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सुविषा

सुविषा

बेटा मैंने तुझे कल भी मना किया था, मैं छोटे बच्चे से अपने घर का काम नहीं करवाऊँगी, आज तुम फिर आई हो, जाओ और अपनी माँ को भेजना। नौ वर्ष की छोटी सी बच्ची नीलम की ना सुनकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी और बोली, “मैम, वह मेरी माँ नहीं है, वह तो मेरी सौतेली माँ है, मैम आप काम करवा लो, मैं साफ सफाई, बर्तन पोछा सब अच्छे से करूंगी, आपको कोई शिकायत का मौका नहीं दूँगी, अगर मैं आज भी बिना काम किए वापस गयी तो आज मेरी कल से ज्यादा पिटाई होगी, मैम मुझ पर दया करो, मुझे अपने घर में काम करने दो।”

इतना कह कर सुविषा और ज़ोर से रोने लगी, शायद उसको अपनी सौतेली माँ के कोड़ों की बौछार का अपनी नन्ही नाजुक सी पीठ पर एहसास हो रहा था। लड़की जैसे ही घूमी उसके फटे हुए फ्रॉक से पीठ पर कुछ जख्म नीलम को दिखाई दे गए।

नीलम सुविषा का हाथ पकड़कर अंदर कमरे में ले गयी, बाहर का दरवाजा बंद कर दिया और उसका फ्रॉक हटाकर कमर पर जख्म के निशान देखने लगी।

“इतनी बेरहमी से क्या कोई बच्चे को मारता है? सुविषा! सच सच बताओ किसने किया है यह सब, मैं आज ही उसको पुलिस के हवाले करूंगी।” नीलम ने सुविषा से पूछा तो सुविषा और भी ज़ोर से रोने लगी, “नहीं मैडम, ऐसा मत करना, नहीं तो वह मुझे जान से मार डालेगी, आप बस मुझे घर का काम करने दीजिये, ये जख्म तो खुद ही ठीक हो जाएंगे पहले की तरह।”

नीलम ने सुविषा को पलंग पर बैठाकर वहीं बैठे रहने की हिदायत दी और स्वयं फ़र्स्ट ऐड बॉक्स लेने चली गयी। पहले सारे जख्मो को सैव्लॉन से साफ किया फिर उस पर मरहम लगाकर सुविषा को वहीं बैठे रहने को कहा।

दरवाजा बाहर से बंद करके नीलम सामने वाली दुकान से एक सुंदर सा फ़्रौक ले आई। फ़्रौक सुविषा को बुलकुल फिट आ गया, उस फ़्रौक में सुविषा बहुत सुंदर लग रही थी। एक गिलास दूध में हल्दी डाल कर सुविषा को पीने को दिया और कहा, “अब तू यहीं आराम कर, घर का काम मैं कर लूँगी और तेरे पापा से बात करके तुझे आज से अपने पास ही रखूंगी।”

गार्ड को बोल कर नीलम ने सुविषा के तथाकथित माँ व बाप को अपने अपार्टमेंट में ही बुलवा लिया। उन दोनों को लग रहा था शायद लड़की ने कोई गलती कर दी होगी इसलिए मैडम ने बुलवाया है।

दुलारी और गणेश आकर अपराधियों की तरह नीलम के दरवाजे के बाहर खड़े हो गए और नीलम के बाहर आने की प्रतीक्षा करने लगे। इसी बीच दुलारी गुस्से में भरकर गणेश से कहने लगी, “देखो जी, अगर इस बार तुम्हारी लाड़ली ने गलती की होगी तो मैं इसको जिंदा नहीं छोडूंगी, इस लड़की ने तो नाक में दम कर रखा है, इसकी माँ खुद तो मर गयी और इसको छोड़ गयी हमारा खून पीने के लिए, अब मैं इस लड़की को और बर्दाश्त नहीं कर सकती, बहुत हो गया, अब बस बताए देती हूँ कि या तो ये रहेगी या मुझे रख लो।”

दुलारी गणेश पर अपनी भड़ास निकाल ही रही थी कि तब तक नीलम आ गयी, दोनों चुपचाप हाथ जोड़ कर खड़े हो गए एवं माफी मांगने लगे, “मैडम! मेरी बेटी से कोई गलती हो गयी हो तो हम क्षमा मांगते हैं, आप हमे माफ कर दो हम उसको समझा देंगे।”

“अरे नहीं! सुविषा से कोई गलती नहीं हुई वह तो बहुत अच्छी लड़की है, मैंने तो तुम दोनों को यहाँ पर इसलिए बुलाया था कि तुमसे इस बारे में बात कर सकूँ।” इतना कह कर नीलम रुक गयी........

