याद (कविता संग्रह ) Ravi kumar bhatt द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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याद (कविता संग्रह )

१-याद:-
जब नेत्र खुलते है मेरे 
जब मधुर भोर हो जाती है 

तब याद तुम्हारी आती है!
प्रिये याद तुम्हारी आती है!

फूल खील उठते है बागों मैं 
भंवरे गाने लगते है सात सुरों के रागों में 
जब कोयल अपना मधुर गीत सुनाती है!

तब याद तुम्हारी आती है!
प्रिये याद तुम्हारी आती है

जब मन मेरा कभी उदास होता है 
जीवन से जब कभी निराश होता है!
जब कमी तुम्हारी इस दिल को बहोत सताती है!

तब याद तुम्हारी आती है
प्रिये याद तुम्हारी आती है!

कितना प्रेम है मुझको तुमसे 
आज जान लो तुम कसम से 
बीना तुम्हारे सच कहता हूँ!
मेरी धड़कन भी रुक जाती है!

जब याद तुम्हारी आती है 
प्रिये याद तुम्हारी आती है


२:-
जब जब एहसास जागते है 
उठा लेता हूँ कलम 
दिल की हर बात लिखकर 
दिल हलका कर लेता  हूँ 
आखिर मैं भी तो उसी भीड़ का हिस्सा हूँ 
जो तमाशा देख कर तालियाँ बजाती है 

देखा है मैंने भी 
कूड़े के ढेर में खाना ढूँढ़ते बचपन को 
मेरी गाड़ी भी शीशा चढ़ा के वही से गुज़र जाती है!

आखिर मैं भी तो उसी भीड़ का हिस्सा हूँ 
जो तमाशा देख कर तालियाँ बजाती है!!

रास्ते पर भीख माँगता बुढ़ापा 
खुद को अभिशाप लगता है 
मेरी आत्मा कुछ पैसे दे कर 
अपना कर्तव्य निभा जाती है!

आखिर मैं भी तो उसी भीड़ का हिस्सा हूँ 
जो तमाशा देख कर तालियाँ बजाती है!!

दहेज की खातीर जला दी जाती है नारियाँ 
बुरा हमे भी लगता है 
दिल मेरा भी दुखता है!
पर सब भूल जाता हूँ 
जब दहेज में हमे भी गाड़ियाँ मील जाती है!

आखिर मैं भी तो उसी भीड़ का हिस्सा हूँ 
जो तमाशा देख कर तालियाँ बजाती है!!
तमाशा देख कर सब भूल जाते है 
तालियाँ बजा कर सब  निकल जाते है!
फ़िर निकल पड़ते है नया तमाशा देख ने!!

३:-सपना:-

सुबह का समय था 
थोड़ी धुंध थोड़ा अंधेरा था 
छोटी सी एक किरण 
दिखी पीपल के पीछे 
मैं भी धूप समझ 
बैठा उस पेड़ के नीचे 
ठंडी ठंडी हवा थी चल रही 
मानो मुझसे पवन ये कह रही 
आओ तुम्हें लोरी सुना के
फ़िर से मैं सुला दुं 
मंद समीर की उँगलिया माथे 
तेरे फिरा दुं 
पर तभी साँस मेरी घुटने लगी 
नीला पड़ गया चेहरा मेरा 
देखा जब अंबार धूयें  का 
चारों तरह गाड़ियाँ का धुंवा 
जैसे कोई मौत का कुआँ 
में झट उठ बैठा 
घबराया फ़िर से बिस्तर पर 
लेटा 
सपने में ये हाल हुआ 
घबरा के बेहाल हुआ 
नहीं रहे गर पेड़ जहाँ में 
कैसे जीएंगे हम यहाँ पे

४:-तुम:-
तुम मुझसे मिलने ज़रूर आना 
तुम मुझसे मिलने ज़रूर आना 
तुम मेरे बचपन के साथी हो 
तुम मुझसे मिलने ज़रूर आना 
आम के पेड़ों पे झूलें लगा के 
फूल कलिओ से सुंदर सजा के 
बैठ कर उस्पर यूँ झूलें 
एक पल में आकाश छू लें 
वहीं कहीं बिखरा पड़ा होगा मेरा बचपन 
जितना हो सके समेट लाना 
तुम मुझसे मिलने ज़रूर आना 
तुम मुझसे मिलने ज़रूर आना
बचपन के वो खेल 
गुड्डे गुड़ियों का मेल 
कभी छत पे क्रिकेट 
कभी बच्चों की रेल 
उस छत पे बिखरी यादों को 
ज़ेब में अपने भरे लाना 
तुम मुझसे मिलने ज़रूर आना 
तुम मुझसे मिलने ज़रूर आना




                                                      रवि