नवीन बाल कथाएं Ravi Ranjan Goswami द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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नवीन बाल कथाएं

नवीन बाल कथाएं

रवि रंजन गोस्वामी

परी बनी कोयल

शहर में बच्चों का एक सुन्दर पार्क था ।रात को ये पार्क सुनसान रहता था। रात बारह बजे के बाद उस पार्क में कुछ पारियां खेलने आतीं थीं।

परियों क़ी रानी ने उन्हें सुबह पाँच बजने से पहले अपना खेल खत्म कर वापस परी लोक में आने की अनुमति द‍ी थी । साथ ही चेतावनी द‍ी थी जो परी सुबह पाँच बजे के बाद एक सेकंड भी पार्क में रहेगी वो कोयल बन जायगी । कोयल बनी परी को सारा दिन उसी रूप में पार्क में ही होगा । रात बारह बजे वह फ़िर परी बन जायेगी तब वह परीलोक आ सकती है । एक दिन एक परी जिसका नाम नीलू था, खेलते खेलते थक कर एक पेड़ क़ी शाखा पर विश्राम करने लगी। उसे समय का ध्यान ही नहीं रहा कब सुबह के पाँच बज गये। सारी पारियां जा चुकीं थीं । पार्क क़ी घड़ी में पाँच बजे और नीलू कोयल बन गयी । उसे अपनी सहेलियों पर भी गुस्सा आया कि उन्होंने जाते समय उसे क्यों नहीं बुलाया । वह शायद पेड़ की पत्तियों में छुप गयी थी और बाकी पारियों का ध्यान उसकी ओरनहीं गया था।

रात तक उसे कोयल के रूप में ही समय काटना था ।

***

मोनू का खोना

मोनू नाम का एक छोटा बालक था । उसे अपने दोस्तों के साथ खेलना बहुत अच्छा लगता था । मोनू को बाज़ार में घूमना भी पसंद था। वह कभी कभी अपनी माँ और बहन के साथ बाज़ार जाता था। एक दिन मोनू अपनी माँ के साथ बाज़ार गया। मां ने एक दुकान के पास मोनू को खड़ा कर दिया और ख़ुद खरीदारी करने लगीं । उसे थोड़ी दूर पर एक गुब्बारे वाला दिखायी दिया। वह गुब्बारों को पास से देखने के लिये उसकी तरफ़ चला गया। वह केवल गुब्बारे देखकर आगे बढ़ा उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि किस दिशा में जा रहा है। जब तक वह उस जगह पहुँचा गुब्बारे वाला आगे चला गया । अब उसने पलट कर देखा तो चारों तरफ़ भीड़ थी और उसकी मां उसे नहीं दिखायी दीं। वह ये भी भूल गया वह किस ओर कितनी दूर चला आया है । वह समझ गया कि वह ख़ो गया है और वो जोर जोर से रोने लगा । तभी उसकी मां उसे खोजते हुए वहाँ आ गयीं । मोनू को देख कर उनकी जान में जान आयी । उन्होंने मोनू को गोद में उठा कर गले से लगा लिया ।

***

एक सबक

दीपू पाँचवी कक्षा में पढ़ता था। उसे कौमिक्स पढ़ने का बड़ा शौक था। उसकी वार्षिक परीक्षायें खत्म हो गयीं थीं और गर्मी क़ी छुट्टियाँ चल रहीं थीं। दीपू कभी पापा से मंगाकर और कभी दोस्तों से मांगकर कौमिक्स पढ़ता रहता। यहाँ तक की अपने पापा के साथ कार में कहीं जाते हुए भी वह कौमिक्स साथ ले जाता और कार में बैठ कर उन्हें पढ़ता रहता था। कुछ दिनों पहले उसे एक नया शौक लगा। मोबाइल फ़ोन से इयरफ़ोन लगाकर गाना सुनने का शौक । दीपू के पास ख़ुद का फ़ोन नहीं था इसलिये वह कभी अपने पापा से और कभी मम्मी से उनका फ़ोन मांग कर उस पर गाने सुनता। एक दिन वह पापा और मम्मी के साथ शहर के एक माल में घूमने गया। उसने वहाँ एक दुकान में iPod देखा। उसने पड़ोस क़ी एक दीदी के पास यह देखा था। वह अक्सर अपने iPod पर गाने सुनती थीं। एक बार दीदी ने उसे अपने iPod से गाने सुनवाये थे। उसने अपने पापा से जिद करके अपने लिये एक iPod खरीदवा लिया। अब वो कभी कौमिक्स पढ़ता और कभी iPod से हेड़फ़ोन लगाकर गाने सुनता। अब जबसे उसे iPod मिल गया था वह कहीं आते जाते, चलते फ़िरते हुए भी हेडफ़ोन लगाये रहता और गाने सुनते रहता। मम्मी और पापा दोनों उसे इस तरह हर समय कान बन्द कर गाने सुनते रहने को मना करते थे। थोड़ी देर के लिये वह उनकी बात मान लेता फ़िर अपनी आदत के अनुसार कार्य करने लगता । एक दिन दीपू क़ी मम्मी ने पास के बाज़ार से चाय क़ी पत्ती का डिब्बा लाने भेजा। वह अपनी आदत के अनुसार हेडफ़ोन लगाये iPod से गाने सुनते हुए सडक पर चला जा रहा था। एक जगह से उसे सड़क के दूसरी ओर जाना था । वहाँ जाने के लिये जैसे ही वह मुड़ा अचानक पीछे से एक ऑटो रिक्शा आ गया। ऑटो रिक्शा चालक ने हॉर्न बजाया लेकिन दीपू ने नहीं सुना । शायद औटो रिक्शा का संतुलन बिगड़ गया था । ब्रेक लगाते लगाते भी उसने दीपू को हल्की सीे टक्कर मार ही द‍ी। दीपू सडक पर गिर गया और उसके घुटनों में चोट आयी। गनीमत थी कि चोट ज्यादा नहीं थी। वह थोड़ा लँगड़ाकर चलते हुए अपने घर पहुंच गया। उसे सबक मिल गया था क़ी सडक पर चलते हुए और ख़ास तौर पर सडक पार करते समय सावधान रहना चाहिये और इयरफ़ोन या हेडफोन लगाकर गाने तो कदापि नहीं सुनना चाहिये । उसने निश्चय किया कि वो ऐसी गलती नहीं करेगा ।