गणेश बोला, “किस बारे में मैडम, कुछ बताओ हमारी तो जान सूख रही है,” दुलारी को लगा मैडम शायद उस बारे में बात करने वाली हों जो सुविषा के साथ मैंने मार पीट की थी।

“नहीं! ऐसी कोई बात नहीं, आप लोग घबराएँ नहीं,” उन दोनों की मनोदशा देख कर नीलम ने यह बात कही थी.......

“मैं चाह रही थी कि सुविषा मेरे साथ चौबीसों घंटे रहे, मुझे ऐसी ही लड़की की चौबीस घंटे जरूरत है, अगर तुम लोग छोड़ सकते हो तो ठीक है अन्यथा मैं किसी और लड़की को रख लूँगी, और पैसे तुम जैसे कहो, मैं हर महीने दे दिया करूंगी।”

नीलम की यह बात उन दोनों को बहुत अच्छी लगी, गणेश को तो इसलिए अच्छी लगी कि उसकी बेटी रोज रोज की पिटाई से छूट जाएगी और दुलारी को इसलिए अच्छी लगी कि इसके बदले वह मैडम से ज्यादा पैसे ले सकेगी अतः दुलारी ने कहा, “देखो मेम साहब, वैसे तो अपनी लाड़ली के बिना हमारा मन नहीं लगेगा लेकिन फिर भी आप कह रही हैं तो हम छोड़ देंगे सुविषा को चौबीसों घंटे आपके पास, लेकिन हम कह देते हैं कि आपको उसके खाने, पहनने व सोने का अच्छे से ध्यान रखना पड़ेगा, हमारी लाडो को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए।”

“हाँ, हाँ, रखूंगी मैं अच्छे से ख्याल रखूंगी, अब तुम बताओ कितने रुपए हर महीने देने पड़ेंगे मुझे?” नीलम ने कहा..........

“मेम साहब ढाई हजार से एक भी पैसा कम नहीं लूँगी मैं, आप जितना भी दोगे सब जोड़ कर रख दूँगी, सुविषा के विवाह के लिए, इसी बहाने से पैसा जुड़ जाएगा।”

नीलम ने कहा, “वैसे तो मैंने दो हजार देने की सोचा था, मुझे दूसरी लड़की भी मिल रही थी दो हजार में, फिर भी अगर आप लोग ढाई हजार कह रही हैं तो मैं दे दिया करूंगी।”

नीलम को लग रहा था अगर ज्यादा मोल भाव किया तो कहीं ये मना न कर दे और फिर से सुविषा के बुरे दिन शुरू हो जाएँ।

नीलम ने सुविषा को अच्छे अच्छे कपड़े दिलवाए, उसके पढ़ने के लिए किताबें ले आई, घर पर रह कर ही उसको पढ़ाने लगी, एक स्कूल में उसका नाम तो लिखवा दिया लेकिन स्कूल प्रधानाध्यापक को सारी परिस्थितियाँ बता दीं एवं कहा, “सर, मैं स्कूल में सुविषा को पढ़ने नहीं भेज सकती क्योंकि इसकी सौतेली माँ इसको पढ़ाना नहीं चाहती और वह इसको मेरे घर से भी वापस बुला लेंगी, मैं इसको सभी पुस्तकें घर पर ही पढ़ाऊंगी बस आप इसको परीक्षा में बैठने की अनुमति दे देना।”

