शमशान में एक रात Devendra Prasad द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शमशान में एक रात

ठंड का दिन था। सड़क पर बहुत कम लोग थे। पंकज अपने घर की तरफ़ जा रहा था। वो अभी अभी एक हॉरर फिल्म देख कर आ रहा था।
शो 12 बजे रात को ख़त्म हुआ। फिल्म बहूत डरावनी थी जिसकी वजह से पंकज उसी फिल्म के बारे मे सोचता रास्ते पर चल रहा था।

पंकज रास्ते मे छोटी छोटी आवाजों से डर जा रहा था। डरे भी क्यों नहीं फिल्म ही इतनी डरावनी थी। लेकिन उसका घर अभी दूर था और सबसे बड़ी मुसीबत उसके लिये ये थी की रास्ते मे शमशान घाट भी आता था। पंकज बार बार फिल्म के बारे मे ही सोच रहा था और साथ ही साथ ये सोच रहा था की आगे शमशान घाट भी है उसे कैसे पार करूँगा?

यही सोचते सोचते शमशान नज़दीक आ गया था।
हर तरफ़ घना कोहरा छाया हुआ था। जिसकी वजह से उसे कुछ साफ भी नहीँ दिख रहा था। वो बस रास्ते पर चला जा रहा था। तभी शमशान का गेट आ गया।

गेट देखते ही उसने उस तरफ़ देखने से मन ही मन मना कर दिया। अभी वो गेट पार कर ही रहा था की उसको गेट के पास किसी छोटी बच्ची की रोने की आवाज़ आयी। वो उस आवाज़ को सुन कर रुक गया। उसने गेट की तरफ़ देखा पर कोहरा होने की वजह से कूछ नज़र नहीँ आया। पर आवाज़ लगातर आ रही थी।
पंकज को उस तरफ़ जाना ठीक नहीँ लगा इसलिए उसने आवाज़ लगायी-
"कौन है...कौन वहां पर रो रहा है?"

पर कुछ जवाब नहीँ आया। बस रोने की आवाज़ ही सुनाई दे रही थी।

पंकज को लगा क्या पता कोई बच्ची खो गयी हो। इसलिए वो उस आवाज का पीछा करते हुए कब्रिस्तान के तरफ़ चला गया।
अचनाक उसकी नजर एक विशालकाय पीपल के पेड़ पर पड़ी जो कि रात के वक़्त बहुत की ज्यादा खौफ़जदा कर रही थी।
उसने देखा की एक बच्ची फ्रॉक पहनी हुई है जो ठीक उसी पेड़ के नीचे बैठी हुई है। उसी पेड़ के पास सिर को नीचे झुकाए अपने दोनों हाथों से चेहरे को ढकते हुए रो रही है। पंकज उसके पास चला गया और उसको चुप होने को कहा। पर उसने रोना जारी ही रखा।

पंकज ने पूछा- "बेटी तुम यहाँ अकेले वो भी इतनी रात को क्या कर रही हो?"
उस लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। वो फिर भी लगातार रोती रही। यह देखकर पंकज को बहुत बुरा लगा और उस बच्ची पर तरस भी आया। वो आगे बढ़कर उस लड़की के कांधे पर अपने हाथ को रखता है लेकिन वो एकदम से सहम जाता है कि उसका जिस्म बहुत ही ठंडा पड़ा हुआ है। सो सिर से पाँव तक सिहर जाता है। वो अपने जिस्म से जैकेट उतार कर उस बच्ची के पीठ पर जैसे ही रखता है।

वो लड़की अचनाक से रोना बंद कर देती है और बिना सिर उठाए बोलती है- "तुम चले जाओ यहां से। यहां कोई किसी का अपना नहीं होता।"

पंकज यह सुनकर बोलता है- "अरे बेटे कैसी बात कर रही हो? तुम्हारे माता पिता कहाँ है?"

यह सुनते ही वो बोल पड़ती है- " मेरे माता पिता ने मुझे यहाँ छोड़ दिया है और कहीं चले गए हैं।
पंकज ने उससे पूछा- "क्यों? आखिर क्यों चले गए छोड़ कर औऱ कहाँ चले गए?"

