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वैलेंटाइन डे मसखरी

एक बार एक समय हम थे ठोस कुँवारे,
बिना प्रेमिका के लगते थे एकदम बेचारे।

जब भी आता था वैलेंटाइन का त्यौहार,
हमें भी चढ़ता था प्रेमी होने का बुखार।

पर जीवन में था प्रेमिका का घोर अभाव,
उफ़ स्वघोषित प्रेमी को कोई न देता भाव।

मित्रों की प्रेमिका देख हम बड़े ललचाते थे,
भाभीजी नमस्ते कहकर सामने से हट जाते थे।

कई बार कोशिश करी प्रेमिका बनाने की,
प्यार के रंग से जीवन को सजाने की।

पर हर बार हो जाती थी कोई कॉमेडी,
हमसे प्यार करने को हुई न कोई रेडी।

वैलेंटाइन डे मनाने को करी बड़ी ही मेहनत,
पर हमें न मिली प्रेम की अनमोल नेमत।

प्रेमिका बनाने को हमने कई जगह चांस मारा,
कभी लड़की तो कभी उसके बाप ने हमें बड़ा दुत्कारा।

जीवन में ऐसी घटनाओं से हो गए निराश,
बिन प्रेमिका हमारी फिगर का भी हुआ नाश।

हमारी इस सेहत का क्या है गहरा राज,
डिटेल में आपको हम समझाते आज।

एक दिन हमारे दोस्त हम पर दिए ‘बार्क’,
वजन कम कम करने को जाया करो पार्क।

वजन कम करने की सलाह में था बड़ा वजन,
अगली सुबह ही गए पार्क बिना करे मंजन।

पार्क में तो दिखा बड़ा ही अद्भुत नजारा,
हर लड़के के पास था जवानी का ‘सहारा’।

किसी के पास थी लम्बी, तो किसी के पास छोटी,
किसी के पास थी जीरो फिगर, किसी के पास मोटी।

पर सबके पास था, कोई न कोई साथी ,
बस हम थे अकेले, बिन हथिनी के हाथी ।

इन जोड़ों के भी अजब – अजब से थे रंग,
हरकतें इनकी देखकर, हम तो हो गए दंग ।

बिन बरसात ही कुछ ने लगाया था छाता,
जिसके पीछे जुड़ रहा था कोई गहरा नाता।

प्रेम करने के तरीके, हमें लगे बड़े अजीब,
बिन धूप ही पेड़ के नीचे, पसरे थे कई जीव।

इन जीवों को देखकर मन हुआ बड़ा विचलित,
विचलित मन से हो गए हम अति संकल्पित।

प्रण लिया कि अब हम कभी पार्क में नहीं जाएँगे,
भाड़ में गया वेटलॉस हम तो पिलचकर खाएँगे।

बिन किसी निज प्रेमिका, पार्क में जाना बेकार,
वजन कम नहीं किया जाता, पार्क में होता प्यार।

प्रेमिका के अभाव में आज भी पार्क न जाते हैं,
घर में ही गमले के चार चक्कर लगाते हैं।

खैर धीरे – धीरे बहुत समय गया बीत,
एक दिन मिला हमें मन का एक मीत।

घरवालों ने कराई हमारी अरेंज वाली शादी,
जीन्स वाले बबुआ हो गए एकदम खादी।

प्रेम विवाह की सम्भावना हो गई थी समाप्त,
अब जीवन में चारों ओर बस पत्नी थी व्याप्त।

पर धीरे – धीरे विवाह का महत्त्व समझ है आया,
पत्नीधारी प्रेमी पर कोई शक करे न भाया।

आज भी प्रेमिका के लिए दिलो जान से मचलते हैं,
सुंदर, सुंदर बालाओं से नैन मटक्का करते हैं।

अब कई प्रेमिका हैं, हर दिन होता वैलेंटाइन,
कभी सक्सेना से चक्कर, तो कभी मिश्राइन।

हमारी इस कहानी से कोई सीख न लीजिएगा,
अपने पतिधर्म का निर्वाह निष्ठा से कीजिएगा।

कहीं ऐसा न हो भाभीजी कर दें आपकी ठुकाई,
अपना क्या है बस यूँ ही कविता सुनाई।

वैसे भी अपनी राह पर किसी और को न है चलाना,
प्रेमियों की दुनिया में कम्पटीशन नहीं है बढ़ाना।

रचनाकार

प्रांजल सक्सेना 

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