भूतों पर अक्सर हम सबने इस बात की बहुत चर्चा सुनी है कि भूत होते हैं या फिर नहीं।
कुछ लोग इसे मजह वहम या फिर मनगढ़ंत कहानी मानते हैं तो फिर कुछ लोग ये मानते हैं कि भूत सच में होते हैं।
भूतों का विषय इंसानी समाज में एक बेहद ही रोमांचक और डरावना विषय है जिसपर हर किसी की दिलचस्पी होती है। भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में भूतों को लेकर कई तरह की बातें की जातीं हैं और समय-समय पर भूतों को लेकर कई बातें सामने आती रहतीं हैं। भूतों के विषय पर बॉलवीवुड, हॉलीवुड समेत दुनियाभर में कई फिल्में भी बन चुकीं हैं। लेकिन मैं आपको बताऊंगी कि क्या सच में भूत होते हैं या बस यह सब अपने अपने मन का वहम है।
मेरा नाम निशी कुमारी है। मेरे गाँव का नाम भगवतपुर है। मेरी शादी पिछले वर्ष ही छोटू नाम के एक शख्स के साथ हुई है। मेरे हस्बैंड का हाल में ही ट्रांसफर उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर नामक जगह पर हुआ था। अभी वो उस जगह नए ही थे। मेरे हस्बैंड ने मुझे कुछ दिनों के लिए अपने नानी के यहां कानपुर छोड़ दिया क्योकिं वो कुछ दिनों के बाद ही वो अच्छे कमरे में शिफ्ट करने वाले थे।
मैं बहुत खुश थी क्योकिं बात कुछ दिनों की ही थी और समय गुजरते पता नहीं लगता है। जहां मैंने एक साल उनकी जुदाई में गुजार दी थी वहां यह चंद दिन मायने नहीं रखते थे।
शादी के बाद मैं कानपुर पहली बार ही आयी थी। यहां नानाजी अपनी धर्मपत्नी के साथ सेवनिवृति के बाद अकेले ही रहते थे। उनके एक पुत्र हैं लेकिन वो पिछले 15 सालों से अपने परिवार के साथ दुबई में ही रह रहे थे। नीचे 3 कमरे थे जो उन्होंने किराए पर एक परिवार को दिया हुआ था। ऊपर भी 3 कमरे थे, एक कमरे में नानाजी सोते थे, दूसरे कमरे में में नानी के साथ सोती थी और तीसरे कमरे को स्टोर रूम की तरह इस्तेमाल होता था इसलिए अक्सर उसको बन्द रखना पड़ता था।
दिसंबर के महीना था। कानपुर की कंपकंपाती ठंड में हाड़ मांस कांप जा रही थी। ऐसी ठंड से तो कभी भगवतपुर में भी सामना नहीं हुआ था। खैर कुछ दिनों की ही बात थी इसलिए समय अच्छा से गुजर रहा था।
नानाजी 90 वर्ष के हो चले थे लेकिन सुबह सुबह योगा और मोरिनिंग वॉक के कारण खुद को दुरूस्त कर के रखा हुआ था।
लेकिन इसके ठीक विपरीत नानी की उम्र भी लगभग 85 वर्ष की हो चली थी लेकिन 2 बार सीढी से फिसल कर गिर जाने के कारण उनकी रीढ़ की हड्डी में डिस्क स्लिप हो गयी थी जिस वजह से वो दूसरे कमरे में जाने के लिए दीवार का सहारा लेती थीं।
मुझे उनके बुढ़ापे को देखकर तरस भी आता था लेकिन इसका स्थायी समाधान भी तो नहीं था।
08 दिसंबर 2018 की बात है। मैं आज बहुत खुश थी क्योकि मेरे हस्बैंड का आज जन्मदिन था। वो बिना बताए आज अचनाक कानपुर आकर मुझे सरप्राइज कर दिया था। मैं बहुत खुश थी। रात को लंबी जुदाई को करीब करने में गुजार दी।
सुबह जब मेरे हस्बैंड वापिस जाने लगे तो मैं उनसे बोली- "आप कैसे मेरे बिना इतने दिन से रह रहे हैं, मुझे तो आपसे एक पल की भी जुदाई बर्दाश्त नहीं होती। भला नई नई शादी के बाद कोई इतनी दूर रहता है क्या? वो भी ऐसी कड़कड़ाती ठंड में?"
