गाँव वाला अंग्रेजी स्कूल - खाली डिब्बा Pranjal Saxena द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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गाँव वाला अंग्रेजी स्कूल - खाली डिब्बा

गाँव वाला अंग्रेजी स्कूल 

गुल्लक

रोहन पूरे साल गुल्लक में पैसे इकट्ठे करता था ताकि नये साल पर अपने मन के toys ले सके। मम्मा–पापा तो बस दीपावली, होली पर ही gift और toys देते हैं। अप्रैल में birthday पर भी बहुत सारे toys मिल जाते हैं। लेकिन New year का क्या? उस पर भाषण सुनने पड़ते हैं कि बात–बात पर खिलौने थोड़े ही दिलाए जाएँगे। ऐसे time पर ही गुल्लक काम आती है। तो आज कैसे तोड़ी जाए। लेकिन न तोड़ी गयी तो रतनवीर कुत्ते को रोहन के पीछे दौड़ा सकता है और रोहन को भागना पड़ेगा। अगर गाँव के टूटे–फूटे खड़ंजे पर भागते हुए वो गिर गया तो लो तब तो खुद ही टूट जाएगा। खुद टूटने से अच्छा है कि गुल्लक को तोड़ दिया जाए। रोहन अपने कमरे में गया और गुल्लक को हाथ में लेकर बैठ गया। ये गुल्लक डोरेमॉन की आकृति में थी। जैसे नोविता को मुसीबत से निकालने के लिए डोरेमॉन अपनी जैकेट में से एक नया गैजेट निकालता था। वैसे ही इस डोरेमॉन के पेट को फाड़कर रोहन की मुसीबत का हल निकल सकता था। गुल्लक को खोलने से पहले ये जानना आवश्यक था कि इसमें कितने रुपए हैं? इतने तो हैं न कि लाला के स्कूल की फीस दी जा सके। रोहन ने अपनी गुल्लक को हिलाया। सिक्कों की आवाज आयी, नोटों की नहीं आयी। ये नोट भी न पता नहीं कागज के क्यों होते हैं। अब कैसे पता चलेगा कि कितने रुपए हैं? आईडिया, जिस hole से गुल्लक में पैसे डालते हैं उस hole से देखता हूँ। रोहन ने गुल्लक के छेद में आँखें गड़ा दीं। लेकिन गुल्लक के अंदर तो अंधेरा था, घुप्प अंधेरा। गुल्लक में प्रकाश जाने का एक ही रस्ता था वो छेद लेकिन उस छेद में तो आँखें गड़ी थीं तो अंदर प्रकाश कैसे हो और आँख हटाओ तो देखो कैसे? उफ्फ ये तो बड़ी मुसीबत हो चुकी थी। दाल–चावल से भी बड़ी मुसीबत। रोहन ने सोचा कि अब तो बाहर से ही अनुमान लगाना पड़ेगा कि उसकी गुल्लक में कितने पैसे हो सकते थे? उसके पापा विदेश में नौकरी करते हैं और मम्मा वकील हैं। विदेश में नौकरी करने के कारण उसके पापा के पास अच्छे पैसे होने चाहिए और इस हिसाब से उसकी गुल्लक में कभी भी पचास रुपए से कम नहीं पड़ने चाहिए। लेकिन मैंने तो कभी पापा को पचास रूपए देते नहीं देखा। शायद ही कभी दस से ऊपर का नोट डाला हो और मम्मा उनसे तो बस खर्चे के ऊपर लम्बे–लम्बे भाषण सुन लो। five rupees वाले सिक्के ही डाले होंगे। वो भी ten days में एक बार। ये मम्मा–पापा लोग न कितना भी कमा लें लेकिन मुझे देने को किसी पर भी पैसे नहीं हैं। गुल्लक तो बस मामा, मौसा, ताऊ, नानी के आने पर दिए हुए पैसों से चल रही है। नवरात्रि में कन्या–वरूआ में भी मुझे twenty one से कम नहीं मिलते। रोहन गुल्लक के गुणा–भाग में उलझा ही हुआ था कि उसके फोन की रिंगटोन बजी। ये तो मोहित का फोन था। रोहन – “Hay! मोहित, कैसे हो?” मोहित – “Very fine. तू बता कैसा है? Village में बड़े–बड़े मच्छरों के बीच में रह रहा होगा?” रोहन – “मच्छरों से ज्यादा यहाँ के Dogs and dogs trainer खतरनाक हैं।” मोहित – “Oh! तो बचकर रहना।” रोहन – “Yes. अच्छा एक बात बता मोहित क्या कोई ऐसी device आती है जिससे piggy bank में झाँककर देखा जा सके कि कितने rupees हैं।” मोहित – “केवल ultrasound मशीन से ही piggy bank के अंदर झाँका जा सकता है। तुम किसी बड़े ultrasound centre चले जाओ। वहाँ केवल five hundred rupees में पता चल सकता है लेकिन बहुत sure नहीं हूँ।” रोहन – “वो तो बहुत महँगा पड़ेगा। हो सकता है कि piggy bank में ही five hundred rupees न हों।” मोहित – “इस problem का एक ही solution है। अगली बार से transparent piggy bank लेना। अच्छा bye, मैं study करने जा रहा हूँ।” भविष्य के लिए कीमती सलाह देकर मोहित ने फोन काट दिया था। लेकिन अभी का क्या? गुल्लक में कितने पैसे हैं ये जानने का अब एक ही तरीका था और वो था गुल्लक को तोड़ना। लेकिन गुल्लक को यूँ सरलता से नहीं तोड़ा जा सकता था। उसे तोड़ने के लिए किसी हथियार की आवश्यकता थी। तो क्या बंदूक लायी जाए? नहीं, नहीं बंदूक नहीं। बंदूक से एक छोटा–सा ही छेद होगा जिससे पैसे नहीं निकाले जा सकते। दो–चार गोलियाँ चलानी होंगी। वैसे भी बंदूक मिलेगी कहाँ से? दूजे गोलियाँ चलने से आवाज भी तो होगी जिससे सबको पता चल जाएगा कि गुल्लक तोड़ी गयी है। हथियार ऐसा होना चाहिए जिससे किसी को कानोंकान खबर न हो कि गुल्लक तोड़ी गयी है। आईडिया गुम्मा मारकर देखता हूँ, याहू! मुझमें आ जाए छोटा भीम सी power और एक ही गुम्मे में टूट जाए गुल्लक। रोहन ने अपने कोमल हाथों का घूँसा बनाया और गुल्लक को देखकर बड़े आत्मविश्वास से कहा – “सॉरी डोरेमॉन, तुम्हें दर्द होगा लेकिन मेरे future के लिए ये जरूरी है।” फिर उसने उतनी जोर से मारा जितनी जोर से मार सकता था। ‘आऊ’ दर्द हुआ, बहुत तेज हुआ, चीख भी निकली। लेकिन डोरेमॉन की नहीं बल्कि रोहन की। उफ्फ इतनी सख्त प्लास्टिक क्यों थी गुल्लक की? ये गुल्लक बनाने वाले भी न बच्चों के दुश्मन होते हैं। गुल्लक को आसानी से टूटने वाला बनाना चाहिए था।

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