वो विचित्र लड़कीं बोली-  "क्योंकि मैं मर चुकी हूं इसलिए।"

उसके इस जवाब सुन कर पंकज हक्का बक्का रह गया।
पंकज को कूछ समझ नहीँ आया की वो कहे भी तो क्या?
वो बच्ची बोली- "उन दोनो का कब्र के बीच मे ही मेरा कब्र भी है चलो दिखाती हूँ।"
तभी वो लड़की उसकी तरफ़ मुड़ी और अपने चेहरे से अपने दोनों हाथों को हटाते हुए पंकज की तरफ बढ़ी।

पंकज उसका चेहरा देख कर डर गया। उसका चेहरा बहुत ही ज्यादा भयानक था। पंकज की तरफ देखते हुए वो जोर जोर से हँसने लगी। यह देखते ही पंकज वहां से भागना चाहा लेकिन वो अपनी जगह से तनिक भी हिल नहीं पाया। वो अपनी जगह पर ही खड़ी रही और उसके हाथ धीरे धीरे अपने आप लंबे होते चले गए। अगले ही पल पंकज की गर्दन उस बच्ची के पकड़ में थी। धीरे-धीरे शिकंजा फंसते जा रहा था। पंकज के आंखों के सामने अब अंधेरा छाने लगता है और धीरे-धीरे बेहोश हो जाता है।

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जब पंकज की आँख खुली तो उसे पता चला की वो सपना देख रहा था। पर उस डरावने सपने मे उस लड़की का भयानक चेहरा अभी भी उसके मानसिक पटल पर ताज़ी थी।
परंतु उसे कहाँ पता था कि असली कहानी तो अब शुरू होती है।

पंकज जब नींद से उठा तो उसके एक दोस्त दोस्त जिसका नाम मनीष है उसका फोन आता है और पंकज फ़ोन उठाता है।

मनीष- "अरे पंकज आज फिल्म देखने चलेगा क्या?"

पंकज- "कौन सी फिल्म?

मनीष- " अरे एक बहुत ही ज़बर्दस्त भूतिया फिल्म है जिसका नाम 'एनाबेला' है। हम्म एक बात और आज रात का का शो है।"

"पंकज"- "ल...लेकिन रात को, वो भी हॉरर फिल्म देखना सही होगा क्या?"

तभी मनीष से फ़ोन लपकता हुआ रजत बोलता है-
"अबे तू एक नम्बर का फट्टू ही रहेगा क्या? अब तू बच्चा नहीं रहा और मूवी देखने हम चार लोग जा तो रहे हैं।"

पंकज- "चार कौन-कौन?"

रजत- "मैं तू, मनीष और विकास। चल आधे घंटे में तैयार हो जा हम साढ़े ग्यारह बजे तेरे घर आ रहे हैं क्योंकि शो का टाइम 12 बजे का ही है।"

पंकज- "ठीक है आ जाओ मैं तैयार ही मिलूंगा।"

पंकज के डरने की वजह कुछ और ही थी। ये वही फिल्म थी जो पंकज ने सपने मे देखी थी। पंकज फ़ोन रखने के बाद सोचने लगा कि ये तो बिल्कुल सपने की तरह ही है। पर उसने इसको इत्तेफाक समझ कर फिल्म के लिये हाँ कर दिया था।

थोड़ी देर में ही चारों फिल्म देखने चले गये। फिल्म देखने के बाद वो बाहर आए और फिल्म की बाते करते हुए घर की तरफ़ चलने लगे।
पंकज थोड़ा सा परेशान से दिखने लगा उसकी वजह यह थी कि रास्ता बिल्कुल वही था जो पंकज ने सपने में देखा था। चलते चलते पंकज को सपने वली बात याद आ गई। उसने अपना पूरा सपना अपने दोस्त को बताने की ठानी। उसने हिम्मत कर के बाला-
"अरे सुनो मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं।"

सभी रुक कर उसकी बात सुनने लगें।
पंकज- "तुम्हे मैं जो बताने जा रहा हूँ उस पर शायद विश्वास न हो लेकिन यह बात शत प्रतिशत सही है।"

मनीष- "अरे कौन सी बात? बताएगा भी या पहेलियां ही बुझाता रहेगा।"

पंकज- "पहले ये बताओ क्या यह सच है कि किसी इंसान को किसी होने वाली घटना का पूर्वानुमान हो जाता है या कोई घटना घटित होने से पूर्व उसको पता चल जाता है कि यह होने वाला है?"