"अपने भावनाओं को काबू में रखो प्रिय! मैं तुम्हे 10 दिन बाद जो इतवार का दिन है तब ले जाऊंगा। तब तक अपने प्यार को बचा कर रखो फिर जितना मर्जी न्योछावर कर लेना।"
यह मेरे पति की आखिरी शब्द थे, उन्हें गए हुए दो दिन हो गए थे।
रात को एक दिन अचानक हंगामा होने लगा। मैंने दरवाजा खोला तो देखा कुछ लोगो ने घर के सामने भीड़ लगा कर रखी हुई थी और कुछ इस तरह की आवाजें आ रही थी-
"हां...हां वो बवंडर वाला भूत ही था। मैंने साफ साफ देखा है उसको।"
"अरे बेटी तुम अंदर जाओ यहां दरवाजे पर खड़ी हो कर इतनी रात क्या कर रही हो?" यह स्वर पड़ते ही मैं अंदर चली गयी और नाना जी बाहर जाते हुए दरवाजा सटा कर गए।
थोड़ी देर में जब वो आए तो मैंने उनसे जानना चाहा-
"नानाजी क्या हुआ? कैसा हंगामा था ये?"
"अरे कुछ नहीं हमारे घर के पीछे जो पुरानी रेलवे लाइन है ना उस पर ऐसे ही कोई रात में चलते चलते फिसल गया और सिर में चोट आई है।"
नानाजी ने नानी की तरफ देखते हुए कहा।
"ल...लेकिन उनमें से एक कह रहा था कि कोई बवंडर वाला भूत था औऱ उसने देखा है।"
मैंने तपाक से उनको प्रतिउत्तर दे दिया।
झूठी हंसी बनाते हुए वो बोले- "अरे कैसी बात कर रही हो बेटी! भूत नाम की कोई भी चीज़ नहीं होती, लोगो को तो बस बहाना चाहिए अफवाह फैलाने की।"
"अरे निशी बेटा चलो बहुत देर हो गयी है अंदर रूम में सोने चले।"
नानी ने फटाक से यह कह दिया, जिसके कारण मुझे उनके साथ सोने जाना पड़ा।
काफी देर रात तक मैं सोचते रह गयी कि क्या जो मैंने सुना था सच मे वहम था या नाना जी मुझसे कुछ छिपाने की सोच रहे थे। लगभग साढ़े ग्यारह बजे मेरे हस्बैंड की कॉल आती है।
मैं मोबाइल ले कर घर के पीछे की तरफ वाली छत पर आ जाती हूँ। वहां सामने पुरानी रेलवे लाइन थी जो कि पिछले 9 साल पहले बन्द कर दी गयी थी। अब उस पर किसी तरह की आवागमन नहीं होती थी। मैं उन्हीं पटरियों को देखते हुए अपने हस्बैंड से बात करने में खोई हुई थी कि तभी अचानक किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया। मैन बड़ी हिम्मत कर के पीछे पलटा तो देखा कि नानी खड़ी थी। मुझे इस तरह बात करते हुए बोली-
"निशी बेटे! घर के अंदर बात करो। इतनी रात इधर मत आया करो। यह जगह सुरक्षित नहीं है।"
"आप सो रहीं थी तो मैंने सोचा कि आपको डिस्टर्बेंस ना हो इसलिए....क्या कहा आपने यह कह सुरक्षित क्यो नहीं है?"
