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पुरस्कार

अगले दिन शशांक का पाँचवी कक्षा की आन्तिम परीक्षा का परिणाम आने वाला था । प्रेमा ऐसे घबराई हुई थी मानो उसका अपना परिणाम आने वाला हो । इस बार प्रेमा ने मेहनत भी खूब की थी । ट्यूटर लगाने के अतिरिक्त वह स्वयं भी शशांक को पढ़ाती रही थी । रिजल्ट लेने के लिये वह शशांक के साथ स्कूल गयी थी ।

शशांक की क्लास टीचर ने शशांक का नाम पुकारा । प्रेमा धड़कते दिल से शशांक के साथ आगे बढ़ी ।

प्रेमा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ जब क्लास टीचर मिस ने कहा ,”बधाई हो ,शशांक प्रथम श्रेणी में पास हुआ और क्लास में भी प्रथम आया है ।“

प्रेमा और शशांक खुशी खुशी घर लौटे और घर में सब को शशांक के परिणाम के विषय में बताया ।

सभी बहुत प्रसन्न हुए । प्रेमा ने शशांक का मनपसंद भोजन बनाया । दिन भर उत्सव जैसा वातावरण रहा । शशांक के पिता राजीव ने भी शशांक को बधाई दी किन्तु उनकी प्रतिक्रिया में अन्य लोगों जैसा जोश नहीं था । उन्होंने प्रेमा से कह भी दिया, “तुम लोग तो ऐसे प्रसन्न हो रहे हो जैसे शशांक ने आई ए एस की परीक्षा पास कर ली हो ।

“आजकल पढ़ाई कितनी कठिन हो गयी है । शशांक ने मेहनत की उसकी तारीफ तो होनी ही चाहिये। “ प्रेमा ने राजीव से कहा । राजीव ने कोई जवाब नहीं दिया ।

थोड़े दिन बाद स्कूल के वार्षिक उत्सव में प्रेमा ,राजीव और शशांक सजधज कर बैठे थे । शशांक को पुरस्कार मिलना था । शशांक का नाम पुकार कर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु उसे मंच पर आमंत्रित किया गया।शशांक ने मंच पर जाकर पुरस्कार ग्रहण किया । उस समय प्रेमा और राजीव को गर्व का अनुभव हुआ । शशांक को पुरस्कार में क्रिकेट का बैट और एक ठोस रबर की बॉल मिली थी । शशांक बहुत खुश हुआ । उसे क्रिकेट का शौक भी था ।

शशांक के तो मजे हो गये । स्कूल का नया सत्र प्रारम्भ होने में अभी एक सप्ताह शेष था । छुट्टियाँ थीं । शशांक अपने दोस्तों के साथ घंटों क्रिकेट खेलता रहता था। अभी उसकी सारी गलतियाँ माफ थीं। राजीव कभी टोकता तो प्रेमा शशांक का पक्ष लेकर उससे उलझ जाती थी ।

कुछ दिनों बाद नया सत्र प्रारम्भ हुआ । शशांक के लिये नयी किताबों के साथ नया बस्ता भी खरीदा गया था । सत्र की शुरूआत अच्छी हुई ।

कहते हैं मनुष्य को आदतें बड़ी जल्दी पड़तीं हैं और मनुष्य आदतों का गुलाम बन जाता है । शशांक का क्रिकेट खेलना स्कूल खुलने के बाद भी वैसे ही चलता रहा ।

फल स्वरूप वह अब पढ़ाई में पिछड़ने लगा था। राजीव ने उसे कई बार यह कहकर समझाया ‘खेलना बुरा नहीं है किन्तु अनुशासन में रहकर खेलना चाहिये’। शशांक सुनता और समझता भी था लेकिन खेलते समय सब भूल जाता था ।

प्रेमा जब उसे पढ़ाने बैठती तो उसे भी कई बार लगता शशांक का ध्यान पढ़ाई में कम लगने लगा था । अब कभी कभी जब कोई आसान सी बात भी वह जल्दी नहीं समझता तो वह खीज जाती थी । शशांक का पूरा ध्यान खेल में लगा था ।

