Bhagwan ne chaha to aaj raat tum mujhe nahi dekhogi books and stories free download online pdf in Hindi

भगवान ने चाहा तो आज रात तुम मुझे नही देखोगी।

     
भगवान ने चाहा तो आज रात तुम मुझे नही देखोगी।
नेहा स्तब्ध थी ऐसे शब्दों का प्रयोग मन को झगझोड़ देने वाला था,कोई इतना कठोर होकर कैसे जीवन खुशी से बिता सकता था, 
क्या हुआ माँ ,कोई बात हुई है क्या ,पापा नाराज़ हो गए,और ऐसे शब्द क्यों निकाल रहे है, 
पता नही बेटा अभी तो बढ़िया बैठे थे, अखबार पढ़ रहे थे , मैंने बस इतना कहा कि जो मिठाई के डब्बे आपको ले जाने है वो ले जाओ बाकी मैं अपने हिसाब से देख लूँगी, अचानक बड़बड़ करने लगे, हमेशा की तरह वो बस बोलते जा रहे थे और मैं ख़ामोश, फिर जब मैंने चुप्पी नही तोड़ी तो उन्हें बुरा लगा इसी के चलते शायद उन्होंने कुछ कहा होगा।

हाँ ठीक है पर इतनी सी बात पे इतने कठोर शब्द, 

मैं तो सुनती ही नही जो नही सुना मतलब किसी ने कुछ कहा ही नही।

कहाँ से लाती हो इतनी सहनशीलता आप, आपका दिल दर्द महसूस नही करता, एक पल मैंने पापा को आपके साथ खड़ा हुआ नही देखा, इस उम्र में तो साथी का साथ भगवान के साथ के बराबर है,फिर साथी होते हुए आप इतनी अकेली हो,

 चाहे आप भूल गयी हो जब हम दादी जी से मिलने गए थे सबके सामने पापा ने आपके आत्मसम्मान को कितनी ठेस पहुँचाई थी पर आप बस चुप रही एक शब्द नही बोली, उस वक़्त आपके सारे बच्चें आपके सामने थे,पर एक शब्द नही बोले वो आपके लिए, पर आपके माथे पर शिकन भी नही थी,

क्या करूँ मैं वो बातें याद करके नेहा,जो वक़्त बीत गया उससे कुछ हासिल नही होता बल्कि हमें भविष्य की सोचनी चाहिए,

सच कहूँ माँ मुझे कभी कभी डर लगता है कि कही मेरे पति भी वक़्त के साथ ऐसे ना हो जाये क्योंकि खून तो अपना रंग दिखाता ही है, क्योंकि ना तो मुझमें इतनी सहनशक्ति है और ना मैं मजबूत हूँ आपकी तरह,

ऐसे शब्द नहीं निकालते नेहा, पति पत्नी दो पहियों से मिलकर अपनी गाड़ी चलाते है, एक पहिया वो होता है जो घर को परिवार को बाहरी प्रकोप समस्याओं से सुरक्षा प्रदान करता है और एक वो जो घर के अंदर रहकर घर की दीवारों और परिवार को मजबूत बनाता है, मेरे लिए यही बहुत है कि तुम्हारे पापा एक छत्र कवच है जीवन के जिनके रहते हुए हम बाहरी आपदाओं से बच पाते है, कोई बुरी निग़ाह परिवार पर नही डाल सकता, यही मेरा आत्मसम्मान है जो मेरे बच्चों को सुरक्षा कवच प्रदान करता है।

2 महीने बाद अचानक ऐसी घड़ी आ गयी जो सबको कमजोर कर रही थी, माँ अचानक सोफ़े पर बैठी बैठी बेहोश हो गयी, मैने इसलिए ध्यान नही दिया कि शायद मुझे लगा माँ की आँख लग गयी, पर आवाज देने पर भी कोई प्रतिक्रिया नही हुई तो मुझे चिन्ता हुई मैने सबको फ़ोन किया और हम सब माँ अस्पताल लेकर पहुँचे, आज पहली बार पापा के चेहरे पर मैंने चिन्ता की लकीरें देखी, पर मुझे उन पर गुस्सा आ रहा था,

तुरंत उन्हें डॉ ने अंदर ले लिया, थोड़ी देर बाद होश आया पर डॉ ने 2 दिन अस्पताल में रहने की सलाह दी, पर डॉ ने जो कहा वो बहुत चिंताजनक था,

वैसे तो ठीक है ये पर टेंशन लेने की वजह से इनकी सर की नसें रक्त संचार अच्छे से नही कर पा रही उस पर बुढ़ापे का शरीर ज्यादा हम कुछ कर नही सकते, आप कोशिश कीजिये कि इस उम्र में इन्हें तनाव से बचाया जा सके वरना ज्यादा वक्त तक जीवित रह नही पाएगी ये दवाइया मैंने लिख दी है,

आज मैं अपनी मर्यादा को रोक नही पायी, जिसने कभी पापा से 2 मिनिट ठहर के बात तक नही की, जिसकी निगाहें कभी पापा से टकराईं भी नही,आज उन निगाहों में आग थी,जिसे वो महसूस कर पा रहे थे,

ये सब जो आज हो रहा है वो आपकी बदौलत है पापा और एक दिन का नही जाने कितने सालों से माँ आप के बुरे बर्ताव को दिल में छुपा के बैठी है,कभी पलट कर कोई प्रतिक्रिया नही की उन्होंने, क्योंकि उन्हें पता था कि आप उन्हें नही समझोगे, तरसी है वो आपकी एक स्नेह भरी नजर के लिए पर इन 6 सालों में मैंने कभी वो नही देखी जो आप माँ को बयान कर सके, आपके परिवार का स्तम्भ है वो जिस दिन उन्हें कुछ हो गया सबसे ज्यादा आप उनकी कमी महसूस करेंगे, शायद भगवान ने माँ को नही आपको एक मौका दिया है कि आप उन्हें वो सम्मान दे सके जिसपे उनका अधिकार है।

कहा तो कुछ नही पापा ने पर उनके आँखों की नमी ने उन्हें अहसास करा दिया था कि उन्होंने अपने जीवन के उस पहिये की कद्र नही की जिसके बिना उनकी जीवन की गाड़ी चल रही थी।

आज माँ को अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी, हम सब आश्चर्य थे कि जब माँ को पहले कदम पर सहारे की जरूरत पड़ी तो उनके हमसफ़र ने उनका हाथ थामा, और माँ की पलकें भीग रही थी।

आज भी हमारे देश में बहुत से घरों में ऐसा होता है कि जिंदगी के उस हिस्से को लोग नजरअंदाज करते है जो हिस्सा उनके जीवन का आधार होता है।

धन्यवाद
सोनिया चेतन कानूनगों

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