गुलाल
सुबह से ही पूरी सोसाईटी होली के रंग में रंगने लगी थी कहीं पानी में घुले हुए रंग की टंकिया रखी थी तो कहीं बच्चों ने पिचकारियां भर रखी थी जैसे कोई सैनिक चौकन्ना हो कि दुश्मन किसी भी समय हमला कर सकता है
आसपास गुझियों की स्टाल लगाई गयी थी वहीं किसी कोने में हरी पत्तियाँ घोंटी जा रही थीं जिन्हे बाद में बादामी दूध में मिलाया जा रहा था
बुजुर्ग ढोल की आवाज पर हौले हौले से हाथ हिला रहे थे
वहीं नौजवानों से लेकर अच्छे घरों की महिलाएं सब किसी रैप पर थिरक रहे थे
- बेबी तो बड़ी भोली है , बेबी की रंग दी चोली है , बुरा न मानो होली है वगैरह वगैरह
जोश वाकई में इंशान के होश छीन लेता है लोग नाच तो रहे हैं लेकिन ये भूलकर कि वो क्या सुन के नाच रहे हैं खैर मैं काफी दूर से जायजा ले रहा था इस दृश्य का आनंद ले रहा था मेरे ऊपर कोई भी इतना मेहरबान न था कि दो बूंद रंग छोड़ देता या एक मुट्ठी गुलाल मेरे गाल पर चस्पा कर देता
मेरी चंचल निगाहें अचानक उस छज्जे पर ठहरी जहाँ 68 वर्षीय बुजुर्ग रेलिंग के सहारे खड़े कुछ उदास दिखाई दे रहे थे एक लेखक होने की हैसियत से मुझे ये बात हजम न हुयी कि नीचे बहुत से बुजुर्ग मौजूद हैं जो एक दूसरे को गुलाल लगा रहे हैं मगर इन्हे क्या हुआ
उत्सुकता वश मैं सबसे बचते हुए सीढ़ियों के रास्ते उनके पास पहुँचा मैने पहुँचते ही उनके पैर छुए और होली की शुभकामनाएं दीं उन्होने अपने चश्में को एक तरफ पकड़कर अन्दर की और जोर देते हुए बोले
- खुश रहो बेटा मगर मैने तुम्हे पहचाना नहीं
- अंकल वैसे तो मेरी कोई पहचान नहीं है बस एक लेखक हूँ और इसी हैसियत से मुझे ये बात समझ में नहीं आई कि पूरी सोसाईटी के लोग होली खेल रहें और आप यहाँ खामोशी की चादर ओढ़े हुए बैठे हैं
- क्या करोगे समझ कर बेटा जब मेरे अपने ही मुझे नहीं समझ पाए तो तुम क्या समझोगे
- अंकल एक तरफ आपने मुझे बेटा बोला है और एक तरफ आप मुझे पराया बता रहें हैं अगर आपने दिल से मुझे बेटा बोला है तो मुझसे अपनी इस तन्हाई का सबब भी साझा कीजिए
मेरे इतना कहने पर उन्होने पहलू बदलते हुए अपनी बात शुरू की
- मैं किसी जमाने में इंटर कालेज में भौतिक विज्ञान का सरकारी अध्यापक हुआ करता रतना जो मेरी जीवनसंगिनी बनकर आई थी मेरा हर सुख दुख बांटती थी भगवान की कृपा से मुझे दो पुत्र रत्न मिले थे मैने अपनी छोटी तन्ख्वाह से अपने परिवार का पोषण बहुत अच्छी तरह से किया था
अपने दोनो बच्चों की पढ़ाई लिखाई और हर शौक को पूरा किया था
मेरा बड़ा बेटा मधुर आई आई टी देहली से इंजीनियरिंग करके यू.एस.ए में पर नौकरी करने लगा था और बाद में उसने मुझसे बिना बताए वहीँ शादी भी कर ली
मेरा छोटा बेटा रंजन भी किसी रसियन लड़की से शादी करके रूस में शिफ्ट हो गया मैने आज तक अपनी एक भी बहु की तस्वीर भी नहीं देखी
