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ब्रह्मचर्य...

गुरुदेव क्या भोग और स्त्री का उपभोग करते हुए परम् ब्रह्म का साक्षात्कार किया जा सकता है, मुमुक्षु ने पूछा? बिल्कुल किया जा सकता है मुमुक्षु। गुरुजी ने कहा। अनेक उदाहरण मिल जायेंगे इतिहास के पन्नों में। तंत्र मार्ग में तो यौन क्रीड़ा और स्त्री का बड़ा उपयोग है। यहाँ तक कि श्री रामकृष्ण परमहंस जी ने स्त्री का उपयोग करते हुए भी उसी परम ब्रह्म के दर्शन किये जो कि भक्ति मार्ग का अनुसरण करते हुए। पर ईश्वर प्राप्ति के लिए योग, ध्यान और ब्रह्मचर्य का मार्ग हीं सर्वोत्तम मार्ग है। तंत्र मार्ग पशु वृत्ति के मनुष्यों के लिए उपयोगी है। ब्रह्मचर्य के पालन से पुरुष की इन्द्रियाँ इतनी संयमित और सुक्ष्म शरीर इतना शक्तिशाली हो जाता है कि जब परम ऊर्जा का शरीर पर शक्तिपात होता है तब शरीर उस परम ऊर्जा को झेलने में सक्षम हो पाता है।


मुमुक्षु स्नातक का विद्यार्थी था। बचपन से हीं ईश्वर के बारे में अति उत्कंठा से बात करता। उसी के शहर में एक गुरुजी पधारे। लोग उनके बारे में बताते कि उनको ईश्वरानुभूति हो चुकी है। मुमुक्षु भी उनके पास जाने लगा। उनके निर्देशानुसार ध्यान करने लगा। उसके क्लास में अनेक लड़कियाँ थीं जो अर्धनग्न कपड़े पहनकर आती। वो बहुतों के प्रति आकर्षित था। ध्यान के समय मुमुक्षु के मानस पट पे उनके वक्ष, उनकी जांघे , उनके उन्नत स्तन, उनकी नंगी पीठ बार बार आ जाती।


मुमुक्षु ने गुरुजी से सलाह मांगी। गुरुजी ने कहा कि सर्वदा स्वयं की श्वासों पे ध्यान दो। जब जब किसी युवती के शरीर के प्रति वासना जागे, अपने ध्यान को अपनी नाभि पे ले जाओ। वासना को जबतक ध्यान का साथ नहीं मिलता, ये प्रकट नहीं होती। ध्यान नाभि पे होने से मन मस्तिष्क में वासना का जन्म नहीं हो पाता।


मुमुक्षु गुरु के बताए मार्ग पे चल पड़ा। अब जब भी किसी सहपाठिनी के उरोज उसे आकर्षित करते, नंगी पीठ दिखाई पड़ती, खुली नाभि दिखाई पड़ती, मोटी जांघे दिखाई पड़ती, मांसल वक्ष दिखाई पड़ता, वो तुरंत अपना ध्यान स्वयं की नाभि पे ले जाता। इस तरह वासना साक्षीभाव के जगने से वासना पे नियंत्रण आसान हो चला था। वो ध्यान के मार्ग पे आगे बढ़ चला।


लगभग 2 महीने बीत चुके थे। उसे अब भी लड़कियों के उभरे वक्ष, खुली नाभि दिखाई पड़ती पर वो विचलित न हो पाता। लड़कियाँ उसको देखकर मुस्कुराति पर वो कोई प्रतिउत्तर न देता। उसके मन मे घमंड आने लगा था। उसे ऐसा लगने लगा था कि वो जितेंद्रिय बन चुका है। काम वासना पर विजय प्राप्त कर चुका है।


एक रात वो सोया हुआ था ।स्वप्न में उसने देखा कि उसकी इस सहपाठिनी उसके पास आकर एक दम से खड़ी हो गयी। उससे कलम मांगती है। जब वो उसे देता है तो कलम हाथ से छूट जाती है। ज्योहीं उसकी सहपाठिनी कलम को लेने के लिए झुकती है , उसके कपड़े पीछे से सरक कर नीचे गिर जाते है। उसका पूरा नंगा बदन, उसके कमर की उभार सारे मुमक्षु के सामने आ जाते हैं। वो घबराकर मुमुक्षु की गोद में गिर जाती है। मुमुक्षु उसे कसकर अपने बदन ने भींच लेता है। मुमुक्षु के हाथ नवयुवती के स्तनों को दबोच लेते हैं। स्वप्न टूटने पर मुमक्षु बहुत निराश होता है। उसकी 2 महीनों की मेहनत बेकार हो चुकी थी।