रजत- "हम्म यह बात सच है क्योकिं अगर मैं जागले आधे घंटे में घर नहीं पहुँचा तो मेरी जाम के धुनाई होनी है, इस घटना का मुझे पूर्वानुमान हैं।"

रजत के इतना कहते ही पंकज को छोड़ कर सभी ठहाके मार के हँसने लगे। काफी देर तक तीनो का हँसने का क्रम जारी रहता है।
जब उन तीनों ने देखा कि पंकज नर मुंह लटका लिया है तो फिर से रजत बोला-
"अच्छा बता वैसे तूने पहले क्या देख लिया जो इतना परेशान है?"

पंकज ने बताया कि वह इस मूवी के अधिकतर भाग को आज अपने सपने में ही देख लिया था।

उसकी बात सुनकर विकास बोला- "इस बात में इत्तेफाक कहाँ अगर ऐसा था ही तो फ़ोन पर बता देता हमलोग भी आज सपने में ही मूवी देख लेते कम से कम पैसे तो बच जाते हमारे।"

विकास की बात सुनते ही अब और जोर जोर से मनीष और रजत इस बात पर हँसने लगे। तभी रस्ते मे वो शमशान घाट आ गया।

विकास- अच्छा सुन ये वही शमशान है न जो तेरी सपने मे था।
ये कह कर वो फिर से हँसने लगा।

तभी मनीष ने पंकज को कहा-" चल हम शमशान में चलते हैं और अपनी कूछ फोटो लेते है और वो फोटो अपने दोस्तो को भी दिखायेंगे।

यह सुनते रजत भी उत्सुक हो गया और बोला- "हम्म सही कह रहा काफी दिनों से कोई ग्रुप फ़ोटो भी नहीं हुई है। अपने ग्रुप के प्रोफाइल के लिए इससे से अच्छी जगह की यादगार फ़ोटो तो हो ही नहीं सकती।

पंकज इसलिए मना कर रहा था क्योंकि उसके मन मे कही न कही वो सपने वाली बात से डर रहा था। पर उसके दोस्त उसको जबरदस्ती अंदर ले गए। चारों ने एक साथ अपनी शमशान मे फोटो ली और सभी अपने घर चले गए।

अगले दिन विकास ने अपने सारे दोस्तो को फोटोज देखने के लिये घर पर बुलाया। सभी लोग फोटो देख ही रहे थे तो उनमे से किसी एक ने बोला-
"अरे पंकज ये तुम्हरी फोटो मे खड़ी ये बच्ची कौन है?"

ये सुनते ही पंकज ने झट से वो फोटो ले ली और देखने लगा। उसने जो देखा उसको देख कर वो हेरान रह गया। उसने देखा की उसके और उसके दोस्त के बीच में एक लड़की खड़ी है। फोटो मे ये वही लड़की थी जो पंकज को उसके सपने मे दिखी थी। पंकज का सपना सच हो चुका था। किसी को उस फ़ोटो को देखने का बाद भी विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है। सभी हैरानी भरी निगाहों से पंकज की तरफ देख रहे थे।

मनीष- "नहीं...नहीं यह सच नहीं हो सकता। मैं नहीं मानता इस फोटो को।"

विकास- "भाई तेरे मानने न मानने से सच्चाई नहीं बदल सकती। जो सच है वो अब सबके सामने है उसे झुठलाना इतना आसान भी नहीं है।"

रजत- "नहीं मैं भी इस इत्तेफाक से सहमति नहीं रखता। मनीष सछि कह रहा है। यह भी तो हो सकता है कि ये तुम दोनों(पंकज और विकास) की चाल हो।"

मनीष- "सही कहा आज कल इतने ऍप्लिकेशन्स एंड सॉफ्टवेयर्स हैं कि कुछ भी पॉसिबल है। मैं भी इस फोटो से सहमत नहीं हूं।"

पंकज- "अच्छा ये बताओ हमारे ऐसा करने से भला क्या प्राप्त होगा?"