मैंने नानी से जानना चाहा कि नानी ने ऐसा क्यों कहा कि तभी अचानक नाना जी भी वहीं आ जाते है और कहते है -
"बेटे! पास में इस रेलवे लाइन के बंद हो जाने की वजह से यह रात को अक्सर सुनसान लगता है, इसलिए चोरों का खतरा बढ़ जाता है।" यह कहते हुए वो नानी की तरफ देख कर मुस्कुरा रहे थे।
हम तीनो अंदर आ गए और मैं नानी के साथ सो गई।
आज बुधवार के दिन था सुबह ही नाना जी मटन ले कर आए थे। उन्होंने कहा कि यहां का मटन बहुत स्वादिष्ट होता है। मैंने जी भर कर खाया नतीजतन मेरा पेट खराब हो गया औऱ सुबह से शाम तक मैं लगभग 8 बार शौचालय चली गयी। मैं शर्म की वजह से नानी को अपनी परेशानी से वाकिफ नहीं करवा सकी।
रात लगभग 12 बजे मुझे फिर से शौचालय लगा तो मैं बिना नानी को बताए फ्रेश होने के लिए चली गयी। अब्बी मुझे अंदर बैठे हुए कुछ क्षण ही हुए थे कि मैंने अपनी आवाज सुनी कोई निशी निशी कहकर पुकार रहा था। अचनाक तभी किसी के गिरने की आवाज आई और रोने की आवाज आने लगी। ऐसा लग जैसे कोई ऊँचाईं से गिरा हो और तेज दर्द से बिलख रहा हो।
मैंने जल्दी जल्दी अपने ज़रूरी काम को समाप्त किया और हाथ धोने के बाद बाहर आई। बाहर आते ही यह देख मेरा होश उड़ गया कि नानी घर के पीछे वाली छत पर ज़मीन पर लेटी लेटी आंसू बहा रहीं थी।
नाना जी मेरी तरफ देख रहे थे। मुझे कुछ समझ नही आया कि नानी इतनी तेज कैसे गिर सकती है। मैंने और नानाजी ने मिलकर अंदर बिस्तर पर नानी को लिटाया।
"नाना जी क्या हुआ नानी को? और यह इतनी भयंकर किस चीज़ के गिरने की आवाज थी।" मैंने उनसे उत्सुकता से पूछते हुए कहा।
"बेटा! अब तुमसे क्या छिपाना। तुम जब अभी शौच के लिए गयी थी, तब तुम्हार नानी तुमको ढूंढने लगी। ढूंढते ढूंढते वो सहम गयी कि कहीं तुम इतनी रात को मोबाइल से बात करने के चक्कर से कहीं घर के पीछे की तरफ वाली छत पर नहीं चली गयी।"
"आखिर मैं उधर चली भी जाती यो इसमे मुझे नहीं लगता कि घबराने वाली बात थी।"
"पहले पूरी बात तो सुनो बेटा, उसके बाद जो कहना हो कहना।"
"ओह्ह सॉरी नानाजी, जी बोलिये आप।"
"वहां छत से पुरानी रेलवे लाइन पास में ही दिखती है। लगभग 3 फुट की ही दूरी है बस। तुम्हारी नानी जब वहां छत पर ढूंढ रही थी कि तभी वो बवंडर वाला भूत इनको उठा कर पटक दिया।"
"भ...भूत कैसी बात कर रहे नानाजी। आओ मुझे डराने की कोशिश कर रहे हैं ना? "
"नहीं बेटा यह उस भूत का ही काम था। तुम्हारी नानी ने भी उसे महसूस किया था।"
"चलिए एक पल के लिए आपकी बाते मान भी लूं तो लेकिन भला वो ऐसा क्यों करेगा। इस से उसको क्या मजा आ त होगा?"
"बेटा उस भूत का सिर नहीं है। इसलिए उसको पहचानने में आसानी होती है।"
हा... हा... भला ऐसा कैसे हो सकता है। यह सब तो बस फिल्मों ही होता है नाना जी।"
"बात 5 साल पुरानी है। भोला नाम का एक नौकर हमारे यहां दिन में काम किया करता था। एक दिन किसी बात को ले कर उसका झगड़ा उसकी पत्नी से हो गया। वो गुस्से से तिलमिलाया इस पटरी पर जा कर लेट गया। थोड़ी देर में वहां से रेल गुजरी और उसका सिर उसके धड़ से अलग हो गया। तो हमेशा के लिए दुनिया छोड़ चला गया। गुस्से में लिए गए एक पल के फैसले ने उसकी हमेशा के लिए जीवन लीला खत्म कर दी।
