कन्हैया रोज की तरह तेज चाल से चला जा रहा था।चारो तरफ गहरा अंधेरा छाया था और बारिश रुकने का नाम नहीं ले रहा था उस दिन,पर कन्हैया को इससे कहा मतलब ,वो तो मस्त अपनी ही दुनिया में और मस्त था अपने आराध्य की भक्ति में।बारिश हो या तूफान उसे कोई फर्क नहीं अगर फर्क पड़ता तो वो उस मंदिर में नहीं जाने से जिसमें पिछले कई महीनों से वो लगातार बिना किसी दिन छोड़े जा रहा था।
शहर के दूसरे छोर पर बसा वो मंदिर कम से कम आधे घंटे की दूरी पर था। कन्हैया उस दिन भी वो चला जा रहा था।
आधे रास्ते में ही पहुंचा था कि उसे किसी ने पीछे से आवाज दी।एक कपड़े कि दुकान से कोई बूढ़ा हाथ हिला कर उसे बुला रहा था।
कन्हैया वैसे ही जल्दी में था पर बूढ़े आदमी को मना नहीं कर पाया।वो जैसे ही उस बूढ़े आदमी के पास पहुंचा वो बोल पड़ा
"तुम रोज कहा जाते हो इस वक़्त? मै कई महीनों से देख रहा हूं ।आज रहा नहीं गया तो रोक लिया।बारिश हो या ठंड तुम किसी दिन भी खाली नहीं छोड़ते।"
"मै यही पास के शिव मंदिर जाता हूं।" -कन्हैया बोला।
"कौन से मंदिर? वो जो कोने पर है पुराना खंडहर जैसा?" - बूढ़े ने पूछा।
"हा उसी मंदिर में,शिव का मंदिर है।" - कन्हैया ने जवाब दिया।
"क्या वहा शिव का मूर्ति है? तुमने देखा है क्या?" - बूढ़े ने पूछा।
"हा शिव की मूर्ति है, अंदर थोड़ा अंधेरा है पहले चार - पाच महीने तक मै भी नहीं देख पाया था कि किसकी मूर्ति है।
पर थोड़े दिन पहले ही मुझे भी दर्शन हो पाए जब मै उस छोटे से बने गुफा नुमी कमरे में दाखिल हुआ।बड़ी ही सुन्दर मूर्ति है।"- कन्हैया ने बोला।
"क्या तुम निश्चित हो कि अंदर शिव की ही मूर्ति है?"- बूढ़ा आदमी।
"हा मै सत प्रतिशत निश्चित हूं की शिव की ही मूर्ति है।मै रोज उनकी आराधना करता हूं।थोड़ा डरावना लगता है वो मंदिर पर अगर बार - बार जाने लगो तो सहज हो जाता।" - कन्हैया ने जवाब दिया।
"मै फिर से पूछना चाहूंगा कि क्या तुमने सच में वहा शिव की मूर्ति देखी है?" - बूढ़े आदमी ने पूछा।
"हा,आप बार बार क्यों पूछ रहे?"- कन्हैया ने बोला।
"दरअसल मैंने उस मंदिर में किसी को कभी जाते नहीं देखा है।सच यह है कि वहा कोई मंदिर ही नहीं है।तुम जिस खंडहर की बात कर रहे हो वो कोई मंदिर नहीं बल्कि बहुत पुराना एक पंडित का घर है ।वहा कोई आता जाता नहीं है।"- बूढ़े ने बोला।
"पर मैंने तो वहा शिव की मूर्ति देखी है अपने आंखो से।
मै कैसे विश्वास करू कि आप सही बोल रहे।"- कन्हैया ने बोला।
"अगर तुम्हे लगता है मै झुठ बोल रहा तो तुम किसी से भी पूछ लो सब यही कहेंगे।"- बूढ़े ने बोला।
"मुझे कभी वहा ऐसा कुछ नहीं लगा।मै पिछले छह महीने से जा रहा।मुझे तो जबकी और शांति ही मिलती वहा जा कर।हमेशा लगता की भगवान शिव मुझसे बात कर रहे है।मै उन्हें अपने मन की बात बताता और मुझे रास्ता बताते।"- कन्हैया ने बोला।
"मुझे नहीं पता तुम्हे ऐसा क्यों दिखाई देता है या सुनाई देता है।पर सच ये है कि वहा कोई मंदिर नहीं है।उधर से कोई गुजरना भी नहीं चाहता।वहा जितने पेड़ है उनके फल जानवर तक नहीं खाते।तुमने देखा होगा वहा के फल - फूल बहुत सुंदर होते है और कभी ख़त्म नहीं होते।वो हर महीने में फलते - फूलते है।"- बूढ़ा आदमी बोला।