***

शरारत

शर्मा के आठ वर्षीय पुत्र गोलू और उनके पडोसी वर्माजी के दस वर्षीय पुत्र मोनू की गाढ़ी मित्रता थी। वे एक दुसरे के बेस्ट फ्रेंड थे।

दोनों पढ़ने में तेज थे लेकिन उनकी गिनती अब्बल दर्जे के शरारती बच्चों में भी होती थी।

उस दिन छुट्टी थी। गोलू और मोनू शर्मा जी के ड्राइंग रूम में खेल रहे थे। मिसेज रेखा शर्मा आशंकित थीं किन्तु घर का काम भी जरूरी था।

एतिहातन वे एक बार बच्चों को घुड़क आयीं थीं, " ठीक से खेलना। कोई शरारत नहीं करना। समझे?"

शर्मा जी शब्जी लाने बाज़ार गये हुए थे।

ड्राइंग रूम में गोलू और मोनू बातें कर रहे थे।

गोलू, " मोनू। पता है मेरे दादाजी की दाढ़ी प्रधान मंत्री जैसी है ?"

मोनू, "कौन प्रधान मंत्री ?"

गोलू, "तू बता, आजकल भारत का प्रधान मंत्री कौन है ?"

मोनू, " नरेन्द्र मोदी। "

गोलू, "तो फिर ?"

मोनू, "तो क्या ?"

गोलू, "मेरी टीचर कहती हैं कि हमें प्रधान मंत्री के स्वच्छता अभियान में सहयोग करना चाहिये।"

मोनू, "हाँ और कचरा डस्टबिन में ही डालना चाहिये। मेरी मिस ने भी बताया था। "

तभी गोलू की नज़र सामने मेज़ पर रखी फटी पुरानी छोटी डायरी पर पडी। "

वह माथे पर हाथ मार कर बोला, "लो तेरे घर में तो सामने ही कचरा पड़ा है।" साथ ही उसने मेज़ की तरफ इशारा किया।

मोनू बोला, " अरे हाँ ये रद्दी यहाँ क्यों पडी है ?लगता है पापा ने सफाई की होगी और इसे डस्टबिन में डालना भूल गये।

गोलू, "डस्टबिन कहाँ हैं ? हम इसे वहां डाल देते हैं। "

कमरे के एक कोने में एक छोटी डस्टबिन रखी थी। मोनू ने उस ओर संकेत किया। गोलू ने डायरी उठायी और दोनों डस्टबिन के करीब गये।

मोनू ने डस्टबिन का ढक्कन खोला और गोलू ने गोलू ने डायरी उसमें डाल दी। दोनों खुश थे। उनके चेहरे पर एक नेक काम करने का गौरवपूर्ण संतोष था।

इसके बाद मोनू ने गोलू से कहा, "चल अब बाहर खेलते हैं। "

गोलू बोला, "हाँ चलो। "

"माँ !हम लोग बाहर खेलने जा रहे। " मोनू ने चिल्ला कर कहा।

रेखा की आवाज आयी, "ठीक है। दरवाजे भेड़ दे मैं आकर बंद कर लूंगी और जल्दी आ जाना। "

दोनों दरवाजे भेड़ कर बाहर निकल गये।

थोड़ी देर में शर्माजी बाजार से लौट आये। तरकारी का थैला उन्होंने रेखा को थमाया और ड्राइंगरूम में चले गये।

थोड़ी देर बाद ही रेखा के कानों में शर्माजी की आवाज पडी, "रेखा !मेरी डायरी कहाँ हैं ?"

