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एक शतांश विवाह

एक शतांश विवाह

ऋचा थक गई थी, इंतजार करते करते, कि कब उसका नंबर आएगा। रवि ने उसके चेहरे के भाव समझ लिए थे, वो उठा और चाय की दुकान की ओर चल दिया।

ऋचा ने आस पास नजर दौड़ाई, तो न जाने कितने लोग नजर आए, जो शायद अपनी बारी के इन्जार में, उकताए खड़े थे। ऋचा को लगा कि वो अकेली नही है, जो इस स्थिति से गुजर रही है। उस कोर्ट परिसर में, न जाने कितने नाकाम रिश्ते, बन्धनमुक्ति के लिए इधर उधर, फिर रहे थे।

तमाम जख्म, उस हवा में मरहम की तलाश में, तैर रहे थे। हर एक, अपनी पहचान से अलग, बदसूरत सी परछाईं ढोंता फिर रहा था।

बैठे बैठे, उसके सामने उस रात की कहानी, किसी टी. वी सीरियल के क्लाइमेक्स एपिसोड के रिप्ले की तरह आँखों के सामने से घूम गई। याद आया कि कैसे उस दिन घर के लोग, फूले नही समा रहे थे, जब अमित का रिश्ता आया था। हालांकि अमित पिछले सात साल से, एक मल्टीनेशनल कंपनी के तहत, सिंगापुर में रह रहा था। लेकिन वह भारतीय संस्कृति से अपना नाता पूरी तरह जोड़े रखना चाहता था। इसलिये आधुनिक कल्चर में रहने के बावजूद भारत आ, शादी कर वापस जाना चाहता था।

खुशी खुशी बड़ी धूम धाम से सारे रस्मो रिवाज के साथ, सभी रिश्तेदारों की मौजूदगी में शादी सम्पन्न हुई थी। ऋचा, मन ही मन खुश थी कि उसे सिंगापुर जैसी जगह जाने को मिलेगा । लोगों का सपना होता है, सिंगापुर में घूमने, शोपिंग के लिए जाने का। वो तो रहने जाने वाली थी।

इस बीच तीन चार बार उसकी मुलाकात हुई अमित से। वो खुश थी कि अमित आधुनिक और खुले विचार का है। उसने ऋचा से कुछ नही छुपाया था। पिछले कुछ सालों में, उसके संबंध कई स्त्रियों से रहे। इस बात को बताते हुए उसके चेहरे पर बड़ा अभिमान और चमक थी।

उसने कहा था किअब वो इन सब चीजों से एकदम उकता गया है। वो जिंदगी में ठहराव चाहता है। और ये सब उसका अतीत था। वर्तमान में वो किसी के साथ नही है। वो इतना जिंदादिल है कि वो आज को जीना चाहता है। उसने ये बात ऋचा को भी समझा दी।

ऋचा को भी अब उसके अतीत से कोई लेना देना नही था। वो इसी से खुश थी कि, आज से अमित उसका वर्तमान और भविष्य है।

उसे याद आया कि, पहली रात किस तरह उसका कमरा, गुलाब से सजा हुआ था, पूरे में रूम हल्की हल्की नीली रौशनी फैली हुई थी। धीमी धीमी आवाज में मधुर संगीत की धुन बज रही थी। गुलाब और रजनीगंधा की मीठी सुगंध कमरे के माहौल को मादक बना रही थी।

अमित ने कहा था कि "रिलैक्स हो जाओ, घबराने की जरूरत नही है, तुम पहले ये ताम झाम उतार के हल्की पुलकी नाइटी पहन लो।

उसने दूध बादाम वाला, गिलास एक तरफ सरका दिया । उसने दो गिलास सामने रख दिये,

उनमे थोड़ी थोड़ी बीयर डाल के कहा "जस्ट रिलैक्स, अपने अपने बारे में खुल के बात करते है, जिससे आने वाले जीवन मे हमारी बॉन्डिंग और अच्छी बने।