प्रेमा उसे डाटती तो भी कोई असर नहीं होता ।

प्रेमा को स्वयं पर भी संदेह होने लगा कि वह शायद अच्छी तरह पड़ा नहीं पा रही थी। छ्टवी कक्षा में कोर्स भी बढ़ गया था । गणित और विज्ञान में उसे कहीं कहीं कठिनाई महसूस होने लगी थी ।

और कुछ दिनों बाद क्लास टेस्ट में शशांक को इंग्लिश में 4/10 और विज्ञान में 1/10 मिला जानकर प्रेमा को धक्का लगा । उसके मन में बुर बुरे खयाल आने लगे । वह रात को नींद में डरावने सपने आने लगे । एक दिन उसने सपने मे देखा शशांक फाइनल परीक्षा में फेल हो गया । वह घबड़ा कर उठ बैठी उस समय सुबह के चार बजे थे । वह बहुत जल्दी उठ गयी थी किंतु वह पुन: सोयी नहीं बल्कि शशांक की किताबें निकाल कर पढ़ाने के लिए स्वयं पढ़ने लगी । पढ़ते पढ़ते सुबह के पाँच बज़ गये । ये शशांक को पढ़ाने का समय था अतः उसने शशांक को जगाया। शशांक आँखें मलता हुआ उठा और सीधा बाथरूम में गया । फ्रेश होकर वह पढ़ने बैठ गया । किन्तु आज पढ़ने और पढ़ाने वाला दोनों बीच बीच में ऊँघते रहे । जैसे तैसे प्रेमा ने शशांक का होमवर्क पूरा करवा दिया और उठ गयी ।शशांक और उसके पापा का टिफिन तैयार करना था । दोनों के जाने का एक ही समय था। आते अलग अलग थे । शशांक दोपहर में और पापा शाम को घर आते थे ।

रात को जागने के कारण प्रेमा को थकान महसूस हो रही थी । वह थोड़ा विश्राम करने के उद्देश्य से कमरे में पलंग पर जाकर लेट गयी। लेटते ही उसे झपकी आ गयी और उसने फिर एक डरावना सपना देख डाला । उसने देखा रूपा के बेटे के परीक्षा में सौ प्रतिशत अंक आये और शशांक के सत्रह प्रतिशत । वह गुस्से से लाल और शर्म से पानी पानी हो रही थी । वह जाग गयी और जागने के बाद भी थोड़ी देर उसे सपने से बाहर आने में लगी ।

रूपा प्रेमा की सहेली थी । रूपा के स्वभाव में एक विशेष बात शामिल थी। जो लड़की उसकी खास दोस्त बनती रूपा खुद को उसके रंग में रंग लेती या फिर उसे अपने रंग में रंग लेती।

रूपा के पति किसी सरकारी विभाग में बाबू थे । एक साल पहले ही वे लोग इस कॉलोनी में रहने आये थे ।

कॉलोनी में ही एक पड़ोसी की बेटी के जन्मदिन समारोह में प्रेमा और रूपा की भेंट हुई थी । दोनों हम उम्र थीं शायद इसलिए दोनों में शीघ्र मित्रता हो गयी। एक दूसरे के घर आना जाना शुरू हो गया । रूपा का बेटा श्याम शशांक की ही उम्र का था और उसके स्कूल में ही पढ़ता था ।

अगले माह पड़ोस के मिश्राजी की लड़की की शादी थी । प्रेमा शादी में पहनने के लिए अपने और बेटे के लिए कुछ नये कपड़े खरीदना चाहती थी । अकेले जाने का उसका मन नहीं था और राजीव अपने काम में व्यस्त था । प्रेमा को रूपा याद आयी । उसने तुरंत रूपा को फोन किया, “कुछ शॉपिंग करनी है । बाज़ार चलोगी?”