आवाज़ सुनकर रेखा ड्राइंग रूम में आ गयी। शर्माजी चिंतित से खड़े थे।

"कौन सी डायरी ?कहाँ रखी थी?" रेखा ने पूंछा।

"यहीं मेज़ पर तो रखी थी। "शर्मा ने रेखा से कहा।

रेखा को गोलू और मोनू की याद आयी। उसका माथा ठनका, "कही उनलोगों ने तो नहीं इधर उधर कर दी।

रेखा ने घर के दरवाजे पर जाकर आवाज दी, "मोनू! गोलू जल्दी इधर आओ। "

मोनू और गोलू घर के पास ही खेल रहे थे। भाग कर घर आ गये।

थोड़ी देर बाद दोनों बेचारे अपराधियों की तरह सिर झुकाये ड्राइंगरूम में खड़े थे।

शर्मा जी ने घुड़क कर पूंछा, "सच सच बताओ क्या तुम लोगों ने मेरी डायरी उठायी ?"

गोलू और मोनू चुप रहे।

"तुम लोग क्या मार खाये बिना नहीं बताओगे ? रेखा ने डांट कर कहा।

"मम्मी, मैंने डायरी नहीं ली। "मोनू ने रेखा की ओर देखकर कहा।"

"आंटी मैंने भी कोई डायरी नहीं ली। देखी भी नहीँ।" गोलू भी बोल उठा।

डायरी शब्द से गोलू और मोनू के दिमाग में रंगीन कवर चढ़ी सुन्दर साफ़ सुथरी नोटबुक जैसी छवि उभरती थी। जो उन्होंने वास्तव में वहां नहीं देखी थी।

रेखा को बच्चों पर थोड़ा तरस आया और उसने शर्माजी से कहा, "आप ठीक से देख लीजिये कहीं आपने ने ही भूल से कहीं रख दी हो। "

फिर रेखा और शर्माजी ने कमरे की तलाशी शुरू की। सारा कमरा छान मारा किन्तु डायरी नहीं मिली। आखिर में शर्माजी का ध्यान डस्टबिन की ओर गया।

उन्होंने डस्टबिन खोल के देखा तो पाया उनकी डायरी उसमें पडी थी। शर्माजी ने राहत की सांस ली और साथ ही एक बार फिर उनका क्रोध भड़क उठा।

डायरी उठाकर उन्होंने गोलू और मोनू को दिखा कर पूंछा, "अब बताओ क्या डायरी खुद से चलकर इसमें आ गयी ?"

गोलू और मोनू ने एक दूसरे को देखा, दोनों असमंजस में थे क्या कहें। मामला अब साफ़ था कि जाने अनजाने में वो गलती कर चुके थे।

गोलू बोल पड़ा, "सॉरी अंकल ये तो हमने वहां डाली थी। ""क्यों ?"शर्माजी ने पूंछा।

गोलू, "मेरी टीचर ने कहा था। "

गोलू के इस जवाब पर रेखा को हंसी आ गयी।

अब मोनू भी बोल पड़ा, "मेरी टीचर ने भी कहा था। "रेखा बोली, "टीचर ने क्या कहा था शैतानों।?"

गोलू ने जवाब दिया, "टीचर ने कहा था कि कचरा डस्टबिन में ही डालना चाहिये। "

शर्माजी खीज कर बोले, "परन्तु मेरी डायरी क्यों फेंक दी ?"

गोलू, "सॉरी अंकल हमने उसे रद्दी समझ के डस्टबिन में डाल दिया था।"

मोनू ने गोलू की बात के समर्थन में सर हिलाया।

बच्चों के जवाब सुनकर शर्माजी और रेखा एक दूसरे को ताकते रह गये।

फिर शर्माजी बच्चों प्यार से बोले, "कोई बात नहीं बच्चो। थोड़ी गलती मेरी भी है। किन्तु आइंदा घर का कोई रद्दी सामान भी फेंकने से पहले घर में बड़ों से पूंछ लिया करो। कोई रद्द्दी जैसी दिखने वाली वस्तु बहुमूल्य और उपयोगी हो सकती है। समझे ?"