ऋचा ने गिलास सामने से परे सरका दिया, उसने ऋचा ने कहा, "मैने पहले कभी पी नही, इसलिये नही पी पाऊँगी। "

ये सुन अमित के चेहरे पर एक राहत की रेखा उभर आई। जिसे उस वक़्त, ऋचा नही देख पाई। फिर अमित ने कहा "देखो तुमसे अब क्या छुपाना क्योकि मैं झूठे दिखावे में, नही मानता और स्त्री पुरुष को एक तराजू में तौलता हूँ। तो तुमसे साफ साफ और स्पष्ट बता दूँ कि, तीन साल से मैं लिव इन में, एक लड़की के साथ रह रहा था, क्योंकि वो विदेशी थी इसलिये शादी, थोड़ी न उस से करता, वो बाद में शादी के लिए बहुत जोर डाल रही थी।

अब शादी...किसी से भी थोड़ी की जा सकती है। उसके लिए तो "माँ"जैसी लड़की चाहिए, घरलू, संयमी, संस्कारी, जो मेरा और आने वाले बच्चों का, मेरी माँ की तरह, ही खयाल रखें"।

ये सुन कर ऋचा का चेहरा थोड़ा उत्तर गया।

अमित ने झट कहा ", इसमे क्या, वो तो मेरा पास्ट था और प्रेजेन्ट तो तुम हो।

चाहता तो ये सब मैं तुमसे छुपा भी सकता था, लेकिन मैं साफ साफ कहने और सुनने में मानता हूँ। अब तुम बताओ, कुछ...अपने बारे मे?मैं भी तुम्हे जानना चाहता हूँ, पूरी तरह तुम्हे, खुल के बताओ"। देखो पति पत्नी से पहले, हमारा दोस्त बनना बहुत जरूरी है। जो अच्छे दोस्त होते है वो एक सफल दंपत्ती सिद्ध होते है आजीवन"।

ऋचा मन ही मन फूली नही समा रही थी, अपने पति के स्पष्ट और खुले बर्ताव से।

ऋचा ने कहना शुरू किया "मुझे भी इससे कतई फर्क नही पड़ता कि आप किसके साथ और कैसे रहते थे, आज से आप मेरे हो और मैं पूर्णरूपेण आपकी।

अगर सच कहूँ तो मेरे जीवन मे भी पुरुषों का, बहुत योगदान रहा है। कई पुरुष मेरी जिंदगी में भी आए" । वो धारा प्रवाह कहती जा रही थी।

यह सुनते ही अमित के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। उसने रूखे लहजे में पूछा " जैसे की"?

ऋचा इतनी खुश और उत्साहित थी कि, वो भूल गई थी कि सुनने वाला कौन है, एक ऐसा पुरुष जो पति बन चुका था।

बस अपनी धुन में कहे जा रही थी।

"जब स्कूल में थी तब एक लड़का पीछे पड़ा था। रोज घर से स्कूल, और स्कूल से घर तक पीछा किया करता जैसे कोई बॉडीगार्ड हो"।

अमित का स्वर थोड़ा बदल गया था-"फिर"?

ऋचा बिना अमित के हाव भाव देखे कहे जा रही थी"फिर क्या? मुझे भी उसके फोलो करने की आदत सी पड़ गई। हालांकि उसने कभी बातनही की मुझसे। न मैने की कभी उससे, बस रोज की रूटीन में शुमार था।

अचानक एक दिन उसने मुझे, एक लेटर दिया, जिसमे एक बड़ा सा दिल बना था और उसके अंदर मेरा नाम लिखा था, और...और लिखा था"आई लव यू"।

अमित -"फिर"?

ऋचा ने कहना जारी रखा,

"अगले दिन ही…

अमित- क्या अगले दिन?