गुरुजी बताते है कि मुमुक्षु ने चेतन मन को तो अपने वश में कर लिया है, पर असली परीक्षा तो अवचेतन मन पे विजय है। स्वप्न के समय अवचेतन मन अनेक दबी हुई वासनाओं को दिखाता है। उसी पे विजय प्राप्त करनी होती है। स्वयं पे नियंत्रण बनाये रखो। 2-3,महीने बाद फिर स्वप्न आता है। लड़की फिर आती है स्वप्न में। इस बार वो पूर्ण नग्न रूप में आकर मुमुक्षु के कपड़ों को खोल देती है। मुमुक्षु की नसें फटने लगती है। उस अति सुंदरी नग्न स्त्री को चूमने की इक्छा होती है पर वो स्वयं पे नियंत्रण रखता है। स्वप्न टूट जाता है। उसे अपनी जीत पे खुशी होती है।


इस तरह समय बीतने लगता है। 2-3 महीने के अन्तराल पर नग्न लड़कियों के स्वप्न आते है , कभी कोई नंगा बदन दिखाती, कभी खुली नाभि, कभी मांसल जांघ तो कभी मादक स्तन पर वो सज रहता था और उठ जाता। इसी बीच ध्यान के समय उसे विचित्र रोशनियाँ भी नजर आने लगी। गुरु जी के पास जाकर वो स्वयं के जितेंद्रिय होने की घोषणा करने लगा।


लगभग 4 साल बीत चुके थे। मुमुक्षु ध्यान की गहराइयों में गोते लगाते जा रहा था। एक दिन ध्यान में उसने देखा एक पुरूष चोट खाकर गिर पड़ा है। वो ज्योहीं उसके पास जाता है, अचानक देखता है कि वो पुरुष एक नग्न स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गया। उसके दो बड़े बड़े स्तन मुमुक्षु की छाती में गड़ गए। मुमुक्षु हमेशा की तरह जगना चाह रहा था पर उस कामुक स्त्री ने मुमुक्षु के हाथ को स्वयं के कमर के नीचे भाग में चिपका दिया। मुमुक्षु की सांस तेज हो गयी। उस स्त्री ने मुमुक्षु को पकड़कर सारे कपड़े फाड़ डाले। उसकी नसें गर्म हो उठी। वो उस स्त्री के चुम्बन लेने लगा। उसका ब्रह्मचर्य फिर भंग हो चुका था।


अति निराशा के भाव से वो अपराध भाव मे गुरु के सामने प्रस्तुत हुआ। गुरु जी ने बताया कि ये तुम्हारे अहंकार की हार हुई है। अवचेतन मन बहुत मजबूत होता है।कभी उसके सामने तन कर मत जाओ। जब तक तुम्हारे मन मे जितेंद्रिय होने का भाव रहेगा तब तक तुम हारते रहोगे। स्त्री से घृणा नहीं, स्त्री को स्वीकार करो। अपनी माँ के रूप में, अपनी बहन के रूप में। फिर स्त्री से भागने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ईश्वर के सामने तन कर खड़े होने से नहीं, बल्कि झुकने से जीत मिलती है। जितने की कोशिश करोगे तो हारोगे। हार स्वीकारोगे तो जीतोगे।


मुमक्षु के मन में काफी परिवर्तन आ चुका था। अब उसे लड़कियाँ दिखती, पर उनके अर्धनग्न कपड़े नहीं दिखते। उनकी मुस्कान दिखती, उनके खुले बदन नहीं दिखते। उनकी करुणा दिखती उनकी वासना नहीं दिखती। ध्यान के मार्ग पर भी वो काफी आगे बढ़ चुका था। वो घ्यान के समय दूधिया प्रकाश में तैरते रहता।


10-12 बीत चुके। उसके गुरुजी का स्वर्गवास हो चुका था। वो गुरुजी के आश्रम में हीं रह रहा था। एक दिन ध्यान के समय उसने देखा एक शेर गाय के पीछे भाग रहा है। वो गाय को बचाने के लिए शेर के सामने आ खड़ा होता है। जैसे हीं शेर उसपे झपट्टा मरता है, मुमक्षु जमीन पे गिर जाता है। शेर और गाय खूबसुरत पुरुष और स्त्री में परिवर्तित हो जाते हैं और प्रेमालिंगन करने लगते हैं। एक दूसरे को चूमने लगते है।उनकी जांघे, उनका कमर, उनका वक्ष एक दूसरे में समा जाता है। उनके कपड़े एक एक कर शरीर से सरककर नीचे गिरने लगते हैं। फिर दोनों नग्न स्त्री में परिवर्तित होकर उसकी तरफ आने लगते हैं। खूबसुरत युवतियों के स्तन कड़े हैं। आँखों से वासनामयी निमंत्रण आ रही थी।


मुमुक्षु अवचेतन मन के इस प्रहार से नहीं भगता है। इस बार ध्यान से उठने की कोशिश नहीं करता। वो खुद दोनों युवतियों के पास उनके कपड़े पहनाकर उनकी पूजा करता है। दोनों स्त्रियाँ देवी में परिवर्तित होकर अन्तर्ध्यान हो जाती है। इस बार वो युवतियों से भागता नहीं अपितु उनको स्वीकार करता है।चारो तरफ दूधिया प्रकाश फैल जाता है। मुमुक्षु अति शांति की अवस्था में स्थापित हो जाता है। अब उसे ब्रह्मचर्य के रक्षण की आवश्यकता नहीं थी।

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