गोलू और मोनू ने हां में सर हिलाया।

"ठीक है जाओ खेलो। "शर्मा ने कहा।

शर्माजी के ऐसा कहते ही गोलू और मोनू जान छुड़ा कर वहां से बाहर भाग गये।

गोलू, मोनू और मोबाईल फोन

पापा का स्मार्ट फोन टेबल पर रखा देख कर गोलू और मोनू की बाछें खिल गयी। दोनों एक साथ उसकी तरफ लपके। गोलू पहले पहुँच गया और उसने फोन उठा लिया "रख दे वहीँ। पापा गुस्सा करेंगे। " मोनू हाँपते हुए चिल्लाया।

सच बात तो ये थी वो खुद मोबाईल फोन से खेलना चाहता था। पापा उन्हें मोबाईल छूने भी नहीं देते थे।

गोलू कहाँ मानने वाला था। वो मोबाईल वाला हाथ ऊँचा करके कुर्सी के ऊपर खड़ा हो गया। मोनू से भी सब्र नहीं हो रहा था।

"अबे गोलू नीचे तो आ, हम दोनों मिलके देखते हैं।" मोनू ने कहा।

"ठीक है।" कह कर गोलू कुर्सी पर बैठ गया।

मोनू भी उसी कुर्सी पर बैठ गया। दोनों छोटे ही तो थे अतः एक कुर्सी में ही दोनों सट कर बैठ गये। फिर उनका पूरा ध्यान तो मोबाईल फोन में लगा था। उन्हें इस तरह बैठने कोई असुविधा महसूस नहीं हुई।

गोलू ने ऐसे ही मौके बेमौके अपने पापा का मोबाईल पाकर उसे चलाना सीख लिया था।

गोलू ने आनन फानन इधर उधर बटन दबाकर वीडियो गेम खोल लिये। उसमें उसकी ख़ास पसंद का कार रेस वाला गेम भी था। वह खेलने लगा। थोड़ी देर मोनू देखता रहा फिर बोला, "मुझे भी तो खेलने दे। "

गोलू ने फोन मोनू को दे दिया। अब मोनू खेल रहा था और गोलू देख रहा था।

अचानक शर्माजी के स्कूटर की आवाज़ सुनाई पड़ी। गोलू और मोनू कुर्सी से उछल कर खड़े हो गये। हड़बड़ी में मोनू के हाथ से मोबाईल फोन छूट कर जमीन पर जा गिरा और उसके टुकड़े हो गये।

"अबे ये क्या किया ?" गोलू ने आवाज दबा कर कहा।

"हाथ से फिसल गया। अब क्या करें ? पापा बहुत डांटेंगे।" मोनू की आवाज में घबराहट थी।

गोलू तेज था। उसे मोबाइल फोन के बारे में मोनू से अधिक जानकारी थी। दरअसल गिरने से मोबाईल का कवर अलग हो गया था और बैटरी बाहर निकल आयी थी।

गोलू ने झुककर मोबाईल, कवर, बैटरी उठाये और तुरत फुरत जोड़ दिये। इतने में दरवाजे की घंटी बजी।

सकपका कर गोलू ने कहा, "ले पकड़।" और फोन मोनू के हाथ में थमा दिया। उसी सकपकाहट में मोनू को कुछ नहीं सूझा और उसने फोन झट से पास में रखी किताबों की रेक में छुपा दिया। फिर दोनों उस कमरे से बाहर भाग गये।

मिसेज शर्मा ने दरवाजा खोला। शर्माजी अंदर सीधे ड्राइंग रूम में गये। मिसेज शर्मा दरवाजा बंद कर अंदर चलीं गयी।

ड्राइंग रूम से शर्मा जी की आवाज आयी, "सुनो, मेरा मोबाईल फोन कहाँ है?"

मिसेज शर्मा आवाज सुनकर ड्राइंगरूम में आ गयीं और बोलीं "जहाँ आप ने रखा होगा वहीं होगा। देखिये। "

"यहीं मेज पर था। ले जाना भूल गया था। "

शर्माजी ने कहा.

फिर वे बोले, "अपना फोन ले आना जरा। "

मिसेज शर्मा ने अपना मोबाईल उन्हें दे दिया। शर्माजी ने उस फोन से अपना नंबर लगाया और सोच में पड़ गये।

मिसेज शर्मा ने पूंछा, "क्या हुआ ?"

शर्माजी ने जवाब दिया, "स्विच ऑफ बता रहा है।"

"कहीं गिर तो नहीं गया?किसी ने चुरा तो नहीं लिया? कहाँ गये थे आप?" मिसेज शर्मा ने आशंका व्यक्त करते हुए पूंछा।

"मैं तो बाजार जाने वाला था। फोन घर पर भूल गया था इसलिये बीच रास्ते से लौट आया। "

मिसेज शर्मा चिल्लाईं, "गोलू!मोनू! इधर आओ जल्दी।"

शर्माजी ने पूंछा, "क्या हुआ?"