ऋचा- बस, पापा का ट्रांसफर हो गया, और हम सब नए शहर में आ गए।

कुछ दिन तो, नए स्कूल में जरा भी अच्छा नही लगा।

उसकी आदत जो पड़ गई थी। बड़ी याद आती शुरु में, बच्ची थी, शायद ये आकर्षण का पहला अनुभव था।

फिर नए शहर के नए दोस्त ।

कब उसे भूल गई, पता ही नही चला और आज... तुम्हारे पूछने पर, इतने सालों बाद याद आया"। अमित बड़े ध्यान से सुन रहा था सबकुछ।

"उसके बाद कोई और?"

ऋचा -हम्म...जब कॉलेज के फर्स्ट ईयर में थी, तब हमारा ग्रुप बहुत बड़ा था। लगभग, पंद्रह लोगो का, ग्रुप था।

राहुल उसमे सबसे होशियार था। जब किसी को कोई टोपिक समझने में परेशानी होती, तो वो ही सबको समझा देता। इतनी अच्छी तरह से पढ़ाता था कि, लेक्चरर भी चौक जाए।

ये समझो कि उसकी बदौलत ही मुझे डिस्टिंगशन मिला।

जब सब, क्लास बंक मार के मूवी देखने जाते, तो वो मुझे नही जाने देता, और उतने समय में, मेरे सारे डाउट्स क्लियर कर देता। "

"पता ही नही चला...कब इंजीनियरिंग के चार साल निकल गए।

एक बार हम सब गोआ गए थे, पंद्रह जनों का ग्रुप, बड़ा मजा आया।

हां..वही उसने मुझे, प्रपोज़ किया था। "

ऋचा इतनी मगन थी, कि उसने एक भी बार अमित के चेहरे की ओर नही देखा।

अमित के हाव भाव एकदम बदल गए थे। उसके चेहरे का रंग पहले पीला, सफेद फिर लाल होता जा रहा था।

पहले अच्छे दोस्त और फिर पतिपत्नी का फलसफा, हवा होते नजर आ रहे था। उसने गंभीर आवाज में पूछा- "आगे?"

ऋचा याद करते हुए ठोडी पर ऊँगली रखते हुए बोली, " ऊऊऊ... मुझे भी वो पसंद था... लेकिन...लेकिन मुझे पता था इस रिश्ते का कोई भविष्य नही है आगे, क्योकि वो कायस्थ था, हम ब्राह्मण । कोई नही मानता घर में।

इसलिये मैने ए्सेप्ट ही नही किया।

गोआ से वापस आ के, न जाने वो कहाँ चला गया, न तो उसका कोई कॉल ही आया, न मैसेज। किसी को, बिना कुछ बताए ही कहीं चला गया। "

"कुछ महीने तक मन काफी उदास रहा।

किसी से सुना, कि वो पढ़ने अमेरिका चला गया। उसके बाद... मैं एम.बी.ए की तैयारी में लग गई और सब.…बीती बात हो गई।

ये सुन अमित एकदम से खड़ा हुआ और बोला "तो गोआ में क्या क्या मस्ती की। ?वो भी बता ही दो। "ऋचा चौक कर, लगभग चीख पड़ी.. ये क्या कह रहे हो"?

"सच ही कह रहा हूँ, अमित जोर जोर से, बोले जा रहा था।

मुझे मत सिखाओ कि, गोआ लोग क्या करने जाते है। "

ऋचा को काटो तो खून नही। अभी तो, ये कह रहा था कि सब बातें खुल के करो, अब ये कौन सा एटिट्यूड है?

अमित बोले चला जा रहा था "मैं खूब जानता हूँ तुम जैसी लड़कियों को । जो दोस्ती की आड़ में सब कर बैठती है।

बेवकूफ बनाना किसी और को।

मैं ही मिला?

ऐसी ही लड़की चाहिए होती तो, तो उस फ़िरंगन से शादी न कर लेता ? सुनो, तुम जैसी कितनी लडकिया घुमा घुमा के छोड़ चुका हूँ, समझी?