- आंटी को क्या हुआ था मैने उस बुजुर्ग के चेहरे में सवालिया निगाह टिकाते हुए पूंछा
ऐसा लगा जैसे मेरे इस सवाल नें अंकल को अंदर तक घायल कर दिया था जैसे उनके सारे जख्म हरे होने लगे थे
- रतना को गुजरे हुए आज 6 बरस हो गए दिल की मरीज थी मैने अपने बेटों से फोन पर कई बार घर लौट आने को कहा मगर उन लोगों ने हमेशा मुझसे कहा कि वो बिजी हैं और माँ का खयाल रखने की नसीहत दी खैर मैने अपनी पेंशन के पैसे से रतना का हर अच्छे अस्पताल में इलाज कराया मगर उसका मर्ज प्रत्यावर्ती धारा के वक्र की तरह ऊपर नीचे होता रहा
मेरे बेटों ने मेरी मदद की तो सिर्फ पैसे से जितनी बार मैं उनसे घर आने की मिन्नत करता उतनी बार वो मेरे खाते में एक मोटी रकम भेज देते जहाँ एक माँ को अपने बच्चों को देखने की आरजू थी वहाँ ये नोट क्या करते बेटा
आज से 6 साल पहले मैने औऱ रतना ने इसी सोसाईटी के कैंपस में होलिका दहन किया था रतना ने गुझिया तैयार की थीं अगले दिन करीब 10 बजे उसे फिर दिल का दौरा पड़ा मै लोगों की मदद से उसे एम्बूलैंस मे रखवाकर अस्पताल पहुँच गया था उसे इमरजैंसी वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया था नर्स ने मुझे बाहर ही ठहरने को कहा था थोड़ी देर बाद मुझे ये कहकर अंदर बुलाया गया कि पेंशेट होश में है आप मिल सकते हैं लेकिन अभी कुछ कहा नहीं जा सकता मैं उसके बैड पर बैठा उसके आखिरी लव्ज आजतक मेरे कानों में गूंजते हैं बेटा वो बोली कि मेरे मधुर रंजन का खयाल रखना जी जिन बेटों ने इस माँ की कभी सुध न ली वो मरते वक्त भी उनके बारे में सोच रही थी उसके इतना कहते ही उसने मेरा हाथ अपने सीने से लगा लिया और बेचारी ने दम तोड़ दिया
इतना कहते ही अंकल फफक के रोने लगे थे अब मैने उन कमजोर बाहों को थाम लिया उनका चश्मा उतारकर मैने पास की मेज में रख दिया और उनके सारे आँसू पोंछ डाले
सूर्य के निकलने से रौशनी होती है ये बात जितनी सच है उतनी ही ये बात सच है कि जब हम किसी के आँसू पोंछते हैं तो हमें एक मुकद्दस खुशी मयस्सर होती है
- फिर आपने अपने बेटों से बात की मैं अंकल से दुबारा मुखातिब हुआ
- मैने उनको फोन पर माँ के न रहने की खबर दी तो उन्होने मुझे कहा की वे अंत्येष्टि संस्कार में मौजूद नहीं हो सकते क्योंकि उनका इतनी जल्द इंडिया आऩा मुमकिन नहीं है मैने अपने कुछ परिवार वालों और दोस्तों को बुलाकर अपनी रतना को अंतिम विदाई दी
रतना के त्रयोदशी संस्कार में मेरे दोनो बेटे मेरे सामने आए उनके चेहरे पर माँ के जाने का दुख था कि नहीं मैं ये तो पता नहीं कर पाया मगर आँखे उनकी भी नम थी मेरी एक भी बहू इस मौके पर नहीं आयी थी मेरे बच्चों ने मुझसे तरह तरह के काम बताकर मेरे बार बार बुलाने पर भी न आने की बात पर बेहतरीन सफाई दी