"थोड़ी देर पहले ये दोनों इस कमरे में खेल रहे थे। पूंछते हैं इन्होंने तो नहीं लिया?' मिसेज शर्मा बोलीं।

"तब तो पक्का इन दोनों की ही कारस्तानी है। "शर्माजी बोले।

दो मिनट में गोलू और मोनू भोली भाली सूरत लिये वहां उपस्थित हो गये।

"तुम लोगों ने पापा का मोबाईल फोन देखा ?" मिसेज शर्मा ने पूंछा।

गोलू और मोनू ने एक दूसरे की तरफ देखा और फिर मिसेज शर्मा की ओर देखकर एकसाथ बोले, "हमने नहीं लिया।"

मिसेज शर्मा ने धमकाते हुए कहा, "तुम में से किसी ने लिया हो तो अपने आप बता दो; बाद में पता चला तो फिर तुम्हारी खैर नहीं।"

इस बीच शर्माजी कमरे में यहाँ वहां मोबाईल खोजते रहे और उन्हें किताबों की रेक में रखा मोबाईल मिल गया। उन्होंने कल्पना

नहीं की थी कि मोबाईल उन्हें वहां मिलेगा। फोन स्विच ऑफ भी था। शर्माजी ये तो जान गये कि गोलू या मोनू ने ही फोन वहां रखा था। उन्हें ये जिज्ञासा थी कि जिसने भी फोन वहां रखा तो क्यों रखा ?

"क्या जान बूझ कर उन्हें परेशान करने के लिये।" ये सोचकर वे थोड़ा क्रोध से भर उठे। शर्माजी ने गोलू और मोनू को अपने नज़दीक बुलाकर अपने दोनों हाथों से उनका एक एक कान पकड़ कर उमेठते हुए पूंछा, "अब बताओ तुममे से किस की कारस्तानी थी ये ?"

गोलू और मोनू समझ गये कि अब उनके पास बचने का कोई मौका नहीं था

पहले गोलू बोला, "हम फोन में गेम खेल रहे थे।"

"पर इसे छुपाया क्यों ?"शर्मा जी ने पूंछा।

"आप अचानक आ गये तो डर के मारे मैंने जल्दी से फोन किताबों के बीच रख दिया था। "

"सॉरी पापा, अब नहीं करेंगे। "गोलू ने विनती की।

" सॉरी पापा। " मोनू बोला

मिसेज शर्मा ने शर्माजी से कहा, "अब जाने दीजिये। आपका फोन मिल गया और बच्चों ने भी गलती मान ली। "

शर्माजी ने गोलू और मोनू के कान छोड़ दिये। दोनों के कान लाल हो गये थे और दोनों खड़े हुए अपने कान सहला रहे थे।

शर्माजी ने कुछ सोचते हुए कहा, "तुम लोग कभी कभी मुझसे पूंछ कर मेरा मोबाईल फोन ले सकते हो। "

गोलू और मोनू ख़ुशी से उछल पड़े। दोनों के मुंह से निकला, "सच में ?"

शर्माजी ने कहा, "हाँ। "

"थैंक यू पापा। " कहकर दोनों हँसते हुए बाहर भाग गये।

शर्माजी और मिसेज शर्मा के चेहरे पर भी मुस्कान थी।

***

रेल की चौकी

सुधीर, अरविन्द, गीता और रवि पूरी शाम खेलने के बाद पंडित जी के चबूतरे पर पैर लटकाये बैठे थे। चारों की उम्र १२ से ८ वर्षों के बीच थी। इन सबमें सुधीर सबसे बड़ा था और रवि सबसे छोटा।

"कल रेल की चौकी चलें ?" सुधीर ने पूंछा।

टोली के बाकी सदस्य जोश में आकर खड़े हो गये और बोले, "हाँ, बहुत दिनों से हम लोग उधर गये भी नहीं। अब तो आम, इमली और बेर से पेड़ लद गये होंगे

रवि ने कहा, "इस बार गुलेलें ले चलेंगे। "

गीता चुपचाप बैठी थी।

सुधीर ने गीता से पूंछा, "तू चलेगी ?"

"न बाबा मैं नहीं जाउंगी। पिछली बार माँ से बहुत डांट पड़ी थी। ?"

"वो तो लौटने में देर हो गयी थी, इसलिये

"इस बार हमलोग साइकिलों से और सुबह चलेंगे।" रवि ने प्रस्ताव रखा।

दूसरे दिन चारों अपनी अपनी साइकिलों से सुबह दस बजे ही रेल की चौकी जाने के लिये निकल लिये।

शहर के पश्चिम में लगभग तीन किलोमीटर दूर एक रेल लाइन थी जो सड़क को क्रॉस करती थी। इस रेल क्रॉसिंग पर फाटक लगा था। इस फाटक के उस पार ग्राम्य क्षेत्र प्रारम्भ होता था। खेत, खलिहान, बाग़, बगीचे। वहां लगे फलों के पेड़ बच्चों के लिए प्रमुख आकर्षण थे।

सुधीर, अरविन्द, रवि और गीता अपनी अपनी साइकिलों पर सवार रेल की चौकी जाने वाली सड़क पर मध्यम गति से चले जा रहे थे।

अचानक सुधीर ने कहा, "चलो रेस करते हैं। "

रवि बोला, "कहाँ तक ?"