"हा वहा के फल फूल बहुत सुंदर होते मैंने देखा है।मै तो रोज तोड़ कर वहा चढ़ता हूं।"- कन्हैया ने बोला।
"अब तुम्हारी मर्जी है कि तुम जाना चाहो तो जाओ या यही से वापस चले जाओ।मेरा काम तुम्हे आगाह करना था।बाकी तुम्हारी मर्जी। " - बूढ़े ने बोला।
"बहुत धन्यवाद आपका।
मै जरूर एक बार फिर भी खुद देखना चाहूंगा।" - कन्हैया बोला।
"भगवान तुम्हे शक्ति दे"- ये बोलकर बूढ़ा व्यक्ति वहा से चला गया।
कन्हैया भी फिर वहा से निकलकर धीरे धीरे मंदिर की तरफ चलने लगा। डर तो दिमाग में बैठ गया था।बात सही भी थी उसने पिछले छह महीनों में एक चिड़िया को भी पर मारते हुए नहीं देखा था वहा आस पास।पर फिर भी हिम्मत कर के वो जैसे तैसे वहा पहुंच ही गया।
सामने लकड़ी का दरवाजा था जो हमेशा की तरह उस दिन भी अंदर से बंद था जिसे कन्हैया को अंदर हाथ डालकर खोलना पड़ता था।दरवाजा थोड़ा ढीला होने के कारण अंदर की तरफ चला जाता था जिससे जगह बन जाए हाथ डाल कर खोलने के लिए।
कन्हैया ने हाथ डाल कर दरवाजा खोल दिया।अंदर रोज ही की तरह धुत सन्नाटा था।वो इस सन्नाटे से बखूबी वाकिफ था पर आज वो सन्नाटा कुछ अलग ही लग रहा था।सन्नाटे के अंदर से कहीं ना कहीं कोई आवाज भी सुन रहा था वो।
सारी आवाजे जो उस बूढ़े आदमी ने बोला था।
वो सब दिमाग में घुमड़ रही थी।
"ये कोई मंदिर नहीं है,ये एक पुराना खंडहर है जहां कभी एक बूढ़ा पंडित रहता था।पर एक दिन उसकी मृत्यु संदिग्ध हालातो में हो गई जिसका राज आज तक नहीं खुल पाया।तब से कहा जाता है कि उसकी आत्मा वही कहीं घूमती है।कहा जाता है कि वो पंडित था पर एक दिन किसी बंदर को मार दिया जिससे बंदर की मौत हो गई और दूसरे रात ही उसकी मृत शरीर वहा मिली।वो कैसे मरा कोई को कुछ नहीं पता।हा ये कहा जाता है कि उसके मरने से पहले वहा बहुत सारे बन्दर रहते थे आसपास के पेड़ो पर लेकिन उसके मौत की रात के बाद सारे बंदर वहा से गायब हो गए।फिर वहा पर उसके बाद कभी किसी ने कोई को आते जाते नहीं देखा।जानवर तक भी नहीं जाते उसके आस पास।"
कन्हैया की हिम्मत आज डोल रहा था।हाथ पैर फूल रहे थे।
वो फिर सोचने लगा -
"क्या ये सब सही है या बस एक मिथ।इसका पता लगाना पड़ेगा।इतने दिन का मेहनत मै ऐसे नहीं जाने दूंगा।और उन सब चमत्कारों का क्या जो सारे काम उस आराध्य ने पूरा किया मुझसे खुश हो कर।क्या वो सब सपना था या हकीकत?"
यही सब सोचते सोचते कन्हैया अंदर उस प्रांगड़ में पहुंच गया जहां वो छोटा सा गुफा नुमा कमरा था जिसके अंदर उसने शिव की मूर्ति देखी थी और जिसके सामने बैठ कर वो घंटो आराधना करता था।उसने झुक कर प्रणाम किया और महा मृतुन्जय का ग्यारह बार जाप किया।आज पहली बार वो असहज महसूस कर रहा था आराधना करते वक़्त।फिर भी जैसे तैसे पूजा किया और थोड़ी देर में बाहर की तरफ निकल पड़ा।
"आज मन नहीं लग रहा पूजा में।माफ करना भगवन।आज इतना ही कर पाऊंगा।आप से बिनती है कि मुझे शक्ति दो इन सबसे लड़ने के लिए।मुझे रास्ता दिखाओ जैसे हमेशा दिखाया है।"
इतना बोलकर वो एक दम बाहर निकल गया और दरवाजा फिर से बंद कर दिया।
फिर तेज चाल से घर की तरफ निकल पड़ा।
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