मीठी बात
रस से भरी रसमलाई, गोल–गोल रसगुल्ले, काजू वाली बर्फी, राष्ट्रीय मिठाई जलेबी, हर त्यौहार की शान लड्डू, राष्ट्रीय पर्वों वाली मिठाई–बूँदी, सूखी मिठाई–सोनपापड़ी, जाड़े वाले तिल के लड्डू ‘उफ्फ ठंडी लग गयी’, न गुलाब सा और न जामुन सा लेकिन चाशनी में डूबा यम्मी वाला गुलाबजामुन, आ गया न मुँह में पानी। आना ही था मीठा है ही ऐसी चीज। इसीलिए तो त्यौहारों में खाया जाता है ताकि तन–मन को प्रसन्न कर दे। अक्सर खाने के बाद भी खाया जाता है ताकि खाये हुए तीखे, नमकीन, चटपटे को पचा दे। वैसे सोचने वाली बात यह है कि यह पुस्तक कोई रेसिपी बुक तो है नहीं फिर बातें खाने की क्यों? सोचो, सोचो..... सोचो न। अच्छा चलो बताते हैं तो खाने की बात इसलिए ताकि खाने में मीठे के महत्त्व का पता चले। अब सोचने वाली बात ये हो गयी कि महत्त्व का कोई अचार डालना है क्या? अरे! भई मीठे का भी कोई अचार पड़ता है भला। अचार नहीं डालना है लेकिन मीठेपन को जीवन में उतारना है। अगर पहले से ही उतरा है तो मीठेपन को बढ़ाना है। इस संसार में ढेरों किताबें लिखी जाती हैं। एक के ऊपर एक रखें तो पहुँच जाएँ चाँद के भी पार। कोई किताब हँसा जाती है तो कोई रूला जाती है, कोई तो सोचने पर मजबूर कर देती है। अंदर की बात तो यह है कि कोई–कोई तो समझ में ही नहीं आती है। ऐसे में लगा कि उस किताब को क्या कहेंगे जो मिठास से भरी हो और मनोरंजन में खरी हो। एक ऐसी किताब जिसमें कोई बकवास न हो, जिसमें कठिन वाला इतिहास न हो और जिसे पढ़कर कोई उदास न हो। कोई ऐसी किताब जिसे पढ़कर शिक्षा मिले और पता भी न चले कि कुछ सिखाया गया है। जिसे पढ़कर हँसी छूटे और कोई न रूठे। ऐसी किताब ही तो हो सकती है एक मीठी किताब। दुनिया में कई किताबें मीठी हैं। उन्हीं मीठी किताबों में एक और मीठी किताब जुड़ना चाहती थी। इसलिए एक विचार ने शब्दों का बोरा उठाया और घुस गये लिखने वाले के दिमाग में। फिर तीन महीने तक शब्दों ने ऐसी धमाचौकड़ी मचायी, ऐसी धमाचौकड़ी मचायी कि पूरी किताब ही बन गयी और नाम तो देखो – गाँव वाला अंग्रेजी स्कूल। लो हो गया कबाड़ा एक तो किताब पढ़ने बैठो वो भी स्कूल की। चौथाई दिन स्कूल में ही तो रहते हैं फिर आना–जाना, घर पर पढ़ाई, ट्यूशन का काम, गृहकार्य। उफ्फ ये सब कुछ स्कूल के कारण ही तो है और ऊपर से किताब भी पढ़ें तो स्कूल वाली। लेकिन अंदर की बात बताऊँ – स्कूल में जो मस्ती करते हो न उसकी बहुत सारी बातें हैं इस किताब में। तुम्हारे मित्रों की भी है। नये–नये मित्रों के बारे में है। स्कूल की बात है तो शिक्षकों की भी होगी। शिक्षक मतलब चश्मा लगाये बोरिंग व्यक्ति जो बस पढ़ने–पढ़ाने की बातें करते हैं और पिटाई भी कर देते हैं। लेकिन बच गये बच्चू पिटाई तो होगी ही नहीं ऊपर से ढेर सारी मस्ती भी होगी। तो आ जाओ न थोड़ा–सा समय निकालकर पढ़ो न। न, न लेटकर नहीं, बैठकर पढ़ो। लेटकर पढ़ने से आँखें खराब होती हैं। क्या कहा किताब पढ़ने में डर लग रहा है कि पापा डाँटेंगे या मम्मा मोबाइल छीन लेगी? तो एक काम करो मम्मा–पापा से कहो कि पहले आप ही पढ़ लो अगर आपको अच्छी लगी तो मुझे भी पढ़ने को देना। वैसे अगर तुम पढ़ो और तुम्हें अच्छी लगे न तो अपने मित्रों को भी पढ़ने को कहना। अच्छी चीजें सबसे साझा करते हैं न। अगर साझा नहीं करते तो क्या होता है पता है न? वही होता है जो इस किताब में हुआ। अब बताएँगे नहीं कि क्या हुआ था अपने आप ही पन्ने पलटो और पढ़कर देखो। हम तो जाकर पीछे वाले दरवाजे पर बैठते हैं ताकि तुम भाग न जाओ। जब अंतिम पृष्ठ तक पहुँचोगे तो मीठी किताब बनाने वाला हलवाई से मिलोगे।
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