सुधीर ने लगभग दो सौ मीटर दूर, सड़क के बायीं ओर स्थित एक कुँए की तरफ हाथ से इशारा करते हुए कहा, "वहां तक।

"सब तैयार हो गये। सुधीर ने सबको रुकने का संकेत किया। सब साइकिलों से उतर कर खड़े हो गये।

सामने से एक ट्रैक्टर आता दिखा। उन्होंने पहले उसे निकल जाने दिया। उस सड़क पर ज्यादा आवागमन नहीं था। ट्रैक्टर निकल जाने के बाद सड़क खाली हो गयी। चारों लोग अपनी साइकिलों पर सवार होकर तेज गति से आगे बढे और एक दूसरे से होड़ लगाने लगे।

इस रेस में गीता प्रथम आयी। वह कुँए के पास सबसे पहले पहुंची। कुछ पलों में शेष सब भी वहां पहुँच गये। सबने उसे बधाई दी तो वह बोली, " मैंने रेस जीती उसका इनाम क्या है ?"

इस बात पर अरविन्द बोला, "हां, हमें कुछ शर्त लगा कर रेस करना चाहिये थी। "

"नहीं शर्त लगाना अच्छी बात नहीं होती। "रवि ने कहा।

सुधीर सबकी बातें सुनकर बोला, "आज हम जितनी इमलियाँ तोड़ेंगे उसमें से गीता जितनी चाहे ले सकती है। "

इमलियों का नाम सुनकर गीता के मुंह में पानी आ गया।

वो हँसते हुए बोली, "मैं सारी इमलियाँ लेना चाहूँ तो ?"

सुधीर बोला, " ले लेना। चलो अभी पानी पीते हैं। प्यास लगी है। "

सुधीर उनमें सबसे बड़ा था और ताकतवर भी। एक प्रकार से ग्रुप लीडर वही था। बाकी सब उसकी बात मानते थे। कुँए पर रस्सी और बाल्टी रखे थे।

सुधीर ने कुंए से बाल्टी में पानी भरा और सबको पिलाया और खुद पिया। फिर वे लोग आगे बढ़े। रेल की चौकी अधिक दूर नहीं रह गयी थी। थोड़ी देर में ही वे रेलवे गेट के पास पहुँच गये। गेट खुला था। वे चारों साइकिलों से उतर गये। उन्होंने दोनों ओर देखकर सावधानी से रेल की पटरियां पार कीं। उस समय वह क्षेत्र सुनसान। इक्का दुक्का किसान अपने खेतों में काम कर रहे थे। गेट के ओर थोड़ी दूर तीन चार लोग रेल की पटरी पर मरम्मत का काम कर रहे थे। गीता का ध्यान गया पटरी की मरम्मत करने वाले चार युवक थे। उन सभी युवकों ने नीली जींस और काली टी शर्ट पहनी हुई थी और काले कपडे से अपना सर और मुंह ढका हुआ था। उन्हें देखकर गीता को कुछ अजीब सा लगा। लेकिन वो सबके साथ आगे बढ़ गयी। वे अपने गंतव्य पर पहुँच चुके थे। थोड़ी ही दूर सड़क के बायीं ओर एक चने का खेत था। उसकी सीमा पर इमली और अमरुद के पेड़ लगे थे। इमली का पेड़ बड़ा और छायादार था। सभी बच्चे इमली के पेड़ के नीचे पहुंचे। उन्होंने अपनी साइकिलें पेड़ के तने से टिकाकर खड़ी कर दीं

सभी बच्चों ने अपनी गुलेलें निकालीं और उनमें पत्थर के छोटे टुकड़े फसाये। उन्होंने देखा किसान खेत के दूर वाले भाग में किसी कार्य में व्यस्त था। सुधीर ने सबको एक ओर खड़े होकर दूसरी दिशा में गुलेल चलाने की सलाह दी ताकि वे अनजाने में एक दूसरे को चोट न पहुंचायें। सब उसकी तरफ आकर खड़े हो गए। सबने इमलियों के गुच्छों पर निशाना साध कर गुलेलें चलाईं। पेड़ पर बैठे पक्षी पंख फड़फड़ाते हुए और शोर मचाते तेजी से आकाश में उड़ गये। बहुत सारी इमलियाँ टूट कर जमीन पर आ गिरीं। अचानक पक्षियों का कोलाहल सुनकर किसान ठिठका, उसने एक क्षण रुक कर पेड़ पर नज़र डाली और फिर अपने कार्य में लग गया।