रजत- "वो सब मैं नहीं जानता लेकिन केवल इस फोटो से तुम्हारी सपने वाली बात और पूर्वाभास  वाली घटना को मैं सही नहीं मान सकता।"

पंकज- "तो ऐसा क्यों नहीं करते कि तुम दोनों आज 12 बजे के बाद उस कब्रिस्तान में जा कर खुद अपनी फोटो ले कर आओ फिर हमें सुबह ही दिखाओ। जो भी सच होगा वो आईने की तरह सबके सामने होगा।"

विकास- "ह्म्म्म बिल्कुल सही कहा बोलो क्या कहते हो दोनो?"

उन दोनों की बात सुनकर दोनो एक पल के लिए सहम जाते हैं क्योकि वहां अगर कुछ हो न हो बाद कि बात है लेकिन ऐसी ठंड में वो भी रात के 12 बजे के बाद ऐसी वीरान जगह जाना किसी के भी रौंगटे खड़े कर सकता था।

पंकज- "क्या हुआ मेरे बहादुर दोस्त?

रजत- "ठ...ठीक है इसमे घबराने वाली क्या बात है? मैं और मनीष आज रात को ही वहां जा के फोटो लेंगे। अब कल दूध का दूध और पानी का पानी हो ही जाएगा।"

यह कहकर सभी अपने घरों की तरफ चले जाते हैं। रात्रि के तय वक़्त पर मनीष और रजत शमशान की तरफ निकल पड़ते हैं।
दोनो अब शमशान के गेट के पास खड़े हैं। घड़ी साढ़े बारह की तरफ इशारा कर रही थी। दोनो बेधड़क अंदर पहुँच जाते हैं।

गेट से जैसे ही दोनो अंदर पहुँचते हैं सामने की तरफ वही विशालकाय पीपल का वृक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा था। उसी वृक्ष के नीचे कुछ 8-10 छोटे छोटे मटके रखे हुए थे। कुछ मटके काफी समय से वहां पड़े होने की वजह से टूटे हुए थे।

अचनाक किसी बच्चे की रोने की आवाज आती है। इस आवाज को सुनते ही दोनो एकदम सहम से जाते हैं। चारो तरफ नजर दौड़ाने पर भी कोई नजर नही आता।

मनीष- "अरे ये हो न हो ये हमे डराने की चाल है। अब मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ये उन दोनों की ही करतूत है।"

रजत- "हाँ तू सही कह रहा चल सालों को आज ऐसा मजा चखाते हैं कि ज़िन्दगी भर भूत का नाम लेने पर भी थर्र- थर्र कापेंगे।"

दोनो गुस्से से उस आवाज का पीछा करते हुए आगे बढ़ने लगे कि तभी मनीष का पाँव किसी चीज़ से टकरा जाता है।

रजत- "अरे संभल कर। तूने एक मटका तोड़ दिया। पता है इसे लोग जादू-टोना करने के बाद वीराने में छोड़ देते हैं और जिस इंसान ने इसे तोडने या छूने का प्रयत्न किया तो यह उस इंसान का बुरा काल शुरू हो जाता हैं।"

मनीष- "अगर तूने ज़्यादा बड़बड़ किया न तो ये मटका उठा कर तेरे सिर पर दे मारूंगा।"

यह सुनते ही दोनो हंस पड़े। उनके उस हंसी से वो वीराना उनके ठहाको से गूंज उठा। थोड़ी देर बड़ शांत होने के बाद दोनों जब पीपल के पेड़ के पीछे जा पहुँचते हैं। अचनाक उनकी नजर सामने पड़ती है तो उनके दिल की धड़कने रुक जाती है।

सामने उसी विशालकाय वृक्ष के नीचे एक सात से आठ साल की बच्ची सफेद फ्रॉक में बैठी रो रही थी। ठीक वैसे ही उस दिन की तरह अपने दोनों हाथों से अपने चहेरे को ढक कर रो रही थी।

मनीष- "अरे बेटे तुम अकेले इस सुनसान जगह पर क्या कर रही हो?"