मेरा जब भी उन्हे कुछ कड़वा बोलने का मन होता तो अंदर से फिर वही आवाज गूंज जाती "सुनो जी मेरे रंजन मधुर का खयाल रखना " जो रतना ने मरते वक्त कही थी और मेरी जबां खुद-ब-खुद बंद हो जाती वैसे भी अब मेरे पास खोने के लिए बचा ही क्या था मेरे दो बेटे थे जो फकत पाँच दिनो के बाद वापस जाने वाले थे
खैर वो समय भी आया जब मेरे दोनो बेटों ने मेरा आशिर्वाद लेकर मुझसे कहा अच्छा पिता जी अब चलते हैं तन्हा हवा का एक तेज झोंका जैसे मेरे जिस्म से टकराया औऱ दिल में कहीं जाकर इकट्ठा हो गया मैने उन्हे खुश रहने का आशिर्वाद दिया और जहाँ तक मेरी कमजोर नजर उन्हे देख सकी मैं उन्हे देखकर हाथ हिलाता रहा क्योंकि मैं जानता था जो बेटे अपनी माँ को आखिरी बार न देखने आ सके वो इस बदनसीब बाप को देखने क्या आएंगे
बस उस दिन से मेरी जिंदगी तन्हाई और उदासी से भर गयी है बेटा यदाकदा कुछ हमउम्र दोस्त मिलने आ जाते हैं थोड़ा समय सामने पार्क में बिता आता हूँ बांकि समय किताबें पढ़ने में गुजार देता हूँ सरकार पेंशन दे रही है औऱ मेरे अमीर बेटे मेरे खाते को भरापूरा रखते हैं
बस मुझे नफरत है तो इस होली के दिन से इस दिन ने मुझसे मेरी रतना को छीन लिया औऱ मैं रंग-ओ-गुलाल से दूर हो गया कभी जब मेरी उम्र 40 साल की थी तो रतना मेरे गालों पे गुलाल लगा दिया करती थी खैर न वो दिन रहे न वो वक्त
अरे बेटा तुम्हारी पलकें तो नम हो आयीं
- न न अंकल बस यूँ ही
- बेटा मेरी जिंदगी में आजतक किसी ने इतना अंदर झांकने की कोशिश नहीं की एक तुम ही हो जिसे मैने अपना समझकर सबकुछ बयाँ कर दिया
- मतलब आपने मुझे अपना समझा अपना माना तो बेटा होने के नाते आपको मेरी एक बात माननी होगी
- बोलो बेटा
- मेरे साथ नीचे चलिए
- मगर क्यों
मैने अंकल के क्यों का जवाब दिए बिना उनका हाथ पकड़ कर सीढ़ियों के रास्ते उन्हे नीचे ले आया और कैंपस मे रखे हुए पीले रंग के गुलाल के कटोरे से एक मुट्ठी गुलाल अंकल के गालो पर लगा दी औऱ कहा रतना आंटी भी आपको खुश देखना चाहती हैं वो देखो ऊपर से देख रही हैं इतना कहकर मैने आसमान की तरफ उंगली उठा दी
उदासी धीरे धीरे खुशी में तब्दील होने लगी थी अंकल मुझे गले लगाकर मुस्करा दिए मैने बगल से दो गिलास उठाए और एक गिलास बादामी ठंडाई अंकल की तरफ बढ़ाई हम दोनो के गिलास आपस में टकराए और फिर अपने अपने होंठो से लगा लिए
ढोल अब भी पूर्ववत बज रहा था सो हम भी हौले हौले थिरकने लगे
मैं खुश था कि मैं किसी की बेरंग जिंदगी में फिर से गुलाल उछालने के काम आ सका
अचानक अंकल ने मुझसे पूंछा कि बेटा तुमने सब कुछ जान लिया मगर मेरा नाम नहीं जाना
मैंने फिर सवालिया निगाह अंकल के चेहरे पर टिका दी
अंकल मुस्कुराते हुए बोले - रतनलाल त्रिपाठी
चारो तरफ गुलाबी गुलाल उड़ने लगा था ..................................
- अविनाश शर्मा