सभी ने जमीन से इमलियाँ बीन कर एक रुमाल में बाँध लीं। एक ही बार में बहुत इमलियाँ मिल गयीं थीं अतः इमलियों की पोटली एक साईकिल के हैंडल पर लटका कर वे अमरुद के पेड़ की तरफ बढ़ गये। अमरुद का पेड़ इमली के पेड़ से कुछ कदमों की ही दूरी पर था।

गीता आगे चल रही थी। उसे पेड़ पर चढ़ने में बड़ा मज़ा आता था। अमरुद का पेड़ अधिक ऊँचा भी नहीं था। उसके मन में विचार था कि वह आसानी से पेड़ पर थोड़ा ऊपर चढ़ कर अमरुद तोड़ तोड़ कर नीचे गिरा देगी। पेड़ पर लगे कच्चे पक्के अमरुद दूर से ही दिख रहे थे। इमली या अमरुद कच्चे थे या पके इस बात से गीता और उसके साथियों को कोई फर्क नहीं पड़ता था। पेड़ से तोड़ कर मुफ्त में फल खाने का आनंद ही कुछ और था। साथ ही ये फल उनकी मेहनत से उन्हें मिलते थे सो सब स्वादिष्ट लगते थे।

वे चारों अमरुद के पेड़ के पास पहुंचे ही थे कि दूर से आती हुई किसी रेलगाड़ी की सीटी की आवाज सुनाई दी। वे लोग बालकोचित उत्सुकता बस रेलगाड़ी देखने के लिये रेल की पटरी की ओर मुंह करके खड़े हो गये।

तभी एक अजीब बात हुई जिसने उनका ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने चार युवकों को रेल की पटरी से उतर कर खेतों में भागते हुए देखा।

गीता के मुँह से निकला, "ये तो वही लोग हैं जो रेल की पटरियों की मरम्मत का कार्य कर रहे थे! ये ऐसे क्यों भाग रहे हैं ? कुछ तो गड़बड़ है। "

दूसरे ही क्षण कुछ सोच कर वो चिल्लाई, " जल्दी चलो। "

यह कह कर वह पटरी की ओर दौड़ी। उसके पीछे सुधीर, अरविन्द और रवि भी भागे। गीता उन्हें उस जगह ले गयी जहाँ उसने उन व्यक्तियों को रेल की पटरी की मरम्मत करते हुए देखा था। वहां पहुँच कर जो उन्होंने देखा वो देखकर वो दंग रह गये। उस जगह पटरियां उखड़ी हुई थीं। वे बच्चे थे लेकिन इतने नासमझ नहीं थे। वे स्थिति की गंभीरता समझ गये थे और वैसी स्थिति में ट्रेन उन पटरियों पर गुजरने से संभावित हादसे की कल्पना भयावह थी।

गीता ने देखा रवि ने लाल शर्ट पहनी थी। उसने रवि से कहा, "रवि, जल्दी से अपनी शर्ट उतार कर मुझे दे। "

रवि ने तुरंत अपनी शर्ट उतार कर गीता को दे दी। तभी रेलगाड़ी की एक और सीटी सुनाई दी और दूर से आती हुई गाड़ी का छोटा सा इंजन दिखाई देने लगा। गीता सिहर उठी। वह जानती थी सैकड़ों लोगों की जान खतरे में थी। उसने रवि की शर्ट हाथ में पकड़ी और हाथ ऊपर कर उसे हिलाते हुए ट्रेन के आने की दिशा में दौड़ी। सुधीर, अरविन्द और रवि भी गीता के पीछे दौड़े। थोड़ी दूर जाकर गीता रुक गयी। बाकी बच्चे भी रुक गये। सुधीर और अरविन्द ने भी अपनी कमीजें उतार कर हाथ में लेलीं और हवा में लहराने लगे। अब ट्रेन की आवाज भी सुनाई देने लगी थी। पल पल गाड़ी की आवाज़ तेज और इंजन बड़ा होता जा रहा था। बच्चों के दिल की धड़कने बढ़ी हुई थी बदन पसीना पसीना हो रहा था लेकिन वे अपनी जगह पर डटे कपडे हिलाये जा रहे थे। अब तो वे जोर जोर से चिल्ला भी रहे थे, "स्टॉप, गाड़ी रोको। "हलाकि इस बात की सम्भावना नगण्य थी की ट्रेन का ड्राइवर उनकी आवाज़ सुन पाता। लेक़िन शायद उसने पटरी पर होने वाली हलचल देख ली थी। अचानक गाड़ी धीमी हो गयी और आकर बच्चों से कुछ मीटर के फांसले पर हॉर्न देकर रुक गयी।

सबसे पहले ट्रेन का ड्राइवर इंजन से उतर कर भागता हुआ बच्चों के पास आया।

उसने आते ही पूंछा, "क्या बात है ?तुम सब यहाँ इस तरह पटरियों पर क्यों खड़े हो ?"

