स्वाभिमान - लघुकथा - 55 Nisha chandra द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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स्वाभिमान - लघुकथा - 55

वह एक पल

क्या करे अनी, समझ नहीं पा रही है ।क्या पापा से मर्सिडिज के लिए बोल दे या हमेशा के लिए समीर को छोड़कर पिता के घर चली जाये। इकलौती सन्तान है और करोड़ो की वारिस, पिता से कहकर मर्सिडिज मँगवाना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है, पर ये व्यक्ति इतना बड़ा लालची निकलेगा ये अनी ने कभी सपने में भी सोचा था इसी के लिए वह माँ-बाप के सामने इतना रोयी थी, प्यार की दुहाई दी थी, हजार मिन्नतें की थी।

पापा ने कहा थातुम उसे जानती ही कितना हो, हो सकता है वह तुमसे नहीं, तुम्हारी धन-दौलत से प्यार करता हो

जैसे किसी ने साँप की पूँछ पर पाँव रख दिया हो। उसने वही घिसा- पिटा डॉयलॉग बोला थाकिसी - किसी को जानने समझने में जन्मों लग जाते हैं पापा और किसी को समझने में दो पल, लगता है मैं उसे जन्मों से जानती हूँ, उसे आपके पैसों से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि वह तो शादी भी एकदम सादे ढ़ग से करने को कह रहा है। बेटी की जिद के आगे पापा झुक गये थे, विवाह हुआ और बड़ी धूमधाम से हुआ।

पापा ने उसे जो भी देना चाहा, समीर ने ना बोल दिया

मेरे पास सब कुछ है पापा, मुझे अनी मिल गयी, सब कुछ मिल गयापापा के साथ- साथ वह भी निहाल हो गयी।

देखते ही देखते एक साल बड़े अच्छे से बीत गया। अब समीर रोज रात को बिस्तर पर आते ही एक ही वाक्य बोलता

साला ये सड़ी हुई मारूति चलाते - चलाते मैं भी सड़ गया हूँ, अपने पापा को बोलो, एक नयी लम्बी कार दिला दें।

अनी ने उसे आश्चर्य से देखा विश्वास ड़गमगाने लगा। तुम लोन लेकर ले लो।लोन कौन भरेगा ? तेरा बाप!

बाप ? पापा को ये बाप बोल रहा है। उसी क्षण उसका गला दबाने को अनी का मन हो गया। अब ये रात - दिन का हो गया। अनी का स्वाभिमान चोट खायी नागिन की तरह फन उठाने लगा। अब नहीं लगायेगी पिता की इज्जत दांव पर, रात को उसने नशे में बड़बड़ाते हुए भी सुन लिया था

रोज़ जाने कितने सिलैंडर फटते हैं

सारी रात जागते हुए बीती। सुबह बहुत देर तक वह किसी से बात करती रही। समीर के उठते ही उसने कहासमीर मैंने पापा से बात कर ली है, आज तुम्हारी कार जायेगी

पगलाया सा वह अनी को गले लगाने के लिए आगे बढ़ा, वह परे हट गयी। उसकी आँखें भर आयीं, इसी इसांन को उसने इतना प्यार किया था। दरवाजे की घंटी बजी। पापा गये कहते हुए पगलाये से समीर ने दरवाजा खोला ....

हाथ में हथकड़ी लिए हुए पुलिस उसके सामने खड़ी थी

निशा चन्द्रा