प्रधानाध्यापक के सहयोग से और नीलम के प्यार व सेवा भाव से सुविषा ने पाँचवी कक्षा अच्छे अंको से पास कर ली। सुविषा बारह वर्ष की हो गयी थी, अब वह और भी सुंदर लगने लगी। कभी कभी अपने घर भी चली जाती। उस दिन तो उसका परीक्षा परिणाम आया था अतः दौड़ी दौड़ी अपने घर गयी एवं अपने बापू के कान में धीरे से फुसफुसाकर कहा, “बापू, मैंने पाँचवी पास कर लिया है।” गणेश खुशी के मारे कुछ बोलने ही वाला था कि सुविषा ने अपना नन्हा हाथ गणेश के मुंह पर रख कर कुछ भी कहने से रोक दिया, सुविषा को डर था कहीं माँ को पता चलेगा तो माँ मैडम के पास से वापस बुला लेगी।

उस दिन घर पर सुविषा की सौतेली माँ का दूर का रिश्तेदार आया हुआ था, जब उसने सुविषा को देखा तो देखता ही रह गया, दुलारी ने पूछा कि क्या देख रहे हो। तो वह बोला, “दीदी, यह लड़की मुझे दे दो, तुम बोलो कितना रुपया देना होगा इसका।”

दुलारी तो यह बात सुनकर खुश हो गयी और सीधे सीधे पचास हजार रुपए मांग लिए। उस रिश्तेदार ने पचास हजार में हाँ कर दिया और शादी ब्याह का पूरा खर्च उठाने की बात भी कह दी।

लेकिन एक डर दुलारी के मन में था कि मैडम उसे नहीं छोड़ेगी, यह बात जब उसने अपने दूर के रिश्तेदार को बताई तो वो बोला, “उसकी तुम चिंता ना करो दीदी, वह तो मैं छुड़ा लूँगा।”

दुर्जन ने नीलम मैडम की शिकायत थाने में कर दी कि वह छोटी बच्ची से घर के भारी काम करवाती है। नीलम को जब इस बात का पता चला तो उसको बड़ा दुख हुआ, तभी गणेश ने आकर नीलम को बताया, “मैडम! आप ही बचा सकती हैं उस राक्षस दुर्जन के चंगुल से मेरी बेटी को, इसकी सौतेली माँ ने दुर्जन से पचास हजार रुपए ल्रेकर मेरी बेटी का सौदा कर लिया है। अब वह जबर्दस्ती मेरी छोटी सी बच्ची की शादी उस अधेड़ दुर्जन से करवा देगी।”

नीलम ने सुविषा से ब्यान दिलवाकर दुर्जन की शिकायत को तो किसी तरह रफा दफा करवा दिया, साथ ही दुलारी व दुर्जन को धमकी भी दी कि अगर तुम लोगों ने कोई भी गैर कानूनी काम किया तो मैं तुम दोनों को जेल भिजवा दूँगी। नीलम ने गणेश को अकेले में समझाया और सुविषा को गोद लेने वाली बात बताई, गणेश को यह प्रस्ताव अच्छा लगा एवं वह खुशी खुशी सुविषा को गोद देने को तैयार हो गया।

सभी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद सुविषा कानूनी रूप से नीलम की बेटी हो गयी, नीलम ने अच्छे स्कूल में उसे पढ़ाया........

पढ़ लिख कर सुविषा एक अच्छी चिकित्सक बन गयी, जिसकी शादी उसके साथ पढ़ने वाले एक डॉक्टर के साथ तय हो गयी। नीलम बड़े ज़ोर शोर से बेटी की शादी में लगी थी बस अब कार्ड बांटने का काम बाकी रह गया था।

कार्ड लेकर नीलम जब अपनी सहेली सुनीता को न्योता देने गयी तो उसने पूछ लिया, “नीलम, जहां तक मुझे याद है तेरे तो दो बेटे ही हैं, बेटी कहाँ से आ गयी?” सुनीता के इस सवाल का जवाब नीलम ने इतनी लंबी कहानी सुना कर दिया, लेकिन यह कहानी नहीं सच्चाई है सुनीता, इस लड़की ने मेरे सेवा निवृत जीवन को अर्थ पूर्ण बना दिया।

“हाँ नीलम!, लेकिन एक बात कहूँ, तू आज भी वैसी ही है जैसी उस समय थी जब हमारी शुरू में दोस्ती हुई थी।” और दोनों हंसने लगीं।

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