गीता ने जवाब दिया, "अंकल, आगे खतरा है। पटरियां उखड़ी हुइ हैं। इसलिये ट्रेन को रोकने के लिये हम लोगों ने ऐसा किया । "

"कहाँ ?दिखाओ। "ड्राइवर ने कहा।

गीता और उसके साथी उसे उस स्थान पर ले गये। उखड़ी हुई पटरियां देख कर ड्राइवर की आँखें फटी की फटी रह गयीं।

"हे भगवान, ये तो बहुत बड़ा हादसा हो सकता था। तुम लोगों ने ट्रेन रुकवा कर बहुत बहादुरी और समझदारी का काम किया। "

कुछ ही देर में ट्रेन गार्ड और बहुत से यात्री भी वहां आ गये।

गार्ड ने अपने मोबइल फोन से पुलिस और अपने उच्च अधिकारियों को घटना की सूचना दी।

गीता ने रवि को उसकी शर्ट लौटाते हुए कहा, "लो अब शर्ट पहन लो। "

सुधीर और अरविन्द ने भी अपनी कमीजें पहन ली।

गीता और उसके साथी अब घर लौटना चाहते थे। वे चलने को उद्धत हुए तो गॉर्ड ने कहा, "बच्चो तुम्हें थोड़ी देर रुकना होगा। अभी पुलिस आती होगी। उन्हें तुम इस घटना के बारे में बता कर चले जाना। तुम लोग चाहो तो मेरे डिब्बे में बैठ सकते हो। "

जवाब में सुधीर बोला, "अंकल, हम यहीं ठीक हैं। "

बाकी बच्चों ने सुधीर की बात के समर्थन में सर हिलाया।

थोड़ी देर में रेलवे के अधिकारी, पुलिस, पत्रकार, फोटो ग्राफर घटना स्थल पर आ पहुंचे।

सुधीर को साइकिलों की चिंता सताने लगी, गीता को भूख लग रही थी और उसे इमलियाँ और अमरुद याद आ रहे थे। अरविन्द सोच रहा था कि उस दिन वापस घर पहुँचने में फिर देर होगी तो माँ की डांट निश्चित पड़ने वाली थी। रवि यूँ ही भयभीत था। उसे पुलिस से बड़ा डर लगता था।

एक पुलिस इंपेक्टर ने उन चारों से उनके नाम और पते पूंछ कर एक डायरी में लिख लिये साथ ही घटना का वर्णन पुनः पूंछ कर डायरी में लिखा। फोटोग्राफर ने उन चारों की फोटो ली।

पुलिस इन्स्पेक्टर ने गीता से पूंछा, "तुम लोग घर कैसे जाओगे ?"

गीता ने कहा, "हमारे पास साइकिलें हैं। वे थोड़ी दूर पर खड़ी हैं। "

"सर इन्हें जाने दें?" इन्स्पेक्टर ने एक अन्य पुलिस अधिकारी से पूंछा।

उन्होंने कहा, "हाँ इन्हें जाने दें। "

फिर वे स्वयं बच्चों से बोले, "शाबास बच्चो, आप लोगों ने बहुत अच्छा काम किया है। अब आप लोग जा सकते हैं। "

गीता ने कहा, "थैंक यू अंकल। "

बाकी बच्चों ने दोहराया, "थैंक यू अंकल। "

फिर वे चारों तेजी से उस स्थान की ओर चल दिये जहाँ उनकी साइकिलें खड़ी थीं। वहाँ पहुँच कर उन्होंने फटाफट इमलियों का बंटवारा किया, अपना अपना हिस्सा जेबों में भरा और साइकिलों पर सवार होकर घर की ओर चल दिये। घर पहुँच कर उन्होंने डांट के डर से किसी को कुछ नहीं बताया। दुसरे दिन सभी स्थानीय समाचार पत्रों में पिछले दिन की रेल की चौकी के पास घटी घटना के समाचार के साथ उन चारों की फोटो और प्रशंसा छपी थी। इससे उन चारों की पोल खुल गयी। चारों को अपने अपने घरों में बड़ों से इस बात को लेकर डांट पडी कि इतनी दूर बिना बताये गये थे और शाबाशी भी मिली कि उनके बहादुरी भरे कारनामे से एक ट्रेन ऐक्सीडेंट होने से बच गया और सैकड़ों जानें बच गयीं थीं।

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