वो तो अच्छे संस्कार वाली शरीफ लड़की चाहिए थी, इसलिए इंडिया आया। तुम्हारे जैसी भारतीय लडकियां तो वहाँ भी खूब मारी मारी फिरती रहती है।

तुमने तो न जाने कितनों के साथ...…

न जाने कितने किस्से, राज और करतूतें छुपा रखी होगी।

कैसे संस्कार है, मां-बाप शादी से पहले ही कैसे भेज देतें है, किसी अन्य लड़के के साथ दूसरे शहर होटलों में रुकने के लिये।

अच्छा....अँधेरे में रख, फसाए दे रहे थे।

"न जाने कितनों के संग ऐसे होटल में रात बिताई होगी"।

ये सुनते ही ऋचा के कान गरम हो गए, उसका चेहरा गुस्से में लाल हो गया, उसने अमित के गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया।

अमित इस अचानक से हुए आकर्मण के लिए एकदम तैयार नही था, वो एकदम स्तब्ध रह गया। कमरे में एकदम सन्नाटा फ़ैल गया।

कुछ सेकेंड तो वो भी समझ नही पाया, फिर अचानक से बोला "तुम्हे इसकी भारी कीमत चुकानी होगी, अब तैयार रहो, दिखता हूँ"।

अमित -गुस्से में बोलता बड़बड़ाता धड़ाम से दरवाजा पीटता वहाँ से बाहर निकल गया।

ऋचा कुछ समझ ही नही पा रही थी, कि ये उसने क्या कर दिया?जिस ऋचा ने आज तक किसी बच्चे को भी गुस्से में नही मारा, आज अचानक, उसके हाथों ये क्या हो गया। अपने इस बर्ताव और बदलाव को वो खुद नही समझ पा रही थी।

कुछ देर पहले तो अमित की इस बात में बड़ा अभिमान झलक रहा था कि"कितनी औरते आई उसके जीवन मे"।

जो बात उसके लिए शान वाली थी, उस बात के भाव और अर्थ मेरे कहने मात्र से, पूरे कैसे बदल गए।

उसे अमित की दोहरी और झूटी मानसिकता पर अफसोस हो रहा था।

जो आचरण, व्यवहार और लिविंग स्टाइल खुद के लिए उसे आधुनिक चलन लगता था, ऋचा के लिये उस बात की चर्चा मात्र करना भी, चरित्र हीनता साबित कैसे हो गई।

ऋचा समझ गई थी, कि "पुरुष " शब्द से, संबंध उस मूर्ख ने सीधे "बिस्तर" से जोड़ लिया था।

वो ये समझ नही पाया कि, ऋचा के पुरुष कहने से, "पापा और रवि" दोनो का समावेश था।

उसे उसकी छोटी, ओछी सोच पर घिन आ रही थी।

उसकी आधुनिकता के ढोंग की पोल खुल गई थी।

कमरे के बाहर, दरवाजे पर, आये रिश्तेदारों की भीड़ लगी थी।

सब ऋचा को ऐसे घूर रहे थे जैसे उसने कोई खून वून कर दिया हो।

ऋचा नजरें नीची किये बस रोए जा रही थी।

बड़ी मुश्किल से बची खुची बाकी रात गुजरी।

सुबह उसने अपने घर फोन किया।

सास तोहमत पे तोहमत लगाए जा रही थी की "अच्छा बेटे का घर बसाने चली थी, न जाने ऐसा तो, क्या कह दिया इस कुलक्षणी, कुलटा ने, कि सुहागरात के दिन बेटा ही चला गया।

सास कहे जा रही थी "हमे क्या पता था कि ऐसी निकलेगी" और भी न जाने क्या क्या बोले जा रही थी।

ऋचा को उनकी कोई बात समझ मे नही आ रही थी। रो रो के उसके दिमाग और कान दोनो बंद हो गए थे।

सारे रिश्तेदार बोरिया बिस्तर समेट निकल लिए थे।

उसे ये बात खाए जा रही थी, कि माँ पापा को, थप्पड़ वाली बात कैसे बताएगी, वो नाराज हुए तो?

