है..... आगे पीछे की सारी सोचें अंतरिक्ष में लोप गयीं! हठात् उसने अप्पी के दोनो हाथ पकड़ लिये....‘अप्पी मै तुमसे शादी करुंगा..... अभी इसी दम....! वह उत्तेजित था! नीरु जो अभी-अभी आकर खड़ी हुई थी..... हतप्रभ होकर सुविज्ञ का यह रुप देख रही थी! अप्पी का तो हाल ही बुरा था! वह कांपकर रही गई! सुविज्ञ के गर्म हाॅथों में उसका ठंडा हाथ दुबका पड़ा था...... वह मानों आसमान में उड़ रही थी पर जल्द ही उसे वस्तुस्थिति का भान हो आया..... उसकी हंसी छूट गयी...... पलकों पर आॅँसू उतरा आये। सुविज्ञ हड़बड़ाया सा उसका मुँह ताक रहा था...... क्या आप भी सुपरमैन जी...... किसी लड़की ने अपने सामने जरा सी बकवास क्या कर दी..... आप उससे शादी करने चल पडे़..... पता है न...... चदं दिनों बाद आपकी शादी है.....‘‘

***