रजत- "तुम्हारे माता पिता कहाँ हैं? और तुम इस जगह कैसे आई?"

उस लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। मनीष आगे बढ़ते हुए उस बच्ची के पास जाता है और जैसे ही उसके कांधे पर हाथ रखता है उसे भी पंकज की तरह उस दिन जैसा ठंडक का एहसास होता है और झटके के साथ पीछे हट जाता है।

रजत- "अरे क्या हुआ? ऐसा क्या हुआ कि तू...!"

मनीष- "अरे इसका बदन तो बर्फ की सिली की तरह एकदम ठंडा है।

रजत- "अरे तो इसमे घबराने वाली कौन सी बात है। इतनी ठंड में तो बिना स्वेटर के किसी की भी कुल्फी जम जाए और ये तो वैसे ही छोटी सी बच्ची है।"

मनीष- "हाँ तू शायद ठीक कह रहा है। चल इसे तू अपना जैकेट निकाल कर दे क्योकि तूने अंदर स्वेटर भी पहनी हुई है फिर इसको इसकी माता पिता के पास छोड़कर वापिस ले लेना।"

यह सुनते ही रजत अपने बदन से जैसे ही जैकेट निकालने लगा तो वो रोती हुई बच्ची एकदम से शांत होते हुए बोली-
"नहीं इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। मुझे ठंड नहीं लगती।"

रजत- "क्या तुम इंसान नहीं जो ठंड नहीं लगेगी?"

यह सुनते बच्ची बोली- "अगर मैं हाँ कहूँ तो।"

मनीष- "अरे बेटा तुम्हारे माँ बाप कहाँ है चलो हम छोड़ देते हैं।"

वो बच्ची इस बात को सुनते ही अपने चेहरे से हाथों को उठाते हुए बोली-  "मैं मर चुकी हूं इसलिए वो मुझे इस जगह छोड़ कर चले गए हैं।"

उसका चेहरा देखते ही दोनो की हवा निकल गयी। उस बच्ची का चेहरा बड़ा ही ख़ौफ़नाक लग रहा था। उसकी पलकें झपकने का नाम ही नहीं ले रहीं थी। दोनो ने यह निश्चय किया कि इस वीराने में काफी समय से अकेले रहने की वजह से इसके ये हाल हो गए हैं। दोनो हिम्मत कर के एक साथ बोले-
"बेटे तुम्हारे माँ बाप तुम्हें छोड़ कर किस तरफ गए थे?"

वो बच्ची वहीं बैठे बैठे शमशान के दूसरे कोने की तरफ इशारा करती है। वो दोनों उस बच्ची का हाथ पकड़कर कर उस तरफ चल पड़ते हैं।

मनीष- "बेटी तुम्हारा नाम क्या है?

वो बच्ची बोली- "यहां कोई भी रिश्ता मरने के बाद काम नहीं आता, इसलिए बेहतर होगा कि मुझे बार बार बेटी ना बुलाओ।"

उस बच्ची की बाते सुनकर दोनो एक दूसरे का मुँह ताकने लगते हैं।

रजत- "फिर भी तुम्हे बुलाना होगा तो किस नाम से बुलाएंगे।"

वो बच्ची बोली- "मुझे नहीं लगता कि आज की रात के बाद तुम्हें मुझे बुलाने की ज़रूरत भी पड़ेगी। लेकिन तुम्हे जानकारी के लिए बता दूं कि मुझे मेरे माता-पिता जो यहां इस जगह लेटे हुए हैं लेटने से पहले 'बुलबुल' कहकर बुलाते थे।"