उन्होंने अपनी अब तक की जमा पूँजी इस शादी में, विदेश में बसे लड़के के चक्कर मे लगा दी थी।

इतनी धूम-धाम और लेन- देन से की गई, शादी अब टूटी जा रही है, क्या सोंचेंगे, सारे नाते रिश्तेदार। माँ पापा की जग हँसाई होगी।

लोग मजाक उड़ाएँगे, कि बड़े आये थे विदेश में सेटल लड़के से ब्याहने, देखा, ऐसा होता है। और भी न जाने क्या -क्या। उसका दिमाग फटा जा रहा था।

सुबह सुबह ही रवि और पापा दोनो आ गए।

ऋचा ने थप्पड़ वाली सारी बात पापा को बता दी।

पाप ने ऋचा की तरफ देखा और कहा " गाल तो दो होते है, बस एक? तुम्हे सिर्फ डिग्री और सर्टीफिकेट हासिल करने के लिए ही इतनी उच्च शिक्षा नही दिलवाई, अपने आत्मसम्मान और खुद के लिये उचित निर्णय स्वयं ले सको इसलिये दिलवाई है।

चलो अब घर चलो"।

तीनों चल दिये।

एक ही रात में, कहानी कहानी में उसकी जिंदगी बर्बाद हो चुकी थी।

दोस्ती की दलील से, पति पत्नी के संबंध को जोड़ने वाला खुद इतना कच्चा होगा उसने सोचा भी नही था।

कुछ दिन बाद, कुछ पेपर्स आये, उसके नाम, जो अमित ने भेजे थे।

वो तलाक के थे।

ऋचा सोचने लगी कि, शादी भी तो पूरी तरह हो नही पाई थी, अब तलाक।

थोड़ा संभली, तो समझ मे आया कि जो हुआ अच्छा ही हुआ ये, मिट्टी के कच्चे घड़े जैसा संबंध टिकता भी तो, आखिर कितने दिनों तक।

उसने गहरी लम्बी साँस ली।

तभी हाथ मे कुछ गर्म गर्म महसूस हुआ, उसका ध्यान टूटा तो रवि चाय ले के खड़ा था, "लो दीदी चाय"। अचानक ऋचा का मोबाइल बज उठा, उसने देखा तो पापा की फ़ोटो स्क्रीन पे उभर गई।

पापा उससे कह रहे थे " बेटा, सारी दुनिया एक सी नही होती, किसी के जाने से, या जीवन नही रुकता। आगे बढ़ना ही जीवन की सार्थकता है। तुम खुद समझदार हो अपना निर्णय खुद ले सकती हो। तुम्हारा निर्णय हमे मान्य रहेगा। ध्यान रखना"।

ऋचा कुछ समझ नही पाई कि पापा ये सब अभी क्यों कह रहे है। बस "जी पापा"इतना ही कह पाई थी। तभी रवि कह उठा।

"देखो तो कौन मिल गया बाहर"?

उसने नजर उठाई तो सामने

राहुल खड़ा मुस्कुरा रहा था।

रवि ने शायद उसे सब बता दिया था।

तभी ऋचा का मोबाइल फिर बज उठा, कोई सामने से कह रहा था । " मैडम आप का सिलेक्शन तो हो गया है, लेकिन सिंगापुर के लिये। थोड़ी देर में आपको एक मेल आएगा"।

ऋचा समझ नही पा रही थी कि इतने साल बाद अचानक राहुल को सामने देख कर खुश हो, या कोई और एक्सप्रेशन दे।

या मेल का रिप्लाई।

अचानक, ऋचा ने अपना लैपटॉप खोला, और मेल का रिप्लाई, सोरी लिख, बंद किया।

तभी ऋचा को उसके केस की सुनवाई के लिए पुकारा गया।

और वो चुपचाप अंदर जाने लगी।

राहुल ने उसका हाथ पकड़ कहा "तुम अकेली नही अब मैं भी साथ ही जाऊँगा"।

उसके ऐसे अचानक वर्ताव से ऋचा कुछ नही कह पाई और उसके साथ भीतर चल पड़ी।

समाप्त

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