कुछ दिनों के बाद जब यह पुरानी और यूज़लेस होने की वजह से रेलवे विभाग द्वारा यह लाइन बन्द कर दी गयी। अब इसकी पटरीयों को लोग सुबह शौच के लिए इस्तेमाल करने लगे। कुछ दिनों के बाद इस जगह पर अजीब सी वाक्या होनी लगा। जो भी इंसान शौच के लिए इस तरफ आता। अचनाक उसे बिना सिर वाला इंसान दिखता और पलक झपकते हवा का बवंडर उस उस इंसान के आजू बाजू मंडराने लगता और देखते ही देखते उस बवण्डर उस उस इंसान को उठा लेता और गोल गोल घुमाता हुआ 10 फीट की ऊँचाईं तक ले जाता। थोड़ी देर गोल गोल घुमाने के बाद ज़मीन पर धड़ाम से पटक देता था। ऐसा काफी लोगो के साथ हुआ। इस डर से इस पटरी की तरफ जाना लोगो ने बंद कर दिया।
हमारा घर बिल्कुल इसके पास में पड़ता है। तुम्हारी नानी ने काफी बार घर के पीछे वाली छत से उस बिना सिर वाले बवण्डर भूत को देखा है। तुम्हारी नानी तुम्हे ढूंढते ढूंढते इतनी रात को छत पर चली गयी और उस बवण्डर वाले भूत ने इस मौके का फायदा उठाते हुए तुम्हारी नानी को भी उसी बवण्डर के आगोश में लेते हुए पटक दिया है, जिसकी वजह से ये यहां पड़ी हुई हैं।"
"ओहहो नानानी यह तो बहुत खतरनाक जगह है। आपने मुझे पहले क्यों नहीं आगाह किया।"
"हमलोग नहीं चाहते थे कि ये सब तुम्हे पता लगे और किसी तरह का डर तुम पर हावी हो।"
"अच्छा बहुत रात हो गयी है तुम अब नानी के साथ आराम करो सुबह मिलते हैं।"
यह कहकर नानाजी वहां से चले गए। लेकिन डर अब मेरे जेहन में घर कर चुका था। नानी चुपचाप मेरी तरफ देखी जा रहीं थी।
नानी 2 दिन में पहले की भाँति सामान्य हो गई।
कुछ दिनों खौफ का असर रहा फिर मैं अपने हस्बैंड के आने की खुशी में सब कुछ भूल गयी। मेरे हस्बैंड आज रात 12:30 बजे की ट्रैन से निकलने वाले थे और सुबह 6 बजे तक कानपुर पहुंचने वाले थे। मैं आज बहुत खुश थी। उनकी मनपसन्द लाल रंग की साड़ी पहने हुई थी। मैंने जल्दी जल्दी खाना बना के सबको खिलाया और बिस्तर पर लेट गयी। मोबाइल देखा तो बैटरी लौ थी, उसे चार्जिंग में लगा दिया ताकि मैं उनसे पूरी रात बात कर सकूं।
ठीक 12 बजे मेरी नींद खुली तो देखा कि नानी खर्राटे मार के सो रहीं हैं। मैंने उनको डिस्टर्ब करना सही नहीं समझा और मोबाइल ले कर छत पर चली गयी। मैंने वहां से अपने हस्बैंड को कॉल किया।
"हैलो डिअर व्हेर आर यू?"
"हाय स्वीटहार्ट! आई एम गोइंग टू रेलवे स्टेशन।"
"अब बस जल्दी आ जाओ इस ठंड में खुद को ज्यादा दिन तक दूर नहीं रख सकती।"
"बस एक रात की ही तो बात है जानूं, बस यूं ही निकल जाएगा।"
"लेकिन यहां तो एक एक लम्हा एक एक साल के बराबर हो रहा है।"
"अच्छा जी तुम कहो तो उड़ के चला आऊँ।"
"मेरा बस चलता तो मैं ही उड़ के चली आती।"
"अच्छा रहने दो, एक तो इतने दिन मुझे वीराने में छोड़ दिया और बड़ी बड़ी बातें कर के बरगला रहे हो।"
"अच्छा मेरे जानू को गुस्सा भी आता है क्या? मैं इस गुस्से का इलाज अपने साथ ले कर आ रहा हूँ।"
अभी यह बातें चल ही रही थी कि अचानक मोबाइल स्विच ऑफ हो गया।
"ओह्ह इस मोबाइल को क्या हुआ? अभी तो बैटरी फुल थी। शायद मोबाइल हैंग हो गया हो?"