यह कहते हुए उस बच्ची ने सामने दो पुराने कब्र की तरफ इशारा कर दिया। उस कब्र को देखते ही दोनो की हालत अब फिर से खराब हो चली थी। अब डर धीरे-धीरे उन दोनों पर हावी होने लगा था।

रजत- "ओह्ह मुझे बड़ा दुःख है कि तुम्हारे माता पिता तुम्हे छोड़ कर इस दुनिया से चले गए हैं। लेकिन तुम इस वीराने में कैसे अपनी ज़िंदगी गुज़ार रही हो?"

वो बच्ची सुनते ही बोली- "वो सब छोड़ो तुम जो अपना काम करने आए हो उसे जल्दी पूरा करो। इस से पहले की मेरे पापा की यहां लेटे लेटे नींद खराब हो फटाफट फ़ोटो लो और निकलो यहां से।"

ये सुनते ही दोनो कांपने लगे और माथे पर भय के मारे पसीने की बूंदे अंकुरित हो चुकी थी। उन दोनों को अब पता चल चुका था कि मज़ाक मजाक में दोनो ने प्रतिष्ठा पर अपने प्राण दांव पर लगा दिया था। वो बच्ची टकटकी लगा कर उनदोनो को देखे जा रही हो जैसे सच मे उनदोनो को वहां होने वजह का खामियाजा भुगतने वाले हों।

रजत ने हिम्मत करते हुए अपनी जेब से मोबाइल निकाला और उस बच्ची के साथ जो अपना नाम बुलबुल बता रही थी उसके साथ तीनो की सेल्फी लेने लगा। जैसे ही उसने कैमरे को ओपन किया उसके हाथ थर्र-थर्र काँपने लगे। मनीष की नजरें जब मोबाईल के स्क्रीन पर पड़ी तो यह देखकर उसका मुंह खुला का खुला ही रह गया कि मोबाईल के स्क्रीन पर मनीष और रजत ही दिख रहे थे वो बच्ची तो बिल्कुल ही नजर नहीं आ रही थी। जैसे ही रजत ने हिम्मत कर के फ़ोटो क्लिक की और दोनो ने खोपड़ी घुमा कर देखा तो वो बच्ची उनदोनो के बीच ही खड़ी थी और दोनो को देखकर स्माइल दे रही थी। उसकी इस हरकत से दोनो के दोनो वहीं बेहोश हो जाते हैं।

सुबह जब दोनो की आंखे खुलती हैं तो दोनो खुद को हॉस्पिटल में पाते हैं। दोनो एकदूसरे को आसपास लेटे हुए देख कर राहत की सांस लेते है। उन दोनों को कूछ दिनों तक ज़बर्दस्त बुखार भी रहता है। जब वो दोनो कुछ दिनों बाद सामान्य स्थिति में आते हैं तो विकास और पंकज दोनो से मिलने के लिए जाते हैं। जवाब में रजत कुछ नहीं कहता वो अपना मोबाइल आगे बढ़ाता हुआ पंकज के हाथ मे थमा देता है। पंकज की नजर जैसे ही उस रात शमशान वाली फ़ोटो पर उड़ती है उसके तोते उड़ जाते हैं। यह देखते विकास उसके हाथ से मोबाइल लपकते हद देखता है कि उस फ़ोटो में वही लड़कीं उन दोनों के बीच मे खड़ी है और अजीब सी स्माइल कर रही है। उन तीनों के पीछे दो बड़ी और पुरानी कब्र है और ठीक उन्ही दो कब्रो के बीच एक छोटा सा कब्र भी मौजूद है जिस पर यह लिखा हुआ था-
"हमारी बुलबुल बिटिया तुम हमेशा हमारी यादों में जिंदा हो और कहीं न कहीं हमारे साथ मौजूद रहोगी। (सन 2011 से सन 2018)."

आज भी वो चारों की जब भी उस फोटो को देखते हैं तो उन सभी के रोंगटे खड़े हो जाते है।"


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