रूपा ने तुरंत हामी भर दी । कार्यक्रम तय हुआ और उसके अनुसार शाम को दोनों सहेलियां बाज़ार चली गयीं। प्रेमा ने एक धानी रंग की सिल्क की साड़ी पसंद की।

“ये साड़ी कैसी है ?”प्रेमा ने रूपा की राय पूछी ।

“बहुत अच्छी, “ रूपा ने कहा ।

प्रेमा ने अपने लिये वह धानी साड़ी और शशांक के लिये रेडीमेड ड्रेस खरीद ली । फिर उन्होने बाज़ार में एक जगह गोलगप्पे खाये और घर वापस आ गयीं ।

मिश्राजी की लड़की की शादी का दिन आ पहुंचा । बारात रात नौ बजे आनी थी । साढ़े आठ बजे प्रेमा सजधज के धानी सिल्क की साड़ी पहन कर राजीव और शशांक के साथ विवाह घर पहुंची । राजीव पुरूषों के साथ बैठ गया । प्रेमा महिलाओं के समूह में शामिल हो गयी । बच्चे खेल रहे थे। शशांक बच्चों के साथ

खेलने लगा । आस पास बैठीं कुछ महिलाओं ने उसकी साड़ी की प्रशंसा की। वह इस बात से बहुत खुश हुई । तभी सामने से ठीक उसके जैसी साड़ी पहने रूपा आती हुई दिखी । वह सीधी प्रेमा के पास आकार बैठ गयी ।

रूपा प्रेमा से बोली, “ ये साड़ी तुम पर फब रही है ।”

प्रेमा ने मुस्कराते हुए कहा, “ तुम भी अच्छी लग रही हो।”

वास्तव में प्रेमा मन ही मन नाराज थी । समारोह में सबसे अलग दिखने की उसकी इच्छा पर रूपा ने पानी फेर दिया था।

प्रेमा ने रूपा से पूछा, “ये साड़ी तू ने कब ली ?”

रूपा ने कहा, “ मुझे ये साड़ी पसंद आयी थी । कल उसी दुकान से खरीद लायी । फिर तुझे सरप्राइज़ भी तो देना था ।”

इसी बीच विवाह समारोह के कार्यक्रम प्रारम्भ हो गये और वे उनमें व्यस्त हो गयीं । अगले एक दो कार्यक्रमों में रूपा ने पुनः यही दुहराया । उसने बातों बातों में प्रेमा से पूछ लिया कि वह क्या पहन के जाने वाली है । फिर वो स्वयं भी वैसी ही या उससे मिलती जुलती पोशाक पहन कर पहुँच गयी। कुछ लोगों का अपनापन दिखाने का यह एक तरीका होता है । किन्तु प्रेमा को यह कतई पसंद नहीं था । लेकिन रूपा से वो कैसे कहे ?”

उसने रूपा से बचना प्रारम्भ कर दिया । यहाँ तक कि उसने शशांक को रूपा के बेटे के साथ खेलने से मना कर दिया ।

गलत फहमियों का कोई नियम नहीं होता । यहाँ रूपा की गलती ये थी वह प्रेमा को पसंद करती थी । उसकी पसंद को पसंद करती थी । उसे अपनी पक्की सहेली समझती थी । उसके जैसे कपड़े पहन कर वो खुश होती थी और ऐसा करके वो प्रेमा के और करीब महसूस करती थी । उधर प्रेमा को उसकी ये बातें पसंद नहीं थीं । कभी कभी प्रेमा को लगता रूपा जानबूझ कर उसे खिजाने के लिये या उसे नीचा दिखाने के लिये ऐसा करती है ।

प्रेमा के रूखे व्यवहार से रूपा को बुरा लगा और उसने भी प्रेमा से दूरी बना ली ।

शशांक को जरा भी समझ में नहीं आया कि मम्मी ने उसे श्याम के साथ खेलने से मना क्यों किया है ?

उस दिन भी रोज की तरह शशांक अपना बैट और बॉल लेकर बाहर गया और श्याम के साथ खेलने लगा ।

अपने आदेश के विपरीत शशांक को श्याम के साथ खेलता देखकर प्रेमा को बहुत गुस्सा आया । वो तेजी से बाहर गयी । शशांक के हाथ से बैट छीन कर इतने ज़ोर से जमीन पर पटका कि उसके दो टुकड़े हो गये । बॉल श्याम के हाथ मे थी। प्रेमा ने श्याम से बॉल छीन कर थोड़ी दूर पर बहने वाले नाले में फेंक दी ।

शशांक बाद में बहुत रोया ।

अपने क्रोध में प्रेमा ये भूल गयी कि वे बैट बाल साधारण नहीं थे । वे प्रेमा की खुदकी और शशांक की पढ़ाई में की गयी मेहनत के पुरस्कार थे । जिनकी भरपाई नहीं हो सकती थी ।

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