यह कहने के बाद मैं अपने मोबाइल को स्विच ऑन करने की कोशिश करने लगी। लेकिन मेरा हर प्रयास विफल होता चला गया।
मैंने यह निश्चय कर लिया कि मुझे अब घर के अंदर चलना चाहिए।
मैं यह सोचकर जैसे ही अंदर जाने को हुई कि मेरी नजर सामने रेलवे फाटक पर पड़ी। कोई रेलवे पटरी पर कोई बैलेंस बनाते हुए चला जा रहा था। मैं खुद में ही बड़बड़ाने लगी- "आखिर इतनी ठंड में कौन है जो इस तरह की अठखेलियाँ कर रहा है? अरे इस इंसान का तो सिर ही नहीं हैं। उफ्फ ये...कहीं...ये बवण्डर वाला भूत तो नहीं है।"
मैं अभी यही सब सोच रही था कि वो बवण्डर वाला भूत पलक झपकते ही मेरे सामने छत पर खड़ा था। मैं चाह कर भी वहां से खुद को हिला नहीं पा रही थी, मानो जैसे उसके वश में हो गयी हों।
मैं लाख कोशिश करने के बावजूद भी कुछ भी नही कर पा रही थी।
मन कर रहा था कि जोर से चीख मार के सबको मदद के लिए पुकारूँ, लेकिन मेरे हलक से कोई भी आवाज नहीं आ रही थी।
मैं खुद को बहुत ही ज्यादा असहाय महसूस करने लगी।
अचनाक न जाने कहाँ से हवा का तेज बवण्डर उठा और मेरे इर्द गिर्द गोल गोल साएं साएं घूमने लगा। उस बवण्डर ने अगले ही पल मुझे अपने अंदर खिंच लिया। इस से पहले कि मै बचने का प्रयास करती मेरे हाथ से मोबाइल भी छूट गया। मैने ज़ोर ज़ोर से चीखना चाहा लेकिन मेरी आवाज घूंटी ही रह गयी। उस भँवर में घूमते घूमते लगभग 10 फ़ीट की ऊँचाई पर पहुंच चुकी थी लेकिन जैसे ही मेरी नज़र धरती पर पड़ी मुझे चक्कर आने लगा।
मुझे जब होश आया तो सब मुझे घेरे बैठे थे। मेरा सिर हस्बैंड के गोद में था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मेरे बेहोश होने के बाद क्या हुआ?
"ओह्ह तो क्या मैं रात से बेहोश थी? आप कब आए?" मैं हड़बड़ा कर बोल पड़ी।
"वो सब छोडो तुम अब सुरक्षित हो यह बहुत बड़ी बात है।" मेरे हस्बैंड ने सहज भाव से कहा।
"देखो निशी मैने यहाँ नाना और आस पास के लोगो से बात की और मुझे बेहद महत्वपूर्ण जानकारी मिली है। ऐसा माना जाता है कि इस पुराने रेलवे लाइन पर एक व्यक्ति ट्रैन के चपेट में आ गया था और उस दुर्घटना में उसका सिर धड़ से अलग हो गया था और घटनास्थल पर ही मारा गया था। कहते हैं से जो भी व्यक्ति रात्रि के 12 बजे के बाद जो भी पुराने रेलवे लाइन के समीप होता है उसको इस तरह हवा का बवण्डर बना चुंगुल में ले जा कर लोगों को चोट पहुंचाता है।" मेरे हसबैंड ने अहम् जानकरी देते हुए बताया।
"हाँ निशी तुम पूरी रात बेहोश रही, वो तो शुक्र है की आधी रात तुम्हारी नानी की नज़र तुम पर पड़ गई वरना ऐसी ठण्ड में तुम पूरी रात छत पर ही रहती।"
नाना जी ने मुझे समझाते हुए कहा।
मैं उसी रात अपने हस्बैंड के साथ अम्बेडकर नगर आ गई और उस दिन के बाद मैं कभी कानपूर नहीं गयी लेकिन वो धुंधली यादें अभी भी जेहन में ताजा है और जब जब मेरे कमर में दर्द उठता है तो मुझे याद आता है कि कैसे मैने उस बवण्डर वाले भूत को अपनी आँखों से देखा था जो बिना सिर के था और उसने मुझे बवण्डर में उठाता हुआ मुझे अपना शिकार बनाया था। उतनी ऊंचाई से गिरने की वजह से मेरे कमर का दर्द आज तक कायम है, कभी कभी उस टिस की वजह जानकार मैं एड़ी से चोटी तक सिहर उठती हूँ।