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हीर की मज़ार

हीर की मज़ार
“वकिल साहब आपके लिए चिठ्ठी आयी है” – रवि ने वकील बिशन सिंह को नीचे से आवाज़ लगाई। वकील साहब की ओर से जवाब न आता देख रवि ने उपर की मंज़िल पर जाना ही ठिक समझा। रवि ने वकिल साहब के घर में आकर कहा – “ बिशन सिंह जी आपके लिये लाहोर, पाकिस्तान से कोई इज़्ज़त बिबि की चिठ्ठी आयी है” । बिशन सिंह जी के 76 साल के बुढ़े शरीर में मानो जान सी आ गई हो ये सुनकर। वो हड़बड़ी में उठे और रवि के हाथों से चिठ्ठी लेकर पढ़ने लगे।
चिठ्ठी मैं लिखा था –
“ओए बिशनेया! आज इस चिठ्ठी नाल मैं त्वान्नू अपना वादा याद दिला रही हूँ। तु मेनू वादा कियासी हिन्दुस्तान जाने के पेहले कि जब मेरी मौत आयेगी तब तू एक बार मेनू मिलने यहाँ लहौर आयेगा। आज ये चिठ्ठी मैं इसलिए लिख रही हूँ कि मेरा आखरी वक्त आ गया है। मेनू उम्मीद है बिशनेया तू ज़रूर आयेगा। - त्वादी प्यारी हीर”
रवि ये सब वहीं खड़ा होकर ये सब देखता रहा, आखिर में उसने पूछ ही लिया – “क्या हुआ वकील साहब? कौन है ये जो आपको पाकिस्तान से खत लिख रहा है?” बिशन सिंह कुछ देर सोचने के बाद बोले – “चलोगे रवि मेरे साथ पाकिस्तान?” रवि ने पूछा – “पाकिस्तान! पर क्यो?” बिशन सिंह ने कहा – “अपना वादा निभाना है, मिलना है किसी से। जाओ अगले हफ्ते की समझौता एक्सप्रेस की टिकिट करवालो”।
दिन बींते और पाकिस्तान जाने का दिन भी आ गया। बिशन सिंह और रवि ट्रेन में थे। रवि किसी से बात करने के लिये सिट से उठकर कहीं चला गया। ट्रेन अब अमृत्सर से काफी दूर आ चूकी थी और बिशन सिंह भी कहीं दूर पूरानी यादों में आ गये थे। बिशन सिंह याद करने लगे कि कैसे साथ खेले, साथ बड़े हुए वो और इज़्ज़त, कैसे देश आज़ाद हुआ। उन्हे याद आया कॉलेज में किया गया वो हीर और रांझे का वो नाटक जिसने उनकी बीच की दोस्ती को प्यार में बदल दिया। उनके प्यार की कैफियत कुछ ऐसी थी कि वो एक दुजे के साथ जीने मरने की कसम खाया करते थे। एक दिन उन दोनो के घरवालो को उनके प्यार के बारे में पता चल गया। थोड़ी बहुत तकरार हुई पर आखिर तक सब मान ही गए। पर हीर और रांझे की कहानी की ही तरह उनका मिलना भी इतना आसान नहीं था। आज़ादी मिलने के चंद महीनों बाद ये फैसला हुआ कि हिन्दुस्तान अब एक नहीं रहा, उसके दो तुकड़े होंगे, एक होगा हिन्दुस्तान और दुजा पाकिस्तान। बट्वारे की आग ने लोगों के दिलों में भी दरार दाल दी थी, हिन्दु मुस्लिम दंगे भड़क उठे। नतीजा ये हुआ कि बिशन सिंह को भी लाहौर छोड़कर अमृत्सर में बसना पड़ा और इज़्ज़त और बिशन एक न हो सके।
“ चलिये वकील साहब लाहौर आ गया। थोड़ी देर में विज़ा वेरिफिकेशन होगा और फिर हम चलेंगे आपकी हीर से मिलने ” – रवि ने कहा तो बिशन सिंह यादों से बाहर आये। एक घंटे सारी कगज़ी कर्यवाहि निपटाकर दोनो खत में लिखे पते पर जाने के लिये निकले। पते पर पहुचे तो दोनो एक हवेली पाई। रवि ने दरवाज़े पर दस्तक दी कि तभी अन्दर से आवाज़ आई – “ठहरिये दो सेकन्द”। कोई लड़की ने दरवाज़ा खोला। बिशन सिंह ने उस से कहा – “पुत्तर मैं बिशन सिंह हूँ। हिन्दुस्तान से आय हूँ इज़्ज़त बिबि से मिलने”। लड़की ने उदास लहज़े में कहा – “ जी बेबे तो नहीं रहीं”। बिशन जी हैरान रह गये ये सुनकर, वो सोचने लगे क्या उनकी कहानी में मिलना लिखा ही नहीं था कि तभी लड़की ने कहा – “बेबे ने कहा था कि आप आयेंगे और ये भी कहा था कि जब आप आये तो आपको वहाँ ले जाऊ जहाँ आपने उनसे मिलने का वादा किया था”। बिशन सिंह ने कहा – “ हमे फैस्लाबाद जाना है, हीर की मज़ार पर ”। रवि ने टेक्सी का बन्दोबस्त किया और वो फिर चले हीर की मज़ार पर। हीर की मज़ार पर पहुच कर बिशन जी ने मज़ार पर फूल चढाये और अपनी हीर को याद कर दुआ मांगने लगे। उन्हे फिर याद आया वो वक्त जब वो इज़्ज़त से आखरी बार यहाँ मिले थे और इज़्ज़त के कसम देने बाद हिन्दुस्तान जाने के लिये राज़ि हुये थे और ये वादा किया था कि वो वापिस आयेंगे उनसे मिलने।
वो सोचने लगे कि उनकी कहानी में भी मिलना लिखा था हीर और रांझे की तरह। ठिक उसी जगह पर, उसी हीर की मज़ार जहाँ हीर और रांझे कि कहानी पूरी हुई थी, आज वहीं पर उनकी और इज़्ज़त की कहानी भी पूरी हो गई। सब सोचते याद करते हुए उनके अन्दर भावनाओं का सैलाब, आँसू कि शक्ल में उनकी आँखों से बह गया।

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